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Thursday, 28 March, 2024
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5 घंटे की नींद, पीपीई नहीं, घर के बाहर स्नान- ‘हॉटस्पॉट’ इंदौर की मदद के लिए बुलाए गए अधिकारियों का हाल

मप्र में कोविड -19 का एपिसेंटर बने इंदौर, जिसने शुरुआत में अधिकारियों की कमी का सामना किया था, अब एक नए डीएम और 12 अधिकारी महामारी से निपटने में जुटे.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के कोविड-19 हॉटस्पॉट बने इंदौर प्रशासन को सरकारी अधिकारियों की कमी के साथ 22 मार्च को महामारी का पहला केस दर्ज होने के बाद एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा.

इंदौर में प्रशासन को महामारी के प्रकोप से निपटने के प्रयासों में सिर्फ तीन अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) और पांच उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के साथ समन्वय करना मुश्किल हो रहा था.

इंदौर में कोविड-19 के मामले बढ़ने के बाद, राज्य सरकार ने 2009 बैच के आईएएस अधिकारी मनीष सिंह को 28 मार्च को इंदौर का नया जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) नियुक्त किया.

10 अप्रैल को, सिंह के अनुरोध पर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सहायता के लिए राज्यभर से 12 अधिकारियों को लाया गया था. 12 में से दो आईएएस अधिकारी हैं.


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सिंह ने राज्य सरकार को एक पत्र भेजकर इन अधिकारियों के लिए अनुरोध किया था. उन्होंने कहा कि वह इन 12 अधिकारियों के लिए कहे क्योंकि इन्हें शहर के बारे में व्यापक जानकारी है. इनमें से कुछ सिंह के साथ पहले भी काम कर चुके हैं.

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दिप्रिंट को मिले पत्र में लिखा है, ‘ये अधिकारी, जिन्होंने पहले काम किया था या जिनका शहर से कोई न कोई नाता है, लिहाजा ये शहर को अच्छी तरह से जानते हैं …’

12 अधिकारियों की यह टीम महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने, क्वारंटाइन और नमूना लेने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और पॉजिटव पाए गए रोगियों को अस्पतालों में भेजने, बैरिकेडिंग और प्रतिबंधति क्षेत्रों में स्वच्छता करने और राशन के वितरण की निगरानी में लगे हैं.

इंदौर एक ऐसा शहर है, जहां नोबल कोरोनवायरस ने मप्र में सबसे बड़ा कहर ढाया है. इंदौर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रवीण जदिया के अनुसार, बुधवार तक 586 कोरोनोवायरस मामले थे, जबकि राज्य की टैली 987 थी.

दिप्रिंट ने डीएम सिंह सहित चार अधिकारियों से उनकी चुनौतियों को और वे किस तरह संकट का सामना कर रहे, को जानने के लिए मुलाकात की.

जिला मजिस्ट्रेट मनीष सिंह

सिंह, जो पहले भोपाल में मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यरत थे, को जिला मजिस्ट्रेट लोकेश कुमार जाटव की जगह लाया गया था.

पहले इंदौर में कई पदों पर रहने के बाद, सिंह जिले के प्रशासनिक हलकों में एक जाना पहचाना नाम हैं. वास्तव में, यह इंदौर नगर निगम के आयुक्त के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान था कि शहर को देश के सबसे स्वच्छ शहर का टैग मिला था.

डीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद, सिंह ने कोविड-19 संकट के लिए प्रशासन को सुव्यवस्थित करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाई.

12 अधिकारियों को चुन कर लाने को लेकर, सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने उन अधिकारियों को चुना जो इंदौर में ही तैनात थे, जो लोग इंदौर को जानते हैं और लोग (भी) उन्हें जानते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने ऐसे 10-12 अधिकारियों के लिए कहा था और उन सभी को प्राप्त किया. इनके जरिए, हम स्वच्छता कार्य, नियंत्रण योजना, भोजन और चिकित्सा सुविधाओं की आपूर्ति को विकेंद्रीकृत करने में सक्षम हुए.’

