नूंह: हरियाणा के नूंह जिले में स्थित करीब सौ साल पुराने मदरसे में मुफ्ती जाहिद हुसैन अपने कई सहयोगियों के साथ बैठे हैं. नूंह का ये बड़ा मदरसा तबलीगी जमात से ताल्लुक रखता है. सफेद कुर्ता-पायजामा पहने हुसैन तबलीगी जमात द्वारा सरकारी निर्देशों का उल्लंघन करके कोरोनावायरस के फैलाने में दोषी बता रही मीडिया रिपोर्ट्स पर चर्चा कर रहे हैं.
दिप्रिंट द्वारा पूछे जाने पर वो कहते हैं, ‘पहली बार कोई मीडिया की तरफ से हमसे पूछने आया है कि तबलीगी जमात और निजामुद्दीन मरकज के बारे में जानकारी बताएं.’
भारत में कोरोनोवायरस महामारी के फैलने के शुरुआती दिनों में तबलीगी जमात द्वारा दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज में मार्च के मध्य में आयोजन करवाना चर्चा का विषय बन गया. कथित तौर पर कहा गया कि कोविड-19 के केसों में हुई बढ़ोतरी के पीछे जमात का हाथ है. इस आयोजन में हजारों लोग शामिल हुए जबकि सरकार ने सोशल डिस्टैंसिंग की घोषणा कर दी थी.
हालांकि जमात का दावा है कि जनता कर्फ्यू के बाद लगे ट्रैवल प्रतिबंध और उसके बाद देशव्यापी लॉकडाउन के चलते यहां रहे लोगों को बाहर नहीं निकाला जा सका. लेकिन इस सबके मद्देनजर जमात जनता के गुस्से का केंद्र बिंदु बन गया है. हालांकि मरकज़ के इस व्यवहार को लेकर नूंह निवासी कोई सहानुभूति नहीं रखते हैं लेकिन लोगों का कहना है कि लापरवाही करने में जमात अकेली नहीं है. हुसैन कहते हैं, ‘प्रशासन को भी निज़ामुद्दीन मरकज़ के आयोजन की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.’ मेवात के इतिहास पर कई किताबें लिख चुके सिद्दकी अहमद मेव भी इस बात पर जोर देते हैं कि दोनों तरफ से लापरवाही हुई है.
भारत-पाक बंटवारे के घाव
साल 2016 से पहले नूंह जिले को मेवात के नाम से जाना जाता रहा है जिसकी सीमाएं हरियाणा, यूपी और राजस्थान जिलों से लगती हैं. यहीं से तबलीगी जमात की शुरुआत बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में मौलाना इलियास द्वारा की गई थी जो मुस्लिम मेव समुदाय में इस्लाम की शिक्षा को फैलाना चाहते थे.
तबलीग़ी जमात नाम का अर्थ एक ऐसे समूह से है जो आस्था का प्रचार करता है. इस जमात से जुड़े सुन्नी मुसलमान भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर मस्जिदों, स्कूलों, कॉलेजों के साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों में इस्लाम का प्रचार करते हैं. साथ ही वो पैंगबर मोहम्मद की जीवनशैली को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं.
नूंह जिले की लगभग 80 फीसदी आबादी मुस्लिम मेव समुदाय की है. नूंह के धार्मिक नेताओं की मानें तो 99 प्रतिशत मेव खुद को तबलीगी पृष्ठभूमि से जोड़कर देखते हैं. स्थानीय पत्रकार अख्तर अल्वी कहते हैं, ‘तबलीगी और गैर-तबलीगी मेव मुस्लिमों की संख्या व सामाजिक जीवनशैली में कोई अंतर नज़र नहीं आता है. नूंह जिले के सभी मेव खुद को तबलीगी ही मानते हैं. हो सकता है बचे एक प्रतिशत में यूपी के कुछ इलाकों के मुस्लिम शामिल हों.’
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सिद्दकी अहमद मेव दिप्रिंट को बताते हैं, ‘मेवात में 3 बार (712, 1053, 1192 ईस्वी में) बहुत बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन हुए थे. यहां के मेव मुस्लिम एक पारंपरिक मुसलमान की तरह ना होकर अलग पहचान रखते थे. उदाहरण के लिए- वो धोती-कुर्ता पहनते थे और दाढ़ी नहीं रखते थे. ना ही उन्हें नमाज पढ़नी आती थी. यहां की मस्जिदों में पशुओं का चारा भरा होता था. मेव अपने खेतों में कुएं बनवाते वक्त भैरव बाबा के नाम की ईटें रखते थे और वो शिव की पूजा भी करते थे. यहां निकाह के साथ-साथ फेरे भी लिए जाते थे. कई मुस्लिमों के नाम बलबीर सिंह या रामेश्वर होते थे. एक तरह से यहां मिक्सड कल्चर रहा है.’
