चुराचांदपुर: ‘उसका बलात्कार करो, उसे मार डालो, उसे जला दो’ की चीखों के बीच, एक नर्सिंग छात्रा का दावा है कि उसे जबरन उसके छात्रावास से बाहर खींचा गया था. एक मजदूर का कहना है कि उसे निर्दयतापूर्वक पीटा गया, इतनी गंभीर तरह से कि उसका बमुश्किल सांस लेने वाला शरीर मुर्दाघर में पड़ा रहा. एक पेट्रोल पंप कर्मचारी का आरोप है कि पहले उस पर क्रूर हमला किया गया और फिर पुलिस ने भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया.
इनमें से हर पीड़ित का दावा है कि आईडी कार्ड के माध्यम से उनकी पहचान की गई, बर्बरता से पीटा गया और मणिपुर की राजधानी इंफाल या उसके आसपास की सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया. यह सब मणिपुर के मैतेई और कुकी समुदाय के बीच 3 मई को भड़की हिंसा के बाद हुआ.
भौगोलिक रूप से देखें तो मणिपुर पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में बंटा हुआ है. राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाका है जहां मुख्य रूप से नागा और कुकी-चिन-मिज़ो या ज़ो जनजातियों के लोग रहते हैं. घाटी के क्षेत्रों में गैर-आदिवासी या मैतेई का प्रभुत्व है.
मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई की मांग का विरोध करने के लिए बुलाए गए एकजुटता मार्च के बाद 3 मई को राज्य में झड़प शुरू हुई थी, जिसे कुकी समुदाय के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों को सुरक्षित करने का प्रयास मानते हैं.
जबकि जातीय संघर्ष के मूल कारण जटिल और बहुआयामी हैं और हिंसा की चल रही घटनाओं के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के हताहत हुए हैं. लेकिन ये कहानियां तीन कुकी पीड़ितों की हैं.
ये तीनों इंफाल में या उसके आसपास रह रहे थे, जो मुख्य रूप से मैतेई इलाका है.
जब दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते उनसे मुलाकात की, तो उन सभी ने पहाड़ी जिले चुराचांदपुर में शरण ली हुई थी. सभी ने चोटों के निशान दिखाए और साफ तौर पर दिख रहा था कि वे किन बुरे अनुभवों से गुजरे हैं.
जबकि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ‘कुकी आतंकवादियों’ को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया है वहीं जमीनी हकीकत एक और परेशान करने वाली सच्चाई की ओर इशारा करती है- पड़ोसियों का पड़ोसियों के खिलाफ हो जाना, समुदायों के बीच गहरा आपसी अविश्वास और एक नरसंहार आवेग का उभरना जिसे रोक पाना मुश्किल दिख रहा है.
ये कहानियां मणिपुर में समाज के एक बड़े वर्ग में व्याप्त गहरी दुश्मनी की झलक पेश करती हैं, जहां लगातार अंतराल पर जातीय हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती हैं.
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‘मुर्दाघर में फेंक दिया’ – वो भी जिंदा
4 मई की सुबह, 22 वर्षीय श्रमिक डेविड लियानसियांगुआन को कथित तौर पर उसके मालिक के घर से बाहर खींच कर सड़क पर ले जाया गया. एक भीड़ ने उसकी आईडी की जांच की, देखा कि वह एक कुकी था.
लियानसियांगुआन के अनुसार, उसके पैरों को रस्सी से बांध दिया गया था, उसके सिर पर कई लोगों द्वारा फुटबॉल की तरह लात मारी गई थी और उसे एक नाले में फेंक दिया गया. वह अपने जीवन की भीख मांग रहा था लेकिन भीड़ उसे पीटती रही. उन्होंने आरोप लगाया कि किसी ने लकड़ी की एक मोटी छड़ी, शायद एक बल्ला भी निकाला और उनके चेहरे पर जोर से मारा.
जब उसका शरीर बुरी तरह जख्मी हो चुका था, तो भीड़ ने कथित तौर पर उसे नाले से बाहर निकाला और इंफाल में एक सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया. एक ऐसा शहर जिसे वह अपने हाथों से बनाने में मदद कर रहा था.
सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो कथित तौर पर इसके बाद के कुछ दृश्यों को दर्शाता है. वीडियो में तीन आदमी सड़क पर पड़े दिख रहे हैं- बीच में लियानसियांगुआन है. सात सेकंड के वीडियो में, वह दो बार अपना सिर उठाता है, लेकिन उसका बाकी शरीर हिल नहीं पाता.
कथित हमले के चौबीस दिन बाद, लियानसियांगुआन चुराचांदपुर जिले के ज़ौमुन्नुम गांव में अपने घर में एक लकड़ी की बेंच पर चुपचाप बैठा था.
उसका सिर और ठुड्डी पट्टियों से ढके हुए थे, उसका चेहरा और होंठ लगभग सूज गए थे, जिस कारण उसे पहचानना भी मुश्किल था. उन्होंने कहा कि सिर या होंठ को हिलाने पर अभी भी कष्टदायी दर्द होता है.
उनके पिता, टी. खुपमिनथांग, जिन्होंने इंफाल में डेविड के साथ काम किया था, वह अपनी भावनाओं को शब्दों में भी बयां नहीं कर पा रहे थे.
जब इंफाल में उन पर हमला किया गया, तो खुपमिनथांग भागने में सफल रहे. उनके एक मैतेई मालिक ने उन्हें अपने बेडरूम में छिपा दिया और बाद में उन्हें एक पुलिस आश्रय में भेज दिया.
गालों पर बहते आंसू के साथ उन्होंने कहा, ‘मैं डेविड की हालत के लिए खुद को दोषी मानता हूं. मैं उसे काम करने के लिए इंफाल ले गया. अगर मैं गरीब नहीं होता, तो मैं अपने बेटे को काम पर नहीं ले जाता.’
जब दिप्रिंट ने रौशनी में लियानसियांगुआन के चेहरे की एक एक्स-रे प्लेट देखी, तो उसके निचले जबड़े की हड्डी के बीच और दोनों तरफ एक गहरी चोट दिख रही थी. दिप्रिंट द्वारा देखे गए अन्य मेडिकल स्कैन से पता चला कि उनकी खोपड़ी में कई फ्रैक्चर हुए हैं.
लियानसियांगुआन ने कहा कि उसके निचले तीन दांत टूट गए थे, उसके बाएं कान में टांके लगाने की जरूरत थी और उसके जबड़े को सर्जरी से ठीक करना पड़ा था.
जब वह अपने दो दोस्तों के साथ जमीन पर पड़ा मिला, तो तीनों को मुर्दाघर में फेंक दिया गया, जहां लाशों के ढेर लगे थे.
खुपमिनथांग उस क्षण को याद करते हैं जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा ‘मर गया’ है.
खुपमिनथांग कहते हैं, ‘जब पुलिस मुझे आश्रय में ले जा रही थी, तो मैंने उनके वॉकी-टॉकी पर सुना कि तीन शवों को मुर्दाघर ले जाया जा रहा है. यह वही स्थान था जहां डेविड को पीटा गया था. मुझे पता था कि वे उसके बारे में बात कर रहे थे.’
उसके बाद, राहत शिविर छोड़ने के जोखिम के बावजूद, उसने उस मुर्दाघर की तलाश शुरू कर दी जहां लियानसियांगुआन को ले जाया गया था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं अपना दर्द किसी के साथ साझा नहीं कर सकता था. मैंने अपनी बुजुर्ग मां और अपनी पत्नी, जो हृदय रोगी है, से कहा कि डेविड मेरे साथ सुरक्षित है. लेकिन मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.’
खुपमिनथांग एक हफ्ते बाद सेना के काफिले में अकेले घर पहुंचे.
तब तक, रिश्तेदारों के माध्यम से लियानसियांगुआन की ‘मौत’ की खबर घर तक पहुंच चुकी थी. लेकिन 10 मई को गांव में आयोजित प्रार्थना सभा में एक फोन आया. फोन की दूसरी तरफ लियानसिआंगुआन की आवाज थी.
वह इंफाल के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) के आईसीयू में जिंदा था. खुपमिनथांग का मानना है कि अस्पताल के एक कर्मचारी ने उसे जीवित पाया होगा और फिर उसे चिकित्सा के लिए ले जाया गया होगा.
जब उसमें कुछ बोल पाने की पर्याप्त ताकत आई तो लियानसियांगुआन ने एक नर्स का फोन लेकर घर में फोन किया.
