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Friday, 22 November, 2024
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दक्षिणपंथी प्रेस ने कहा- जॉर्ज सोरोस ने किसानों के प्रदर्शन को किया फंड, ‘पश्चिम की सभ्यता’ से भी जोड़ा

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप जिसमें बताया गया है कि हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने पिछले कुछ हफ्तों में विभिन्न समाचारों और समसामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर किसी तरह की टिप्पणियां कीं.

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नई दिल्ली: हंगेरियन-अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस न केवल “उन सभी बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो गांधीजी ने पश्चिमी सभ्यता के बारे में व्यक्त की थीं”, उन्होंने मोदी सरकार के अब रद्द किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को भी वित्तपोषित किया. इस सप्ताह आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में एक संपादकीय में यह दावा किया गया.

पिछले महीने सोरोस की टिप्पणी थी कि हिंडनबर्ग-अडानी विवाद के बाद भारत “लोकतांत्रिक पुनरुद्धार” देख सकता है, जो “भारत और भारतीय सभ्यता के प्रति अंतर्निहित अवमानना” का संकेत देता है. इसने यह दिखाने की भी कोशिश की कि अरबपति द्वारा लोकतंत्र का समर्थन करना “पाखंड” है.

लेख में आरोप लगाया गया कि इसका एक उदाहरण यह था कि सोरोस ने अपने परोपकारी संगठन ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के माध्यम से भारत में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को वित्तपोषित किया.

संपादकीय में कहा गया है, “उन्होंने किसानों के लिए खुले बाजार विकल्पों को मजबूत करने के लिए संसद द्वारा संवैधानिक रूप से पारित कृषि सुधार विधेयक के खिलाफ स्ट्रीट पावर को वित्तपोषित किया- यह एक स्पष्ट संकेत है कि उनके पास लोकतांत्रिक संस्थानों या खुले समाज के लिए कोई संबंध नहीं है.”

“सोरोस अपने धन शक्ति के माध्यम से सभी प्रकार की राष्ट्रवादी सोच का विरोध करके लोकतंत्र की रक्षा करने की इच्छा रखते हैं. वास्तव में, वह इस्लामवादियों या कम्युनिस्टों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, जो खुले समाज के कट्टर दुश्मन हैं.”

इस संपादकीय में महात्मा गांधी के हिंद स्वराज (भारतीय गृह नियम) के एक अंश को उद्धृत किया है कि पश्चिमी सभ्यता “न तो नैतिकता और न ही धर्म पर ध्यान देती है” और केवल “पैसे के प्रलोभन” से प्रेरित है. इसने दावा किया कि सोरोस इसका एक अवतार थे.

संपादकीय में आरोप लगाया गया है, “(सोरोस) कहेंगे, ‘जलवायु परिवर्तन की कठोर प्रगति के कारण हमारी सभ्यता को गिरने का खतरा है’, जबकि उसी पूंजीवादी मॉडल से खुशी से कमाई कर रही है जो संकट के लिए जिम्मेदार है.”


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रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की ‘साहसिक अवज्ञा’

ऑर्गनाइज़र का नवीनतम अंक रूस-यूक्रेन संघर्ष की एक साल की सालगिरह को समर्पित था, जिसमें कई लेखों में संकट पर टिप्पणी की गई थी.

युद्ध की अपनी पुनरावृत्ति में, मेजर जनरल ध्रुव कटोच (सेवानिवृत्त) ने बताया कि युद्ध ने रूसी सैन्य नेतृत्व को गलत ढंग से दिखाया है और शासन परिवर्तन का राजनीतिक उद्देश्य विफल हो गया था. उन्होंने लिखा, “अधिक हताहतों की संख्या “जल्द ही युद्ध के खिलाफ जनता की राय बदल सकती है”.

उन्होंने कहा कि भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए काफी “निपुणता” दिखानी होगी.

“हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के हित अमेरिका के साथ निकटता से जुड़े हैं और इसलिए यह क्वाड ग्रुपिंग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है. हालांकि, भारत के यूरेशियाई केंद्रीय क्षेत्र में अलग तरह के हित हैं, जो अमेरिका के विचारों से अलग है.”

हालांकि, उन्होंने कहा, “महाद्वीपीय शेल्फ और समुद्री क्षेत्र में विभिन्न हितों को आगे बढ़ाने में कोई विरोधाभास नहीं है” क्योंकि दोनों नीतियां भारत के राष्ट्रीय हित से जुड़ी हैं.

