नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) भारतीय शहद आयात पर 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क लगाए जाने से देश के शहद उद्योग पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसका कारण भारत के लगभग 90 प्रतिशत शहद निर्यात-विशेषकर सरसों का क्रिस्टलाइज्ड शहद-अमेरिका को भेजे जाते हैं।
देश के मधुमक्खीपालन उद्योग का शीर्ष संगठन, कॉन्फेडरेशन ऑफ एपीकल्चर इंडस्ट्री (सीएआई) के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘शहद आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने से भारत के शहद उद्योग और हजारों मधुमक्खी पालकों की आजीविका को नुकसान पहुंचा है। भारत के लगभग 90 प्रतिशत शहद निर्यात-विशेषकर सरसों का क्रिस्टलाइज्ड शहद-अमेरिका को भेजे जाते हैं। ऐसे में यह क्षेत्र अचानक लगाए गए इस व्यापारिक अवरोध से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘निर्यात के आर्डर मिलना पूरी तरह ठप हो चुके हैं। वर्तमान स्टॉक गोदामों में अटका पड़ा है और नई फसल का मौसम नवंबर से शुरू होने वाला है। इस बीच न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू रहने से भारतीय निर्यातक वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं।’’
शर्मा ने कहा कि हालांकि सरकार की ओर से 22 अगस्त को एमईपी को 2000 डॉलर प्रति टन से घटाकर 1400 डॉलर प्रति टन करना एक स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। उद्योग लगातार एमईपी को पूरी तरह हटाने की मांग करता आ रहा है ताकि व्यापार और आजीविकाएं सुरक्षित रह सकें। इसके अतिरिक्त, एमईपी लागू रहने से शहद निर्यातकों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ भी नहीं मिल पाते, जिससे यह क्षेत्र और अधिक दबाव में है।
शर्मा ने कहा कि ऐसे हालात में सरकार को निर्यातकों के नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल ठोस नीतियां बनानी चाहिए और उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने की ओर ध्यान देना चाहिये।
उन्होंने कहा, ‘‘यह समझना आवश्यक है कि शहद उद्योग भले ही सीधे राजस्व में छोटा हो, लेकिन कृषि, बागवानी, जैव विविधता और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मधुमक्खी पालन परागण सेवाएं प्रदान करता है, जिसके बिना फसल उत्पादन और किसानों की पैदावार में भारी गिरावट आती है।’’
उन्होंने कहा कि यदि मधुमक्खी पालन उद्योग कमजोर हुआ तो यह न केवल मधुमक्खी पालकों को हतोत्साहित करेगा बल्कि सीधे किसानों की ताकत, खाद्य उत्पादन और पर्यावरणीय संतुलन को भी नुकसान पहुंचाएगा।
शर्मा ने कहा कि भारत सरकार शहद निर्यात पर एमईपी को पूरी तरह और तुरंत समाप्त करना चाहिये। ऐसे निर्णायक कदम के साथ ही निर्यातकों को वित्तीय सहायता, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को पुनर्जीवित करेगा, उद्योग को राहत देगा और भारत के मधुमक्खी पालकों, किसानों तथा शहद उद्योग का सतत भविष्य सुरक्षित करेगा।
भाषा राजेश राजेश रमण
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