प्रोफेसर व समाजशास्त्री शैल मायाराम दिप्रिंट को बताती हैं कि महिलाएं भी तबलीगी जमात का हिस्सा हैं और वो गांव-गांव जाकर नमाज पढ़ने के महत्व को समझाती हैं. शैल मायाराम ने रिजिस्टिंग रिजाइम्स: मिथ, मेमोरी एंड शेपिंग ऑफ ए मुस्लिम आइडेंटिटी नामक किताब भी लिखी है.
वो आगे जोड़ती हैं, ‘मेव मुस्लिमों में हरियाणा की हिंदू जातियों की तरह किनशिप सिस्टम था और वो लोग चार गौत्र छोड़कर शादियां करते थे. एक ही गांव में शादियां नहीं होती थी. यहां के मुसलमान गाय की पूजा किया करते थे. गोवर्धन त्यौहार भी मनाते थे. शादियों में भात लाने का सिस्टम भी था. भारत के बंटवारे से पहले तबलीगी जमात का इस इलाके में खास असर नहीं था. लेकिन बंटवारे ने जो घाव मेव मुस्लिमों को दिए उसके बाद तबलीगी ने कहा कि ये घाव अल्लाह की सजा है. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान अलवर और भरतपुर में कत्ले-आम हुआ था. मेव मुस्लिम भले ही मिक्सड कल्चर में रह रहे थे लेकिन उन्हें उनकी मुस्लिम पहचान की वजह से टारगेट किया गया. इसलिए बंटवारे के बाद मेवों को लगा कि एक तरफ रहेंगे तो ज्यादा ठीक है.’
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सिद्दकी कहते हैं, ‘यहां के मेव रोजगार की खोज में पैदल चलते हुए फरीदाबाद से निजामुद्दीन और दिल्ली जाया करते थे. एक बार मौलाना इलियास और मेवों की बातचीत हुई. जब मौलाना को पता चला कि मेव मुस्लिमों को कलमा तक पढ़ना नहीं आता तो वो हैरान हुए. वहीं से मेव मुस्लिमों में इस्लाम की शिक्षा का विस्तार करने की कहानी शुरू हुई. मौलाना इलियास उनके साथ मेवात के फिरोजपुर नामक गांव में आए और कई जमीनी रिपोर्ट तैयारी की. जिनमें पता चला कि यहां की मस्जिदें बंद थीं, लोग शराब पीते थे और अर्ध सभ्य थे. 1926 में शुरू हुए तबलीगी जमात में गश्त करना और तालीम देने जैसे काम शामिल थे.’
‘इस्लाम में विश्वास करना’
हुसैन बताते हैं कि नूंह की मस्जिद में तबलीगियों के साल में दो बड़े जलसे होते हैं. इनमें मुख्यत: पुरुष ही शामिल होते हैं. ये जलसे खेती-बाड़ी में लगे लोगों की टाइमिंग के हिसाब से आयोजित किए जाते हैं. जैसे अप्रैल में फसल कटने के बाद या फिर बरसात में. हुसैन के मुताबिक इस्लाम महिलाओं के लिए मस्जिद में आने को लेकर रोक नहीं लगाता लेकिन महिलाएं घर के भीतर ही पर्दे में रहकर जमात का हिस्सा बनती हैं. नूंह के लगभग 50 मदरसों का संपर्क निजामुद्दीन मरकज से है.
हुसैन 25 साल पहले यूपी के जेवर से इस मस्जिद में परिवार समेत आए थे. वो और कई अन्य धार्मिक नेता पिछले कई दिनों से प्रशासन के साथ मिलकर कोरोना को लेकर वीडियो जारी कर रहे हैं. इन वीडियोज में वो लोगों को घर में ही नमाज़ अदा करने की अपील कर रहे हैं.
हुसैन कहते हैं, ‘कुछ लोगों ने गलत प्रचार किया है कि 40 दिन खाने-पीने के इंतजाम के लिए लोग जमात में शामिल होते हैं. जमात में शामिल होने के लिए अपनी जेब और अपना ही वक्त खर्च करना पड़ता है. तबलीगी जमात कोई राजनीतिक संगठन नहीं है. ये एक धार्मिक संगठन है जो एक आदर्श मुस्लिम कैसा होना चाहिए, जैसी बातों पर जोर देता है. इसमें 6 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर फोकस किया जाता है- कलमे का महत्व बताना, नमाज के बारे में बताना, इल्म व जिक्र, इकराम ए मुस्लिम में बताना कि एक आदर्श मुसलमान को कैसा होना चाहिए और दावत-ए-तबलीगी.’
‘जमात 120 दिन की भी होती है, 40 दिन की भी और 3 दिन की भी. जो लोग अपने घरों से बहुत दूर नहीं जा सकते वो अपने गांव से 3 किलोमीटर दूर 3 दिन के लिए रहकर भी वापस आ जाते हैं. इस परंपरा को चिल्ला के नाम से भी जाना जाता है. तबलीगी में सुन्नी मुसलमान यकीन रखते हैं.’