पत्रिका में एक अन्य लेख, जो शोधकर्ता पथिकृत पायने द्वारा लिखा गया है और जिसका शीर्षक ‘भारत की साहसी अवज्ञा’ है, ने कहा कि भारत ने “रूस की निंदा करने में पश्चिम का साथ देने से इंकार करके” अच्छा किया है.

इसने कहा कि भारत एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरा है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र, जो “विशाल सैन्य औद्योगिक परिसरों” के हाथों का मोहरा बन रहा है, कमजोर हो गया है और इसमें सुधार किया जाना चाहिए.

पायने ने लिखा, “भारत मजबूत बनकर उभरा, यह संभव नहीं होता अगर उसने एक स्वतंत्र विदेश नीति नहीं बनाई होती और गंभीर पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस से तेल की सोर्सिंग जारी नहीं रखी होती.”


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केजरीवाल का ‘भड़काऊ’ भाषण

आरएसएस के साप्ताहिक हिंदी मुखपत्र पाञ्चजन्य में एक संपादकीय में इस सप्ताह आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर लगभग नौ साल पहले दिए गए एक कथित “भड़काऊ (भड़काऊ)” भाषण को लेकर निशाना साधा गया था.

यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले महीने 2014 के मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने से उपजा था, जो उत्तर प्रदेश में केजरीवाल के खिलाफ कथित तौर पर यह कहने के लिए दर्ज किया गया था कि “जो लोग खुदा (भगवान) में विश्वास करते हैं, अगर वे भाजपा को वोट देते हैं तो खुदा उन्हें माफ नहीं करेगा.”

पाञ्चजन्य ने इस बात पर आपत्ति जताई कि कैसे केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट से कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए कहा था.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपने वकील के जरिए सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने का अनुरोध किया था. केजरीवाल की ओर से वकील ने कहा, “अब मैं मुख्यमंत्री हूं, कृपया कार्रवाई पर रोक लगाएं.’ कितना अजीब तर्क है कि चूंकि मैं अभी मुख्यमंत्री हूं, इसलिए मुझे अदालती कार्रवाई से राहत दी जानी चाहिए.”

“मुख्यमंत्री ने संविधान के अनुसार व्यवहार करने की शपथ ली है. यह सिर्फ एक अपराध नहीं है, यह आदतन अपराध का मामला है. क्या जुबान से लोकतंत्र चलेगा?”

लाइव लॉ रिपोर्ट में केजरीवाल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था: “अब जब मैं मुख्यमंत्री हूं, तो मुझे हर बार यूपी बुलाया जाएगा … पूरा उद्देश्य मुझे बुलाना और मुझे गिरफ्तार करना है.”

पाञ्चजन्य के लेख में कथित दिल्ली आबकारी नीति भ्रष्टाचार मामले और पंजाब में “अराजकता” का भी जिक्र किया गया है, जहां आम आदमी पार्टी (आप) सत्ता में है.

उन्होंने कहा, “आज यह गिनना मुश्किल है कि पार्टी के ऐसे कितने नेता हैं जो खुद को पक्के तौर पर ईमानदार कहते हैं, भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी या संदिग्ध हैं. पंजाब में बढ़ती अराजकता और राजनीतिक खामोशी के प्रभावों का अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है.”


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‘दुनिया भर में पूर्व-मुस्लिम लहर’

पाञ्चजन्य की कवर स्टोरी में यह आरोप लगाने की कोशिश की गई है कि दुनिया भर में कई मुसलमानों का इस्लाम से मोहभंग हो गया है और वे धर्म छोड़ रहे हैं.

कहानी में कहा गया है कि युवा “पूर्व-मुस्लिम” इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं और हैशटैग #AwesomeWithoutAllah का उपयोग करके अपने विचारों और कहानियों का प्रचार करने के लिए अपने स्वयं के YouTube चैनल बना रहे हैं.

कहानी के अनुसार, “इस्लाम भले ही अपने तर्क और तथ्य लोगों के सामने पेश कर रहा हो, पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में युवा मुसलमान इस्लाम छोड़ रहे हैं. इंटरनेट के दौर में युवा खुलकर सामने आ रहे हैं. इसे लेकर इस्लाम के केंद्रों में बेचैनी है.”

कहानी के अनुसार, “तमाम बंदिशों और डर के बावजूद पूरी दुनिया में इस्लाम छोड़ने का अभियान शुरू हो गया है… इंटरनेट ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है. इंटरनेट की मदद से मौजूदा समय में पूर्व मुस्लिमों के यूट्यूब चैनल 14 भाषाओं में चल रहे हैं. अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, डेनिश, नॉर्वेजियन, सोमाली के साथ-साथ हिंदी-उर्दू, बंगाली, मलयालम, तमिल, तेलुगु जैसी भारतीय भाषाओं में सैकड़ों पूर्व-मुस्लिम यूट्यूब चैनल हैं.”


