मेरठ: उत्तर प्रदेश क्रिकेट की दुनिया में ऐसी शांत क्रांति का केंद्र रहा है जहां के सिर्फ बड़े शहरों से ही नहीं बल्कि छोटे शहरों से भी खिलाड़ी उभरते हैं.
इस बदलाव के बड़े केंद्रों में से मेरठ है- जिसे 1857 क्रांति के लिए भी जाना जाता है और अब तेज़ गेंदबाजों और स्पिनर्स के लिए भी याद किया जाता है.
मेरठ ने भुवनेश्वर कुमार, प्रवीण कुमार, सुदीप त्यागी जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं, जो भारतीय टीम के लिए चार एकदिवसीय मैच खेले हैं, लेकिन चेन्नई सुपर किंग्स के साथ अपने कार्यकाल के लिए बेहतर जाने जाते हैं- और लेग स्पिनर कर्ण शर्मा ने आईपीएल में अपना नाम बनाया है.
यह कार्तिक त्यागी का भी शहर है जिन्होंने रविवार को अंडर-19 विश्व कप में बांग्लादेश से हुए मैच में अच्छा प्रदर्शन किया. अपनी तेज़ गति और स्विंग गेंद के दम पर 19 वर्षीय तेज़ गेंदबाज़ ने दक्षिण अफ्रीका में विश्व कप में प्रभावित किया जिसमें क्वार्टर फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलियन मध्यक्रम को ध्वस्त कर दिया था.
अपने 56 वर्षीय क्रिकेट कोच विपिन शर्मा वत्स और त्यागी में काफी समानताएं हैं.
फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के कर्मचारी वत्स 1996 से ही क्रिकेट की कोचिंग दे रहे हैं. रणजी खिलाड़ी वत्स जिनका कैरिअर कभी बड़ा तो नहीं रहा लेकिन उन्होंने कोचिंग के सहारे दो कुमारों (भूवनेश्वर कुमार और प्रवीण कुमार) और दो त्यागी (सुदीप त्यागी और कार्तिक त्यागी) को खोजा.
फरवरी के महीने में वत्स मेरठ कैंट के सिटी वोकेशनल पब्लिक स्कूल के क्रिकेट मैदान में गए जहां वो कोचिंग देते हैं. उन्होंने हरे रंग का जैकेट पहना हुआ था साथ ही उसी रंग का ट्रैक पैंट्स और अच्छे से उनके बाल में कंघी किया हुआ था.
वत्स की मौजूदगी काफी सामान्य रही. उन्होंने अच्छे से खुद को प्रस्तुत किया और हाथ मिलाया.
यह भी पढ़ें : शिक्षक ने अंधविश्वास के खिलाफ विज्ञान को बनाया हथियार, बच्चों के साथ बदल रहा बड़ों का दृष्टिकोण
उनके बारे में एक प्रोफाइल लिखे जाने की संभावना की तरफ उन्होंने रुचि दिखाई.
हालांकि, उनकी आंखें, कार्तिक त्यागी और भुवनेश्वर कुमार और प्रवीण कुमार जैसे अन्य लोगों के बारे में बताती हैं. अचानक, वह बात करने के लिए उत्सुक होते हैं.
क्रिकेटर
क्रिकेट से वत्स का लगभग चार दशकों से जुड़ाव रहा है. मेरठ में जन्मे वत्स ने कहा कि जब वे 12 साल के थे तब उन्होंने बल्ला पकड़ा था.
विकेटकीपर-बल्लेबाज वत्स 17 साल में ही कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेले थे. ये उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से की गई शुरूआत थी जहां वे अपने साथियों के साथ हॉस्टल में ठहरे थे. यहीं पर उनको ट्रेनिंग मिली और शिक्षा भी.
वत्स ने कहा कि 1983 तक 20 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश की रणजी ट्राफी टीम में खेलते हुए अपने कैरिअर की शुरूआत की थी. लेकिन उनका कैरिअर कभी उस तरह का नहीं रहा. वत्स ने अपने 10 साल के कैरिअर में यूपी के लिए 26 मैच खेले जिसमें उन्होंने 33.65 के एवरेज़ के साथ 1279 रन बनाए.
हालांकि 1989-90 और 1990-91 के सेशन में वे दलिप ट्राफी नार्थ जोन के लिए खेले. उन्होंने कहा कि उनके क्रिकेट कैरिअर का सबसे शानदार समय वो था जब वे कपिल देव के साथ खेले थे. जब देव एस्कार्ट्स प्रीमियर लीग के लिए खेले थे.