सिद्दकी मेव तबलीगी के उदय के बाद के घटनाक्रम को बताते हैं, ‘1932 में इलियास ने एक बड़ी पंचायत बुलाई जिसमें मेवात के 107 चौधरी यानी बड़ी हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान 15 प्रस्ताव रखे गए थे जिसमें मुख्य तौर पर नमाज सिखाना, पुरानी मस्जिदों के साथ-साथ नई मस्जिदें शुरू करना, लोगों का पहनावा बदलने पर जोर न देना और इस्लामी शिक्षा का विस्तार करने जैसी बातें शामिल थीं. इसके बाद ही 40 दिन की पहली जमात 1939 में कांधला के लिए बुलाई गई थी.’
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मेवात के मुस्लिमों को जमात ने कितना बदला?
मेवात इलाके के मुसलमान अब धार्मिक पहचान को ओढ़ कर चलते हैं जैसे दाढ़ी रखना या फिर टोपी पहनना. सिद्दकी इस बदलाव के बारे में बताते हैं, ‘मुस्लिम औरतों ने भी ओढ़नी छोड़कर सलवार कमीज पहनना शुरू किया है. अब अरेबिक नाम रखे जाने लगे हैं. थोड़ा खान-पान में भी बदलाव आया है. लोगों का रूझान धार्मिक रिवाजों की तरफ हुआ है’. लेकिन इसके बावजूद मेवात में कई जगह मुस्लिम कुआं पूजन भी करते हैं और निकाह में हिंदू रीति रिवाजों की तरह बारात के नेग भी करते हैं.
हुसैन मेवात इलाके में फैली शिक्षा का श्रेय भी तबलीगी जमात को देते हुए कहते हैं, ‘हमने साफ-सफाई पर ध्यान दिलवाया है. अब लोग वकील, डॉक्टर भी बन रहे हैं. पहले यहां के लोग ज्यादा अंधविश्वासी थे. अब उतने नहीं हैं.’
हालांकि 2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने मेवात को देश का सबसे पिछड़ा जिला बताया था. यहां की साक्षरता दर 54.08 प्रतिशत है.
तबलीगी एक धार्मिक ग्रुप के तौर पर काम करता है. इसके नेता खुद को किसी भी तरह की राजनीतिक मंशा से परे बताते हैं. मुफ्ती कहते हैं कि ये सामाजिक कार्यों पर भी जोर देते हैं. जैसे दहेज की परंपरा को खत्म करना और शराब को बंद करना. नूंह के बडे़ मदरसे में बिना दहेज के गरीब परिवारों के बच्चों की शादियां भी करवाई जाती हैं. मुफ्ती के मुताबिक हर जलसे में सैंकड़ों सामूहिक विवाह करवाये जाते हैं. पहले ये जलसे साल में चार से छह बार भी आयोजित किए जाते थे लेकिन इनकी संख्या अब कम हो गई है.
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‘निजामुद्दीन मरकज को लेकर प्रशासन ले जिम्मेदारी‘
निजामुद्दीन प्रकरण को लेकर नूंह के विधायक आफताब अहमद चौधरी दिप्रिंट को बताते हैं कि कोरोना के मामले में धर्म खोज लेना सही नहीं था. हुसैन भी इस बात पर जोर देते हैं कि उन्होंने लॉकडाउन के तुरंत बाद मदरसों से बच्चों को घर भेज दिया था. कोरोना को लेकर वो गंभीर थे और अभी भी लोगों से प्रशासन का साथ देने की अपील कर रहे हैं.
सिद्दकी अहमद मेव निजामुद्दीन प्रकरण में सरकार और तबलीगी जमात, दोनों को ही दोषी मानते हैं. वो कहते हैं कि लापरवाही दोनों तरफ से हुई है. हालांकि वो कहते हैं कि तबलीगी को कट्टरपंथी ग्रुप की तरह पेश करना गलत है. लेकिन वो मानते हैं कि तबलीगी जमात को अब खुद को मॉडर्न एजुकेशन से दूर नहीं रखना चाहिए.
लॉकडाउन के चलते नूंह के बाजार बंद हैं और कई गांवों को भी पूरी तरह सील कर दिया गया है. नूंह की बड़ी मस्जिद के बाहर ताला लगा हुआ है. इसके बगल में खड़े 98 साल पुराने मदरसे के कुछ हिस्से को ढहा कर नया बनाया जा रहा है. लॉकडाउन से पहले इस मदरसे में 250 बच्चे रह रहे थे जिनको वापस घर भेज दिया गया है.
नूंह के डीसी पंकज बताते हैं कि अभी तक यहां कोरोना के 55 पॉजिटिव पाए गए थे जिनमें से 40 जमात के लोग हैं. तबलीगी से जुड़े बहुत सारे लोगों को क्वारेंटाइन में रखा गया है. हुसैन कहते हैं कि ये लोग निजामुद्दीन में कुछ दिन रहकर मेवात की मस्जिदों में ठहरने आए थे.
To aapki report kah rahi hai ki tabliki jamat kattarpanthi ko badhava dene ke liye banayi gayi hai
The print media kabhi waha ke hinduo ki bhi halat dikhao
Lekin tum khud galat vichardhara ke ho tumhe kaun samajha sakata hai
Tumhara kaam keval modi ka virodh karana hai.