खुपमिनथांग के अनुसार, ‘एक झटके में मेरा चेहरा बिल्कुल बदल गया. मुझे लगता है कि यह सब विकृत है.’
खुपमिनथांग और उनके परिवार के लिए वह क्षण भावनाओं का सैलाब लेकर आया. लेकिन देखते ही देखते उनका डर उनकी खुशी पर हावी हो गया. उनके लिए अगली चुनौती डेविड को इंफाल से सुरक्षित घर लाने की थी. सौभाग्य से, सेना की मदद से कुछ ही दिनों में डेविड अपने परिवार के बीच था.
खुपमिनथांग को लगता है कि वह भाग्यशाली है कि उसका बेटा वापस जीवित हो गया. उनके पड़ोसी, ग्राम प्रधान, उतने भाग्यशाली नहीं थे. प्रमुख ने अपने बेटे को खो दिया जो डेविड का दोस्त था और वीडियो में सड़क पर पड़े तीन लोगों में से एक था.
डेविड के घाव भर रहे हैं, लेकिन उसका आघात गहरा है. उसके परिवार ने कहा, वह अब भी कभी-कभी नींद में रहम की भीख मांगता है, उसकी आंखों में खौफ भरा दिखता है.
खुपमिनथांग बिना किसी कारण के रोने लगते हैं और उनके आंसू रुकने का नाम नहीं लेते. उन्होंने कहा कि अब इंफाल में उन्हें अपना भविष्य नहीं दिखता.
उन्होंने कहा, ‘इंफाल नहीं जाएगा तो मर नहीं जाएगा. और भी बहुत काम है.’
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‘उसका रेप करो, उसे मारो, उसे जला दो’
22 वर्षीय नर्सिंग छात्रा एग्नेस नीखोहाट हाओकिप ने आखिरी बात जो होश खोने से पहले की याद की, वह एक महिला की चीख थी- ‘उसका बलात्कार करो, उसे मार डालो, उसे जला दो. उसके साथ वैसा ही करो जैसा उसके लोगों ने हमारी स्त्रियों के साथ किया.’
महिला, कथित तौर पर एक तस्वीर का जिक्र कर रही थी जो ऑनलाइन घूम रही थी. इसमें प्लास्टिक की थैली में लिपटे एक युवती के शरीर को दिखाया गया था और कैप्शन के साथ लिखा था कि वह चुराचांदपुर में मैतेई नर्सिंग की छात्रा थी, जिसके साथ बलात्कार किया गया था और अस्पताल के अंदर उसकी हत्या कर दी गई थी.
@jinngomez50592 हैंडल द्वारा एक ट्विटर पोस्ट में कहा गया, ‘ये सभी भयानक घटनाएं अस्पताल के अंदर ही हो रही हैं. कल्पना कीजिए कि उस पल में लड़की को कैसा महसूस हुआ होगा.’
फोटो बाद में दिल्ली की एक लड़की आयुषी चौधरी की होने की पुष्टि हुई, जिसकी पिछले नवंबर में उसके माता-पिता ने कथित तौर पर हत्या कर दी थी.
फर्जी खबरों ने उस आग में घी डालने का काम किया जिसने मणिपुर को अपनी चपेट में ले लिया था और 4 मई की शाम को इंफाल में नर्सिंग द्वितीय वर्ष के छात्र हाओकिप ने खुद को इसके बीच फंसा पाया.
उसने दावा किया कि भीड़, जिसमें कई महिलाएं शामिल थीं, खून करने पर आमादा थी. वे कथित तौर पर हाओकिप के छात्रावास में घुस गए, सभी नर्सिंग छात्रों को बाहर खींच लिया और कुकी छात्रों की पहचान करने के लिए उनके आधार कार्ड की जांच की. हाओकिप, एक दोस्त के साथ, आठ आदिवासी छात्रों में से थी जो समय पर छिप नहीं सके.
उसने एक क्रूर हमले को याद किया- उसके चेहरे पर कथित तौर पर घूंसा मारा गया था, जिससे तीन दांत टूट गए, लात मारी गई, लकड़ी के मोटे डंडों से पीटा गया. जब दो लोगों ने उसके सिर पर वार किया तो वह होश खोने लगी.
उसने दावा किया कि भीड़ चिल्ला रही थी, ‘उन्हें चाकू से काटकर जला दो.’