वत्स ने कहा कि भारतीय टीम में वे लगभग चले ही गए थे. उन्होंने कहा, ‘कपिल देव और बिशन सिंह बेदी ने 1989 में मुझे शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि आप न्यूजीलैंड जा रहे हैं.’
लेकिन विकेटकीपर-बल्लेबाज कभी भारतीय टीम में जगह नहीं बना पाए और इसके लिए उन्होंने ‘कनेक्शन और पीछे खींचने वाले लोगों को दोष दिया’. वत्स अपने कैरिअर के प्रति बिल्कुल भी उदासीन नहीं है. वो लगातार कहते हैं कि ‘भगवान की कृपा से मैंने काफी कुछ पाया है’.
56 वर्षीय वत्स को हालांकि भारतीय टीम की जर्सी मिल गई. उन्होंने बताया कि ‘मदन लाल (1983 विश्व कप विजेता टीम में शामिल खिलाड़ी) ने मुझे भारतीय टीम की जर्सी दी लेकिन मैंने उसपर छपे भारत के लोगों को छिपा दिया और खुद के साथ वादा किया कि इसे तब हटाउंगा जब मैं खुद इसे खरीद लूंगा.’
वत्स को आखिरकार जर्सी तो मिली लेकिन उनकी भूमिका बदल चुकी है. उन्हें 2005 में नेशनल क्रिकेट अकेडमी कोच नियुक्त किया गया. उन्होंने कहा, ‘वो पल मेरे लिए काफी इमोशनल था. काफी मेहनत के बाद भारत की जर्सी पहनने को मिली. मेरी आंखों में आंसू थे.’
कोच
वत्स ने 1996 में क्रिकेट की कोचिंग देनी शुरू की. उन्होंने कहा, ‘क्रिकेटर के तौर पर मेरा अनुभव मेरे छात्रों को हर तरह से बेहतर बनाने के लिए मददगार साबित हुई. चाहे वो तकनीक हो, पिच को समझना हो या खेल का दबाव हो.’
वे बताते हैं कि वह किसी खिलाड़ी के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उन्हें प्रेरित करने के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह रेखांकित नहीं कर सकता. ‘छात्रों पर चिल्लाने के दिन चले गए हैं.’ वे कहते हैं. ‘आपको उन्हें प्रेरित करने और उनके आत्मविश्वास का निर्माण करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह सब के बाद आधा खेल है. आप उनका मनोबल नहीं गिरा सकते.’
यह भी पढ़ें : साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद नहीं रहे, हिंदी की दुनिया उनके प्रति हमेशा अनुदार ही रही
वत्स ने मेरठ के प्रसिद्ध विक्टोरिया पार्क अकेडमी में कोचिंग देनी शुरू की थी लेकिन अब उनकी अपनी अकेडमी है जिसे उन्होंने 2013 में शुरू किया था.
उन्होंने कहा कि करीब 300 छात्र हैं. पूरे यूपी से लोग यहां आते हैं. लेकिन मैं अपने को दोषी मानता हूं कि मैं सभी पर ध्यान नहीं दे पाता हूं.
‘किसी व्यक्ति पर खास ध्यान नहीं दिया जाता है. मैं इसके लिए कोचिंग नहीं देता हूं.’
मेरठ के सिटी वोकेशनल पब्लिक स्कूल में भी वत्स बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं जहां उनकी पत्नी संगीत की अध्यापिका हैं. उन्होंने कहा कि उनके ज्यादातर छात्र निम्न और मध्य-वर्गीय परिवार वालों से आते हैं. वो भी ज्यादातर सहारनपुर, बिजनौर और मुजफ्फरनगर से.
ट्रेनिंग के दौरान नेट्स पर प्रैक्टिस करना, फील्डिंग की प्रैक्टिस करना शामिल है.
उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ बोलकर कोचिंग नहीं देता हूं. सामान्य ट्रेनिंग से इतर मैं प्रत्येक छात्रों पर विशेष ध्यान देता हूं और उनके खेल के बारे में उन्हें बताता हूं कि विकेट की दशा कैसे उनके खेल को प्रभावित कर सकती है.’
