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Thursday, 18 April, 2024
होमदेश‘बंदूकधारियों ने पूछा, आप हमारी लड़ाई में शामिल क्यों नहीं हो जाते’—हालात याद करके सिहर उठते हैं यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्र

‘बंदूकधारियों ने पूछा, आप हमारी लड़ाई में शामिल क्यों नहीं हो जाते’—हालात याद करके सिहर उठते हैं यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्र

यूक्रेन में पिछले हफ्ते शुरू हुए रूस के हमलों के बाद से हजारों की संख्या में भारतीय छात्रों का इस यूरोपीय देश से बाहर निकलना किसी कठिन चुनौती से कम नहीं है.

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नई दिल्ली: कोलकाता निवासी हमजा कबीर ने यूक्रेन स्थित उजहोरोद नेशनल यूनिवर्सिटी में डॉक्टरी की पढ़ाई में पिछले दो साल का जो वक्त बिताया वो काफी खुशनुमा था. हमजा ने कहा, ‘वहां के लोग बहुत अच्छे हैं.’ शायद यही कारण है कि वे कभी उस ‘बैर भाव’ की अपेक्षा नहीं कर रहे थे जिसका सामना उन्हें उस वक्त करना पड़ा जब वे हंगरी की सीमा के रास्ते देश छोड़ने के लिए बस में इंतजार कर रहे थे, जिसका इंतजाम यूनिवर्सिटी की तरफ से किया गया था.

कबीर ने बताया, ‘बॉर्डर पर चेकिंग हो रही थी, हम बस में इंतजार कर रहे थे. उन्होंने हमसे कहा, ‘आप खाना खरीद सकते हैं, वॉशरूम इस्तेमाल कर सकते हैं…’ लेकिन हमें दिक्कत हो रही थी (करेंसी बदलने में). फिर, जैसे ही हम देश छोड़ने लगे, हथियारबंद बंदूकधारी हमारे पास आए और कहने लगे, ‘तुम देश क्यों छोड़ रहे हो? भारत ऐसा क्यों कर रहा है? आप हमारे साथ क्यों नहीं जुड़ जाते और हमारे साथ जंग क्यों नहीं लड़ते?’

यह सब पिछले हफ्ते रूस-यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के दौरान भारत के उससे अलग रहने के बाद हुआ. दोनों देशों के बीच जंग शुरू हुए एक हफ्ते से ऊपर हो चुका है और इससे दुनियाभर की सुरक्षा के लिए खतरा गहराता जा रहा है.

कबीर ने कहा, ‘मैं उनके साथ बहस में नहीं उलझना चाहता था. मैंने अपनी टूटी-फूटी यूक्रेनियन भाषा में ‘टोबो बचीनो’ कहा, जिसका मूल अर्थ होता है ‘अलविदा’, वैसे मैंने सुना है कि मेरे कुछ दोस्त जिनके साथ मैं बास्केटबॉल खेलता था, उनका (यूक्रेनी सेना का) साथ दे रहे हैं.’

कबीर भारतीय छात्रों के उन जत्थों में से एक का हिस्सा हैं जिन्हें भारत सरकार ने यूक्रेन से निकाला है. पश्चिम बंगाल के छात्रों का यह समूह अभी दिल्ली स्थित बंग भवन में है और अपने-अपने घर लौटने के लिए राज्य सरकार की तरफ से फ्लाइट के टिकट मुहैया कराने का इंतजार कर रहा है.

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भविष्य को लेकर अनिश्चितताएं हैं लेकिन कबीर को उम्मीद है कि शायद 13 मार्च को कॉलेज ब्रेक समाप्त होने के बाद वह अपने कोर्स में फिर से शामिल हो सकेंगे. उन्होंने कहा, ‘मुझे वापस जाना है, शिक्षा हासिल करना बहुत अहम है.’

इवान फ्रैंको नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ल्वीव में पढ़ने वाली उनकी बैचमेट तियाशा बिस्वास को उम्मीद है कि भले ही वो लोग यूक्रेन वापस न जा पाएं लेकिन छात्रों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों जैसे पोलैंड, हंगरी और रोमानिया में से किसी में अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने की अनुमति दी जा सकती है.

