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Friday, 19 April, 2024
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पहले गेहूं, अब चावल- खराब मौसम की मार के कारण इस सीजन में ‘10 मिलियन टन’ तक गिर सकता है उत्पादन

भारत के चावल उत्पादन में गिरावट के कारण नीतिगत स्तर पर बड़ा बदलाव हो सकता है जो कि गेहूं की फसल घटने के बाद हुआ है.

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नई दिल्ली: अप्रैल-मई में भीषण गर्मी के कारण देश में गेहूं की फसल खराब हो गई थी, जिसकी वजह से निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा और अब मौजूदा खरीफ सीजन की मुख्य फसल चावल की बुवाई कई राज्यों में कम बारिश के कारण प्रभावित हुई है.

उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में इस मानसून के मौसम में अब तक कम बारिश हुई है, जबकि असम भारी बाढ़ से प्रभावित हुआ है.

दिल्ली के कृषि व्यापार विश्लेषक एस. चंद्रशेखरन ने कहा, ‘एक निर्धारित अनुमान और व्यापार स्रोतों से मिली प्रतिक्रिया के मुताबिक, करीब 1.5 मिलियन टन चावल का उत्पादन घटने के आसार हैं.’

उन्होंने कहा, ‘भारत के पूर्वी राज्यों में कम बारिश के कारण, जहां पैदावार कम होती है वहां किसान कम अवधि वाली किस्मों का विकल्प चुन सकते हैं या फिर मूंग (गर्मियों में उगाई जाने वाली दाल) जैसी फसलों की ओर रुख कर सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि गुजरात में धान के रकबे की जगह कपास ने ले ली है जबकि तेलंगाना में अधिक बारिश ने मौजूदा फसल को नुकसान पहुंचाया है.

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भारत के चावल उत्पादन में गिरावट के कारण नीतिगत स्तर पर बड़ा बदलाव हो सकता है जो कि गेहूं की फसल घटने के बाद हुआ है. यद्यपि सरकार ने 2022 में 106 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया था— जो पिछले साल की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत कम है लेकिन व्यापारी इससे काफी कम फसल का अनुमान लगा रहे हैं. उनके मुताबिक यह आंकड़ा 95 मिलियन टन और 100 मिलियन टन के बीच कहीं रह सकता है.

भारत अभी चावल का एक बड़ा सार्वजनिक भंडार रखता है— जो खाद्य सुरक्षा और रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिहाज से आवश्यक भंडार की तुलना में तीन गुना अधिक है. अब तक, सरकार खाद्य सुरक्षा योजनाओं के तहत गेहूं की आपूर्ति के कुछ हिस्से की जगह अतिरिक्त चावल के स्टॉक का उपयोग करती रही है.


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‘घबराएं नहीं लेकिन बेपरवाह भी न बने’

खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के पूर्व सचिव टी. नंदा कुमार ने कहा, ‘असमान बारिश के कारण मौजूदा सीजन में चावल का उत्पादन लगभग 10 मिलियन टन घट सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘इसकी वजह से घबराने की जरूरत नहीं है लेकिन भारत को सतर्क रहना होगा. आप इस सबसे बेपरवाह नहीं रह सकते…उत्पादन में गिरावट का मतलब सरकार के लिए उदार रुख में कमी आना है. वह बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण के लिए खुले बाजार में बिक्री की स्थिति में नहीं होगी. उसे मुफ्त खाद्य योजना (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना) भी बंद करनी पड़ सकती है, जो अभी सितंबर तक चलने वाली है. यही नहीं निर्यात कर या न्यूनतम निर्यात मूल्य जैसे कदमों के जरिये व्यापार नियंत्रण पर भी मजबूर होना पड़ सकता है.’

भारत गेहूं के मामले में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है लेकिन वैश्विक स्तर पर चावल व्यापार में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख चावल निर्यातक देश है.

2021-22 में भारत ने 21 मिलियन टन चावल का निर्यात किया जो कि इसके 127.9 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन का लगभग छठा हिस्सा है.

चालू खरीफ फसल सीजन में भारत ने 112 मिलियन टन चावल उत्पादन का लक्ष्य रखा है. शेष वार्षिक उत्पादन अक्टूबर-नवंबर में शीतकालीन धान की रोपाई से होता है.


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आंकड़ों में बदलाव

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़े 1 जून से 25 जुलाई के बीच उत्तर प्रदेश (सामान्य से 53 फीसदी कम), पश्चिम बंगाल (26 फीसदी) और बिहार (45 फीसदी) में बारिश में काफी ज्यादा कमी को दर्शाते हैं. ये तीन राज्य हर साल भारत के चावल उत्पादन में लगभग एक तिहाई का योगदान करते हैं.

धान की फसल की मौजूदा स्थिति का आकलन रोपाई पर डेटा की कमी के कारण और बाधित हो गया है.

आमतौर पर आंकड़े हर शुक्रवार को प्रकाशित होते हैं लेकिन 22 जुलाई को कृषि मंत्रालय ने धान की बुआई की प्रगति के आंकड़े साझा नहीं किए. एक हफ्ते पहले (15 जुलाई को जारी) के आंकड़ों से पता चला है कि साल-दर-साल स्थिति के लिहाज से चावल की बुआई 17 फीसदी घटी है.

हालांकि, व्यापारी बाजार में बढ़ती कीमतों से कुछ संकेत समझ रहे हैं. दिल्ली के एक व्यापारी राजेश जैन ने कहा, ‘कम रोपाई के कारण चावल की कीमतें कुछ ही दिनों में 2,400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2,600 रुपये हो गई है.’

उन्होंने आगे कहा कि पड़ोसी देश बांग्लादेश और पश्चिमी अफ्रीकी देशों से मांग बढ़ी है.

राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बी.वी. कृष्णा राव ने कहा, ‘सामान्य ट्रेंड को पीछे छोड़ते हुए बांग्लादेश पिछले कुछ महीनों में भारत से बड़ी मात्रा में प्रीमियम गैर-बासमती चावल खरीद रहा है.’

राव ने कहा, ‘हालांकि, निर्यात मूल्य अभी भी सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम है.’

यह मीट्रिक बहुत महत्वपूर्ण है.

एमएसपी की तुलना में गेहूं की उच्च निर्यात कीमतों के कारण सार्वजनिक खरीद में कमी आई क्योंकि ज्यादा किसानों ने सरकारी एजेंसियों के बजाये निजी व्यापारियों को बेचने का विकल्प चुना. इसने अंततः केंद्र सरकार को निर्यात पर प्रतिबंध लगाने को बाध्य किया.

फिलहाल घरेलू कीमतें चढ़ रही हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक चावल कारोबारी ने कहा कि प्रीमियम गैर-बासमती चावल का थोक मूल्य मई अंत से जुलाई अंत के बीच 31 रुपये से बढ़कर 38 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है.

उन्होंने कहा, ‘अगर कीमतें इसी तरह चढ़ती रहीं, तो अक्टूबर में नई फसल आने पर थोक कीमतें पिछले साल के स्तर पर नहीं होंगी.’

उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 25 जुलाई को थोक चावल की कीमतें साल-दर-साल के लिहाज से 7.2 प्रतिशत अधिक थीं. कोलकाता में दैनिक खुदरा कीमतें सबसे अधिक बढ़कर 40 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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