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Friday, 22 November, 2024
होमदेशपिलर और गार्टर तैयार होने के साथ गुजरात में कैसे गति पकड़ रही है 348 किलोमीटर लंबी बुलेट ट्रेन परियोजना

पिलर और गार्टर तैयार होने के साथ गुजरात में कैसे गति पकड़ रही है 348 किलोमीटर लंबी बुलेट ट्रेन परियोजना

देश की पहली हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना में सालों देरी के बाद अब इसके गुजरात चरण में निर्माण कार्य तेजी पकड़ रहा है, जहां कास्टिंग यार्ड और निर्माण स्थलों पर मजदूर और इंजीनियर 24x7 काम पर लगे हैं.

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अहमदाबाद/आणंद/सूरत: गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले सितंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तत्कालीन जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद में 508 किलोमीटर लंबी मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखी थी. मोदी ने इसे ‘नए भारत का प्रतीक’ बताया था जबकि विपक्ष ने इसे खारिज करते हुए ‘चुनावी बुलेट ट्रेन’ करार दिया था.

और, अब पांच साल बाद जब गुजरात में फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तब इस पश्चिमी राज्य में परियोजना के तहत 348 किलोमीटर लंबे ट्रैक के काम ने गति पकड़ी है. इंजीनियरों और मजदूरों की टीमें 24×7 काम में लगी हैं ताकि भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दों और महामारी जैसे अन्य कारणों से परियोजना में देरी को कुछ हद तक कवर किया जा सके.

एक पखवाड़े पहले दिप्रिंट ने जब राज्य की पांच प्रोजक्ट साइट का दौरा किया, तो हजारों की संख्या में श्रमिक और इंजीनियर कुछ अत्याधुनिक मशीनों की सहायता से खंभा-दर-खंभा और गार्टर-दर-गार्टर तैयार करके हाई-स्पीड कॉरिडोर को आकार देने में जुटे थे.

मध्य गुजरात के आणंद और नवसारी के दक्षिण में स्थित कास्टिंग यार्ड में विशाल गार्टर ढाले जा रहे थे जिनमें से प्रत्येक का वजन करीब 975 मीट्रिक टन है. वहीं प्रेस्ट्रेस्ड कंक्रीट और स्टील के ढांचे वाले खंभे भी तैयार हो रहे हैं, जिन पर बुलेट ट्रेन के लिए ट्रैक बिछाया जाना है.

सूरत में तमाम इंजीनियर तापी नदी पर एक रेलवे पुल बनाने की जटिल प्रक्रिया में माथापच्ची कर रहे थे, वहीं, शहर में डायमंड शेप वाले एक बुलेट ट्रेन स्टेशन का निर्माण कार्य प्रगति पर चल रहा है.

सूरत में तापी नदी पर पुल का कार्य प्रगति पर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

अहमदाबाद में, प्रोजेक्ट वर्कर्स ने बताया कि बुलेट ट्रेन स्टेशन को मेट्रो, बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस), और साबरमती रेलवे स्टेशन से जोड़ने के लिए मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट हब पर अधिकांश काम पूरा हो गया है.

इस परियोजना से जुड़ी ‘प्रतिष्ठा’ ने देशभर के इंजीनियरिंग एक्सपर्ट के साथ-साथ विविधतापूर्ण श्रम शक्ति को भी काफी आकृष्ट किया है.

सूरत में एक प्रोजेक्ट साइट पर काम करने वाले एक इंजीनियर ने बताया, ‘विभिन्न स्तर के लोग—जिसमें सुपरवाइजर और इलेक्ट्रीशियन से लेकर वेल्डर तक शामिल हैं—बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए दुबई और अन्य खाड़ी देशों के अपने कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट छोड़कर यहां आ गए हैं.’

इसका एक इंटरनेशनल लिंक भी है, जापानी अधिकारी और इंजीनियर अक्सर प्रोजेक्ट साइट का दौरा करते हैं. साबरमती में नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘वे (जापानी) अब अहमदाबाद में एक कार्यालय स्थापित करने की कोशिश में भी हैं.’

धीमी शुरुआत से उबरने की कोशिश

मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन जापानी बुलेट ट्रेन शिंकनसेन की तकनीक पर आधारित है लेकिन भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप संशोधन के साथ यह ट्रेन 320 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी और तीन घंटे में 508 किलोमीटर की दूरी तय करेगी.

बुलेट ट्रेन कॉरिडोर का एक सबसे बड़ा हिस्सा—करीब 348 किमी—गुजराज में है, जबकि 156 किमी महाराष्ट्र और 4 किमी दादरा और नगर हवेली में है.

यह परियोजना एनएचएसआरसीएल की निगरानी में चल रही है, जिसे हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर की वित्त, निर्माण, रखरखाव और प्रबंधन संबंधी जिम्मेदारियां संभालने के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल बनाया गया है.

