scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेश9 महीने की गर्भवती ने यूपी से बिहार तक 900 किमी की यात्रा की, फिर डिलीवरी के लिए करना पड़ा घंटों इंतजार

9 महीने की गर्भवती ने यूपी से बिहार तक 900 किमी की यात्रा की, फिर डिलीवरी के लिए करना पड़ा घंटों इंतजार

मजदूरों की इस हालत के लिए नीतीश सरकार जिम्मेदार है. डबल इंजन की सरकार है नेता तो आराम से अपनी कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन मजदूरों को तपती सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया है.

Text Size:

गोपालगंज: भूखी, प्यासी नौ महीने का पेट लिए रेखा देवी ने ग्रेटर नोएडा से बिहार के गोपालगंज तक तीन दिनों तक ट्रक से 900 किलोमीटर का सफर तय किया. गुरुवार को यूपी-बिहार बॉर्डर को पार कर दस किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद जब वो ट्रांजिट सेंटर पहुंची तो उन्हें प्रसव पीड़ा होनी शुरू हो गई. वह बहुत मुश्किल से कुर्सी पर बैठ पा रही थीं.  रेखा का परिवार बताता है कि प्रशासन और पुलिस ने शुरुआत में कोई मदद नहीं की जिसके बाद ही उन्हें पैदल चलकर आना पड़ा.

रेखा के साथ 19 लोगों का एक ग्रुप आ रहा था जिसमें दो महिलाएं, चार आदमी और 12 बच्चे शामिल थे. रेखा का ये पांचवां बच्चा है. ये सारे लोग बिहार में अपने जिले सुपौल जा रहे थे. गोपालगंज से सुपौल 300 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर है.

प्रसव पीड़ा से परेशान रेखा/फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

गुरुवार शाम 5:45 पर उन्होंने बिहार के गोपालगंज के सदर अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया. ताजा रिपोर्ट के अनुसार बच्ची और उसकी मां फिलहाल स्वस्थ हैं.

रेखा की महिला रिश्तेदार, जिनका नाम भी रेखा है, दिप्रिंट को बताती हैं, ‘हम लोग पिछले चार दिन से सड़क पर हैं. रेखा नौ महीने के पेट से हैं. उनको कभी भी बच्चा हो सकता है. ट्रक ने तो हमें कुछ दूरी पर उतार दिया.

वह आगे कहती हैं,’ हमने पुलिस से कहा कि रेखा को ट्रांजिट सेंटर पर छोड़ दें क्योंकि वो चल नहीं पा रही है. लेकिन हमें कोई मदद नहीं मिली.’

‘रेखा को इस हालत में करीब दस किलोमीटर पैदल ही चलकर आना पड़ा. हमारे साथ छह महीने के बच्चे भी हैं. हमें सबको साथ लेकर ही जाना है.’

‘सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा’

रेखा के पति संदीप यादव अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहते हैं, ‘मेरे पास कोई चारा नहीं था. वहां तो भूखे मर जाते. इसलिए ट्रक में लाना पड़ा. मैं भी मजबूर हूं.’

वह बताते हैं, ‘ जब उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो हम घर जाने की जल्दी की ताकि बच्चा घर पर हो सके.’

रेखा इतनी पीड़ा में थीं कि वो ठीक से कुर्सी पर भी बैठ नहीं पा रहीं थी/ फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

‘यहां का प्रशासन एक बस में पांच जिलों के लोगों को ठूंस रहा है. वायरस के डर से ये सब कर दिया तो अब ऐसे क्यों भर रहे हैं बसों में.’

संदीप ग्रेटर नोएडा में एक दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं और बड़ी मुश्किल से परिवार का पेट पालते हैं.

संदीप प्रशासन की तैयारियों को लेकर गुस्से में थे और सोशल डिस्टेंसिग का पालन नहीं होने पर वो चिंता जताते हैं. अपने असहाय महसूस करने के को लेकर वो कहते हैं, ‘ऐसी जगह कोरोना नहीं फैलेगा तो कहां फैलेगा?


