नई दिल्ली: 2018 में भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में कट्टर प्रतिद्वंद्वियों और तीन बार के चैंपियन नीदरलैंड के खिलाफ खेलते हुए बेल्जियम ने अपना पहला हॉकी खिताब ‘FIH पुरुष हॉकी विश्व कप’ जीता था. टूर्नामेंट शुक्रवार से शुरू हो रहा है और यह ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर और नियोजित शहर राउरकेला दोनों जगह पर आयोजित किया जाएगा.
2014 में फेडरेशन इंटरनेशनेल डी हॉकी (FIH) द्वारा अनिवार्य किए गए नए नियमों के लागू होने के बाद यह चौथा विश्व कप है. तब से यह भारत में होने वाला तीसरा टूर्नामेंट भी है.
हॉकी के FIH नियम ओलंपिक या विश्व कप के बाद हर दो साल में अपडेट किए जाते हैं. नीदरलैंड के हेग में 2014 विश्व कप से पहले संबंधित कमेटी ने उस साल के बाद लागू किए जाने वाले बदलावों की एक सूची की घोषणा की थी, जो यकीनन 1992 में ऑफसाइड नियम के उन्मूलन के साथ-साथ 1970 के दशक में एस्ट्रोटर्फ पिचों के आगमन के प्रभाव को दर्शाता है.
हालांकि 20वीं सदी में नियमों में किए गए बदलावों से हर पीढ़ी के प्रशंसक अच्छे से वाकिफ हैं लेकिन 2014 के बाद से किए गए सुधारों के लिए ऐसा कह पाना मुश्किल है. दिप्रिंट इन नए गेमप्ले नियमों में से कुछ पर एक नज़र डाल रहा है, ताकि इन्हें भी आसानी से समझा जा सके.
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70 की बजाय 60 मिनट का खेल
20 मार्च 2014 को यूरो हॉकी लीग और अब बंद हो चुकी हॉकी इंडिया लीग द्वारा सफल ट्रायल रन आयोजित करने के बाद FIH ने घोषणा की कि उस साल सितंबर के बाद खेले जाने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों को कुल 60 मिनट के क्वार्टर में विभाजित किया जाएगा. इस कदम का मतलब था कि 2014 पुरुषों का विश्व कप ऐसा आखिरी होगा जहां मैच की लंबाई 70 होगी. 70 मिनट के खेले जाने वाले इस मुकाबले में 35 मिनट के बाद पांच मिनट का हॉफ ब्रेक दिया जाता था.
इसके अलावा नए नियमों में पेनल्टी दिए जाने और गोल किए जाने पर 40-सेकंड का टाइमआउट भी दिया गया, ताकि ‘ऑन-फील्ड सेलिब्रेशन टाइम’ की अनुमति दी जा सके. इसका मतलब था कि फील्ड हॉकी अब आइस हॉकी, बास्केटबॉल और अमेरिकी फुटबॉल सहित कहीं अधिक लोकप्रिय खेलों की तर्ज पर आगे बढ़ेगी.
उस समय एफआईएच मीडिया विज्ञप्ति में कहा गया था, ‘नए नियमों के बाद हॉकी और अधिक रोमांचक खेल हो जाएगा. अब यह आयोजन आयोजकों और प्रसारकों के लिए और फायदेमंद साबित होगा. खेल के मैदान, टीवी और ऑनलाइन हर जगह इसके प्रशंसकों की संख्या बढ़ेगी. हाइलाइट्स के रिव्यु करने से लेकर, खेल की व्याख्या करने और इसमें नए रंग जोड़ने के अवसरों के साथ, दुनिया भर के लोग हॉकी के रोमांचक खेल पर बेहतर तरीके से नजर रख सकते हैं.’
इन नए नियम कायदों को 2016 रियो ओलंपिक और ओडिशा में 2018 विश्व कप के मुकाबलों में अपनाया गया था. नतीजों में अंतर मामूली था, लेकिन नजर आ रहा था. खेल के लिए दिए गए समय के आधार पर टीमों और कोचों को अपनी खेल शैली को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
2012 लंदन ओलंपिक और हेग में 2014 विश्व कप में पुराने नियमों के मुताबिक खेले गए मैचों में औसतन क्रमशः 4.87 और 4.26 गोल किए गए. वहीं 2016 रियो ओलंपिक, 2018 ओडिशा विश्व कप और 2020 टोक्यो ओलंपिक में 4.97, 4.36 और 5.50 गोल हुए. गौरतलब है कि 2014 के बाद हुए मुकाबलों में खेल का समय कम कर दिया गया था.
