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Friday, 1 November, 2024
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खेतों में पड़ी दरारें और दुखदायी हैं खरपतवार: चावल की फसल बचाने के लिए सूखे से जूझते यूपी के किसान

पूर्वी यूपी के पांच जिलों में घोर निराशा छाई हुई है. यहां ज्यादातर किसानों की धान की फसल की रोपाई में एक महीने से ज्यादा की देरी हुई है, जिसका सीधा सा मतलब है उपज में कमी. इन इलाकों में चावल बारिश पर निर्भर प्रमुख फसल है.

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हरदोई, रायबरेली, बाराबंकी: एक सौ एकड़ में फैला हरा-भरा घास का मैदान, शांत परिदृश्य में घास चरते आवारा जानवर, सफेद बादलों से ढका नीला आसमान- दूर से देखने पर यह तस्वीर एक डिफ़ॉल्ट डेस्कटॉप स्क्रीनसेवर की तरह नजर आती है.

भले ही ये हमारे और आपके लिए एक खूबसूरत एहसास हो, लेकिन गुड्डू यादव के लिए इसके कुछ और ही मायने हैं. उत्तर प्रदेश के हरदोई के माधोपुर गांव के एक छोटे किसान यादव के पास उस घास के मैदान में एक-दो एकड़ की जमीन है. वास्तव में यह धान की खेती का एक विशाल क्षेत्र है, जिस पर अब घास और बहुतायत में उगने वाली खरपतवारों ने अपना कब्जा जमा लिया है.

यादव और गांव के ज्यादातर अन्य किसान जून से बारिश का इंतजार कर रहे थे, ताकि खरीफ फसल के मौसम में धान की बुवाई की जा सके. जुलाई के अंत तक आते-आते उन्होंने उम्मीद खो दी और जमीन को बंजर छोड़ने का मन बना लिया.

वे खेतों की सिंचाई के लिए डीजल से चलने वाले पंप-सेट का खर्च नहीं उठा सकते हैं. पंप से एक एकड़ में एक बार धान के खेत की सिंचाई करने में लगभग 1,500 रुपये का खर्च आता है. लंबे समय तक सूखे का मतलब है कि फसल को कटाई तक कम से कम दस राउंड पानी की जरूरत और यह घाटे का सौदा है.

चूंकि चावल की फसल को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए ये परंपरागत रूप से बाढ़ वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है.

How a healthy, well-watered rice field looks like. Abhay Gaur's farm in Hardoi | Photo: Sayantan Bera | ThePrint
एक स्वस्थ, अच्छी तरह से पानी वाला चावल का खेत कैसा दिखता है. हरदोई में अभय गौर का खेत/ सायंतन बेरा/दिप्रिंट

लंबी अवधि या 50 साल के औसत की तुलना में हरदोई जिले में 48 फीसदी बारिश की कमी दर्ज की गई है. इसकी तुलना 1 जून से 12 अगस्त के बीच पूर्वी उत्तर प्रदेश में 47 फीसदी और पूरे राज्य में 44 फीसदी की कमी से की जाती है.

यादव ने विनती भरे लहजे में कहा, ‘मई में (भीषण गर्मी के कारण) मेरी गेहूं की एक तिहाई फसल बर्बाद हो गई. इस मौसम में चावल के एक दाने के बिना हमारे भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.’ यादव फिलहाल मुश्किल से मिलने वाले आकस्मिक काम या मजदूरी कर अपना गुजारा चला रहे हैं.

यादव के खेतों से लगभग 250 किमी दूर अमेठी जिले के मुबारकपुर गांव में 70 साल के चंद्रभान सिंह की कहानी भी कुछ अलग नहीं है. वह जुलाई के अंत में बोई गई अपनी एक एकड़ धान की फसल को बचाने के लिए जूझ रहे हैं. धान के पौधे लगाए दो सप्ताह बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक एक बार भी बारिश नहीं हुई है. सिंह पहले ही अपने धान के खेत की सिंचाई के लिए लगभग 5,000 रुपये खर्च कर चुके हैं.

सिंह ने बताया, अगर अभी बारिश होती भी है, तो भी मैं देर से रोपण और खरपतवार की वजह से अपनी फसल के उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा खो दूंगा. और अगर बारिश नहीं हुई, तो कुछ भी नहीं बचेगा.’

