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Saturday, 4 May, 2024
होमदेश‘दिल्ली का अपनी ताक़त दिखाना ज़रूरी’- म्यांमार जुंटा की बमबारी ने मिजोरम के गांवों में फैलाई दहशत

‘दिल्ली का अपनी ताक़त दिखाना ज़रूरी’- म्यांमार जुंटा की बमबारी ने मिजोरम के गांवों में फैलाई दहशत

म्यांमार में विद्रोही शिविरों से लेकर मिजोरम के गांवों तक, सीमा के दोनों तरफ चिन समुदायों के बीच गहरे संबंध हैं. इसलिए म्यांमार जुंटा के हवाई हमले भारत के लिए भी एक समस्या हैं.

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फारकॉन, मिजोरम: म्यांमार-भारत सीमा पर तियाउ नदी के किनारे हरे-भरे धान के खेतों में उस समय लोगों की भीड़ नजर आने लगी जब बच्चों को स्थानीय स्कूल की इमारत से बाहर निकाला गया और ग्रामीण भी भागकर सुरक्षित स्थानों की ओर जाने लगे. स्थानीय लोगों को आगाह किए जाने के कुछ ही देर बाद तीन लड़ाकू जेट म्यांमार के ताडा-यू मांडले क्षेत्र के म्यांमार वायु सेना बेस से उत्तर-पूर्व की ओर उड़ान भरते नजर आए, जो म्यांमार के सैन्य शासन के खिलाफ लड़ रही नागरिक मिलिशिया चिनलैंड डिफेंस फोर्सेस के विद्रोहियों पर बमबारी के मिशन पर निकले थे.

चिन नेशनल ऑर्गनाइजेशन (सीएनओ) महासचिव 27 वर्षीय सलाई वान थौंग थौंग इस आशंका को लेकर बहुत विचलित नहीं दिखे कि धमाके जल्द ही जनवरी की धुंध भरी सुबह का सन्नाटा तोड़ देंगे. उन्होंने कहा, ‘हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं.’

हालांकि, उस दिन यानी 16 जनवरी को भारतीय राज्य मिजोरम की सीमा से लगते म्यांमार के चिन क्षेत्र फलम टाउनशिप के गांव में बम नहीं गिराया गया था, लेकिन इसका खतरा हर दिन बना रहता है.

सीमावर्ती गांव, जिसका दिप्रिंट ने इस सप्ताह की शुरू में दौरा किया, वो जगह है जो चिन नेशनल डिफेंस फोर्स (सीएनडीएफ) का एक अस्थायी ठिकाना है. इसमें उसका एक शस्त्रागार है, और ड्रोन, माइंस और स्नाइपर यूनिटों के सेक्शन भी हैं.

क्रेडिट: सोहम सेन

सीएनडीएफ चिन नेशनल ऑर्गनाइजेशन (सीएनओ) की फाइटिंग फोर्स है, जिसका गठन 13 अप्रैल 2021 को तख्तापलट के जवाब में किया गया था. गौरतलब है कि म्यांमार की सशस्त्र सेना ने उसी वर्ष फरवरी में तख्तापलट को अंजाम दिया था.

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मिजोरम में बसे चिन समुदायों की वजह से इस प्रतिरोध आंदोलन का इस राज्य से गहरा नाता है. दरअसल, सीएनओ/सीएनडीएफ की स्थापना चम्फाई, मिजोरम में चर्चाओं के दौर के बाद हुई थी जिसमें सीमा के दोनों ओर बसे चिन समुदायों के सदस्यों ने हिस्सा लिया था.

इस माह के शुरू में मिजोरम के फॉरकान गांव से लगभग 10 किमी दूर स्थित चिन नेशनल आर्मी के मुख्यालय कैंप विक्टोरिया को निशाना बनाकर दो हवाई हमले किए गए थे. चिन नेशनल आर्मी पश्चिमी म्यांमार में लंबे समय से सक्रिय चिन नेशनल फ्रंट (सीएनएफ) की सशस्त्र शाखा है, देश के जातीय सशस्त्र संगठन आम तौर पर किसी राजनीतिक निकाय की सैन्य शाखा के तौर पर कार्य करते हैं.

हवाई हमले के दौरान गिराए गए पांच बमों में से तीन चिन सैन्य शिविर पर गिरे, जिसमें पांच लोग मारे गए और 12 अन्य घायल हो गए.

शिविर के नजदीक विक्टोरिया अस्पताल के एक मेडिकल वालंटियर ने बताया, ‘जब बमबारी हुई उसके ठीक पहले हमने एक सर्जरी पूरी की थी.’ उन्होंने बताया कि बंकर ढहने के कारण दम घुटने से लोगों की मौत हो गई.