परियोजना के लिए अस्सी फीसदी फंडिंग जापानी सरकार की ओर से की जा रही है जो जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जेआईसीए) के सॉफ्ट लोन के जरिये मुहैया कराई जा रही है. बाकी की लागत केंद्र और गुजरात तथा महाराष्ट्र सरकारों को 50:25:25 के अनुपात में साझा करनी है.

बुलेट ट्रेन परियोजना की मूल समयसीमा तो दिसंबर 2023 में बीत जाएगी और व्यवहार्यता अध्ययन में अनुमानित परियोजना की लागत 1.08 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ने की संभावना है, लेकिन आगे का रास्ता उम्मीदों भरा नजर आ रहा है.

गुजरात के नवसारी में बुलेट ट्रेन के संकेत, पूरा होने की आशावादी तारीख अभी भी दिखाई दे रही है | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

गुजरात और महाराष्ट्र दोनों में भूमि अधिग्रहण इस परियोजना को बाधित करने वाला एक बड़ा मुद्दा रहा है. लेकिन अब, गुजरात में इसके लिए आवश्यक 98 प्रतिशत से अधिक भूमि का अधिग्रहण हो जा चुका है, और महाराष्ट्र में 95.4 प्रतिशत भूमि अधिग्रहीत हो गई है. दादरा एवं नगर हवेली में जितनी भूमि की जरूरत थी, उसका पूरी तरह अधिग्रहण हो चुका है.

सरकार की तरफ से 508 किलोमीटर की पूरी परियोजना के लिए अंतिम समयसीमा निर्धारित किया जाना बाकी है लेकिन गुजरात में सूरत और बिलिमोरा के बीच 50 किलोमीटर के हिस्से को पूरा करने के लिए अगस्त 2026 की समयसीमा तय की गई है.

महाराष्ट्र में जहां सालों देरी के बाद अभी काम शुरू ही हो पाया है, वहीं गुजरात में सिविल वर्क तेजी से आगे बढ़ रहा है. राज्य में सभी ठेके दिए जा चुके हैं और वायटक्ट (एक तरह के पुल) ब्रिज, स्टेशनों और और पटरियों का निर्माण कार्य पूरे जोरों पर चल रहा है.


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द मेन एंड द मशीन

परियोजना के लिए जारी बुनियादी सिविल वर्क काफी बड़े पैमाने पर होने के साथ-साथ खासा जटिलता भी है. चाहे कास्टिंग यार्ड में बनाए जा रहे गार्टर हों, या निर्माण स्थलों के पास ढाले जा रहे खंभे, इस काम में विशालकाय मशीनें इस्तेमाल हो रही हैं और इनमें से अधिकांश स्वदेश में ही निर्मित हैं.

आणंद में चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर प्रदीप अहिरकर की गहन निगरानी में 734 गार्टर निर्माण के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए करीब 6000 श्रमिकों और इंजीनियरों की टीम चौबीसों घंटे शिफ्ट में काम पर लगी रहती है. वह 88 किलोमीटर के वायडक्ट के लिए सिविल और बिल्डिंग वर्क और आणंद में एक स्टेशन का प्रभार भी संभाल रहे हैं.

अहिरकर ने दिप्रिंट को बताया कि पूरी प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा गार्टर की कास्टिंग और लॉन्चिंग है.

आनंद में घाटों पर गर्डर लगाते हुए गैन्ट्री लांचर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

उन्होंने बताया, ‘एक गार्टर की लंबाई 40 मीटर होती है और इसका वजन लगभग 975 मीट्रिक टन होता है. गार्टर की कास्टिंग हाई क्वालिटी की होनी चाहिए और उनकी लॉन्चिंग भी एकदम सटीक होनी चाहिए. यही वो नींव है जिस पर बुलेट ट्रेन दौड़ेगी और इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है.’

उन्होंने बताया, अब तक 60 गार्टर का निर्माण हो चुका है, जिनमें से 38 को खंभों पर लगाया भी जा चुका है.

गार्टर को निर्धारित स्थल पर पहुंचाना और उन्हें खंभों पर रखने का काम शक्तिशाली मशीनों के जरिये किया जाता है.

उदाहरण के तौर पर, स्ट्रैडल कैरियर्स को ले लीजिए, जो प्रोजेक्ट कॉन्ट्रैक्टर लार्सन एंड टुब्रो के तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित में प्लांट में निर्मित है. इसमें 80 विशाल टायर, 20 एक्सल होते हैं और यह लगभग 1,100 मीट्रिक टन का भार उठाने में सक्षम है. इनका इस्तेमाल गार्टर्स को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में किया जा रहा है.