यह भी पढ़ें: क्या एचसीक्यू की जगह ले सकता है अश्वगंधा, कोरोना के खिलाफ ये कितना कारगर है इसका शोध करा रही है मोदी सरकार


इस बाबत गोपालगंज के डीएम अरशद अजीज दिप्रिंट को बताते हैं, ‘राज्य में कई जिलों को लेकर एक ट्रांजिट सेंटर बनाया गया है. जहां से लोगों को अलग बसें पकड़कर अपने-अपने जिलों में जाना है. वो बसें भी जिला प्रशासन द्वारा अरेंज कराई गई हैं.’

सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ने की बात पर वो कहते हैं, ‘हम लोग अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

डीएम दिप्रिंट को बताते हैं, ‘लेकिन एक साथ बीस से पच्चीस हजार लोग एकसाथ आ जाएंगे तो सोशल डिस्टेंसिंग संभव ही नहीं है. इतनी ज्यादा संख्या में लोग आ रहे हैं लेकिन प्रशासन फिर भी पूरी कोशिश कर रहा है. हमने इलाके में सर्कल्स भी बनाए हैं ताकि लोग उसके हिसाब से खड़े हो सकें. बिहार में दो जगह पर ही प्रवासी मजदूर इतनी बड़ी संख्या में लौट रहे हैं- गोपालगंज और कैमूर. दोनों ही जगह बराबर भीड़ है. कभी-कभी मुश्किल हो जाता है.’

अजीज ये भी बताते हैं कि जो लोग लौट रहे हैं उनके लिए खाना भी बनवाया जा रहा है. ट्रांजिट सेंटर के साथ-साथ कम्यूनिटी किचन भी है. जहां खाना बनाया और पैक किया जा रहा है.

‘सफाई की ठीक व्यवस्था नहीं’

ग्राउंड पर दिप्रिंट ने देखा कि खाने के खाली पैकेट, प्लास्टिक और पानी की बोतलें बिखरीं पड़ी थीं. कई मजदूर शिकायत कर रहे थे कि इस गंदगी से कोरोना नहीं फैलेगा तो कहां फैलेगा.

राजस्थान से सात दिन पैदल चल कर आ रहे शौकत अली को अररिया जाना था लेकिन वो बिहार सरकार की तैयारियों पर बिफर पड़े. वो कहते हैं, ‘आप ये गंदगी देखिए. हम भी तो बीमार पड़ सकते हैं. मजदूर हैं लेकिन हैं तो इंसान ही. अब यहां से भी बस नहीं मिलेगी तो पैदल ही चलेंगे. हमारे लिए कोई नहीं सोचता.’

लेकिन डीएम अरशद अजीज कहते हैं कि हर दो घंटे में दरी बदली जा रही हैं और सफाई की जा रही है. लेकिन भीड़ इतनी है कि गंदगी फैल रही है.


यह भी पढ़ें: मोदी का आत्म-निर्भर भारत आइडिया वही है जो गांधी का था- आधुनिकीकरण हो, लेकिन पश्चिम पर निर्भरता नहीं


वो कहते हैं, ‘मैं, एसपी और बाकी अधिकारी भी हर रोज दो घंटे के लिए वहां दौरे पर जाते हैं और ग्राउंड पर हो रही चीजों का जायजा लेते हैं. पुलिस और मेडिकल टीम हैं वहां ताकि सही तरीके से मैनेज किया जा सके.’

‘कोविड के संदेह से चिकित्सा सहायता नहीं’

संदीप यादव आरोप लगाते हैं कि उनकी पत्नी की ट्रांजिट सेंटर पर कोई मदद नहीं की गई. वो रोते रहे और मदद मांगते रहे. उनके परिवार वाले भी कुछ ऐसे ही आरोप लगाते हैं. लेकिन डीएम कहते हैं कि रेखा और उनके पति ने ट्रांजिट सेंटर पर कोई मदद नहीं मांगी थी.

बिहार में लॉकडाउन के बाद प्रशासन की ये है व्यवस्था/फोटो: बिस्मी टस्कीन/दिप्रिंट

वो आगे कहते हैं, ‘परिवार ने जब स्क्रीनिंग हो रही थी तब डॉक्टरों को भी डिलीवरी के बारे में नहीं बताया कि उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने वाली है. वो लोग बार-बार घर जाने की बात ही दोहराते रहे कि साधन उपलब्ध करा दो. हम खुद ही डिलिवरी करा लेंगे.’