दो अन्य बम घातक ढंग से भारतीय सीमा के निकट फटे. चम्फाई के उपायुक्त (डीसी) जेम्स लालरिंचन की तरफ से राज्य के गृह विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया कि ‘बमों में से एक या उसके छर्रे टियाउ नदी में गिरे.’

भारत (आर) और म्यांमार (एल) तियाउ नदी (म्यांमार में टियो) के उथले पानी से अलग हो गए हैं जो दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाते हैं | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

भारत-म्यांमार सीमा पर दोनों तरफ से स्थित छोटे-छोटे गांवों के निवासियों के लिए कोई एक-दूसरे के लिए अजनबी नहीं है. नदी के दोनों किनारों की तरफ रहने वाले लोग जातीय आधार के साथ-साथ रिश्तेदारी के कारण भी एक-दूसरे से जुड़े हैं.

फलम शिविर में भी लड़ाके भारत से भोजन और चिकित्सा आपूर्ति पर निर्भर हैं. कुछ भारतीय नागरिकों सहित कैडर तियाउ नदी के किनारे, बांस और अन्य पेड़ों वाले हरे-भरे पहाड़ों से घिरे क्षेत्र में फायरिंग का अभ्यास भी करते हैं. इस महीने की बमबारी से पता चलता है कि म्यांमार में हिंसक संघर्ष में यह भागीदारी किस तरह से भारत को खतरे में डाल सकती है.


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भारत में बढ़ते शरणार्थी

मिजोरम में सर्दियों के कोहरे में लिपटे और चेरी ब्लॉसम के पेड़ों से घिरे फॉरकान और वफाई गांव दुनिया के सबसे घातक युद्धक्षेत्रों में से एक के किनारे पर स्थित हैं.

मिजोरम सरकार के मुताबिक, 2021 से अब तक म्यामांर के करीब 30,400 नागरिकों ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में शरण ली है, जब उस देश में सैन्य तख्तापलट के बाद विद्रोहियों ने जुंटा के खिलाफ हथियार उठा लिए थे. इन प्रतिरोध बलों में शामिल लोगों में से कोई रिश्तेदारों के यहां रह रहा है तो कोई छावनियों में है.

हवाई हमलों के बाद से एक अजब सन्नाटा पसरा हुआ है, एजल से 250 किलोमीटर से अधिक पहाड़ी सड़कों पर कुछ ही वाहन आवाजाही करते नजर आते हैं.

चम्फाई, मिजोरम के पूर्वी भाग में वाफाई गांव की खाली सड़कें | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

वफाई में कार मैकेनिक का काम करने वाले 38 वर्षीय पटिया ने कहा, ‘हम म्यांमार के पास घाटी में खेती करते हैं. चावल और मक्का उगाते हैं. क्या होगा अगर म्यांमार की सेना हमें गलती से सशस्त्र विद्रोही समझ ले और हमारी जमीन पर बमबारी कर दे? हमारी अपेक्षा है कि सरकार की तरफ से कुछ सुरक्षा मुहैया कराई जाए और भारत अपनी सैन्य ताकत भी दिखाए.’

वफाई में स्नैक बार चलाने वाली सांगी ने कहा कि उन्होंने हवाई हमले को पहले तो ही भूकंप समझा था. उसने कहा, ‘मैंने दुकान बंद कर दी और घर के अंदर चली गई.’

चम्फाई के डीसी लालरिंचन ने कहा कि हवाई हमले के बाद और अधिक शरणार्थी सीमा पार करके आ गए थे. जिला प्रशासन की तरफ से मुहैया कराए गए 21 जनवरी तक के आंकड़े बताते हैं, चम्फाई में भारतीय सीमा क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों सहित 9,700 से अधिक लोग अस्थायी आश्रयों, किराए के घरों में या अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं.

फारकॉन स्थित एक शरणार्थी शिविर में सांगघक और किमथलुई, दोनों की उम्र 60 के करीब थी, रात का खाना तैयार करने में जुटे थे. म्यांमार के तहान जिले का यह परिवार मछली बेचकर अपनी जीविका चलाता था, लेकिन अब डोनेशन पर निर्भर है. उनकी 95 वर्षीय मां, फैमचन गंभीर पीठ दर्द से पीड़ित हैं. लेकिन उनका कहना है कि मिजोरम में रहना उनके लिए सहज है और उन्हें म्यांमार में कोई हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा है.

परिवार की युवा पीढ़ी में शामिल एक 12 वर्षीय लड़का प्रतिरोध बलों में शामिल हो गया है और अब जंगल में रह रहा है. परिवार को उस पर गर्व महसूस होता है.

