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Tuesday, 23 April, 2024
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BJP ने कर्नाटक में ‘हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की हत्या’ मामले में इंसाफ का वादा किया था लेकिन 3 साल बाद क्या हैं हालात

बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्ष की पिछले महीने शिमोगा में हुई हत्या ने बीजेपी के 2018 के उस चुनावी वादे की याद दिला दी है, जिसमें कहा गया था कि हिंदुत्व ‘विचारधारा के लिए मरने वाले’ कार्यकर्ताओं के परिवारों के साथ इंसाफ किया जाएगा.

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दक्षिण कन्नड़, बेंगलुरू: सात साल पहले कर्नाटक के शिमोगा में जब मीनाक्षम्मा के बेटे विश्वनाथ शेट्टी की हत्या कथित रूप से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के लोगों ने कर दी थी, तब हिंदुत्व संगठनों ने उन्हें पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाया था. उस समय बीजेपी राज्य में विपक्ष में थी और अपनी सूची में शेट्टी का नाम ‘हिंदुत्व बलिदानी’ के रूप में दर्ज किया था.

आज मीनाक्षम्मा जीवन यापन करने के लिए प्लास्टिक का कचरा बीनती है, गरीबी में रहती है और अपने पोते की जिम्मेदारी अकेले उठा रही है.

मीनाक्षम्मा ने बताया कि 2015 में उस समय की कांग्रेस सरकार ने जो पांच लाख रुपये का मुआवजा उसे दिया था वह शेट्टी की पत्नी के इलाज में खत्म हो गया, जिसकी बाद में मौत हो गई थी. शिमोगा में जब एक और हिंदुत्व कार्यकर्ता की हत्या हुई तब उसके मामले ने तूल पकड़ा और मुसलमानों, ईसाइयों और हिंदुओं के सामाजिक संगठन उसकी मदद के लिए आगे आए और उसके घर की मरम्मत करवाने के साथ-साथ कुछ आर्थिक मदद भी की.

मीनाक्षम्मा के दुख में यशोदा पुजारी उनके साथ हैं. सात साल पहले अपना बेटा गंवा चुकी यशोदा अभी तक गुस्से में है. उसके बेटे प्रशांत पुजारी की हत्या कथित तौर पर पीएफआई के सदस्यों ने 2015 में कर दी थी. पुजारी बजरंग दल का सदस्य था और फूल बेचता था.

प्रशांत के पिता की जून 2018 में हुई मौत के बाद यशोदा अब दक्षिण कन्नड़ के मूदाबिद्री शहर में अकेली रहती हैं. उसका खर्चा फूल की दुकान के किराए से चलता है, जहां उसके बेटे की हत्या की गई थी. उसे 600 रुपया विधवा पेंशन भी मिलती है.

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60 साल की यशोदा कहती हैं, ‘जब मेरा बेटा मारा गया तब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी और अब बीजेपी की सरकार है. लेकिन इसका हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है.’

जुलाई 2019 में राज्य में बीजेपी की सरकार बनी और उसने प्रशांत पुजारी के हत्यारों के साथ ही पार्टी के उन दूसरे कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए भी जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा किया था जिनकी कथित तौर पर विचारधारा की हिंसा के कारण जान गई हैं. दूसरे पक्ष के लोगों को भी शिकार बनाने की आशंका पार्टी पर जताई गई थी.

तीन साल बीत जाने के बाद भी मामलों में थोड़ी ही प्रगति हो पाई थी, तभी पिछले महीने बजरंग दल के एक और कार्यकर्ता हर्ष की हत्या शिमोगा में कर दी गई.

बीजेपी के सूत्र यह मानते हैं कि मामलों की धीमी गति को लेकर पार्टी में निराशा है लेकिन पार्टी मानती है कि इसमें तेजी लाने की कोशिशें जारी हैं.


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चुनावी मुद्दा और जीत

कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनावों के पहले बीजेपी ने हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की हत्या को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था.

चुनावों के दो महीने पहले पार्टी ने चार दिन की जन सुरक्षा यात्रा, नाम से एक रैली का आयोजन किया था. पार्टी ने तत्कालीन सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार पर ‘हिंदू विरोधी’ होने का आरोप लगाते हुए ‘हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के मामले को जोरशोर से उठाया था’.