हालांकि अस्पताल पहुंचने के बाद भी रेखा को तुरंत मदद नहीं मिल सकी. दिप्रिंट ने देखा कि कैसे डॉक्टरों ने शुरुआत में परिवार और उनकी प्रेग्नेंसी को लेकर झूठ बोला और जिला प्रशासन को मिसगाइड किया. उन्होंने कहा कि रेखा का अभी आंठवां महीना ही चल रहा है और अभी बच्चा होने में समय है. साथ ही उनकी मेडिकल रिपोर्ट में नहीं बताया गया कि ये उनका पांचवा बच्चा है.

गोपालगंज ट्रांजिट कैंप के बाहर गंदगी का ढेर लगा है/फोटो: बिस्मी टस्कीन/दिप्रिंट

जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘डॉक्टरों ने कोरोना के डर से ये सब किया. उन्हें लगा कि डिलीवरी हुई तो बच्चा और रेखा बाकियों को भी कोराना फैला सकते हैं. लेकिन जब एक अधिकारी ने अस्पताल में फोन किया तब जाकर रेखा को प्रसव कक्ष में ले जाया गया.

डिलीवरी कराने वाली नर्सों ने दिप्रिंट को बताया कि रेखा की हालत खराब थी और उसे अतिरिक्त केयर की जरूरत थी. अगर उन्हें समय पर अस्पताल नहीं लाया गया होता तो उनके साथ कुछ भी अनहोनी हो सकती थी क्योंकि उनकी डिलीवरी कई दिन लेट हो चुकी थी और बच्चे की नाल सड़ चुकी थी. अगर इन्फेक्शन शुरू हो जाता तो मां और बच्चा दोनों ही मुश्किल में होते. लेकिन फिलहाल बच्चा और जच्चा दोनों ही स्वस्थ हैं.

‘हमारी हालत के लिए नीतीश सरकार जिम्मेदार’

रेखा का परिवार ट्रांजिट सेंटर पर हुई सभी असुविधाओं के लिए सरकार से गुस्सा थे. उन्होंने नीतीश सरकार पर भी लोगों को इस मुसीबत से बाहर ना निकालने के आरोप लगाए.


यह भी पढ़ें: आदिवासी ग्रामीणों से छत्तीसगढ़ सरकार इस बार सीधे खरीदेगी 225 करोड़ रुपए के लघु वनोपज, एजेंटों की मोनोपॉली होगी खत्म


उनकी एक महिला रिश्तेदार कहती हैं, ‘सरकार असंवेदनशील है. ये हमारे जैसे मजदूरों से मुक्ति पाना चाहती है इसलिए हमें मरने के हाल पर छोड़ दिया है. अगर हमारी फिक्र होती तो कुछ साधन तो अरेंज करते.’ उनका परिवार कहता है कि वो लोग ऑनलाइन टिकट बुक नहीं करा सके इसलिए उन्होंने पैदल या ट्रक से जाने के बारे में ही सोचा.

संदीप कहते हैं, ‘नीतीश सरकार हमारी इस हालत के लिए जिम्मेदार है. डबल इंजन की सरकार है नेता खुद कुर्सी पर आराम से बैठे हैं और हमें तपती सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया है.’

‘फिर से एक और लड़की’

लड़की पैदा होने की खबर जब वार्ड के बाहर अपनी सबसे छोटी बच्ची को गोद में लिए संदीप को पता चली तो वो रोने लगे. रोते-रोते वो कहते हैं, ‘मेरे पिता भी उधर गांव में रो रहे हैं. मेरी चार बेटियां हैं. एक और हो गई. जैसे ये पैदा हुई मेरे दिमाग में चलने लगा कि इनकी शादी और पढ़ाई का खर्च कैसे उठाऊंगा. अगर बेटा होता तो कुछ कमा कर देता भी.’

संदीप और रेखा की चार बेटियां हैं. उनके लिए इतने बड़े परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है. रेखा भी डिलीवरी होने के बाद उदास ही बेड पर लेटी रहीं. उसके चेहरे पर निराशा के भाव झलक रहे थे. वार्ड में खड़ी महिला रिश्तेदार हमें कहती हैं, ‘किस बात की खुशी? एक और बेटी पैदा होने की खुशी? ये गरीब परिवार इतनी लड़कियां कैसे पालेगा? लड़का होता तो कुछ कमा लेता.’

share & View comments