संगघाक और किम्थलुआइ, और उनकी मां, फामचन, फरकावन गांव, चम्फाई में अपने अस्थायी आश्रय में | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

तहान की ही रहने वाली तीन बच्चों की मां 28 वर्षीय बिआक्रम पारी ने कहा, ‘अगर म्यांमार की सेना ऐसी ही रही, तो हम हमेशा के लिए यहां रहेंगे, लेकिन जब देश सुरक्षित होगा, तो हम वापस जाने को तैयार हैं. कई परिवार और दोस्त पीछे छूट गए हैं.’

अपने पति के साथ पत्थर तोड़ने के काम में लगी पारी ने कहा, ‘हम आराम से हैं. यहां के लोग मिलनसार हैं, और वे हमें आश्रय के साथ जरूरी चीजें भी उपलब्ध कराते हैं. पहले तो हमें थोड़ा अजीब लगा था लेकिन स्थानीय लोग बहुत खातिरदारी करते हैं. इस समय हमारी जरूरतें कम हैं. कभी-कभी इंतजाम करना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन हम गुजारा करने लायक इंतजाम कर लेते हैं.’

बिआक्रेम पारी, तीन बच्चों की मां, जो तहान से आई हैं और अब फारकॉन के इस शरणार्थी आश्रय में रहती हैं | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

चम्फाई के डीसी लालरिंचन ने कहा, ‘लोगों ने हमारे दरवाजे खटखटाए हैं और हमें अपनी क्षमता के मुताबिक जो कुछ संभव है, वह करना होगा. अगर और हवाई हमले नहीं होते हैं तो चीजें जल्द ही सामान्य हो जाएंगी.’

हालांकि, कुछ ही लोगों को लगता है यह सब खत्म होने वाला है. जैसे-जैसे असंतुष्ट शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है, इसके साक्ष्य बढ़ते जा रहे हैं कि मिजोरम से विद्रोहियों के लिए युद्ध सामग्री भेजी जा रही है. पिछले साल के अंत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने म्यांमार में दो टन से अधिक इंडस्ट्रियल एक्सप्लोसिव पहुंचने से जुड़े मामले में कई गिरफ्तारियां की थीं.

फलम पर और ज्यादा हवाई हमलों का खतरा भांपते हुए और ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए टियाउ के पास ठिकाना बनाए प्रतिरोध बल के लड़ाकों का कहना है कि वे सीमा से और दूर जाने की योजना बना रहे हैं.

चिन विद्रोह

टियाउ के तट पर स्थित कैंप विक्टोरिया लंबे समय से म्यांमार की सेना ततमादॉ के खिलाफ दशकों पुराने विद्रोही अभियान का केंद्र रहा है.

1988 के सैन्य तख्तापलट के बाद शरणार्थी चिन राज्य से सीमा पार आ गए, जबकि युवा लड़ाकों की एक पीढ़ी ने हथियार उठा लिए. भारत इस आशंका के साथ इस पर सतर्कता से नजर रखता रहा कि यह संघर्ष मिजोरम के अंदर विद्रोही समूहों को फिर सक्रिय कर सकता है. लेकिन 2015 में, चिन विद्रोहियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति यू थीन सीन की सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौता कर लिया.

लेकिन 2021 के फिर सैन्य तख्तापलट ने संघर्ष शुरू करा दिया.

इस क्षेत्र में अन्य जगहों पर भी हवाई हमले किए गए हैं, क्योंकि म्यांमार सेना के लिए सफलता के साथ बढ़ता विद्रोह एक कड़ी चुनौती बना हुआ है. उदाहरण के तौर पर, 18 जनवरी को म्यांमार के दो सैन्य विमानों ने 1,800 घरों के समूह पर बमबारी की, जिसमें ऊपरी सागैंग क्षेत्र में काथा टाउनशिप में सात नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हो गए. उससे तीन दिन पहले, 15 जनवरी को, जुंटा सैनिकों ने एक सदी से भी अधिक पुराने एक चर्च को ध्वस्त कर दिया.

सीएनओ/सीएनडीएफ सैन्य कमांडर पीटर थांग ने दिप्रिंट को बताया कि जनवरी के हवाई हमले के बाद म्यांमार के जेट विमानों ने तीन दिनों तक निगरानी अभियान चलाया. 36 वर्षीय थांग ने कहा, ‘वे लगभग हर दिन दोपहर में उड़ान भरते थे, लेकिन इस बार वे जल्दी आ गए.’

