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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशआदिवासी ग्रामीणों से छत्तीसगढ़ सरकार इस बार सीधे खरीदेगी 225 करोड़ रुपए के लघु वनोपज, एजेंटों की मोनोपॉली होगी खत्म

आदिवासी ग्रामीणों से छत्तीसगढ़ सरकार इस बार सीधे खरीदेगी 225 करोड़ रुपए के लघु वनोपज, एजेंटों की मोनोपॉली होगी खत्म

राज्य सरकार को उम्मीद है ऐसा करने से खरीद प्रक्रिया में जुडे मिडिल-मैन का एकाधिकार तो समाप्त होगा, और कोविड -19 महामारी के कारण आर्थिक मंदी के बीच आदिवासियों के लिए एक स्थायी आय भी होगी.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के आदिवासियों से इस वित्तीय वर्ष में सीधे 225 करोड़ रुपये की योजना लघु वनोपज यानि माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस (एमएफपी) राज्य के आदिवासियों से खरीदेगी.

छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के आदिवासियों से मामूली वन उपज (एमएफपी) खरीदने के लिए इस वित्तीय वर्ष में 225 करोड़ रुपये की योजना को बनाई है. आदिवासी कल्याण निकाय के प्रमुख ने दिप्रिंट को बताया है.

छत्तीसगढ़ स्टेट माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस कोऑपरेटिव एसोसिएशन ने मैनेजिंग डायरेक्टर संजय शुक्ला के अनुसार राज्य सरकार को उम्मीद है ऐसा करने से खरीद प्रक्रिया में जुडे मिडिल-मैन का एकाधिकार तो समाप्त होगा, और कोविड -19 महामारी के कारण आर्थिक मंदी के बीच आदिवासियों के लिए एक स्थायी आय भी होगी.

शुक्ला ने बताया, सरकार अब सीधे संग्राहकों से ही उत्पाद खरीदेगी. इससे पहले, यह एजेंटों की मदद से मामूली वन उपज की खरीद की जाती थी. ‘ इस पूरी प्रक्रिया में राज्य में काम कर रहीं महिला स्वयं-सहायता समूह अब एक बड़ी भूमिका निभा रही हैं क्योंकि उन्हें वन-उपज के डोर-टू-डोर संग्रह और फिर उन्हें केंद्र सरकार के संग्रह केंद्रों में जमा करने का काम सौंपा गया है.’

उन्होंने कहा कि निर्णय व्यावहारिक रूप से एजेंटों के एकाधिकार को समाप्त करना है. जिन्हें स्तानीय लोग कोचिया कहते हैं.

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वह आगे बताते हैं, ‘ इससे ग्रामीणों को कम से कम 350 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त लाभ मिलने की संभावना है. सरकार द्वारा सीधी खरीद ने भी कोचिया को प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए ग्रामीणों को अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर किया है.’

आदिवासी अंचल का यह पारंपरिक व्यवसाय करीब 1.7 लाख परिवार समेत अन्य 12 लाख लोगों की रोजी रोटी का जरिया बन चुका है. राज्य सरकार केंद्र द्वारा लघु वनोपजों की कीमतों में की जाने वाली सालाना वृद्धि पर संग्रहणकर्ताओं की मदद के लिए अपनी तरफ से 5-10 प्रतिशत लाभांश भी देगी.

दोनों सरकारों के वृद्धि दर को मिलाकर इस वर्ष इन 25 वनोपजों के समर्थन मूल्यों में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे संग्रहकर्ता को काफी लाभ होने की उम्मीद है.

राज्य वनोपज खरीदी करनेवाले वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि इस वर्ष समर्थन मूल्य में की गयी वृद्धि से आदिवासी अंचल में वनोपज संग्रहणकर्ताओं की आर्थिकी को काफी मजबूती मिलेगी.

‘वनोपजों के संग्राहकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े’

राज्य के वनमंत्री मोहम्मद अकबर का कहना है, ‘कोरोना लॉकडाउन के कारण संकट की इस घड़ी में सरकार द्वारा लघु वनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी और नगद भुगतान की प्रक्रिया से वनांचल के वनवासी-ग्रामीणों को काफी राहत मिल रही है’.

उन्होंने कहा, ‘वनोपजों के संग्राहकों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ गए हैं जिससे इस क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी को काफी मजबूती मिलेगी.’


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अकबर कहते हैं, ‘प्रदेश में वर्ष 2015 से वर्ष 2018 तक मात्र सात लघु वनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी की जा रही थी. वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा वनवासी ग्रामीणों के हित को ध्यान में रखते हुए खरीदी जाने वाली लघु वनोपजों की संख्या बढ़ाकर अब 25 कर दी गयी है.’