वत्स ने कहा बहुत सारे नए खिलाड़ी जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं वो आ रहे हैं. वर्तमान में मैं छह लड़कियों को कोचिंग दे रहा हूं. मैंने उन्हें कह दिया है कि उन्हें पैसों और दबाव की फिक्र नहीं करनी है. उन्होंने कहा, ‘मैं या अकेडमी उनकी सारी समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करें और इसके बदले में उन्हें अपना पूरा ध्यान मैदान पर देना होगा.’
कोच ने कहा कि ‘महिला खिलाड़ियों में काफी संभावनाएं हैं. मैंने उनके परिवार वालों को बोला है कि उनके खाने का ध्यान रखें और मैं उनके खेल का.’
टेलेंट को खोजने वाला
पूरी कोचिंग कौशल के बारे में ये सामान्य बात है कि सिर्फ प्रसिद्ध चेहरों के बारे में ही बात होती है. जैसे कि हाल ही में प्रसिद्ध हुए चेहरे कार्तिक त्यागी.
कोच वत्स ने कहा कि ‘उन्होंने अंडर-19 के तेज़ गेंदबाज को तब देखा था जब वे 12 साल के थे. उन्होंने ये देखा कि वो सीखने वाले व्यक्ति हैं.’
वत्स ने कहा कि ‘मैंने कार्तिक की फिसिक और उनका खेल देखा और कह दिया कि ये अच्छा गेंजबाज बनेगा. हालांकि उसे खुद को और अपने पिता को समझाने में काफी समय लगा क्योंकि उसके पिता उसे बैट्समैन के तौर पर देखना चाहते थे.’
वत्स ने विस्तार से बताया कि कार्तिक के टेलेंट को पहचानने के साथ उन्होंने उसे अलग-अलग पिच की स्थितियों के बारे में भी सिखाया. जो कि एक कोच मानता है कि गेंदबाजों के लिए क्या जरूरी हो सकता है. वत्स ने कहा कि ‘वो काफी मेहनती है. पिच पर ट्रेनिंग करने के अलावा वो अपने घर हापुड़ जाता था और अपने खेतों में प्रैक्टिस करता था.’
वत्स उन दिनों को याद करते हैं जब भुवनेश्वर कुमार उनके पास विक्टोरिया पार्क अकेडमी में आए थे. उन्होंने कहा कि ‘वो जींस और चप्पल पहने हुए था. तब उसकी उम्र केवल 13 साल की थी. वो अपनी बहन के साथ आया था.’
यह भी पढ़ें : सिपाही, संत, भाषाओं के विद्वान, कवि- कुछ ऐसे थे अकबर के नौरत्नों में शामिल अब्दुर्रहीम ख़ानेखाना
वत्स बताते हैं कि उन्होंने भुवनेश्वर से गेंदबाजी करने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने ये कहते हुए मना किया कि उसने चप्पल पहनी हुई है. ‘मैंने उससे कहा था मैं सिर्फ गेंद पर पकड़ और उसके एक्शन को देखना चाहता हूं.’
प्रवीण कुमार के बारे में वत्स कहते हैं कि उन्होंने क्रिकेट के बारे में इस क्षेत्र में धारणा बदल दी है. इसका श्रेय वत्स, कुमार को देते हैं.
वत्स ने कहा कि ‘उन्होंने प्रवीण कुमार को तब देखा था जब वो हापुड़ के रास्ते में थे. वो गेंद फेंकने वाले थे और मैं उसे देखने के लिए रूक गया. मेरे एक साथी ने कहा कि ये स्थानीय मैच है और मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूं. फिर भी मैं उसे देखता रहा और मैंने ऐसा गेंद फेंकते हुए किसी को नहीं देखा था.’
‘मैंने उसे बुलाया और उसे अगले दिन अकेडमी में आने को कहा था. इसके जवाब में उसने कहा था कि उसके पास फीस देने के लिए पैसा नहीं है. मैंने उससे कहा था कि पैसे देने को उसे किसने कहा है.’
प्रवीण कुमार की सफलता का श्रेय वत्स उनके सरल जीवन को देते हैं. उन्होंने कहा कि ‘बहुत सारे लोग शिकायत करते थे कि वो मैदान पर नहीं आता था प्रैक्टिस के लिए लेकिन वो जानते थे वो जिम जाकर खुद को ट्रेन कर लेगा.’ वत्स ने कहा कि वो साधारण व्यक्ति है और साधारण खाना खाता है. आज कल के लोगों की तरह नहीं है.’
अपने प्रसिद्ध छात्रों के साथ अभी भी वो जुड़े हैं या नहीं इसपर वत्स भुवनेश्वर कुमार से जुड़ी एक याद बताते हैं. उन्होंने कहा कि भुवनेश्वर कुमार 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद करता था लेकिन फिर भी विकेट नहीं ले पाता था.
