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Friday, 19 April, 2024
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सिविल सेवा परीक्षा में उम्र सीमा घटाने के मसले पर जानें छात्रों की राय

नीति आयोग की रिपोर्ट 'स्ट्रैटिजी फॉर न्यू इंडिया @75' में सुझाव दिया गया है कि सिविल सर्विसेज परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों की उम्र सीमा 32 साल से घटा कर 27 साल तक कर दिया जाए.

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नीति आयोग ने देश की प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने वाले सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए अधिकतम आयु सीमा 32 साल से घटा कर 27 साल किए जाने का सुझाव दिया है. आयोग ने इस सुझाव को 2022-23 तक चरणबद्ध तरीके से लागू करने की वकालत की है. इसे सुझाव को लेकर छात्र समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. इस बारे में सिविल सेवा परीक्षा देने वाले छात्रों की अलग-अलग राय है.

नीति आयोग का क्या है सुझाव

नीति आयोग की रिपोर्ट ‘स्ट्रैटिजी फॉर न्यू इंडिया @75’ में सुझाव दिया गया है कि सिविल सर्विसेज परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों की उम्र सीमा 32 साल से घटा कर 27 साल तक कर दिया जाए. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्तमान में सिविल सर्विसेज में चयनित होने वाले अभ्यर्थियों की औसत उम्र साढ़े 25 साल है.

इसके आलावा सिविल सर्विसेज में समानता लाने के लिए इनकी संख्या में भी कमी की जाए. इस समय केंद्र और राज्य स्तर पर 60 से ज्यादा अलग-अलग तरह की सिविल सर्विसेज हैं.

नीति आयोग की पॉलिसी में सिविल सेवा अधिकारियों के रिटायरमेंट की उम्र निश्चित करने के बजाय कार्यकाल को फिक्स करने, उच्च स्तर पर विशेषज्ञों की लेटरल एंट्री को भी बढ़ावा दिया जाने जैसे मुद्दों पर भी चर्चाएं हुईं. नीति आयोग द्वारा केंद्र सरकार को दी सिफारिशों को लेकर दिप्रिंट ने यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों की प्रतिक्रिया जानी.

क्या है छात्रों की राय

सीसैट विरोधी आंदोलन के अगुआ और डार्क हार्स किताब के लेखक नीलोत्पल मृणाल कहते हैं, ‘नीति आयोग को यह शिफारिश देने से पहले भारत के विश्वविद्यालयों की पृष्ठभूमि देखनी चाहिए. यहां की कई यूनिवर्सिटी में हो रहीं लापरवाही के चलते छात्रों को तीन साल के ग्रेजुएशन को पूरा करने में 4-6 साल लग जा रहे हैं. और अगर आपका तर्क है कि बच्चे 21-27 की उम्र में ही ज्यादा एनर्जेटिक हैं तब रिटायर की भी उम्र घटा कर चालीस साल कर दो. ऐसे में नीति आयोग को चाहिए कि इस समस्या के मूल में जाए और पहले देश के विश्वविदयालयों की दशा सुधारे.’

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वहीं दिल्ली में रह कर सिविल सेवा की तैयारी कर रहें अतुल जयसवाल कहते हैं, ‘यह सिफारिश सही है. उम्र सीमा 27 कर देने से हम खुद को जल्दी तैयार कर सकेंगे. हमारा मांइड सेटअप ऐसा बन पाएगा कि हमें यह परीक्षा जल्दी से पास करनी है. 32 साल होने से हम उसी में प्रयास करते रहते हैं. और एग्जाम में असफल होने पर हमारे लिए अन्य परीक्षाओं के लिए भी अवसर खत्म हो जाते हैं. अगर कुछ अपवाद को छोड़ दें तो हमारे यहां ज्यादातर छात्रों का ग्रेजुएशन 21-22 साल में पूरा हो जाता है. ऐसे में 5-6 साल तैयारी के लिए पर्याप्त है.’

यूपीएससी की तैयारी कर रहे श्याम सिंह कहते हैं, ‘यूपीएससी की परीक्षा से बहुत सारे छात्र जुड़े होते हैं. एग्जाम का प्रारूप ऐसा है कि सामान्य स्थिति में भी कम से कम दो वर्ष लगते हैं. ऐसे में आर्थिक संसाधनों की जरूरत होती है. इसलिए बहुत से अभ्यर्थी पहले जॉब करते हैं फिर एग्जाम के लिए आते हैं. ऐसे में 27 वर्ष उम्र की सीमा निर्धारित कर देने से मेहनती और लगनशील प्रतिभाओं को अवसर देने से वंचित करना है.’