जब हाओकिप को होश आया, तो उसने कहा कि उसने खुद को इंफाल के जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जेएनआईएमएस) अस्पताल में पाया, जहां उसे इमरजेंसी में रखा गया.
दिप्रिंट द्वारा देखे गए मेडिकल रिकॉर्ड में, जेएनआईएमएस से उसके प्रिसक्रिप्शन को अस्पताल के लेटरहेड के बजाय सादे ए4 शीट पर लिखा गया. यौन उत्पीड़न के लिए उसकी जांच किए जाने का कोई उल्लेख नहीं है.
हाओकिप ने दावा किया कि वह होश खो चुकी थी. दिप्रिंट द्वारा देखे गए अस्पताल के दस्तावेज में इसका उल्लेख नहीं है. यह केवल उसके सिर दर्द, चेहरे और आंखों पर दर्द और सूजन और सामने के तीन दांत गायब होने की ही बात करता है. उपचार के लिए, यह एंटीबायोटिक्स, आईड्रॉप्स और दर्द निवारक दवाएं लिखी गई.
दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिए टिप्पणी के लिए कई बार जेएनआईएमएस से संपर्क किया लेकिन प्रतिनिधियों ने कहा कि वे सवालों के जवाब बाद में देंगे. प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
उसे जल्द ही एक आर्मी कैंप में स्थानांतरित कर दिया गया जहां उसका भाई भी था. हमले के बाईस दिन बाद, उसने कहा कि वह आखिरकार सेना के साथ चुराचांदपुर पहुंच गई, हालांकि उसका पारिवारिक घर चंदेल जिले के सुगनू में है.
हाओकिप का फिलहाल चुराचांदपुर जिला अस्पताल के आईसीयू में इलाज चल रहा है. उसने दिप्रिंट को बताया कि उसकी पीठ पर लगी चोटों के कारण उसे सीधे लेटने में दिक्कत आती है और वह मुश्किल से बोलने के लिए अपना मुंह खोल पाती है. उसका चेहरा सूजा हुआ है और उसकी आंखों में खून के थक्के हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा है.’
उसने दावा किया, ‘हमने सोचा कि यह हमारे साथ नहीं होगा क्योंकि हम मेडिकल छात्र हैं. लेकिन किसी को भी नहीं बख्शा गया.’ उसने आगे बताया कि मॉनिटर की बीपिंग कमरे में एकमात्र अन्य ध्वनि है. उसने कहा कि उसका दोस्त जिसे उसके साथ कथित तौर पर पीटा गया था, वह दिल्ली चला गया है.
4 मई की शाम का वो सदमा आज भी उसके जेहन में बसा हुआ है. उसने कहा कि अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए इंफाल वापस जाना उसके लिए असंभव है.
उसने दावा किया, ‘मुझे नहीं लगता कि मैं जीवित रहूंगी.’ ‘मैं यहां सुरक्षित महसूस करती हूं.’
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‘पुलिस ने मेरे जख्मों पर मारा, कहा मैं कुकी हूं’
थंगबोई को याद आया कि 3 मई का दिन उस पेट्रोल पंप पर असामान्य था, जहां उन्होंने मणिपुर के नंबोल जिले में काम किया था, जो कि इंफाल से लगभग 40 मिनट की ड्राइव पर मौजूद था. उसने कहा कि वह थका हुआ और भूखा था, लेकिन कारें आती रहीं.
आखिरकार जब वह अपने क्वार्टर में गया और खाना खाने ही वाला था, तो काली टी-शर्ट पहने पुरुषों का एक बड़ा समूह कथित तौर पर पंप पर इकट्ठा हो गया और उसे बाहर बुला लिया.
थंगबोई के अनुसार, भीड़ ने कर्मचारियों में से तीन कुकी पुरुषों की पहचान की और वह उनमें से एक था. उन्होंने आरोप लगाया कि एक तो भागने में कामयाब हो गया लेकिन थंगबोई और उसके दोस्त पर क्रूर हमला शुरू हो गया.
उसने दावा किया कि उन्होंने विशेष रूप से उसके सिर को निशाना बनाया, उसे मुक्का मारा, लात मारी और लकड़ी के मोटे डंडों से मारा. थंगबोई ने कहा कि उन्होंने अपने दोस्त को बिना हिले-डुले गिरते देखा और कुछ ही देर में वह भी गिर पड़ा.