वत्स ने बताया कि ‘वे उसे शाम को बुलाते थे और याद दिलाते थे कि उसकी पहचान उसकी स्विंग गेंदबाजी है और उसपर उसे ध्यान देना चाहिए चाहे उसे रफ्तार कम ही क्यों न करनी पड़े. अगले ही मैच में भुवनेश्वर ने तीन विकेट लिए.’
‘स्पार्ट्स सिटी ऑफ इंडिया में आपका स्वागत है’
अपने सभी पुराने विश्व आकर्षण के लिए, मेरठ अपने नवीनतम रूप में पहचाना जा रहा है. कस्बे के मुख्य द्वार पर दो क्रिकेट बैट और फुटबॉल पर हस्ताक्षर किया गेंद रखा हुआ है. ‘एचआरएस चौक आपको मेरठ – भारतीय खेल शहर में स्वागत करता है.’
कार्तिक त्यागी अंडर-19 क्रिकेट खेलने वाले अकेले मेरठ के खिलाड़ी नहीं है. टीम के कप्तान प्रियम गर्ग भी इसी शहर के हैं और वो भी विक्टोरिया पार्क अकेडमी में ट्रेनिंग ले चुके हैं जहां वत्स ही उनके कोच थे.
इस शहर का दिन खूब तपती हुई होती है और सुबह शांत रहती है. लेकिन विक्टोरिया पार्क क्रिकेट अकेडमी इससे अलग है.
पूरे मेरठ में ये अकेला कोचिंग सेंटर हैं जो सुबह हीं खुल जात है. मैदान पूरी तरह खिलाड़ियों से भरा होता है. कुछ खिलाड़ी नेट्स पर प्रैक्टिस कर रहे होते हैं, कुछ स्ट्रैचिंग करते हैं तो कुछ खेल रहे होते हैं.
वत्स की अकेडमी की तरह हीं विक्टोरिया पार्क में काफी खिलाड़ी प्रैक्टिस करते हैं जो देश के अलग-अलग राज्यों के हैं.
यह भी पढ़ें : 52 स्वतंत्रता सेनानियों की फांसी का गवाह रहा ‘बावनी इमली’, कर रहा है राष्ट्रीय स्तर की पहचान का इंतजार
कुलराज गुर्जर (16) दाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज हैं जो एक घंटे का सफर कर रोज हापुड़ से आता है. वो पिछले दो सालों से विक्टोरिया पार्क में ट्रेनिंग ले रहा है.
उसने बताया कि ‘मेरे पिता आर्मी में है और वो चाहते हैं कि मैं भी सेना में शामिल हो जाऊं. मैंने ऐसा करने से मना कर दिया और क्रिकेट के लिए उन्हें मना लिया. मैंने उन्हें बताया कि मुझमें अच्छा खिलाड़ी बनने का स्किल है. इसके लिए कुछ समय लगा लेकिन बाद में वो मान गए.’
बिजनौर से ताल्लुक रखने वाले 15 वर्षीय रवि चौहान भी ट्रेन से मेरठ आते हैं. वो गन्ना किसान परिवार से संबंध रखते हैं जो उसके सपने को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है.
उसने बताया, ‘मैं पहले बिजनौर में खेलता था लेकिन मुझे मेरे परिवारवालों की तरफ से ऐसा करने से रोक दिया गया. मेरे परिवारवाले चाहते हैं कि मैं पढ़ाई पर ध्यान लगाऊं और अंत में किसानी करूं. हालांकि पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता. मैंने धीरे-धीरे उन्हें समझाने की कोशिश की और अंत में वो मान गए.’
रवि पिछले तीन महीनों से अकेडमी में क्रिकेट सीख रहा है.
अगर युवा क्रिकेटरों को इतिहास बनाने के लिए किसी प्रेरणा की आवश्यकता होती है, तो उन्हें दूर तक नहीं देखना होगा – अभ्यास मैदान के ठीक बीच में एक टॉवर है जो 1857 के विद्रोह में लड़े गए लोगों की याद में बनाया गया है. यह इस बात की याद दिलाता है कि बंदी सैनिकों को मुक्त करने के लिए 10 मई 1857 को विद्रोहियों ने विक्टोरिया पार्क जेल को तोड़ दिया था.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
Apne bete ko mahan Khiladi banana hai hai sujhav den