4 अप्रैल 2021 को गठित चिन डिफेंस फोर्स (सीडीएफ) 18 जातीय चिन सशस्त्र संगठनों से बनी है, जिसमें विभिन्न टाउनशिप और क्षेत्रों में बसी जनजातियां शामिल हैं. वहीं सीडीएफ एक बड़े संयुक्त संगठन चिनलैंड संयुक्त रक्षा समिति का हिस्सा है, जो विभिन्न समूहों के बीच मतभेदों की स्थिति में मध्यस्थता भी करती है.

थांग ने सफाई देते हुए कहा, ‘हम यह नहीं कहते कि हम पूरे चिन राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं. हम केवल फलम का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हम गठबंधन बना रहे हैं और एक अलग चिन राज्य के लिए सहयोग के लक्ष्य के साथ अन्य टाउनशिप को मनाने में लगे हैं.’

भारत-म्यांमार सीमा की ओर मुख किए हुए फलम शिविर में खड़ा एक चिन सैनिक | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

थांग ने बताया कि स्थिति कुछ हद तक नगालैंड की तरह है, जहां नगालिम के इसाक-मुइवा गुट की नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ‘कहती है कि वह सभी नगाओं के साथ हैं, लेकिन इसका नेतृत्व वास्तव में एक जनजाति या एक निश्चित क्षेत्र के नगाओं का ही प्रतिनिधित्व करता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, सीएनडीएफ सागैंग डिवीजन में फलम टाउनशिप और भारत में ऊपरी चिंडविन क्षेत्र के लोगों के प्रतिनिधित्व ही ज्यादा है जिसमें कई स्वदेशी फलम परिवार शामिल हैं.’

थांग ने कहा कि चिन नेशनल फ्रंट सैन्य दृष्टि से मजबूत है, लेकिन प्रशासनिक ढांचा विकसित किया जाना अभी बाकी है.

सीएनओ/सीएनडीएफ के महासचिव थावंग थावंग के मुताबिक, उनके संगठन और सीएनएफ के बीच अच्छा तालमेल है.

उन्होंने कहा, ‘हम एक साथ लड़ते हैं, कभी-कभी हम उनसे भारी हथियार लेते हैं. जब कैंप विक्टोरिया में बम विस्फोट हुए, तो हमने फोन करके अपने परिचितों और दोस्तों का हाल जाना. चूंकि हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे, इसलिए छिपे रहे और प्रार्थना की.’


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‘एक अलग सरकार की तरह’

सबसे शक्तिशाली होने के बावजूद भी म्यांमार के केंद्रीय प्राधिकरण ने शायद ही कभी चिन क्षेत्रों तक विस्तार किया है—और आज भी यहां विद्रोही समूहों के पास प्रभावी ताकत है.

सीडीएफ लोकतांत्रिक विपक्ष का प्रतिनिधित्व करने के साथ नेशनल यूनिटी ग्रुप के साथ मिलकर काम करता है. हालांकि, फलम टाउनशिप खुद सेना के कब्जे में है, सीएनओ/सीएनडीएफ का दावा है कि 70,000 से अधिक लोगों की आबादी वाले कुल 186 गांवों पर उसका नियंत्रण है.

थांग ने कहा, ‘जिस जगह हमारा नियंत्रण है, वहां हमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, प्रशासन और अन्य सुविधाएं मुहैया करानी हैं.’

फलम में ज्यादातर बड़े बच्चों ने सैन्य प्रशिक्षण पूरा किया है क्योंकि उन्होंने सशस्त्र समूह में शामिल होना चुना था. लेकिन वे अपनी शिक्षा पूरी करना चाहते हैं. गांव के स्कूल, जहां किंडरगार्टन से लेकर 11वीं कक्षा तक के बच्चों का दाखिला होता है, में किशोरों के समूहों को अवकाश के दौरान फुटबॉल खेलते या बातें करते देखा गया. उस दिन फाइटर जेट नहीं आए. तो नए लोगों को आते देख खिड़ती से झांकते नन्हे-मुन्ने बच्चों के चेहरे खिल गए.

म्यांमार के फलम टाउनशिप के अंतर्गत छोटे से गांव का एक ऊपर से लिया गया दृश्य | क्रेडिट: करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

18 वर्षीय एंथोनी बावीसिम्मावी, जिसे फुटबॉल खेलना पसंद है, ने बताया कि वह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सशस्त्र आंदोलन में शामिल हुआ था. उसने कहा, ‘हालांकि यह सब कभी-कभी बहुत कठिन होता है, लेकिन हम सभी को गर्व महसूस होता है. पिछले हफ्ते, मैंने बहुत करीब से जेट आते देखे. मुझे पता है कि वे हमें गोली मारने आते हैं.’ एंथोनी स्कूल पूरा करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता है.

