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Friday, 29 March, 2024
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भारत की खाद्य चिंताएं बढ़ीं, अनियमित मॉनसूनी बारिशों से धान की रोपाई 13% पिछड़ी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे प्रांतों में, धान के क्षेत्र में पिछले साल की अपेक्षा 37 लाख हेक्टेयर्स की कमी चल रही है.

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नई दिल्ली: कृषि मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अनियमित मॉनसूनी बारिशों ने खरीफ की मुख्य फसल धान की रोपाई को बुरी तरह प्रभावित किया है. धान रोपाई का क्षेत्र, जिसे पूरे देश में उगाया और खाया जाता है, पिछले साल के मुक़ाबले 13 प्रतिशत कम हो गया है.

भारत दुनिया में चीन के बाद चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और शीर्ष निर्यातक है, जिसकी चावल के विश्व व्यापार में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है. लेकिन इस फसल में पानी बहुत चाहिए होता है, और ये परंपरागत रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में उगाया जाता है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जिन प्रांतों में इस मुख्य फसल की रोपाई में सबसे अधिक कमी देखी जा रही है वो हैं पश्चिम बंगाल- जो सबसे बड़ा उत्पादक है- और उसके साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और तेलंगाना. इनके अलावा अन्य अग्रणी उत्पादकों- छत्तीसगढ़ और ओडिशा से भी कम रोपाई की ख़बरें आ रही हैं.

29 जुलाई तक, अगर पिछले साल इस समय तक रोपाई के क्षेत्र से तुलना करें, तो ये सात राज्य 37 लाख हेक्टेयर के ज़बर्दस्त अंतर से पिछड़ रहे हैं. रोपाई क्षेत्र में कमी खरीफ में पूरे देश के कुल चावल क्षेत्र का क़रीब 10वां हिस्सा है.

अगर 2.6 टन प्रति हेक्टेयर की औसत उपज से हिसाब लगाया जाए, तो कम रोपाई से क़रीब 1 करोड़ टन का उत्पादन दांव पर लग गया है.

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भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है, कि 29 जुलाई तक मॉनसूनी बारिशों कुल मिलाकर सामान्य से अधिक रही हैं- दीर्घ-कालिक औसत से 9 प्रतिशत अधिक- लेकिन ये उन बड़े चावल उत्पादक प्रांतों में कम रही हैं, जो बारिशों पर निर्भर करते हैं.

अभी तक, बारिशों में ये कमी दक्षिणी बंगाल में 47 प्रतिशत के चिंताजनक स्तर पर है, बिहार में ये 41 प्रतिशत है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 52 प्रतिशत, और झारखंड में 50 प्रतिशत है. इस बीच एक और शीर्ष चावल उत्पादक, तेलंगाना ज़बर्दस्त बाढ़ और फसलों को व्यापक नुक़सान की संभावना से जूझ रहा है.


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सूखे खेत

पश्चिम बंगाल में नदिया ज़िले के एक किसान जगबंधु मंडल ने कहा, ‘पिछले क़रीब एक दशक में हमने इतनी कम बारिशें नहीं देखीं. मेरे पड़ोस से बहुत से किसान सब्ज़ियां उगाने की तैयारी कर रहे हैं. बाक़ियों को ये चिंता सता रही है कि चावलों की उपज क्या होगी, और देर से बोवाई का सरसों (अगले फसल सीज़न में) जैसी सर्दी की फसलों पर क्या असर पड़ेगा’.

बिहार में मधेपुरा ज़िले के 43 वर्षीय चित्तरंजन कुमार इससे भी बुरी दास्तान सुनाते हैं.

कुमार ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘मैंने कुछ हफ्ते पहले धान की रोपाई की थी, लेकिन पानी की कमी से खेतों में दरारें पड़ गई हैं. सुबह के समय जब मैं डीज़ल पंप सेट की मदद से फसल की सिंचाई करता हूं, तो शाम तक खेत सूख जाता है. चूंकि फसल पानी में डूबी नहीं है इसलिए खेतों में खरपतवार पैदा हो गई है, और मैं सामान्य से आधी उपज की अपेक्षा कर रहा हूं’.

कुमार ने आगे कहा कि सूखे से कुछ दिनों के अंदर, थोक क़ीमतों में क़रीब 250 रुपए प्रति क्विंटल का इज़ाफा हो गया है. राज्य सरकार ने फसलों की सिंचाई के लिए डीज़ल पर सब्सीडी का ऐलान किया है, लेकिन उसने कहा कि फसल को बचाने के लिए 600 रुपए प्रति एकड़ की सहायता काफी नहीं है.

दिल्ली स्थित एक कृषि व्यापार विश्लेषक एस चंद्रसेकरन का कहना था कि धान रोपाई की स्थिति पर नज़र डालने से पता चलता है कि स्थिति कितनी संकटपूर्ण है. उन्होंने कहा, ‘ये किसी एक-दिवसीय क्रिकेट मैच की तरह है, जहां (50 में से) 30 ओवर डाले जा चुके हैं, और आपकी टीम के सात विकेट गिर चुके हैं. भारत में खरीफ सीज़न में क़रीब 4 करोड़ हेक्टेयर में धान की रोपाई होती है, और अभी तक केवल 2.3 करोड़ हेक्टेयर ही कवर किए जा सके हैं’.

चंद्रसेकरन ने आगे कहा कि असमान बारिशों के अलावा, जिनसे रोपाई प्रभावित हुई है, तेलंगाना, तमिलनाडु और गुजरात जैसे सूबों में जिन क्षेत्रों में आमतौर से धान उगाया जाता था, वहां अब कपास की खेती होने लगी है क्योंकि प्राकृतिक रेशे के ऊंचे दाम मिलते हैं. इसके अलावा, हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी पिछले कुछ वर्षों से, अपने किसानों पर धान की खेती से हटने के लिए दबाव बना रहे हैं, जिससे कि पानी को संरक्षित किया जा सके.

अनाज की महंगाई

हालांकि, भारत के पास चावल के विशाल सार्वजनिक भंडार हैं, जो सामान्य स्तर से तीन गुना हैं- लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि चालू खरीफ सीज़न में कम उत्पादन होने से निर्यात पर पाबंदियां लग सकती हैं. उससे पहले मध्य-मई में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी का ऐलान हो चुका है, जब असामान्य रूप से गर्म हवाओं ने, सर्दियों की फसल को झुलसा दिया था.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि गेहूं के बाद चावल की क़ीमतों में भी तेज़ी देखी जा रही है. कोलकाता में पिछले एक साल में (29 जुलाई तक) चावल की खुदरा क़ीमतों में 25 प्रतिशत का उछाल आया, जबकि रांची में ये 11.4 प्रतिशत, और चेन्नई में 5.5 प्रतिशत रहा.

पश्चिम बंगाल की प्रांतीय राजधानी कोलकाता में ऊंची क़ीमतें, पड़ोसी बांग्लादेश से चावल की भारी मांग का संकेत देती हैं, जो भारत के ग़ैर-बासमती चावल का एक बड़ा ख़रीदार है.

भारत ने जून से अक्टूबर तक चलने वाले मौजूदा खरीफ सीज़न में, 11.2 करोड़ टन चावल उत्पादन का लक्ष्य रखा है. भारत का सालाना चावल उत्पादन, जिसमें सर्दियों की फसल शामिल है, 2021-22 में 13 करोड़ टन था.

2021-22 में, भारत ने 2.1 करोड़ टन से अधिक चावल निर्यात किया, जिसकी क़ीमत 72,000 करोड़ रुपए थी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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