कर्नाटक में फरवरी 2018 के चुनावों के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि हिंदुत्व कार्यकर्ताओं के हत्यारों को नहीं बख्शा जाएगा. उन्होंने कहा था, ‘पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि भले ही सिद्धारमैया की सरकार कितना भी हत्यारों को बचाने की कोशिश कर ले, उनकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है..उनके जाने का समय आ गया है. येदियुरप्पा की बीजेपी सरकार हत्यारों को ढूंढ़ निकालेगी और उनका फैसला करेगी.’

वह कुछ मारे गए कार्यकर्ताओं के घर पर भी गए थे, जैसे आरएसएस के राजू क्याथामारनाहल्ली, जिनकी हत्या मैसूर में मार्च 2015 में हुई थी. इस मामले के मुख्य अभियुक्त आबिद पाशा को पुलिस ने पीएफआई का सदस्य और सुपारी लेकर हत्या करने वाला बताया है.

जन सुरक्षा यात्रा में कथित रूप से मारे गए 23 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं के मामले को जोर-शोर से उठाया गया था. यह रैली जानबूझकर राज्य के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों- कारावली (तटीय) और मालनाड (पश्चिमी घाट) में संपन्न हुई थी.

तीन मार्च 2018 को कर्नाटक के बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर बीजेपी के सांसद अनंत कुमार हेगड़े की फोटो शेयर करते हुए कहा गया था, ‘हमने राज्य में कांग्रेस के तुगलकी शासनकाल में पिछले साढ़े चार सालों में 23 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की जानें गंवाई हैं.  मुख्यमंत्री के हिंदुत्व विरोधी रवैये को लेकर हम चार दिनों के लिए जन सुरक्षा यात्रा का आयोजन करने जा रहे हैं. यह रैली आज से अंकोला और कुशालनाग्रा से शुरू की जाएगी.’

जन सुरक्षा यात्रा के समापन समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भाषण देने के लिए बुलाया गया था.

उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को उत्तर कन्नड़ की 6 सीटों में चार सीटों पर जीत मिली थी. बाद में कांग्रेस के शिवाराम हेब्बर के बीजेपी में आने के बाद यह संख्या पांच हो गई. उडुप्पी जिले में बीजेपी सभी पांच सीटों पर विजयी हुई थी और दक्षिण कन्नड़ में उसे आठ सीटों में से सात पर जीत हासिल हुई थी, कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी.

2013 के चुनाव में कांग्रेस को उडुप्पी में तीन सीटें, दक्षिण कन्नड़ में सात और उत्तर कन्नड़ में तीन सीटें मिली थीं. ये सारे जिले तटीय इलाकों में आते हैं. जन सुरक्षा यात्रा की जो मंशा थी वो इस इलाके में पूरी हो गई थी.

साल 2018 के कर्नाटक राज्य के चुनावों में त्रिशंकु सरकार कांग्रेस-जेडी(एस) के गठबंधन में बनी थी. 2019 में बीजेपी की सरकार येदियुरप्पा के नेतृत्व में बनी जब विधायकों की बगावत के चलते फ्लोर टेस्ट में कुमारास्वामी की सरकार गिर गई.


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मारे गए ’23 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं’ की सूची

2017 में शोभा कारनदलाजे, जो अब केंद्र में मंत्री हैं, ने तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे एक पत्र में कर्नाटक सरकार के ऊपर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया था. अपने पत्र में कारनदलाजे ने कहा था कि सिद्धारमैया के 2013 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से 23 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है. पत्र में मारे गए कार्यकर्ताओं की सूची भी थी.

सूची में उन 23 लोगों के नामों में अशोक पुजारी का नाम भी था. अशोक अभी जीवित हैं.

जनवरी 2018 में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कारनदलाजे के दावों के खिलाफ लिखित सबूत पेश करते हुए बताया कि जिन 23 लोगों की सूची उन्होंने दी है, उसमें से सिर्फ नौ लोग ही सांप्रदायिक हिंसा के शिकार हैं, जबकि बाकी लोगों की मौतें आत्महत्या, दुर्घटना या निजी कारणों से हई हैं.

मार्च 2018 में बीजेपी ने 23 मृतक हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की सूची नए सिरे से निकाली जिनकी हत्या कथित तौर पर दक्षिणपंथी गतिविधियों के कारण हुई थी. कारनदलाजे की सूची में से कई नाम निकाल दिए गए और नए नाम डाले गए, जिनमें पारेश मेस्ता और दीपक राव के नाम शामिल थे. बीजेपी ने एक ब्रोशर अपने समर्थकों में बांटा जिसमें मारे गए 16 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं के नाम शामिल थे.

