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Thursday, 2 May, 2024
होमदेश‘कॉर्बूसियर का विजन ताक पर रखा गया’—चंडीगढ़ फेज-1 में ‘अपार्टमेंटलाइजेशन’ पर रोक लगाने का SC का आदेश

‘कॉर्बूसियर का विजन ताक पर रखा गया’—चंडीगढ़ फेज-1 में ‘अपार्टमेंटलाइजेशन’ पर रोक लगाने का SC का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यद्यपि चंडीगढ़ एस्टेट नियम 2007 के तहत एकल आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में नहीं बदला जा सकता है लेकिन शहर प्रशासन ने इस तरह की गतिविधियों को लेकर अपनी आंखें मूंद रखी हैं.

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नई दिल्ली: चंडीगढ़ शहर के ‘हेरिटेज दर्जे’ पर जोर देने के साथ सुनाए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चंडीगढ़ प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि एक आवासीय इकाई को तीन अपार्टमेंट में बदलने की अनुमति देकर चंडीगढ़ प्रशासन दरअसल ‘आंखें मूंदकर’ शहर में अपार्टमेंट बनाने की अनुमति देने वाली बिल्डिंग योजनाओं को मंजूरी दे रहा है.

जस्टिस बी.आर. गवई और बी.वी. नागरत्ना ने इसके साथ ही चंडीगढ़ के फेस-1—जिसमें 30 सेक्टर शामिल हैं—में स्वतंत्र आवासों की जगह पर अपार्टमेंट बनाने पर रोक लगा दी.

शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि फांस्रीसी वास्तुकार ली कार्बुसियर की परिकल्पना पर बसाए गए शहर के फेस-I में एकल आवास इकाइयों का ‘अपार्टमेंटलाइजेशन’ शहर के ‘फेफड़ों’ को क्षति पहुंचाएगा.

शीर्ष अदालत नवंबर 2021 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की तरफ से पारित एक फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि चंडीगढ़ में आवासीय भूखंडों में परिवार के बाहर भी कई शेयरधारक हो सकते हैं. यह अपील चंडीगढ़ में सेक्टर 10 के रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से दायर की गई थी, जिसने 2016 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. एसोसिएशन ने प्रशासन को चंडीगढ़ में आवासीय भूखंडों पर अपार्टमेंट बनाने की अनुमति देने या उन्हें अपार्टमेंट के लिए इस्तेमाल की अनुमति देने से रोकने का निर्देश देने की मांग की थी.

पीठ ने कहा कि यद्यपि चंडीगढ़ एस्टेट नियम 2007 इस तरह के अपार्टमेंट बनाने पर रोक लगाता है और चंडीगढ़ प्रशासन ने इसके विपरीत रुख अपनाया है. प्रशासन ने एकल आवास इकाइयों को अपार्टमेंट में परिवर्तित करने के लिए ‘अपनी आंखें मूंद रखी’ हैं.

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कोर्ट ने यह कहते हुए शहर प्रशासन की खिंचाई की कि उसकी ओर से की गई ‘चूक’ के कारण ‘अराजकता की स्थिति’ उत्पन्न हो गई है, और यह कि वह ऐसी योजनाओं को मंजूरी दे रहा है, जो प्रभावी तौर पर अपार्टमेंट निर्माण की अनुमति देते हैं.

कोर्ट ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का भी उल्लेख किया जो स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, साथ ही मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख किया जो बताते हैं कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि हमारी ‘समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत’ की अहमियत समझे और उसे संरक्षित करे. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि चंडीगढ़ के फेस-1 यानी कॉर्बूसियर के चंडीगढ़ को विरासत का दर्जा हासिल है.

अदालत ने पाया कि चंडीगढ़ के फेस-1 में आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में बदलना ‘ली कॉर्बूसियर के नजरिये को ताक पर रख देने जैसा है’ और यह कॉर्बूसियन चंडीगढ़ के हेरिटेज दर्जे को संरक्षित करने की अवधारणा के खिलाफ है.’

फैसले में कहा गया, ‘इसलिए आवश्यक है कि प्रतिवादी अधिकारी कॉर्बूसियन चंडीगढ़ की विरासत स्थिति को संरक्षित करने के लिए हरसंभव कदम उठाएं.’

‘हेरिटेज दर्जा’ बनाए रखने वाले कदम

अपने 131 पन्नों के फैसले में, कोर्ट ने कहा कि चंडीगढ़ एस्टेट नियम 2007 किसी भी साइट या इमारत में तोड़फोड़ करने या उसकी सूरत बदल देने पर रोक लगाता है, और चंडीगढ़ मास्टर प्लान (सीएमपी), 2031 भी कहता है कि फेस-1 सेक्टरों में किसी भी सरकारी आवासीय/संस्थागत पॉकेट में फिर से सघन निर्माण केवल चंडीगढ़ हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की पूर्व स्वीकृति से ही किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि 2007 के नियमों के तहत भवनों के अपार्टमेंटलाइजेशन की अनुमति नहीं है, लेकिन रियल एस्टेट डेवलपर्स घर की हिस्सेदारी खरीदारों को ट्रांसफर करके परोक्ष रूप से ऐसा ही कर रहे हैं, जिसमें संपत्ति के विभिन्न हिस्सों के उपयोग को लेकर खरीदारों के साथ एक एमओयू किया जाता है. हाई कोर्ट ने 2021 के अपने फैसले में कहा था कि इस तरह की व्यवस्था को अपार्टमेंटलाइज़ेशन नहीं माना जाएगा.