आनंद कास्टिंग यार्ड में एक स्ट्रैडल कैरियर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

फिर ब्रिज गैन्ट्री भी है, जो गार्टर को जमीन से उठाकर गार्टर ट्रांसपोर्टर पर रखने के काम आती है. गार्टर ट्रांसपोर्टर एक और विशालकाय मशीन है जो गार्टर को ब्रिज गैन्ट्री से लॉन्चिंग गैन्ट्री में पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है.

इसके बाद लॉन्चिंग गैन्ट्री गार्टर ट्रांसपोर्टर से गार्टर को उठाती है और इसे पिलर्स के ऊपर सेट करती है. एक बार सभी गार्टर खंभों पर रख जाने के बाद उनका परीक्षण होगा फिर जाकर ट्रैक बिछाने का काम शुरू हो पाएगा.

आणंद में इस परियोजना का करीब 88 किमी का खंड आता है. अहिरकर ने कहा, ‘अब तक, हमने स्तंभ निर्माण के लिए लगभग 73 किमी नींव और 45 किमी पाइल कैप का काम पूरा कर लिया है. इसके अलावा, इस खंड पर पहले ही 35 किमी में खंभों (पियर्स) का निर्माण किया जा चुका है.’

कुल मिलाकर, गुजरात में 348 किलोमीटर में से 100 किलोमीटर में पियर्स का निर्माण हो चुका है. इसके अलावा 9.2 किमी वायाडक्ट का काम पूरा कर लिया गया है.

अभी लर्निंग कर्व और काफी कुछ किया जाना बाकी है, लेकिन अहिरकर पूरी तरह आशावादी हैं. उन्होंने कहा, ‘हम इसे समय पर पूरा कर लेंगे.’

एक रेलवे इंजीनियर रहे अहिरकर पश्चिमी रेलवे में इंस्टीट्यूशन ऑफ रेलवे सिग्नल इंजीनियर्स (आआरएसई) कैडर के अधिकारी के तौर पर अपनी नौकरी छोड़कर 2017 में एनएचएसआरसीएल में शामिल हुए थे.

दरअसल, एनएचएसआरसीएल के अधिकांश वरिष्ठ अधिकारी या तो प्रतिनियुक्ति पर आए हैं या फिर भारतीय रेलवे और अन्य संबद्ध संगठनों जैसे इरकॉन (जिसे पहले भारतीय रेलवे निर्माण कंपनी के रूप में जाना जाता था) और दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) आदि की अपनी नौकरी छोड़कर आए हैं.

नवसारी कास्टिंग यार्ड, जहां वायडक्ट का 2.5 किलोमीटर का हिस्सा पूरा हो चुका है, में तैनात एक डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा, ‘देश की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए काम करना निश्चित तौर पर एक बड़े सम्मान की बात है.’

नवसारी कास्टिंग यार्ड में श्रमिक | श्रेय: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

आईआईटी कानपुर से एमटेक स्नातक इस डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर ने एनएचएसआरसीएल में शामिल होने से पहले एक दशक से अधिक समय तक दिल्ली, पुणे और नागपुर मेट्रो रेल परियोजनाओं में काम किया.

परियोजना से जुड़ी अन्य साइटों पर कार्यरत लोगों ने भी इसकी ‘प्रतिष्ठा’ को लेकर कुछ ऐसी ही भावनाएं जाहिर कीं.

उदाहरण के तौर पर, आंध्र प्रदेश के रहने वाले और सूरत में काम कर रहे एक एलएंडटी सिविल इंजीनियर ने कहा कि इस परियोजना पर काम करना सभी लोगों के लिए ‘कैरियर ग्राफ में प्रगति’ की गारंटी है.

उन्होंने आगे कहा, ‘इतने व्यापक स्तर पर काम के लिहाज से यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसमें बहुत कुछ सीखने को भी मिल रहा है क्योंकि हम भारत में पहली बार इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं. यह मौजूदा समय में दुनिया का सबसे उन्नत रेलवे इंफ्रा प्रोजेक्ट है.


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जटिल प्रौद्योगिकी, जापान में ट्रेनिंग शुरू

बुलेट ट्रेन परियोजना भारत और जापान के बीच व्यापक स्तर के सहयोग पर केंद्रित है.

सेवा में लगाई जाने वाली ई-5 शिंकनसेन सीरिज की बुलेट ट्रेनों का निर्माण जापान के कावासाकी हेवी इंडस्ट्रीज और हिताची को करना है, लेकिन गुजरात खंड में सिविल वर्क भारतीय कांट्रैक्टर कर रहे हैं

ट्रैक बिछाने के लिए आवश्यक स्लैब भारत में बनाए जा रहे हैं, वहीं ट्रैक के पुर्जे जापान से आएंगे.