इस साल मारे गए बजरंग दल कार्यकर्ता हर्ष के कारण पूरा मामला फिर चर्चा में आ गया है. इस हत्या के मामले में अभी तक दस लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बीजेपी और वीएचपी नेताओं का आरोप है कि यह हत्या पीएफआई के सदस्यों ने की है.

जहां तक दूसरे मामलों का सवाल है उसमें दो मामलों में हत्या के दोषियों को छोड़ दिया गया है, जबकि दूसरे कुछ मामलों में अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे तब हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की हत्याएं आम बात थी. कई सालों से इस तरह की घटनाएं नहीं हुई हैं.’

हर्ष की हत्या के बाद यह बात तो तय हो गई है कि शांति और सौहार्द को भंग करने की कोशिश की जा रही है. पुलिस को मामले की सिर्फ ठीक से जांच करके दोषियों को सजा दिलाना ही काफी नहीं है बल्कि यह भी पक्का करना होगा कि यह परंपरा आगे और न फैल जाए.

कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी (केपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व राज्य गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने कहा कि ‘चुनाव जीतने के लिए भाजपा शवों की राजनीति करती है’.

उन्होंने कहा, ‘सत्ता में आने के बाद, उन्हें न तो उन लोगों की परवाह है जिन्हें उन्होंने अपना कार्यकर्ता होने का दावा किया और न ही उनके परिवार का. हमने हमेशा यह कहा है कि भाजपा 23 हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की हत्या के बारे में झूठ बोल रही थी और हमने दस्तावेजी सबूत भी उपलब्ध कराए हैं. यह स्पष्ट है कि दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से हुई मौतों का फायदा भाजपा उठाना चाहती थी.’


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हत्याओं पर एक नज़र

प्रवीण पुजारी एक ऑटो ड्राइवर और हिंदू जागरण वैदिक का सदस्य था, जिसकी पीएफआई के कथित सदस्यों ने 14 अगस्त 2016 में कोडागु में हत्या कर दी थी. पिछले साल नवंबर में प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट ने इस हत्या के मामले मे पकड़े गए सभी नौ लोगों को छोड़ दिया था. तुफैल, नायाज़, आफ्रीन, मोहम्मद पाशा, इलियास, इरफान अहमद, मुजीब रहमान, शरीफ और हारिस को सबूत न मिलने के कारण बरी कर दिया गया.

2015 में वीएचपी के संगठन सचिव डी कुटप्पा की मौत 18 फीट की ऊंचाई से गिरने के कारण हो गई थी, वे कोडागु में टीपू जयंती के दौरान हिंदु-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुई पत्थरबाजी से बचने की कोशिश में थे. फरवरी 2016 में मादिकेरी पुलिस ने नौ अभियुक्तों के खिलाफ प्राथमिकी आरोपपत्र दाखिल किया. इसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया जो पीएफआई का राजनीतिक धड़ा है, उसके ऊपर कथित तौर पर कल्पेबल होमोसाइड का अभियोग लगाया गया था.

दिप्रिंट से बातचीत में मादिकेरी के विधायक अप्पाच्चु रंजन ने बताया कि मामले का ट्रायल चल रहा है. लेकिन प्रवीण पुजारी मामले में पिछले साल अभियुक्त को बरी कर दिया गया, इसके संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हम फैसले के खिलाफ नहीं बोल सकते क्योंकि वह न्यायालय की अवमानना का मामला हो जाएगा. लेकिन फैसले के खिलाफ अपील करने की प्रक्रिया जरूर शुरू की जानी चाहिए.’

दक्षिण कन्नड़ में गो रक्षा की गतिविधियों में शामिल रहने के कारण फूल बेचने वाले प्रशांत पुजारी की हत्या कर दी गई थी. पुजारी की मां ने कहा, ‘अभी तक इस मामले में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है. जब तक उसके पिता जीवित थे तब तक वे गवाह के तौर पर केस में शामिल होते थे मगर उनकी मौत के बाद मेरे पास ऐसा कोई नहीं जिसे मामले की देखरेख के लिए भेजूं. मुझे बेटे की मौत पर न्याय कब मिलेगा. उसके हत्यारों को जमानत मिल चुकी है और वे आजाद हैं.’