पिछले हफ्ते दिप्रिंट ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के पांच जिलों अमेठी, रायबरेली, प्रतापगढ़, हरदोई और बाराबंकी का दौरा किया और किसानों से मुलाकात की. इन इलाकों में उगाई जाने वाली बारिश पर निर्भर प्रमुख फसल चावल की स्थिति पर नजर डाली. धान के कमजोर पौधे, नमी की कमी के कारण जमीन पर पड़ती दरारें, बढ़ती घास और खरपतवार से यहां के लोगों में भारी निराशा की भावना थी.

A rice field overgrown with grass and weeds | Photo: Sayantan Bera | ThePrint
एक चावल के खेत में खरपतवार उग आया/ फोटो: सायंतन बेरा/दिप्रिंट

ज्यादातर किसानों के लिए रोपण में एक महीने से अधिक की देरी हुई है, जिसका मतलब है उपज में कमी. इस कमी के चलते चावल की घरेलू उपलब्धता कम हो सकती है, कीमतें बढ़ सकती हैं और निर्यात पर अंकुश लगाया जा सकता है.

दिप्रिंट ने देखा कि नहर के पानी और बिजली के सबमर्सिबल पंपों तक पहुंच वाले कुछ गिने-चुने किसान ही अपनी फसलों का ठीक से उगा पा रहे हैं. बाकी किसान काफी परेशान नजर आए. अगर यहां आने वाले दिनों में बारिश नहीं होती है, तो रोपित फसलें को उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा. क्योंकि इनमें से अधिकांश किसान सिंचाई के लिए महंगा ईंधन खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं.

‘1.5 करोड़ टन चावल का उत्पादन जोखिम में’

यादव और सिंह जैसे किसानों की दुर्दशा तेजी से त्रासदी का रूप लेती जा रही है. गंभीर सूखे का सामना कर रहे झारखंड के अलावा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में फैले भारत के उपजाऊ गंगा के मैदानों में दसियों हज़ार किसान अब कम बारिश से जूझ रहे हैं. इन चार राज्यों में जून-अक्टूबर खरीफ फसल के मौसम के दौरान भारत के चावल उत्पादन के एक तिहाई से अधिक हिस्से की पैदावार होती है.

चावल भारत भर में उगाया और खाया जाने वाला एक प्रमुख भोजन है और वर्षा पर निर्भर खरीफ सीजन में वार्षिक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 86 फीसदी है. बाकी को सर्दियों या रबी की फसल के रूप में अक्टूबर-नवंबर के आसपास में उगाया जाता है.

समय से पहले पड़ी भीषण गर्मी की वजह से पहले गेहूं की फसल पर असर पड़ा, जिसके चलते सरकार को मई में निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ गया था. और अब कम बारिश भारत के चावल उत्पादन पर असर डालती नजर आ रही है. भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है और ग्लोबल व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है. दुनिया अब चिंतित है कि कहीं भारत अनाज की महंगाई को काबू में रखने के लिए निर्यात पर अंकुश न लगा दे.

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 11 अगस्त तक धान की बुवाई 44 लाख हेक्टेयर कम हो गई है, जो पिछले साल लगाए गए रकबे की तुलना में लगभग 12.4 फीसदी कम है. जो औसतन 2.5 टन प्रति हेक्टेयर उपज यानी 11 मिलियन टन उत्पादन को प्रभावित करती है.

इसके अलावा कम बारिश का सामना कर रहे राज्यों में हजारों किसानों ने एक महीने से अधिक की देरी से बुवाई की, जो कम पैदावार में तब्दील हो जाएगी. धान की रोपाई का आदर्श समय मध्य जून से मध्य जुलाई के बीच का होता है.

दिल्ली के कृषि व्यापार विश्लेषक एस चंद्रशेखरन ने कहा कि अनुमानित 1.5 करोड़ टन चावल का उत्पादन (खरीफ के 11.2 करोड़ टन के लक्ष्य का लगभग 13 प्रतिशत) इस समय जोखिम में हो सकता है. चार राज्यों में कम बारिश और कुछ में अधिक बारिश के कारण, छत्तीसगढ़, ओडिशा और हरियाणा जैसे कई राज्यों ने किसानों को अधिक पानी वाली धान की खेती से दलहन, मोटे अनाज और बाजरा जैसी अन्य फसलों में स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित किया है. दक्षिणी राज्यों तेलंगाना और तमिलनाडु के किसान भी प्राकृतिक फाइबर की थोक कीमतों में बढ़ोतरी के कारण चावल से कपास की ओर मुड़ गए हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि ‘चीन द्वारा आयात में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण, पिछले वर्ष की तुलना में जून 2022 में चावल के निर्यात में 43 प्रतिशत (यूएसडी मूल्य के संदर्भ में) की वृद्धि हुई है.’