उसने कहा, ‘निर्विवाद रूप से, एक आवासीय इकाई में तीन अपार्टमेंट बनाने की अनुमति देने से ली कॉर्बूसियर क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाएगा. हमारे विचार में यह काम हेरिटेज कमेटी और केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता है.’

कोर्ट ने अब हेरिटेज कमेटी को निर्देश दिया है कि शहर के फेज-1 में री-डेंसिफिकेशन के मसले पर विचार करे और पार्किंग और ट्रैफिक पर ऐसे सघन निर्माण के असर का भी आकलन करे. इन मुद्दों पर विचार करने के बाद हेरिटेज कमेटी को फेस-1 पर लागू होने वाले मास्टरप्लान-2031 और एस्टेट नियम 2017 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी.

अदालत ने आदेश दिया कि इन संशोधनों को केंद्र सरकार के समक्ष रखा जाएगा, जो ‘ली कॉर्बूसियर जोन की हेरिटेज स्थिति को बनाए रखने की आवश्यकता को ध्यान में रखकर’ आवश्यक संशोधनों को मंजूरी पर कोई फैसला करेगी.

जब तक केंद्र सरकार की तरफ से अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक चंडीगढ़ प्रशासन किसी इमारत की किसी भी योजना को मंजूरी नहीं देगा, जो एक एकल आवास इकाई को तीन अजनबियों के कब्जे वाले तीन अलग-अलग अपार्टमेंट में बदलने वाली हो.

कोर्ट ने फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) को फ्रीज करने का भी आदेश दिया और हेरिटेज स्थिति बनाए रखने की जरूरत के मद्देनजर हेरिटेज कमेटी द्वारा निर्धारित एक समान अधिकतम ऊंचाई के साथ फेस-I में आवासों की मंजिलों की संख्या को तीन तक सीमित कर दिया.

कोर्ट ने यह निर्देश जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जो सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ के लिए आवश्यक आदेश पारित करने की अनुमति देता है.


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अव्यवस्थित शहरीकरण का क्या पड़ रहा असर

कोर्ट ने यह भी कहा कि अब ‘समय आ गया है’ कि केंद्र के साथ-साथ राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता इस बात पर ‘ध्यान दें कि बेतरतीब विकास के कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा और साथ ही विकास के कारण पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान न पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं.’

अदालती फैसले में सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने पर जोर दिया गया. इसके लिए सरकार से शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अध्ययन का प्रावधान करने को भी कहा गया.

अदालत ने अव्यवस्थित शहरीकरण के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर टिप्पणी की. और इंडिया टुडे के लेख ‘बेंगलुरु—भारत की बेस्ट सिटी को कैसे बर्बाद करें’ का हवाला दिया. कोर्ट ने कहा, बेंगलुरु शहर की स्थिति को एक चेतावनी मानकर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माताओं को इस दिशा में गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. यही सही समय है कि शहरी विकास की अनुमति देने से पहले इस तरह के विकास के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जाए.’

‘भारत की आजादी का प्रतीक’

कोर्ट का फैसला पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक उद्धरण के साथ शुरू हुआ, जो उन्होंने शहर के संस्थापक सिद्धांतों को निर्धारित करते समय दिया था—’इसे एक नया शहर बनने दें, अतीत की परंपराओं से मुक्त भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक…भविष्य को लेकर राष्ट्र के विश्वास की एक अभिव्यक्ति.’

इसके बाद इसमें शहर के इतिहास को याद किया गया, यह इंगित करते हुए कि इसे ली कॉर्बूसियर ने अन्य वास्तुकारों पियरे जीनरेट, जेन बी ड्रू और मैक्सवेल फ्राई के सहयोग से डिजाइन किया था.

साथ ही बताया गया कि ली कॉर्बूसियर ने अपनी योजना में रोशनी, स्पेस और हरियाली का खास महत्व दिया मानव शरीर को एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया. कोर्ट ने कहा, ‘…इसमें कैपिटल कॉम्प्लेक्स ‘सिर’ है तो सेक्टर-17 यानी कॉमर्शियल सेंटर ‘हार्ट’ है. इसके फेफड़े (लीशर वैली यानी आराम का समय बिताने वाली खुली जगहें और हरियाली से भरे सेक्टर), बुद्धि (सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थान), विसरा (औद्योगिक क्षेत्र), और ‘हाथ’ शैक्षणिक और लीशर फैसिलिटी जैसे खुले स्थान आदि हैं. वहीं 7वी की तौर पर जानी जाने वाली सात सड़कों की परिकल्पना सर्कुलेशन सिस्टम के तौर पर की गई थी.

इसमें कहा गया है कि ली कॉर्बूसियर के डिजाइन की मुख्य विशेषताओं में एक यह भी थी कि उत्तरी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम होना था, और दक्षिणी क्षेत्रों की ओर ज्यादा रहना था. साथ ही यह भी दावा किया गया कि चंडीगढ़ की योजना कम वृद्धि वाले शहर के तौर पर भी की गई थी.

(अुनवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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