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Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीति'ब्राह्मणों को अलग करना, लोकल मुद्दों के बजाय हिंदुत्व पर फोकस'- BJP के गढ़ कस्बा पेठ से क्यों हारी पार्टी

‘ब्राह्मणों को अलग करना, लोकल मुद्दों के बजाय हिंदुत्व पर फोकस’- BJP के गढ़ कस्बा पेठ से क्यों हारी पार्टी

पुणे के कस्बा पेठ उपचुनाव में भाजपा के हेमंत रसाने एमवीए समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार रवींद्र धंगेकर से 10,915 मतों से हार गए – एक सीट जिस पर भाजपा ने लगभग तीन दशकों तक कब्जा किया था.

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मुंबई: पिछले साल के कोल्हापुर विधानसभा उपचुनाव और स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र विधान परिषद सीटों के लिए जनवरी में हुए चुनावों में लगातार हार के बाद, महाराष्ट्र भाजपा ने गुरुवार को जीत हासिल की, क्योंकि उसने चिंचवाड़ विधानसभा सीट को बरकरार रखा, जिस पर पिछले महीने उपचुनाव हुआ था.

हालांकि, पुणे के कसाबा सीट जो कि बीजेपी का गढ़ मानी जाती थी उस पर हार के बाद इस जीत की चमक धीमी हो गई है. ये सीट बीजेपी के पास लगभग तीन दशकों से बनी हुई थी.

बीजेपी के हेमंत रसाने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के आधिकारिक उम्मीदवार कांग्रेस के रवींद्र धंगेकर से 10,915 मतों से हार गए.

अपने गढ़ में भाजपा की हार पार्टी और उसके गठबंधन सहयोगी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के वहां प्रचार करने के बावजूद आई.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कस्बा पेठ में कई रैलियों को संबोधित किया था, जबकि चंद्रकांत पाटिल, गिरीश महाजन और रवींद्र चव्हाण जैसे अन्य भाजपा नेताओं ने भी निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार किया था.

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राजनीतिक पर्यवेक्षकों के साथ-साथ पार्टी के अंदरूनी सूत्र हार के लिए कई कारकों का हवाला देते हैं.

सबसे पहले, ऐतिहासिक रूप से एक ब्राह्मण-बनिया पार्टी के रूप में जानी-जानी वाली पार्टी बीजेपी अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों को रिझाने की कोशिश कर रही है. संभवतः एक बड़ी ब्राह्मण आबादी वाली सीट पर उसकी जाति का गणित गलत हो गया

दूसरे, पार्टी ने एक स्थानीय उपचुनाव को एक राष्ट्रीय चुनाव में रूपांतरित करने का प्रयास करके गलती की जो हिंदुत्व विचारधारा को संरक्षित करने के बारे में अधिक था. अंदरूनी सूत्रों और पर्यवेक्षकों के अनुसार, कस्बा पेठ के मतदाता वास्तव में पिछले कुछ महीनों में भाजपा के स्थानीय कार्य और महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाओं को लेकर फैसला करना चाह रहे थे.

अंत में, उन्होंने कहा, उपचुनाव ने एकजुट एमवीए की शक्ति को दिखाया, जिसमें शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस शामिल हैं.

मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा: “हम यह चुनाव हार गए हैं. हम हार स्वीकार करते हैं. हम विश्लेषण करेंगे कि हम कहां कम रह गए और हमें कहां सुधार करने की जरूरत है.

भाजपा द्वारा पिछले साल जून में शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद से कस्बा पेठ और चिंचवाड़ विधानसभा उपचुनाव पहले चुनाव थे, और चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को शिवसेना का ‘धनुष और तीर’ चिन्ह आवंटित करने का फैसला किया था.

ब्राह्मणों का गढ़ है भाजपा

कस्बा पेठ पुणे के सबसे पुराने क्षेत्रों में से एक है, इसके पुराने वाडे (हेरिटेज बंगले), भीड़भाड़ वाली गलियां और शनिवार वाडा जैसी ऐतिहासिक संरचनाएं हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, यह निर्वाचन क्षेत्र 1995 से लगातार 28 वर्षों से भाजपा के पास है.

भाजपा के गिरीश बापट, एक ब्राह्मण जो अब एक सांसद हैं, 1995 से 2019 तक कस्बा पेठ के विधायक थे. 2019 के विधानसभा उपचुनाव में, पार्टी ने मुक्ता तिलक को मैदान में उतारा, जो एक ब्राह्मण भी थे, जिन्होंने भाजपा के किले की रखवाली की. तिलक का पिछले साल दिसंबर में कैंसर के कारण निधन हो गया था.

भाजपा के अरविंद लेले और अन्ना जोशी, दोनों ब्राह्मणों ने क्रमशः 1978 और 1980 और 1990 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था.

जबकि तिलक का परिवार, जिसे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का वंशज कहा जाता है, इस साल के उपचुनाव में सीट के लिए टिकट पाने की उम्मीद कर रहे थे, भाजपा ने पुणे नगर निगम में अपने पूर्व स्थायी समिति के अध्यक्ष हेमंत रसाने को नामित करने का फैसला किया. रसाने कांग्रेस के धंगेकर की तरह ही अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं.