न्यू हैमहुआल गांव की 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा एक 17 वर्षीय महिला सैनिक ने कहा, ‘मैं एके-47 चलाना जानती हूं. यह मेरा पसंदीदा हथियार है. मैं एक सैनिक हूं और अपने देश की रक्षा के लिए कुछ भी करूंगी.’

सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा रहे पॉल ऐमिनहुत और सुइखावनेई जैसे टीचर सीएनओ के सम्मानित सदस्यों में शामिल हैं, जो भविष्य को बेहतर बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. सुइखावनेई ने कहा, ‘हम कभी-कभी लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों को देखने से चूक जाते हैं, लेकिन बच्चे हमेशा सतर्क रहते हैं.’

फंड के सवाल पर थौंग थौंग का कहना था कि चिन डायस्पोरा प्रमुख योगदानकर्ता है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे कुछ लोग विदेशों में रहते हैं, और ओमान, सिंगापुर, मैकॉ और चीन जैसी जगहों पर मेड के तौर पर काम करते हैं.’ साथ ही जोड़ा कि संगठन अपने नियंत्रण वाली चौकियों से गुजरने वाले सामानों पर राजस्व भी वसूलता है, हालांकि वह ये दावा भी करते हैं कि भुगतान स्वैच्छिक होता है. उन्होंने कहा, ‘असॉल्ट राइफल्स की कीमत पहले 30-50 लाख रुपये (भारतीय रुपये) थी, लेकिन अब 130 लाख रुपये के करीब हो गई है. हमारे पास अभी भारी हथियार नहीं हैं.’

भारत के विद्रोहियों को हथियार बना रहा म्यांमार

उधर, ततमादॉ अपनी तरफ से चिन के खिलाफ पूर्वोत्तर भारत के अन्य विद्रोहियों को हथियार बनाने में जुटा है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के खिलाफ काम करने वाली ताकतों का इस्तेमाल कर रहा है.

गौरतलब है, पिछले साल मणिपुर के जातीय मैतेई विद्रोहियों के ततमादॉ के साथ हाथ मिलाने की जानकारी सामने आई थी. जोमी रिवोल्यूशनरी ऑर्गनाइजेशन/ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरओ/जेडआरए)—जो चीन-भारत सीमा पर सक्रिय एक सशस्त्र समूह—ने कथित तौर पर चिन राज्य में प्रतिरोध समूहों के ठिकानों पर छापा मारा था.

हालांकि, विद्रोही गठबंधन भी जातीय दायरों से परे जाकर संबंध विकसित कर रहा है. चिन के साथ मिलकर काम करने वाले समूहों में काफी शक्तिशाली मानी जाने वाली अराकान सेना भी शामिल है. देश में अन्य जगहों पर विचार-विमर्श के स्तर पर चिन और जातीय समूहों के बीच संबंध कायम हैं.

जातीय समूहों को उम्मीद है कि म्यांमार की नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी)—जुंटा का विरोध कर रही निर्वासित सरकार—में भागीदारी अंततः आत्मनिर्णय की ओर ले जाएगी.

अप्रैल 2021 में गठित एनयूजी में युवा और लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता शामिल हैं. अपने गठन के बाद ही एनयूजी ने सैन्य शासन के खिलाफ सीएनएफ/सीएनए से हाथ मिला लिया था. म्यांमार सरकार ने एनयूजी को अवैध और उसकी सशस्त्र विंग पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) को आतंकवादी संगठन करार दे रहा है.

एनयूजी में मानवीय मामलों और आपदा प्रबंधन मंत्रालय के उप मंत्री डॉ. नगई ताम मौंग ने एक अज्ञात स्थान से दिप्रिंट के साथ बातचीत में कहा, ‘युवा पीढ़ी ने इस क्रांति की शुरुआत की है. आज, वे मजबूती से खड़े हैं और कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं, भले ही यह कीमत बहुत अधिक क्यों न हो. हमें बलिदानों का खेद है, हमने बहुत कुछ खोया है, लेकिन हमने जो शुरू किया है उसे पूरा करना होगा.’

चिन राज्य के मिंडैट टाउनशिप के रहने वाले मौंग ने कहा, ‘सामाजिक और राजनीतिक रूप से म्यांमार की सेना पहले ही लड़ाई हार चुकी है, लेकिन सैन्य स्तर पर वे हमसे अधिक मजबूत हैं. हमें त्वरित मानवीय सहायता और सैन्य सहायता की आवश्यकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: अलमिना खातून)


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