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सिएटल का जाति-विरोधी कानून ‘हिंदूफोबिक’ है

पिछले हफ्ते इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में, आरएसएस के विचारक राम माधव ने तर्क दिया कि शहर के भेदभाव-विरोधी कानूनों में सिएटल का जाति का जोड़ “हिंदूफोबिया” को प्रोत्साहित करता है.

उन्होंने कहा, “क्या आज भारतीय-अमेरिकियों के बीच जातिगत भेदभाव एक वास्तविकता है? या यह उस समुदाय को बदनाम करने की शैतानी साजिश है, जो अमेरिका में सबसे सफल अप्रवासी समूह के रूप में उभर रहा है?”

आगे कहा गया, “जातिगत भेदभाव को भारत में कोई मंजूरी नहीं है. भारतीय संविधान किसी भी रूप में इस तरह के भेदभाव के कृत्यों को अपराध घोषित करता है. हिंदू धार्मिक नेतृत्व भी इस तरह की बुरी प्रथाओं को खारिज करने में स्पष्ट रहा है. फिर यह कैसे हो सकता है कि पिछले एक दशक में अमेरिका में जाति पर विमर्श मुख्य धारा में आ गया है?”

माधव ने दावा किया कि जातिगत भेदभाव के “झूठे झंडे” को चैंपियन बनाने वाले समूह आमतौर पर “हिंदूफोबिक” होते हैं.

“वे इस भेदभाव कार्ड का उपयोग हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए कर रहे हैं. हिंदुत्व को खत्म करने पर कुछ साल पहले एक असफल सम्मेलन में, उन्होंने घोषणा की कि हिंदू धर्म को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह जातिवाद के अलावा और कुछ नहीं है.


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2024 तक दिल्ली के हर घर में एक ‘बजरंगी’

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की मासिक पत्रिका हिंदू विश्व ने पिछले महीने एक बैठक का विवरण प्रकाशित किया है, जिसके दौरान संगठन के दिल्ली प्रमुख कपिल खन्ना ने यह सुनिश्चित करने की योजना की घोषणा की कि राष्ट्रीय राजधानी में हर घर में कम से कम एक बजरंग दल सदस्य हो. बजरंग दल विहिप की युवा शाखा है.

इसे सुगम बनाने के लिए विहिप अगले साल जन्माष्टमी तक दिल्ली के हर परिवार तक पहुंचने की योजना बना रही है. विहिप कार्यकर्ताओं से भी कथित तौर पर राष्ट्रीय राजधानी के प्रत्येक क्षेत्र में हर मंगलवार को हनुमान चालीसा पाठ आयोजित करने का आग्रह किया गया है.

विहिप के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने कहा, “दिल्ली के किसी हिंदू को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह अकेला है. एक बड़ा तबका हिंदुओं के खिलाफ नैरेटिव बनाने का काम करता है. टुकड़े-टुकड़े गैंग को हिंदुओं के खिलाफ काम करने के लिए बनाया गया है. देश में मुसलमान अभी भी सड़कों और रेल की पटरियों पर बैठकर नमाज पढ़ रहे हैं.”


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आरएसएस से संबद्ध आदिवासी निकाय ने किया केंद्र का विरोध

आरएसएस से जुड़े जनजातीय अधिकार संगठन अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम (एआईवीकेए) ने पिछले महीने के अंत में एक कार्यकारी बैठक की थी, जहां उन्होंने सिफारिश की थी कि सरकार को अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए लोकुर पैनल के मानदंडों का पालन करना चाहिए और कुछ को शामिल नहीं करना चाहिए.

एआईवीकेए के अखिल भारतीय हितरक्षा (अधिकारों का संरक्षण) प्रमुख गिरीश कुबेर को द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह कहते हुए उद्धृत किया गया था, “हम सवाल करते हैं कि जिन जनजातियों को उच्चतम संवैधानिक संस्थानों और साथ ही राज्यों द्वारा एसटी सूची में शामिल करने से कई बार खारिज कर दिया गया था, उन्हें आजादी के 75 साल बाद तुरंत सूची में शामिल किया जा रहा है. भारत के महापंजीयक (आरजीआई) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) जैसे सरकारी संस्थान अपनी रिपोर्ट कैसे बदल रहे हैं?”

एआईवीकेए ने आरोप लगाया है कि हिमाचल प्रदेश में हट्टी और महाराष्ट्र में कुछ समुदाय बिना उचित परिश्रम के एसटी सूची में शामिल होने के कगार पर हैं.

(संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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