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Wednesday, 17 April, 2024
होमदेशदीपिका, रिया के ‘ड्रग्स की जांच’ से दिल्ली दंगों तक- व्हाट्सएप चैट के सबूत पर क्या कहता है क़ानून

दीपिका, रिया के ‘ड्रग्स की जांच’ से दिल्ली दंगों तक- व्हाट्सएप चैट के सबूत पर क्या कहता है क़ानून

जांचकर्ताओं ने एनसीबी-बॉलीवुड ड्रग केस में, संदिग्धों से पूछताछ के लिए व्हाट्सएप चैट्स को सबूत बनाया है, जिसमें दीपिका पादुकोण का नाम सामने आया है. दिल्ली दंगों में भी उन्होंने यही किया है.

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नई दिल्ली: बॉलीवुड के कथित ड्रग संबंधों की नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा, और उत्तरपूर्वी दिल्ली के दंगों की दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच में, अभियुक्तों की व्हाट्सएप चैट्स, प्रमुख साक्ष्य के रूप में सामने आई हैं.

बुद्धवार को अदाकारा दीपिका पादुकोण, सारा अली ख़ान और श्रद्धा कपूर को ड्रग्स मामले में एनसीबी की ओर से समन जारी किए गए. उससे एक दिन पहले, पादुकोण की मैनेजर करिश्मा प्रकाश, और एक टेलेंट मैनेजमेंट कंपनी के चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर, ध्रुव चिटगोपेकर को भी चैट्स के एक्सचेंज के आधार पर समन किया गया था, जिनमें वो ड्रग्स की बात कर रहे थे.

मीडिया ख़बरों के अनुसार, ये बातचीत 2017 में पादुकोण और उनकी मैनेजर के बीच हुई थी, जिसमें ‘माल’ (माना जा रहा है कि गांजे की तरफ इशारा) और ‘हैश’ शब्दों का इस्तेमाल किया गया था.

राष्ट्रीय राजधानी में, पिछले हफ्ते दिल्ली पुलिस ने 15 लोगों के खिलाफ एक स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दायर की, जिनपर आरोप था कि उन्होंने, दिसंबर 2019 में बनाए गए, व्हाट्सएप ग्रुप्स के ज़रिए दंगों की योजना बनाई, जो फरवरी में शहर के उत्तरपूर्वी ज़िले में फैल गए.

लेकिन, क्या व्हाट्सएप की बातचीत कोर्ट में, सबूत के तौर पर पेश हो सकती है? इलेक्ट्रॉनिक सबूत को लेकर क़ानूनी बारीकियां क्या हैं? ये पता लगाने के लिए दिप्रिंट ने प्रासंगिक क़ानून देखे, और सुप्रीम कोर्ट के एक वकील से बात की.

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सबूत: व्हाट्सएप डेटा

जिन दो मामलों का उल्लेख किया गया है, उनकी जांच में इस्तेमाल की जा रही चैट्स, दरअसल वो डेटा है जो संदिग्धों के फोंस से लिया गया है.

व्हाट्सएप अपने किसी यूज़र का डेटा – जैसे मैसेजे, तस्वीरें, ऑडियो क्लिप्स या वीडियोज़- अपने सर्वर्स में स्टोर नहीं करता. जो भी डेटा सेव होता है वो स्थानीय रूप से यूज़र की डिवाइस पर ही होता है. एनसीबी और दिल्ली पुलिस को ये डेटा, उन संदिग्धों की डिवाइस पर मिला, जिनकी वो जांच कर रहे थे.

लेकिन, व्हाट्सएप यूज़र्स के मेटाडेटा के रिकॉर्ड्स ज़रूर रखता है- जैसे किसी एक्सचेंज में शामिल फोन नम्बर्स, मैसेजेज़ पर टाइम स्टांप्स, आईपी एड्रेस, लोकेशन और कॉन्टेक्ट डेटा वग़ैरह. अधिकारिक तौर पर डेटा के लिए अनुरोध करके, सरकारी एजेंसियां व्हाट्सएप से ये जानकारी हासिल कर सकती हैं.


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सवाल ये है: क्या ये कोर्ट में मान्य है?

व्हाट्सएप चैट को ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ के तौर पर, क़ानूनी साक्ष्य की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुच्छेद 2(1)(टी) के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ऐसा ‘डेटा, रिकॉर्ड किया हुआ या बनाया हुआ, स्टोर की हुई इमेज या साउण्ड है, जिसे किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में, या माइक्रोफिल्म, अथवा कंप्यूटर से तैयार माइक्रोफिच में, प्राप्त किया या भेजा जाता है…’

इसके अलावा, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए)1872 के अनुच्छेद 65(बी) के तहत, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को स्वीकार्य सबूत माना गया है. लेकिन, इसमें एक बारीकी ये है कि क़ानून इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को, या तो प्राथमिक साक्ष्य मानता है, या द्वितीयक साक्ष्य मानता है, और अदालत इन दोनों श्रेणियों के सबूतों को, अलग-अलग तरह से लेती है.