भाजपा द्वारा अपने पसंद के उम्मीदवार की घोषणा के बाद गुमनाम रूप से पोस्टर लगाए गए, जिसमें मतदाताओं से उपचुनाव में नोटा (इनमें से कोई नहीं) चुनने का आग्रह किया गया था. “कस्बा हा गडगिलांचा, कस्बा हा बापांचा, कस्बा हा तिलकंचा. का कधला अमचकदुन कस्बा? (कस्बा गाडगिल परिवार का है. कस्बा बापट का है. कस्बा तिलक का है. तुमने हमसे कस्बा क्यों छीन लिया?), पोस्टर में लिखा है.

पुणे के एक भाजपा नेता ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया,“पार्टी ने तिलक परिवार को थोड़ा लटका कर रखा और फिर रसाने को मैदान में उतारा. ब्राह्मण फैक्टर ने निश्चित रूप से इसमें थोड़ा नुकसान किया.“

उन्होंने आगे कहा, “पुणे में ब्राह्मण समुदाय हर समय एक ब्राह्मण उम्मीदवार पर जोर नहीं देता है, लेकिन तिलक परिवार की स्पष्ट निराशा और पोस्टरों के लगाए जाने के साथ- साथ, भावना ऐसी थी कि अगर पार्टी कुछ जातियों के लिए जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख सकती है तो भाजपा इस सीट के लिए जातिगत समीकरणों को क्यों नहीं देख सकी और इस सीट के लिए एक ब्राह्मण को क्यों नहीं चुना?”

कथित तौर पर पुणे का ब्राह्मण समुदाय भी भाजपा से नाराज था, जब उसने एक ब्राह्ममण नेता और कोथरुड विधायक मेधा कुलकर्णी, को पार्टी के मजबूत मराठा नेता चंद्रकांत पाटिल के लिए सीट खाली करने का फैसला किया.

बावनकुले ने इस बात से इनकार किया कि कस्बा पेठ के नामांकन के लिए तिलक के परिवार की ओर से “एक मजबूत मांग” थी.

“मुक्ता तिलक के बेटे कुणाल तिलक के लिए, हमने सोचा कि उन्हें पहले निकाय चुनाव लड़ना चाहिए, वहां काम करना चाहिए और फिर विधानसभा जाना चाहिए. रासाने बहुत अच्छे उम्मीदवार थे, लेकिन धंगेकर के लिए सहानुभूति की लहर थी क्योंकि वह इससे पहले असफल होकर चुनाव लड़े थे.

बीजेपी का हिंदुत्व पर फोकस

दिप्रिंट से बात करते हुए, “उपचुनाव को एक राष्ट्रीय और वैचारिक लड़ाई बताते हुए, राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा कि चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में भाजपा ने हिंदुत्व की बात उठाई.”

देसाई ने कहा, “इसने लव जिहाद, कश्मीर और पुण्येश्वर मंदिर (पुणे में) जैसे मुद्दों को उठाया. हालांकि, ऐसा लगता है कि इन मुद्दों ने काम नहीं किया है.”

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसे राजनीतिक दलों ने अतीत में दावा किया है कि पुण्येश्वर मंदिर को खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी के एक सेनापति ने नष्ट कर दिया था.

कुछ भाजपा नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की, उन्होंने स्वीकार किया कि धंगेकर, जो चार बार के पूर्व नगरसेवक थे, जो पहले मनसे और अविभाजित शिवसेना के साथ थे, उनको रसाने की तुलना में अधिक बेहतर उम्मीदवार के रूप में देखा गया था.

उन्होंने यह भी दावा किया कि मनसे के साथ धंगेकर के इतिहास को देखते हुए, स्थानीय मनसे कार्यकर्ताओं ने भाजपा उम्मीदवार के बजाय उनके लिए प्रचार किया.

मुंबई विश्वविद्यालय में नागरिक शास्त्र और राजनीति विभाग के एक शोधकर्ता डॉ. संजय पाटिल ने दिप्रिंट को बताया कि मतगणना के शुरुआती दौर से धंगेकर की स्पष्ट बढ़त से पता चलता है कि अलग अलग उम्र और क्षेत्रों के लोगों ने उनको वोट दिया है.

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपने सुनिश्चित निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं को हल्के में लिया होगा. उन्होंने कहा कि इसे विचारधारा और पार्टी संबद्धता से परे बड़े मुद्दों पर फैसले के रूप में देखा जा सकता है.

पाटिल ने आगे कहा, “इस तरह के मजबूत प्रचार के बावजूद अपने गढ़ में भाजपा की हार अर्थव्यवस्था, रोजगार, महाराष्ट्र में हाल की घटनाओं और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के काम के साथ-साथ वास्तव में एकजुट एमवीए की ताकत के बारे में मतदाताओं की धारणा को भी दर्शाती है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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