नई दिल्ली: मई में लॉकडाउन के आंशिक रूप से खुलने के बाद, अप्रैल के मुक़ाबले, जब अधिकतर आर्थिक गतिविधियां कोविड-19 के कारण निलम्बित रही थीं, 2.1 करोड़ अतिरिक्त लोगों को रोज़गार मिला.
मई में जुड़े दो-तिहाई से अधिक काम, छोटे कारोबारियों और दिहाड़ी मज़दूरों के थे, वो वर्ग जिस पर लॉकडाउन की सबसे अधिक मार पड़ी.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, मई में 30 करोड़ लोग काम पर लगे थे, जो संख्या अप्रैल में 28 करोड़, और मार्च में 39.6 करोड़ थी. इसके नतीजे में रोज़गार दर में भी सुधार हुआ, जो अप्रैल की 27.2 प्रतिशत से बढ़कर, 29.0 प्रतिशत हो गई. 2019-20 में, रोज़गार कर रहे लोगों की औसत संख्या, 40 करोड़ से अधिक थी.
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मई में बेरोज़गारी दर बिना बदले लगभग 23.5 प्रतिशत रही. ऐसा इसलिए कि श्रमिक बल की भागीदारी दर, या सक्रियता के साथ काम तलाश रहे लोगों की संख्या, अप्रैल के मुक़ाबले मई में अधिक हो गई. श्रमिक भागीदारी दर अप्रैल की 35.6 प्रतिशत के मुक़ाबले, मई में 38.2 प्रतिशत हो गई.
सक्रियता से काम की तलाश 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा, जो कुछ ही घंटों में शुरू हो रहा था, उसे देखते हुए बहुत से उद्योगों ने अचानक उत्पादन बंद कर दिया, जिससे बहुत से लोगों का रोजगार चला गया.
बहुत सी सेवाओं, व्यावसायिक गतिविधियों, और निर्माण कार्यों के रुक जाने से, अनेक रोज़गार ख़त्म हो गए, और बहुत से प्रवासी मज़दूरों को मजबूरन, पैदल ही अपने गांव लौटना पड़ा. लेकिन आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू हो गई हैं, ख़ासकर उन राज्यों में, जहां कोविड-19 का असर कम था.
सीएमआईई के प्रबंध निदेशक और चीफ़ एक्ज़िक्यूटिव, महेश व्यास ने एक नोट में कहा, ‘बहुत से लोग जो अप्रैल में सक्रिय लेबर मार्केट छोड़ गए थे, मई में वापस आ गए हैं. वो लोग जिन्होंने बड़े पैमाने पर काम छूट जाने की वजह से, अप्रैल में सक्रिय लेबर मार्केट छोड़ दिया था, निष्क्रिय बेरोज़गार वर्ग में शामिल हो गए थे. उन्होंने अपने आप को बेरोज़गार घोषित कर दिया था, और काम करने के इच्छुक तो थे, लेकिन काम तलाशने में सक्रिय नहीं थे. मई में ऐसे बहुत से लोग वापस आ गए, और सक्रियता के साथ काम तलाशने लगे.’
व्यास ने बताया कि मई के आख़िर में बेरोज़गारी दर गिरकर 20.2 प्रतिशत हो गई, जो लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे कम थी.
ये आंकड़े नीति निर्माताओं के लिए उम्मीद की किरण लेकर आएंगे, और ये आने वाले महीनों में बेरोज़गारी की स्थिति में सुधार का संकेत देते हैं, क्योंकि केंद्र सरकार जून में बहुत सी आर्थिक गतिविधियां खोलने जा रही है. व्यास ने कहा कि चरणों में लॉकडाउन के खुलने के साथ ही, लेबर के आंकड़े और सुधार दिखा सकते हैं, लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि शुरू के अधिकतर सुधार ‘ख़राब क्वालिटी के कामों’ में होंगे.
वेतन वाले जॉब्स में कमी
सीएमआईई के आंकड़े दिखाते हैं कि कारोबारियों और फार्म सेक्टर में काम करने वाले लोगों के जॉब्स, अप्रैल के मुक़ाबले मई में बढ़े, लेकिन वेतन वाली नौकरियों में मामूली गिरावट देखी गई.
व्यास ने कहा, ‘वेतन वाले जॉब पाना अपेक्षाकृत मुश्किल है और लॉकडाउन के दौरान खोईं वेतन वाली नौकरियां वापस पाना और भी कठिन है. ये जॉब बेहतर भी होते हैं. इसलिए अच्छे जॉब्स का लगातार ख़त्म होना चिंताजनक है.’
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मई में जुड़े जॉब्स में उम्र के बटवारे को देखें, तो पता चलता है कि सभी आयु वर्गों में रेज़गार बढ़ा है, लेकिन 25 से 29 वर्ष आयु वर्ग में मामूली गिरावट देखी गई है.
व्यास ने लिखा, ‘मई में जॉब्स में हुई वृद्धि, लॉकडाउन के आंशिक रूप से खुलने को दर्शाती है. ये आंशिक लिफ्टिंग स्व नियोजित वर्ग के केवल वो अनौपचारिक जॉब्स पैदा कर सकती थी, जो असंगठित क्षेत्रों में हैं. ये 25 से 29 आयु वर्ग के उन लोगों के लिए जॉब्स पैदा नहीं कर सकती थी, जो सैद्धांतिक रूप से बेहतर क्वालिटी के जॉब ढूंढ़ते हैं. ये वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए भी जॉब्स पैदा नहीं कर सकती थी.’
‘वेतन वाली नौकरियां सार्थक रूप में तभी बढ़ेंगी, जब निवेश बढ़ेंगे. ये एक दूर का सपना है.’
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