पेंच: प्राथमिक बनाम द्वितीयक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य

सबूत के क़ानून का एक आम नियम ये है, कि जब प्राथमिक साक्ष्य (मूल दस्तावेज़) उपलब्ध हो, तो फिर द्वितीयक साक्ष्य स्वीकार्य नहीं होता. लेकिन व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, ये इलेक्ट्रॉनिक सबूतों पर पूरी तरह लागू नहीं होता.

मसलन, ये अपेक्षा नहीं की जाती कि ऐसे मामलों में, बड़े सर्वर्स या मूल उपकरण कोर्ट के समक्ष लाए जाएंगे.

प्राथमिक इलेक्ट्रॉनिक सबूत वो होता है, जब फोन या लैपटॉप जैसा कोई मूल उपकरण, जिसमें दस्तावेज़ मौजूद होता है, कोर्ट में पेश किया जाता है. सेकेंडरी इलेक्ट्रॉनिक सबूत किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री का आउटपुट होता है, जैसे सॉफ्ट कॉपियां, प्रिंट आउट्स, लिखित दस्तावेज़, स्क्रीनशॉट्स आदि.

सेकेंडरी इलेक्ट्रॉनिक सबूत को आईईए के अनुच्छेद 65(बी)(2) में लिखी, कुछ शर्तों पर पूरा उतरना चाहिए, तभी ये साबित होगा कि ये मूल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का सही प्रतिनिधित्व करता है, और इससे छेड़छाड़ नहीं की गई है.

मिसाल के तौर पर इसमें कहा गया है, कि कंप्यूटर से ये जानकारी तब निकलनी चाहिए, जब उसे इस्तेमाल कर रहे ‘व्यक्ति का उस कंप्यूटर के इस्तेमाल पर क़ानूनी रूप से नियंत्रण हो.’ ये भी ज़रूरी है कि वो व्यक्ति इस कंप्यूटर का इस्तेमाल अपनी ‘नियमित गतिविधियों के तहत” कर रहा हो. इसमें ये भी कहा गया है, कि जिस अवधि में ये जानकारी हासिल हुई है, उसमें वो कंप्यूटर सही तरीक़े से काम कर रहा हो. अगर कंप्यूटर सही ढंग से काम नहीं कर रहा था, तो इसका इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या उसकी सामग्री की सत्यता पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.

उसी अधिनियम के अनुच्छेद 65(बी)4 के अनुसार, जिस मूल उपकरण से ये इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड निकाले जाते हैं, उसपर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति को, एक स्व-घोषणा प्रमाण पत्र पर दस्तख़त करने होंगे, कि इसमें सभी शर्तों का पालन किया गया है.

लेकिन, कई मामलों में इस प्रमाण पत्र की अनिवार्यता को लेकर, सवाल खड़े किए गए हैं.

अंत में, तीन सदस्यों की एक बेंच ने, अर्जुन पंडितराव खोटकर बनाम कैलाश कुशनराव गोरंत्याल व अन्य मामले में, इस क़ानून को स्पष्ट कर दिया. बेंच ने कहा कि प्रमाण पत्र अनिवार्य है, लेकिन साथ में ये भी कहा, कि अगर मूल दस्तावेज़ पेश किया जाता है, तो फिर अनुच्छेद 65(बी)4 के तहत, ऐसा प्रमाण पत्र “आवश्यक नहीं” है. कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया, कि तमाम क़ानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करने के बाद भी, अगर कोई पक्ष प्रमाण पत्र हासिल नहीं कर पाता है, तो ऐसे में कोर्ट इस ज़रूरत से माफ़ी दे सकती है.

सुप्रीम कोर्ट वकील और पूर्व जज, भरत चुग ने दिप्रिंट से कहा, कि व्हाट्सएप की बहुत सी विशेषताएं, इसके प्लेटफॉर्म से निकाले गए सबूतों को कोर्ट में स्वीकार्य बनाती हैं.

उन्होंने कहा, ‘किसी व्हाट्सएप चैट के मामले में, नामित मेल सेवा प्रदाताओं के ज़रिए बातचीत को ऑटो-आर्काइव करना, अथवा एक्सपोर्ट चैट विकल्प के इस्तेमाल से, बातचीत को एक अलग दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के तौर पर निकालना, एक प्राथमिक साक्ष्य ही है, और ये अदालत में स्वीकार्य है, अगर उसे उसके मेटा डेटा, और अनुच्छेद 65(बी)4 के तहत, प्रमाण पत्र के साथ पेश किया जाए’.


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