2018 में सत्ता में आने के बाद राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने समर्थन मूल्यों के तहत खरीदी किये जाने वाले लघु वनोपजों की संख्या पिछले दो वर्षों में 7 से 25 कर दिया है.

लघु वनोपज ऐसे गैर लकड़ी उत्पाद हैं जिनमें वनस्पितियों के बीज, छाल, फल, फूल, पत्ते, जड़, औषधीय जड़ी बूटियां और घास सम्मिलित हैं. प्रदेश के मुख्य वनोपज उत्पाद जो केंद्र की एमएसपी सूची में शामिल किए हैं इनमें ईमली बीज, महुआ बीज, नागरमोथा, बेल गुदा, शहद, फूल झाडू, महुआ फूल, जामुन बीज, कौंच बीज, करंज बीज, आंवला, फूल ईमली, चिरौंजी गुठली, हर्रा, बहेड़ा, चरौटा बीज, गोंद और भेलवा प्रमुख हैं.

चालू वित्तीय वर्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य सरकारों की खरीदी के लिए पुनरीक्षित खरीदी दर 1 मई 2020 से प्रभावित हो गई है. लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य निर्धारण की नीति केंद्र सरकार द्वारा 2013-14 में लागू की गई थी. वर्तमान में देशभर के 49 वनस्पति प्रजातियों से प्राप्त लघु वनोपजों का समर्थन मूल केंद्र सरकार निर्धारित करती है.

एपीसीसीएफ वन्यजीव और राज्य लघु वनोपज फेडरेशन के पूर्व एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अरुण कुमार पाण्डेय बताते है, ‘प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित लघु वनोपजों के नवीन समर्थन मूल्यों के ऊपर राज्य सरकार ने अपना लाभांश जोड़ा है. इससे आदिवासी अंचलों में संग्रहणकर्ताओं को, कोरोना के इस संकट के समय में, काफी लाभ होने की उम्मीद है.’

पाण्डेय कहते हैं, ‘राज्य सरकार अपना लघुवनोपज खरीदी रिकॉर्ड टारगेट पूरा कर सकती है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विभाग पर सघन खरीदी अभियान का दबाव है. इसके अलावा पहली बार ऐसा हुआ है कि खरीदी करनेवाले फील्ड स्टाफ और अधिकारियों की निगरानी निरंतर की जा रही है.’


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पाण्डेय के अनुसार देश में इस सीजन में, 1 मई से मानसून के शुरू होने तक, की गई करीब 35 करोड़ की एमएफपी खरीदी में सर्वाधिक 90 प्रतिषत से अधिक मूल्य की खरीदी छत्तीसगढ़ सरकार ने किया जो एक रिकॉर्ड है.

 देश के लघु वनोपज की खरीदी में छत्तीसगढ़ का हिस्सा 90 प्रतिशत से अधिक

सरकार का दावा केंद्र सरकार के संस्थान ‘द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (ट्राईफेड) द्वारा जारी हालिया आंकड़ों से भी साफ हो जाता है. ट्राइफेड के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में चार दिन पहले तक 28 करोड़ रूपए से अधिक मूल्य की लघु वनोपजों की खरीदी की गई जो देश के सभी राज्यों से अधिक है.

ट्राईफेड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में जब करीब 30 करोड़ मूल्य की लघु वनोपजों की खरीदी हुई थी उसमें छत्तीसगढ़ का हिस्सा 28 करोड़ रूपए का था. बाकी सभी राज्यों की कुल खरीददारी मात्र 2 करोड़ रूपए के करीब थी.


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राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार चालू सीजन के दौरान छत्तीसगढ़ में अब तक एक लाख 66 हजार संग्रहकों से लगभग 28 करोड़ रूपए मूल्य की 9 हजार 563 मीट्रिक टन लघु वनोपजों का संग्रहण किया जा चुका है.

विभागीय अधिकारियों के अनुसार सरकार का एमएफपी खरीदी टारगेट 2019-20 में करीब 190 करोड़ के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2020-21 में 225 करोड़ रुपए है. इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ने बीड़ी बनाने में इस्तेमाल होने वाले तेंदू पत्ता खरीदी का टारगेट 2019-20 में 603 करोड़ रुपए की अपेक्षा 2020-21 में 649 करोड़ रखा है.

कृषि वैज्ञानिक और बस्तर के ही रहनेवाले डॉक्टर तुषार का कहना है, ‘राज्य में वनोपज के व्यवसाय की कुल क्षमता 1000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की है. यदि सरकार पूरी निष्ठा से वनवासियों की आर्थिकी और उनकी भलाई के लिए तत्पर रहे तो हमारे ग्रामीणों को यहां से बाहर जाकर मजदूरी करने की आवश्यकता नही होगी’.

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