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नए बदलावों में खिलाड़ी की सेफ्टी महत्वपूर्ण
नियमों में बड़े बदलावों के बाद से इन आठ सालों में FIH ने अपनी नियम पुस्तिका में छोटे लेकिन जरूरी संशोधन करना जारी रखा हुआ है. हालांकि 2017 और 2019 के अपडेट ने मौजूदा नियमों और छोटे समान नियमों के गहन स्पष्टीकरण की पेशकश की, वहीं 2022 संस्करण ने खिलाड़ियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाले खेल के नियमों में दो बड़े बदलावों का उल्लेख किया.
पहला बड़ा बदलाव पेनल्टी कार्नर के दौरान और तुरंत बाद सुरक्षात्मक उपकरण पहनने से जुड़ा है. पेनल्टी कार्नर का बचाव करने वाले खिलाड़ियों को फ्लिक लिए जाने के तुरंत बाद सर्कल के अंदर अपने सुरक्षा उपकरण हटाने पड़ते थे. लेकिन एफआईएच ने अपने नियम में बदलाव किए. पेनल्टी कार्नर के दौरान अपने लक्ष्य का बचाव करने वाली टीम अब सुरक्षा उपकरणों के साथ गेंद के साथ दौड़ना जारी रख सकती है लेकिन उन्हें शूटिंग सर्कल से परे 23-मीटर लाइन के भीतर ‘पहले अवसर पर’ अपने सुरक्षात्मक उपकरण को हटाना होगा.
इसके अलावा एरियल बॉल के नियमों में भी बदलाव किया गया था. पुराने नियम के मुताबिक खिलाड़ी एरियल बॉल को इंटरसेप्ट नहीं कर पाते थे. उनका मानना था कि इससे खिलाड़ियों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है. उन्हे आपस में टकराने और सिर की चोटों का अधिक रिस्क बना रहता है. लेकिन बदले गए नियमों में इन्हें खेल के विकास के लिए अहम माना गया.
एरियल बॉल को लेकर नई रूल बुक में कहा गया है, ‘खिलाड़ियों को फॉलिंग रेज्ड गेंद को प्राप्त वाले प्रतिद्वंद्वी के 5 मीटर के दायरे में तब तक नहीं पहुंचना चाहिए जब तक कि वह प्राप्त न हो जाए, नियंत्रित न हो जाए और जमीन पर न हो. गेंद को 5 मीटर के भीतर इंटरसेप्ट किया जा सकता है, लेकिन खेल की दूरी के बाहर, बशर्ते इसे सुरक्षित तरीके से किया जाए. प्रारंभिक रिसीवर के पास गेंद का अधिकार होता है. अगर यह साफ नहीं है कि कौन सा खिलाड़ी प्रारंभिक रिसीवर है, तो गेंद उठाने वाली टीम के खिलाड़ी को प्रतिद्वंद्वी को इसे प्राप्त करने की अनुमति देनी होगी’
इन नियमों में किए गए बदलावों के बाद से भारत में तीन अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले गए है. 2022-23 FIH मेन्स प्रो लीग (जो इस साल जुलाई तक जारी रहेगी), 2022 मेन्स एशिया कप और 2022 कॉमनवेल्थ गेम्स.
सबसे बड़े मेन्स प्रो लीग में अब तक प्रति गेम 4.28 गोल देखे गए हैं. जकार्ता में एशिया कप और बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेलों में क्रमशः 6.25 और 6.96 गोल प्रति गेम हुए थे. हालांकि गोल के मामले में दिख रहा ये बड़ा अंतर काफी हद तक निचले स्तर की राष्ट्रीय टीमों जैसे स्कॉटलैंड, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और घाना आदि का भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी शीर्ष टीमों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के कारण है.
(अुनवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)
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