सीमा पर हाथापाई के दौरान तियाशा बिस्वास के कंधे में चोट लग गई थी क्योंकि वहां हजारों लोग देश से बाहर निकलने के लिए धक्का-मुक्की पर उतर आए थे.

बारासात की रहने वाली इस छात्रा ने कहा, ‘हमने एक टैक्सी का इंतजाम किया और दोस्तों के साथ पोलैंड की सीमा की ओर रवाना हो गए. हमें माइनस डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच 16 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा क्योंकि एक जगह पहुंचने के बाद टैक्सी ड्राइवर ने कह दिया कि इससे आगे नहीं जा सकता. हमें सीमा पर पहुंचने से पहले लगभग 11 घंटे तक चलना पड़ा. वहीं, सीमा के पास पहुंचने पर हमें दो घंटे इंतजार करना पड़ा क्योंकि सुरक्षित निकालने में यूक्रेन के निवासियों को प्राथमिकता दी गई थी. हमारे साथ भेदभाव किया जाता रहा. लेकिन वहां कोई भारतीय अधिकारी नहीं था जो हमारी पैरवी कर सके.’

उनकी मां शिबानी ने बताया कि उनके जैसे परिवारों के लिए सरकारी अधिकारियों तक पहुंचना और उन्हें बच्चों के समक्ष पेश आ रही चुनौतियों के बारे में बताना कितना मुश्किल साबित हो रहा था.


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सीमाओं के पास हाथापाई की नौबत

ल्वीव की एक अन्य छात्रा निष्ठा ने बताया कि सशस्त्र यूक्रेनी बॉर्डर गार्ड ‘छात्रों को धकियाते हुए’ कैसे ‘गो बैक-गो बैक’ बोल रहे थे, जब वे लोग यूक्रेन छोड़कर पोलैंड में प्रवेश करने के लिए मेदिका सीमा पर कतार में खड़े थे, जहां भारतीय अधिकारियों ने पोलिश वीजा की व्यवस्था की थी. निष्ठा ने कहा, ‘गार्ड खासकर नाइजीरियाई लोगों के साथ ज्यादा रूखा व्यवहार कर रहे थे. कभी-कभी वे उन्हें वहां से भगा भी देते थे.’

ल्वीव में ही पढ़ने वाली दार्जिलिंग की एक छात्रा कलसांग ने बताया कि उसने सीमा तक पहुंचने के लिए दोस्तों के साथ एक निजी कैब बुक कराई थी, लेकिन उनकी यात्रा बेहद कठिन साबित हुई.

उसने आगे कहा, ‘कैब में बताया गया कि हमें जहां उतारा जा रहा है, वहां से सीमा बस पांच किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन ऐसा नहीं था. सीमा तक पहुंचने के लिए हमें 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. कलसांग ने कहा, ‘मेरे समूह की एक लड़की हाइपोथर्मिया के कारण बेहोश हो गई. हमने उसके लिए एम्बुलेंस बुलाई और हम रात को माइनस 5 डिग्री सेल्सियस के तापमान में जंगल में रुके रहे.’

उसने बताया, ‘हमारे पास ढंग से कपड़े तक नहीं थे क्योंकि हमें बहुत पहले सीमा तक पहुंच जाने की उम्मीद थी. वहीं, हाइपोथर्मिया पीड़ित छात्रा को पैदल ही लौटा दिया गया. वह 20 किलोमीटर चलकर सीमा तक पहुंची. सुबह उन्होंने लड़कियों के समूह बनाने शुरू किए लेकिन नाइजीरियाई लोगों ने लाइन तोड़कर आगे भागने की कोशिश की. फिर यूक्रेनी सेना ने एयरगन से गोलियां चलाईं. नाइजीरियाई लोगों ने बस में सवार होने की कोशिश भी की लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया.

कलसांग ने बताया, ‘हर जगह भारी भीड़ थी. धक्का-मुक्की हुई, लाठीचार्ज किया गया. यहां तक कि पोलैंड की सीमा पर भी स्टांप लगवाने के लिए लंबी कतारें थीं. यहां पर भी धक्का-मुक्की हो रही थी. उसी हाथापाई के दौरान मेरे पैर में चोट लग गई.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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