जबकि दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहीं 25 वर्षीय प्रियंका कहती हैं, ‘27 साल उम्र करने की सिफारिश केवल सामान्य ही नहीं बल्कि हर वर्ग के लोगों के लिए करना चाहिए. 27 साल करना भी सही है. क्योंकि कुछ छात्र पहले प्रयास में अगर लोअर रैंक पाते हैं तो वह भी कई बार अच्छे रैंक के लिए परीक्षा देते हैं. चूंकि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में लाखों छात्र बैठते हैं लेकिन सफल हजार से भी कम होते हैं. ऐसे में हमारे जैसे छात्रों के लिए अवसर कम हो जाते हैं.’

छात्र सक्षम कोठारी कहते हैं, ‘नीति आयोग की सेंट्रल टैलेंट पूल देने की सिफारिश सही तो लग रही है लेकिन इसकी सबसे बड़ी दिक्कत है कि इसका असल पैमाना क्या होगा. अगर इंजीनियरिंग के छात्रों को उनकी टेक्निकल समझ पर एडमिनिसट्रेशन में जगह दे देंगे तो फिर आर्ट्स वाले छात्रों का क्या होगा. दूसरा यह भी है कि एक कॉमन पेपर कर देंगे तो एक ही पेपर में इंजीनियरिंग, कृषि, पब्लिक पॉलिसी सब कैसे डालेंगे जिससे पता चल सके कि सामने वाले को सच में स्पेसफिक सेक्टर का ज्ञान कितना है.’

जबकि सिविल सेवा की तैयारी कर रहे बलिया के 24 वर्षीय छात्र नवनीत कहते हैं, उम्र घटाने की बात से मैं सहमत हूं. क्योंकि 21 से 27 साल के छात्रों में एक ऊर्जा रहती है. छात्र इनोवेटिव तरीके से सोच सकते हैं. 32 साल तक आते आते ज्यादातर युवा कई जिम्मेदारियों में बंध जाते हैं. और उनके प्रदर्शन पर भी असर पड़ने लगता है.

सिविल सर्विसेज के एग्जाम को एक करने के सुझाव पर नवनीत का मानना है कि ये सिफारिश सही नहीं है. क्योंकि अलग-अलग एग्जाम होने से लोगों की रुचि का पता चलता है. और लोग उसके हिसाब से अपना क्षेत्र चुन लेते हैं लेकिन एक एग्जाम होने से भेड़चाल बढ़ जाएगी और स्तरीय छात्रों की संख्या में गिरावट आएगी.

नीति आयोग के फैसले के पीछे क्या तर्क हो सकता है

नीति आयोग द्वारा सरकार को भेजी सिफारिश के पीछे तर्क स्पष्ट है. ज्यादातर सिविल सेवाओं में पदोन्नति एक समय लेने वाली प्रक्रिया है और अधिक उम्र में इसमें प्रवेश लेने वाले छात्रों के पास ऊपर पहुंचने के रास्ते कम हो जाएंगे. जैसे कि चीफ सेक्रेटरी बनने के लिए आपको कम से कम 30 साल तक सेवाएं देनी होंगी. अब अगर कोई 30 साल की उम्र में परीक्षा पास करता है तो उसके पास टॉप पर पहुंचने के लिए बहुत ही कम या सीमित समय बचेगा. ऐसे में 30-32 साल की उम्र में प्रवेश करने वाले छात्र कठिन मेहनत करके भी ऊपर नहीं पहुंच पाएंगे.

क्या ऐसा फैसला पहले भी आया है?

सिविल सेवा परीक्षा को लेकर हुए विवाद और व्यापक पैमाने पर छात्रों के विरोध को देखते हुए यूपीएससी ने मानव संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव और आईएएस अधिकारी बीएस बासवान की अध्यक्षता में अगस्त, 2015 में समिति का गठन किया था. बासवान समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न को बदलने और अधिकतम उम्र सीमा 32 को कम करने की सिफारिशें 20 मार्च, 2017 को सरकार को सौंपी थी. लेकिन सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए.

सिविल सेवा में उम्र बढ़ाना एक लोकप्रिय फैसला है. सरकार को अब तक उम्र घटाने के कई सुझाव मिले हैं लेकिन सरकार इसको घटाने की जगह लगातार बढ़ाती चली गई. इसको इसी बात से समझा जा सकता है कि 1947 में देश आजाद होने के समय इंडियन सिविल सेवा के नाम से पहचाने जाने वाली यूपीएससी परीक्षा में अभ्यर्थियों की उम्र 21-24 साल तक थी. इसे 1970 में बढ़ा कर 26 साल किया गया. फिर 90 के दशक तक आते-आते बढाकर 28 और 2000 में इसे 30 साल कर दिया गया. फिलहाल अभी सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की उम्र 32 साल है.

इसी कड़ी में बीते 3 अगस्त को केंद्र सरकार ने राज्यसभा को सूचित करते हुए कहा कि 1 अगस्त, 2018 तक सामान्य वर्ग के उम्म्मीदवारों की आयु अधिकतम 32 साल कर दी गई है. आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को आयु में तय नियम के अनुसार छूट मिलेगी.

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