बुलेट ट्रेन के ऑपरेशन और मेंटिनेंस के लिए जिम्मेदार इंजीनियरों को अलग-अलग बैच में जापान में ट्रेनिंग देने का काम शुरू कर दिया गया है. सिविल वर्क ट्रेनिंग के लिए भी इंजीनियरों को जापान भेजा गया है.

A row of railway piers on the Navsari stretch of the bullet train corridor in Gujarat. Girders will be placed over these piers, after which tracks will be laid for the bullet train | Moushumi Das Gupta | ThePrint
गुजरात में बुलेट ट्रेन कॉरिडोर के नवसारी खंड पर रेलवे पियर्स की एक पंक्ति। इन घाटों पर गर्डर लगाए जाएंगे, जिसके बाद बुलेट ट्रेन के लिए पटरियां बिछाई जाएंगी | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

सूरत में तापी नदी पर एक पुल बनाने के काम में शामिल एनएचएसआरसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ट्रैक बिछाने और पुल निर्माण जैसे सिविल वर्क काफी जटिल होते हैं. हमने पहले यह तकनीक इस्तेमाल नहीं की है. हमारे इंजीनियर और श्रमिक दोनों ही जापान में व्यापक प्रशिक्षण ले रहे हैं.’

वडोदरा में इंजीनियरों के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर भी स्थापित किया गया है. अधिकारी ने कहा, ‘ट्रेनिंग के लिए बुलेट ट्रेन इंजन का एक सिम्युलेटर भी जापान से लाया गया है.’

गुजरात में तापी, नर्मदा, माही और साबरमती पर बनाए जाने वाले पुल के स्ट्रक्चर को सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण कार्य माना जा रहा है.

तापी नदी पर पुल निर्माण के काम की निगरानी करने वाले एनएचएसआरसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘नदी के बीच खंभों का निर्माण एक जटिल काम है. इसमें भू-तकनीकी जांच शामिल है. सबसे पहले एक मजबूत नींव रखनी होती है. फिर खंभे लगाए जाएंगे और उन पर गार्टर रखे जाएंगे. आखिर में गार्टर के ऊपर ट्रैक बिछाया जाएगा.’

अहमदाबाद में साबरमती मल्टीमॉडल हब के बाहर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

सूरत में निर्माण कार्य पूरा होने के सबसे करीब

अहमदाबाद में साबरमती क्षेत्र से गुजरते समय महात्मा गांधी के दांडी मार्च को चित्रित करती स्टेनलेस स्टील के भित्ति चित्र वाली एक ऊंची-सी आलीशान इमारत ध्यान आकृष्ट करती है. यह इसी से जुड़े भारतीय रेलवे के साबरमती स्टेशन से एकदम अलग नजर आती है.

नई इमारत साबरमती मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट हब है. चूंकि मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर यहां समाप्त हो जाएगा, तो यह हब ही मौजूदा साबरमती रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम से जुड़ा होगा.

टर्मिनल स्टेशन पूरा होने में अभी समय लगेगा लेकिन हब पर काम अंतिम चरण के करीब है.

अहमदाबाद में साबरमती मल्टीमॉडल हब के अंदर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

साबरमती मल्टीमॉडल हब के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर अनिल कुमार सिंह ने कहा, ‘लगभग 90 प्रतिशत काम हो चुका है.’ उन्होंने बताया कि उम्मीद है कि बाकी काम भी फरवरी 2023 तक पूरा हो जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘मल्टीमॉडल हब को 1.5 लाख फुटफॉल को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है. तीन फुट ओवरब्रिज पर काम चल रहा है, जो हब को मेट्रो, बीआरटीएस और रेलवे स्टेशन से जोड़ेंगे.

साइट पर अभी, करीब 850 श्रमिक काम कर रहे हैं, जिसमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के हैं. अनिल कुमार ने बताया, ‘मई 2019 में काम शुरू हुआ था. लेकिन फिर कोविड ने इसे बाधित कर दिया. उस दौरान श्रमिकों की संख्या घटकर 250 रह गई थी. इसकी वजह से भी काफी देरी हुई.’

सूरत के हीरे के आकार के बुलेट ट्रेन स्टेशन की योजना | श्रेय: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

गुजरात में बुलेट ट्रेन कॉरिडोर में छह स्टेशन होंगे—वापी, बिलिमोरा, भरूच, वडोदरा, आणंद, अहमदाबाद और साबरमती. इन सभी के लिए निर्माण कार्य विभिन्न चरणों में चल रहा है जबकि सूरत का बुलेट ट्रेन स्टेशन पूरा होने के काफी करीब है.

देशभर में हीरे के कारोबार के लिए ख्यात शहर सूरत यानी डायमंड सिटी में अप्रैल 2024 तक बनकर तैयार हो जाने वाले बुलेट ट्रेन स्टेशन को इसी अनमोल रत्न के आकार का बनाया जा रहा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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