नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को अभियोजन निदेशक द्वारा जारी उस विज्ञापन पर रोक लगा दी, जिसमें 196 रिक्तियों के लिए केवल सेवानिवृत्त अभियोजकों को लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
अदालत ने कहा कि यह ‘‘स्वीकार्य नहीं’’ है और यह ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ है कि युवा वकीलों को अवसर से वंचित किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने अभियोजन निदेशक द्वारा 22 अगस्त को जारी किए गए उस विज्ञापन को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें अनुबंध के आधार पर 196 रिक्तियों को भरने के लिए केवल सेवानिवृत्त अभियोजकों को लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
अदालत ने अभियोजन निदेशक, दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान सचिव (गृह) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को याचिका पर दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर के लिए निर्धारित कर दी।
इसने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है। जब तक इस पर तर्कसंगत आदेश के माध्यम से निर्णय नहीं हो जाता, तब तक विज्ञापन स्थगित रखा जाएगा।’’
याचिकाकर्ता विकास वर्मा ने यह दलील दी है कि यह विज्ञापन भर्ती की स्थापित प्रक्रिया — यानी संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) या अन्य सक्षम प्राधिकरणों — को दरकिनार कर जारी किया गया था।’
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा कि न तो अभियोजन निदेशक और न ही दिल्ली सरकार को विज्ञापन जारी करने का अधिकार है।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि ये नियुक्तियां अंतरिम उपाय के तौर पर की जा रही हैं, क्योंकि अभियोजकों की कमी है।
याचिका में कहा गया है कि सहायक लोक अभियोजकों के 196 पदों पर नियुक्ति के लिए केवल सेवानिवृत्त अभियोजकों को आमंत्रित करने वाला विज्ञापन असंवैधानिक होने के साथ-साथ कानून के स्थापित सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
इसमें विज्ञापन को रद्द करने और अधिकारियों को उचित चयन प्रक्रिया का पालन करते हुए वैधानिक माध्यम से सीधे सरकारी अभियोजकों की भर्ती करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
भाषा नेत्रपाल दिलीप
दिलीप
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.