निश्चित रूप से चीन और बांग्लादेश से मजबूत निर्यात मांग से उत्साहित घरेलू कीमतें पहले से ही बढ़ रही हैं. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा चावल की कीमतें जून के मध्य में 0.9 प्रतिशत की मामूली मुद्रास्फीति दर की तुलना में साल-दर-साल (14 अगस्त को) सात फीसदी अधिक थीं.


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उपज में नुकसान का डर, फिर भी धान की रोपाई

कृषि मंत्रालय के मुताबिक, पूरे भारत में अब तक 2.3 करोड़ हेक्टेयर में चावल बोया जा चुका है. लेकिन जैसा कि दिप्रिंट को पता चला है, देर से बुवाई और खराब फसल प्रबंधन से उन राज्यों में पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है जहां बारिश की कमी ज्यादा है और सिंचाई तक पहुंच की स्थिति काफी खराब है.

उदाहरण के तौर पर प्रभावती के मामले को लिया जा सकता है. 10 अगस्त की सुबह 55 साल की प्रभावती सिंह ने रायबरेली जिले के चतुरपुर गांव में अपनी तीन एकड़ जमीन में धान की रोपाई शुरू कर दी. पहली बार नर्सरी में पौधे मुरझा जाने के बाद, रोपण का यह उनका दूसरा प्रयास था.

चावल को पहले नर्सरी यानी जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर लगाया जाता है, वहां इसे तीन सप्ताह तक पोषित किया जाता है. इसके बाद मुख्य खेत में इन पौधों को रौपा जाता है. अगर 35-40 दिन पुरानी नर्सरी से पौधे रोपे जाते हैं, तो इससे उपज में काफी नुकसान होता है.

Prabhavati Devi in her field | Photo: Sayantan Bera | ThePrint
प्रभावती देवी अपने खेत में/फोटो: सायंतन बेरा/दिप्रिंट

प्रभावती बारिश के लिए और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती थी. इसलिए, उसने एक डीजल पंप-सेट किराए पर लिया और एक छोर से अपने खेत में पानी भरना शुरू कर दिया. किराए पर आ मजदूरों ने गीले सिरे पर पौधे लगाए, जबकि दूसरा छोर अभी भी सूखा था. यह एक असामान्य दृश्य है – धान के खेतों को आमतौर पर जोता जाता है, पानी से भर दिया जाता है और रोपाई से पहले एक दिन के लिए खेतों में अच्छी तरह कीचड़ कर दी जाती है. यह मिट्टी को नरम और प्रत्यारोपण के लिए अनुकूल बनाता है, खरपतवारों को नष्ट करता है और पानी के रिसाव को कम करता है.

प्रभावती ने कहा, ‘मैं जमीन को बंजर छोड़ने के बारे में नहीं सोच सकती हूं. मैं जो कुछ बन पड़ेगा वो करूंगी’ वह पहले ही 20,000 रुपये से ज्यादा खर्च कर चुकी हैं. उन्होंने बुवाई में आने वाले खर्च के लिए यह रकम एक माइक्रो फाइनेंस ऋणदाता से इस उम्मीद में उधार ली कि आने वाले समय में बारिश हो ही जाएगी.

हरदोई में 70 एकड़ जमीन पर अपनी धान की सिंचाई करने के लिए इलेक्ट्रिक सबमर्सिबल पंप का इस्तेमाल करने वाले अभय गौर ने बताया कि पौधे लगाने का आदर्श समय 15 जून के आसपास है और अगस्त में रोपण करने वाले किसानों के लिए काफी देर हो चुकी है.

गौर ने जून के मध्य में बोई अपनी हवा में लहराती, हरे-भरे धान की खेती को दिखाते हुए चेतावनी दी, ‘एक किसान के लिए भूमि को बंजर छोड़ना एक सामाजिक कलंक है लेकिन इस तरह के खेतों में आगे कुछ भी नहीं होगा.’