यह पूछे जाने पर कि उनके भोपाल से इंदौर लौटने के बाद से उनका दिन कैसे बीत रहा है, सिंह ने कहा, ‘मैं केवल यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा हूं कि अस्पताल सुविधाएं ज्यादा हों, आपूर्ति उपलब्ध कराई जाएं और सब कुछ अधिक सुचारू रूप से हो रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं 1-2 बजे तक सोता हूं. इसके बाद सुबह 6.30-7 बजे से कॉल करना शुरू करता हूं… मैं कभी-कभी बाहर घूमने जाने की कोशिश करता हूं, लेकिन यह अभी मुश्किल हो गया है.

चंद्रमौली शुक्ला, आईएएस अधिकारी

शुक्ला पहले भोपाल में उद्योग विभाग में उपसचिव के रूप में सेवारत थे.

सिंह की तरह, शुक्ला भी इंदौर में एक जाना पहचाना चेहरा हैं, जहां उन्होंने पहले इंदौर विकास प्राधिकरण के सीईओ के रूप में काम किया था.

शुक्ला ने कहा, ‘मुझे यहां 7-8 साल का अनुभव है. लोग आमतौर पर मुझे जानते हैं… जब वह (मनीष सिंह) यहां पहले तैनात थे, तब मैं भी यहां तैनात था. शुक्ला ने कहा, हमारे पास एक साथ काम करने का अनुभव है.

2011 बैच के आईएएस अधिकारी अब ‘ग्रीन’ हॉस्पिटल के कामकाज देखरेख कर रहे हैं, जो कि गैर-कोरोनोवायरस रोगियों के इलाज के लिए हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि इंदौर आने के बाद उनके लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है ‘ग्रीन’ अस्पतालों को क्रार्यशील बनाना.

शुक्ला इंदौर में हर ‘ग्रीन हॉस्पिटल’ में लगभग 215 नोडल अधिकारी नियुक्त करने में सफल रहे हैं ताकि इसकी कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जा सके.

उन्होंने कहा, ‘समय की कमी वास्तविक चुनौती रही है. हम सुबह 8 बजे काम शुरू करते हैं और रात 10.30 बजे वापस जाते हैं. मैं भी घर के बाहर (कार्यालय में या अन्य स्थानों पर) भी स्नान करता हूं. यह अब नौकरी का एक हिस्सा है.’

एडीएम विशाल सिंह चौहान

चौहान ने इससे पहले राजगढ़ में एडीएम की रूप में सेवा दी हैं.

चौहान ने कहा, ‘राजगढ़ में कोई भी (कोविड -19) मामला नहीं था. इसलिए मैं वास्तव में उम्मीद कर रहा था कि मैं यहां आकर अपना योगदान दूं. और फिर मेरा तबादला किया गया.

उन्होंने कहा, ‘यहां पहले जो कुछ हो रहा था, वह यह था कि पर्याप्त अधिकारियों की कमी थी. चौहान ने कहा कि हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती सभी के बीच समन्वय सुनिश्चित करना है.

चौहान की देखरेख वाले इलाकों में से एक तातापट्टी बाखल है, यह एक हॉटस्पॉट है जहां शहर में कोविड -19 का पहला मामला पाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘हम एक होटल में सोते हैं, बाकी समय मैदान पर रहते हैं. हम पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) सूट भी नहीं पहन सकते क्योंकि हमें ऑफिस भी जाना पड़ता है.


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एडीएम अभय भेडकर

भेडकर इससे पहले भोपाल में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के तहत काम कर रहे थे. वह पहले भी डीएम सिंह के साथ काम कर चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले मनीष सिंह के साथ नगर निगम, भोपाल में काम किया था, जहां वे कमिश्नर थे और मैं अतिरिक्त आयुक्त था. हमने 4-5 साल साथ काम किया है.

इंदौर में प्रकोप से निपटने के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा- ‘शुरुआत में, संपर्क-ट्रेसिंग अच्छी तरह से नहीं किया गया था, लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में आ रही है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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