प्रशांत के दोस्तों और बजरंग दल के उसके साथी कार्यकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि मामले की सुनवाई जारी है लेकिन उसकी गति बहुत धीमी है.


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‘सिर्फ दो मामले की सुनवाई लंबित’

साल 2017 में अशरफ कलाई की हत्या बंटवाल में हुई थी. आरोप है कि आरएसएस कार्यकर्ता शरथ माडिवाला की हत्या के प्रतिशोध में कलाई को मारा गया था. माडिवाल की हत्या में शामिल 15 आरोपियों को साल 2018 में जमानत पर रिहा कर दिया गया.

शरथ के परिवार को कानूनी सहायता करने वाले एक आरएसएस कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकारी वकील हमें कहते हैं कि आरोपी को पकड़ने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं. इनमें से एक अभी भी फरार है.’ इस मामले में आरोप तय किए जा चुके हैं लेकिन मामले की सुनवाई अब तक नहीं हुई है.

आरएसएस कार्यकर्ता ने कहा, ‘प्रवीण पुजारी के मामले की तरह ही शरथ के हत्यारे भी बच जाएंगे क्योंकि गवाह बयान से मुकर गए हैं.’

हिंदुत्व कार्यकर्ता दीपक राव की जनवरी 2018 में दक्षिण कन्नड़ के कटिपल्ला में हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पीएफआई सदस्यों सहित 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उसी शाम को दक्षिण कन्नड़ जिले के अब्दुल बशीर की हत्या कर दी गई. आरोप है कि ये हत्या राव की हत्या के प्रतिशोध में आरएसएस नेताओं से जुड़े लोगों ने की.

मामले की प्रगति पर नजर रखने वाले और पीड़ित परिवार के संपर्क में रहने वाले एक वीएचपी नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘जब दीपक की हत्या हुई थी, तब बीजेपी विपक्ष में थी (कर्नाटक में) और सुनील कुमार, जो अब मंत्री हैं, ने सरकार से दीपक की बहन के लिए नौकरी की मांग की थी. अब, हमारी अपनी पार्टी सत्ता में है लेकिन उसकी (दीपक की बहन) नौकरी को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है.’

हालांकि, कांग्रेस सरकार ने पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये की सहायता राशि देने की पेशकश की थी जिसे परिवार के सदस्यों ने ठुकरा दिया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जनवरी 2018 में पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का चेक दिया था.

चार साल के बाद राव की हत्या के मामले में सुनवाई शुरू हुई है. मंगलुरू के कमिश्नर ऑफ पुलिस एन शशि कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस मामले में पिंकी नवाज को सुनवाई में शामिल गवाहों को धमकाने के आरोप में गुंडा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है.’

साल 2016 में दक्षिण कन्नड़ के उल्लाल के मछुआरे राजेश कोटियान की हत्या कर दी गई. बीजेपी ने कोटियाल को ऐसे मारे गए हिंदुत्व कार्यकर्ता के तौर पर पेश किया. दक्षिण कन्नड़ के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सोनावाने ऋषिकेश भगवान के मुताबिक कुछ हफ्तों के अंदर ही दक्षिण कन्नड़ पुलिस ने मामले में छह आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन 2021 में सभी आरोपियों को छोड़ दिया गया.

दिसंबर 2017 में पारेश मेस्ता की हत्या के मामले में उत्तर कन्नड़ में व्यापक तौर पर हिंसा फैल गई. हालांकि, पारेश मेस्ता किसी हिंदुत्व संगठन के सदस्य नहीं थे लेकिन उन्हें बीजेपी ने अपनी जन सुरक्षा यात्रा में मारे गए हिंदू कार्यकर्ता के तौर पर पेश किया.

साल 2017 में होनावर शहर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दो दिन के बाद पारेश की लाश एक टैंक में तैरती हुई मिली थी. शोभा कारनदलाजे उन बीजेपी नेताओं में हैं जिनका दावा है कि पारेश को मुसलमानों ने उत्पीड़ित किया और उनकी हत्या कर दी. पुलिस की जांच में कहा गया है कि पारेश हिंसा से बचने के लिए भागने के दौरान टैंक में गिर गए थे.

तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बीजेपी के विरोध के बाद मामले को सीबीआई जांच के लिए सौंप दिया. चार साल बाद भी एजेंसी आरोप तय नहीं कर पाई है.

पारेश के पिता कमलकार मेस्ता ने दिप्रिंट से कहा, ‘राज्य की पुलिस कहती है कि हमारे बेटे की मौत दुर्घटना की वजह से हुई है लेकिन मैं इस पर विश्वास नहीं करता. आखिरकार यह मामला सीबीआई को दिया गया है लेकिन हम अब भी रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं. मुझे विश्वास है कि सीबीआई की जांच में हमें न्याय मिलेगा और मेरे बेटे के हत्यारे को पकड़ा जाएगा.’

कमलकार ने कहा, ‘सीबीआई के अधिकारी ने कहा कि रिपोर्ट तैयार है लेकिन इसे आधिकारिक तौर पर जमा करने के लिए वे अपने ऊपर के अधिकारी की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में आरोपी जमानत पर रिहा हैं.’

अक्टूबर 2016 में आरएसएस कार्यकर्ता रुद्रेश की हत्या बेंगलुरू में कर दी गई थी. बीजेपी के प्रदर्शन के बाद इस मामले को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को भेज दिया गया था. इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री ने खुद एजेंसी को जांच की जिम्मेदारी लेने का निर्देश दिया था.

बेंगलुरू पुलिस ने इस मामले में हत्या में शामिल होने के आरोप में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. ये सभी पीएफआई के सदस्य हैं. एनआईए की विशेष अदालत ने बार-बार इस मामले में जमानत की याचिका को खारिज किया है. साथ ही, कोर्ट ने उन पर आतंकी घटनाओं में शामिल रहने के आरोपों को भी बरकरार रखा है. इस मामले में सुनवाई में देरी हुई है, जिसको आधार बनाकर आरोपियों ने जमानत याचिकाएं दायर की हैं.

मैसूर पुलिस के मुताबिक, राजू हत्या मामले में जांच चल रही है.

विश्वनाथ शेट्टी मामले में शिमोगा पुलिस ने कहा कि इस मामले में ट्रायल जारी है और कोर्ट साक्ष्यों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में है.

हालांकि, पुलिस की जांच में पता चला है कि बीजेपी की सूची में जो नाम शामिल हैं उनमें से कई हत्याएं निजी और कारोबारी वजहों से हुई हैं.

दिप्रिंट ने कर्नाटक के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरह से कोई जवाब नहीं आया. राज्य की कृषि मंत्री शोभा कारनदलाजे ने भी इस मामले में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

बीजेपी के कर्नाटक के प्रवक्ता महेश जी ने कहा, ‘हम राजनीतिक पार्टी से हैं, हम सभी मामलों पर नज़र नहीं रख सकते हैं. हमसे जुड़ी दूसरी संस्थाएं मामले को देख रही हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ दो मामलों में सुनवाई होना बाकी है, दूसरे सभी मामलों में निर्णय आ चुके हैं और उनसे जुड़े लोगों को न्याय मिल चुका है. सभी मामलों में पूरी हिंदू बिरादरी ने परिवार की मदद सहानुभूति के साथ की है.’

बीजेपी के एक अन्य प्रवक्ता गणेश कार्निक ने कहा कि सुनवाई में तेजी लाने के प्रयास किए गए हैं. उन्होंने कहा, ‘जब हमारी सरकार सत्ता में आई, तब मैं खुद बीएस येदियुरप्पा और गृह मंत्री बासवराज बोम्मई (वर्तमान मुख्यमंत्री) से मिला था, ताकि इन मामलों को प्राथमिकता मिले.

बीजेपी की राज्य यूनिट के सूत्रों के मुताबिक, कोर्ट में मामले की सुनवाई की रफ्तार और आरोपियों के छूट जाने से पार्टी नाराज है.

बीजेपी के वरिष्ठ पूर्व पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मामले की सुनवाई लंबी चलने पर गवाहों के मुकरने का जोखिम भी बढ़ जाता है. हम गृह मंत्री ज्ञानेंद्र को एक मेमोरेंडम भेजकर एक साथ सभी मामलों की फिर से एसआईटी जांच कराने और सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की मांग करने की योजना बना रहे हैं.’

(इस रिपोर्ट में कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी (केपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष के बयान को जोड़ा गया है)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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