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली के एक सीनियर चावल वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बारिश की कमी और 30 दिन से अधिक पुरानी पौध लगाने से पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने बताया, ‘पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे नहर सिंचाई वाले क्षेत्रों में, चावल की फसल अच्छा कर रही है. लेकिन बारिश की भारी कमी वाले हिस्सों में, देर से बोई गई फसल को बनाए रखना एक चुनौती है. डीजल पंपों से सिंचाई करना बहुत महंगा है. 35 से 40 दिन पुराने पौधे रोपने से पैदावार में भारी गिरावट आएगी.’

वैज्ञानिक ने कहा कि एक महीने पुराने धान के खेत में दरारें एक गंभीर चेतावनी संकेत हैं. इसका मतलब है कि डीजल पंपों से लिए जाने वाला पानी तेजी से जमीन में रिस जाएगा और समय-समय पर सिंचाई के बावजूद भी खेत नम नहीं रह सकते हैं.


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‘कुछ नहीं, बस निल बटे सन्नाटा’

यह एक ऐसी लड़ाई है जिससे कई किसान लड़ रहे हैं. बाराबंकी के एक किसान हनुमान यादव ने कहा, ‘मैंने चावल के खेत को बचाने के लिए डीजल पर 20,000 रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं. लेकिन लगातार छह घंटे फसल की सिंचाई करने के बाद भी खेत सूखने में सिर्फ आधा दिन लगता है.’

उन्होंने कहा कि सूखे से जूझ रहे किसानों के सामने एक और व्यापक समस्या है – आवारा मवेशी फसलों को बर्बाद कर रहे हैं.

हनुमान यादव ने बताया, ‘मैं अखबारों में पढ़ रहा हूं कि हमारी आमदनी दोगुनी हो गई है. लेकिन जमीनी स्तर पर देखें तो इस साल हमने गेहूं की फसल का एक हिस्सा गर्मी में खो दिया और अब चावल की फसल सूखे के कारण बर्बाद हो रही है.’

A parched rice field in Hardoi, UP, with stunted crops | Sayantan Bera | ThePrint
हरदोई, यूपी में एक सूखा चावल का खेत, जिसमें खड़ी फसलें हैं/सायंतन बेरा/दिप्रिंट

दिप्रिंट ने तीन दिनों के दौरान 20 से ज्यादा किसानों से मुलाकात की. इनमें से किसी ने यह नहीं कहा कि उन्हें कोई सरकारी सलाह या सहायता मिली है. किसानों के पास कम अवधि के चावल की किस्मों (रोपण में देरी की भरपाई के लिए) या दलहन जैसी वैकल्पिक फसल लगाने के सुझाव नहीं थे. हरदोई के कुछ किसानों ने कम बारिश के कारण अपने दम पर चावल से मूंगफली और गन्ने की खेती शुरू कर दी.

राज्य के कृषि विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अगर बारिश नहीं हुई तो सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगी.’ वह आगे कहते हैं ‘मुझे सूखा घोषित करने या सिंचाई के लिए डीजल पर सब्सिडी की घोषणा करने की किसी योजना की जानकारी नहीं है.’

दिप्रिंट को रायबरेली और प्रतापगढ़ जिलों के आसपास लेने जाने वाले एक किसान ने मानसून पर एक पुरानी कहावत सुनाई – ग्रामीण भारत के लिए एक जीवन रेखा. ‘सावन मास बहे पुरवाई, बरदा बेच बेशौव गाय (जब जुलाई-अगस्त में पुरवाई हवाएं चलती हैं, तो बारिश नहीं होगी और फसलें खराब हो जाएंगी. इसलिए, किसान को अपना बैल (जोत के लिए इस्तेमाल किया जाता है) को बेच देना चाहिए और इसके बजाय एक गाय खरीद लेनी चाहिए. कम से कम उसके पास पीने के लिए दूध तो होगा.)’

प्रतापगढ़ के मुबारकपुर गांव के रहने वाले 65 साल के ननकाऊ पासी इस कहावत से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उन्होंने कहा, ‘पिछले एक महीने में सिर्फ एक बार बारिश हुई. लेकिन बहुत ही कम समय के लिए. यहां सबका निल बटे सन्नाटा हो चुका है. इस समय हम ऐसा ही महसूस कर रहे हैं. हमारे पास अपने मवेशियों को खिलाने के लिए भी कुछ ज्यादा नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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