थंगबोई अभी चुराचंदपुर के एक राहत शिविर में है. उन्होंने दावा किया, ‘मुझे यह भी नहीं पता था कि इंफाल और चुराचंदपुर में क्या हो रहा था और मुझे क्यों पीटा गया. लेकिन पीछे से मुझे लगता है कि पेट्रोल पंप के पास पान की दुकान चलाने वाले को पता था कि मैं कुकी हूं. उसने मेरी पहचान बताई होगी.’
उन्होंने कहा कि वह तीन दिनों तक इंफाल के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में बेहोश पड़े रहे. हालांकि, जब वह उठा तो उसने महसूस किया कि वह वहां भी सुरक्षित नहीं है. उन्होंने दावा किया कि अस्पताल में एक डॉक्टर ने उन्हें किसी से बात नहीं करने के लिए कहा.
थंगबोई ने दिप्रिंट को बताया, ‘डॉक्टर ने कहा कि वहां के लोग सोचते हैं कि मैं मैतेई हूं.’
लेकिन यह तरकीब ज्यादा दिनों तक काम नहीं आई. थंगबोई के अनुसार, अगले बिस्तर पर मरीज के परिचारक ने उसे कुकी के रूप में पहचाना और कहा कि उसे मार दिया जाना चाहिए.
उन्होंने बताया कि जब पुलिस ने उन्हें अस्पताल से बाहर निकाला और उन्हें अन्य कुकीज़ के साथ एक राहत शिविर में रखा, तब भी उन्हें असहनीय दर्द हो रहा था. उन्होंने कहा कि उन्हें कई बार शिविरों के बीच स्थानांतरित किया गया और आरोप लगाया कि कुछ पुलिसकर्मियों ने उस दौरान भी पक्षपात दिखाया.
थंगबोई ने कहा, ‘जो पुलिसकर्मी मुझे ले जा रहे थे वे मुझे मेरे घावों पर मारते रहे और मुक्का मारते रहे. उन्होंने कहा कि मैं कुकी हूं.’
उन्होंने कहा कि एक पुलिस वाले ने उन्हें तब तक पिटाई सहन करने के लिए कहा जब तक कि उन्हें एक स्थिर स्थान पर स्थानांतरित नहीं कर दिया गया. थंगबोई ने कहा, ‘यदि आप जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो वे आपको मार डालेंगे.’ वह पुलिस वाला एक मैतेई था.
आखिरकार जब वह इंफाल में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक शिविर में पहुंचे, तो उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया था. यहां तक कि जब खाना दिया गया तो उसने कहा कि वह चबा नहीं सकता. जब वह एक कोने में असहाय पड़ा था, तो उसे याद आया कि सीआरपीएफ का एक जवान उसे रोटी और जूस के कुछ टुकड़े दे रहा था.
थंगबोई ने सिसकते हुए कहा, ‘मैं बहुत दर्द में था, मुझे नहीं लगता था कि मैं जीवित बच पाऊंगा.’ उन्होंने कहा कि आखिरकार वे 22 मई को चुराचांदपुर के राहत शिविर पहुंचे.
उनकी चोटें गहरी हैं. न केवल उनकी पीठ, सिर, माथे और दाहिने कान पर गहरे घाव हैं, उन्होंने दावा किया कि उन्हें याददाश्त की समस्या हो गई थी.
उन्होंने दावा किया कि उन्हें अपना पूरा नाम या अपनी मां का नाम याद नहीं है. उसके पास कोई पहचान पत्र या उसका फोन नहीं है. शिविर के कार्यवाहकों ने दिप्रिंट को बताया कि कई बार वह खोया हुआ और भ्रमित दिखाई देता था और लक्ष्यहीन होकर घूमता था.
राहत शिविर में एक चर्च में लकड़ी की बेंच पर बैठकर, उसने अपने गले में एक तौलिया रखा और अपने घावों को ढकने के लिए उसे ऊपर खींच लिया. उन्होंने कहा कि अब उनका एक ही लक्ष्य है. जब वह बेहतर हो जाएगा, तो वह बाहर जाकर अपने दोस्त की मौत का बदला लेने के लिए कम से कम एक मैतेई को मारना चाहता है.
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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