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Thursday, 25 April, 2024
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गंगा जल पर रिसर्च में आईसीएमआर की रुचि नहीं, पीएमओ और जलशक्ति मंत्रालय का प्रस्ताव खामोशी से खारिज

कोरोना की लड़ाई में लगी देश की सबसे बड़ी व पुरानी रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने ऐसी कठिन परिस्थिति में किसी भी दूसरी रिसर्च पर समय बर्बाद करने से इंकार कर दिया है.

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नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी की जद्दोजहद के बीच गंगाजल से कोरोनावायरस के इलाज करने की थ्योरी पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया है. गंगाजल के गुण को आधार बनाकर कुछ एनजीओ ने केंद्र सरकार को सुझाव भेजा था कि कोविड-19 के इलाज के दौरान मरीजों को दवा के साथ गंगाजल भी दिया जाए जिससे महामारी को खत्म किया जा सकता है. पीएमओ और जलशक्ति मंत्रालय ने भी प्रस्ताव को आगे बढ़ाया और आईसीएमआर से अनुरोध किया कि इस पर ‘रिसर्च करें’.

कोरोना की लड़ाई में लगी देश की सबसे बड़ी व पुरानी रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने ऐसी कठिन परिस्थिति में किसी भी दूसरी रिसर्च पर समय बर्बाद करने से इंकार कर दिया है. जिसके बाद गंगा के जरिए कोरोना के बहाने भावनाओं को भुनाने के सरकार के कदम को बड़ा झटका लगा है.

आईसीएमआर दिल्ली के रिसर्च मैनजमेंट, पॉलिसी प्लानिंग एंड कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख और रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर गोरखपुर, आईसीएमआर के निदेशक डॉ.रजनीकांत श्रीवास्तव ने दिप्रिंट से कहा, ‘जलशक्ति मंत्रालय और कुछ एनजीओ की तरफ से आईसीएमआर को शोध का प्रस्ताव आया था. इसके बाद कमेटी के सामने एक प्रजेंटेशन भी पेश किया गया था. अभी यह सब कुछ बहुत ही शुरुआती दौर में है, आगे को लेकर अभी कुछ तय नहीं किया गया है.

श्रीवास्तव ने कहा, ‘अगर इस मामले में जलशक्ति मंत्रालय अपने स्तर पर कुछ करता है तो हम उन्हें सपोर्ट करेंगे.’

नाम न छापने के अनुरोध पर जलशक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘गंगा के पानी में कई स्पेशल प्रॉपर्टीज हैं. कई लोगों की मांग थी कि गंगा जल में पाए जाने वाली तत्वों को लेकर शोध होना चाहिए. गंगा की प्रापर्टी को लेकर एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने बातचीत के दौरान तर्क दिया था इसे लेकर एक बार आईसीएमआर से कंसल्ट कर लेते है.

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अधिकारी ने यह भी कहा, ‘हमने इस बाबत आईसीएमआर को पत्र भेजा था. उस पत्र में नीरी के साथ हुई पुरानी रिसर्च का भी जिक्र किया है. हम भी जानते है कि आईसीएमआर इन दिनों कोविड 19 को लेकर बहुत वयस्त है. इस तरह की रिसर्च के बहुत वर्ष लगते हैं. इसलिए हमें थोड़ा धैर्य रखना चाहिए. जब उन्हें समय मिलेगा तक वे रिसर्च करेंगे.’

आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि, ‘पीएमओ और जलशक्ति मंत्रालय की तरफ शोध को लेकर हमें पत्र आया था. इस मामले पर आईसीएमआर के विशेषज्ञों ने मीटिंग भी की. और हमने इस शोध का प्रस्ताव रखने वालों से कहा कि आप लोग ही हमें ये बता दें कि कौन से अस्पताल और डाक्टर्स इस पर शोध करने के लिए तैयार है. हम इसमें मदद कर देंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कोरोना के लिए इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को ट्रायल पर ले रहे है तो गंगा में पाए जाने वाले बैक्टेरियोफाज नामक वायरस को लेकर एकदम से कैसे काम किया जा सकता है. अभी इसका कोई तर्क नहीं की गंगा नदी में पाया जाने वाला वायरस कोरोना बीमारी से लड़ सकेगा.’

आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पीएमओ और जलशक्ति मंत्रालय की तरफ शोध को लेकर हमें पत्र आया था. इस मामले पर आईसीएमआर के विशेषज्ञों ने मीटिंग भी की. और हमने इस शोध का प्रस्ताव रखने वालों से कहा कि आप लोग ही हमें ये बता दें कि कौन से अस्पताल और डाक्टर्स इस पर शोध करने के लिए तैयार है. हम इसमें मदद कर देंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कोरोना के लिए इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को ट्रायल पर ले रहे है तो गंगा में पाए जाने वाले बैक्टेरियोफाज नामक वायरस को लेकर एकदम से कैसे काम किया जा सकता है. अभी इसका कोई तर्क नहीं की गंगा नदी में पाया जाने वाला वायरस कोरोना बीमारी से लड़ सकेगा.’

इस शोध के लिए हाल ही में राष्ट्रीय जल शक्ति मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने आईसीएमआर को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वह इस बारें में क्लीनिकल स्टडी करे. इसके बाद 24 अप्रैल को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) के वैज्ञानिकों के साथ भी इसपर चर्चा की थी.इस दौरान नीरी के वैज्ञानिकों ने यह सलाह भी दी कि गंगा के पानी में कोरोना से लड़ने वाले तत्वों की पहचान के लिए शोध का काम आईसीएमआर को दिया जाना चाहिए.


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राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान लखनऊ के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक और प्रोफेसर यू.एन.राय ने दिप्रिंट से कहा, ‘आईसीएमआर ने पहले ही प्लाज्मा थेरेपी को मेडिकल ट्रायल के लिए कहा है. फिलहाल कोरोना बीमारी से मरीजों का सही उपचार हो यही जरुरी है. इसके लिए वैक्सीन पर काम होना चाहिए. गंगा नदी के पानी में यह क्षमता होती है कि यह बैक्टीरिया को मार देता है, लेकिन इस रिसर्च में समय लगेगा इसलिए एकदम ये करना फिलहाल जरुरी नहीं है.’

नदी और पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ अभय मिश्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘गंगा नदी की क्युरिटिव प्रापर्टी पर पहले भी कई शोध हुए हैं. इसपर रिसर्च होना चाहिए. लेकिन ये शोध गंगा को नियंत्रित करके नहीं हो सकती है. इसके लिए नदी को फ्री छोड़ना चाहिए. इसके बाद ही कोई रिसर्च करते है तो उसके अच्छे परिणाम सामने निकलकर आ सकते है.’

रिसर्च में सामने आया है नदी में मौजूद है गंगत्व

अतुल्य गंगा एनजीओ के सदस्य सेवानिवृत्त कर्नल मनोज किश्वर ने दिप्रिंट से कहा, ‘प्रधानमंत्री और जलशक्ति मंत्री को हमने इस संदर्भ में एक पत्र लिखा था.इसके बाद जलशक्ति मंत्रालय ने आईसीएमआर को निवेदन किया है कि इस तथ्य में अगर कुछ सत्यता है तो इसकी रिसर्च की जाए.’ इस तरह की बीमारियों के लिए पहाड़ों से आने वाली गंगा नदी में कुछ गंगत्व बैक्टेरियोफाज मौजूद है.

गंगा नदी के पानी में ‘निंजा वायरस‘ पाया जाता है. आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, आईआईटीआर लखनऊ, इमटेक सीएसआईआर समेत कई संस्थाओं की रिसर्च में सामने आया है कि गंगत्व बैक्टेरियोफाज अब गंगा की भागीरथी में ऊपर की ओर अभी भी गंगत्व मौजूद है. साथ ही अलकनंदा, मंदाकिनी और पिण्डर में भी यह तत्व मिलता है.ये हार्मफुल बैक्टीरिया को खा जाता है.इस पर पहले भी कई रिसर्च की जा चुकी है.


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कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आईसीएमआर का अहम रोल

आईसीएमआर भारत की सबसे पुरानी और मेडिकल शोध संस्थान है.वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिशन के रुप में इसकी नींव डाली थी. आजादी के बाद इसमें कई बदलाव भी हुए. 1949 में इसे आईसीएमआर नाम दिया गया. इस संस्था की फंडिग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवारण कल्याण मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्‍थ रिसर्च द्वारा होती है. स्‍वास्थ्‍य मंत्री ही इस काउंसिल के अध्‍यक्ष भी होते हैं.इस संस्था का विजन होता है कि रिसर्च के जरिए देश के नागरिकों का स्वास्थ्य बेहतर किया जाए.

आईसीएमआर के देश में 21 रिसर्च सेंटर है. यहां पर कई प्रकार की बीमारियों पर रिसर्च होती है. कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आईसीएमआर की अहम भूमिका है. देश में टेस्टिंग लैब से जुड़ी अनुमति यही प्रदान करता है.

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