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Thursday, 25 April, 2024
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सिपाही, संत, भाषाओं के विद्वान, कवि- कुछ ऐसे थे अकबर के नौरत्नों में शामिल अब्दुर्रहीम ख़ानेखाना

केंद्रीय मंत्री प्रह्ललाद पटेल ने कहा, 'रहीम आज भी सामयिक हैं. ऐसा बहुत कम जगह देखा जाता है कि जहां युद्ध लड़ा जाए वहां कला, संस्कृति हो. अगर ऐसा होता है तो यह बेहतर बात है.'

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नई दिल्ली: अब्दुर्रहीम खानेखाना को जो स्थान मिलना चाहिए था वो उन्हें नहीं मिला लेकिन आने वाले समय में लोग उनके बारे में जानेंगे और पढ़ेंगे यह उम्मीद है. केंद्रीय संस्कृति मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद पटेल ने यह बात अब्दुर्रहीम खानेखाना पर छपी किताब के विमोचन कार्यक्रम में शुक्रवार को दिल्ली स्थित सुदर नर्सरी में हुए कार्यक्रम में कही.

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रहीम आज भी सामयिक हैं. उन्होंने कहा, ‘ऐसा बहुत कम जगह देखा जाता है कि जहां युद्ध लड़ा जाए वहां कला, संस्कृति हो. अगर ऐसा होता है तो यह बेहतर बात है.’

रहीम पर वाणी प्रकाशन से छपी किताब के विमोचन के कार्यक्रम में अनेक लोगों ने अपनी बात रखी और अपने-अपने तरीके से इतिहास में उनकी भूमिका को याद किया. किताब के संपादक हरीश त्रिवेदी ने कहा कि रहीम बादशाह अकबर के नौ नवरत्नों में से एक थे. उन्होंने अकबर के लिए अफगानिस्तान से लेकर दक्कन तक कई युद्ध लड़े.

कार्यक्रम की शुरूआत में सूफी गायिका सोनम कालरा ने रहीम के दोहों का पाठ किया.

त्रिवेदी ने रहीम के काव्य सौंदर्य पर कहा कि वे हिंदी के मार्मिक कवि थे जिनकी अनेक भाषाओं पर समानांतर पकड़ थी. रहीम को हिंदी के साथ-साथ फारसी, तुर्की, अवधि और बृज भाषा का भी ज्ञान था.

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रहीम की विशेषताओं के बारे में त्रिवेदी ने कहा, ‘पूरे हिंदी जगत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने उनके जैसा जीवन जीया हो. उन्होंने जो कुछ भी लिखा वो उनका अनुभव था.’

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल | फोटो : कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

वाणी प्रकाशन के प्रमुख अरूण महेश्वरी ने किताब के बारे में कहा, ‘यह एक सुगंधित गुच्छा है. जहां कई भाषाओं में लिखा गया है. वे रहीम को याद करते हुए उन्हें सूफी चेतना के कवि बताते हैं और कहते हैं कि वे भारतीय संस्कृति के अध्येता थे.’

रहीम को खानेखाना भी कहा जाता है. इस बारे में त्रिवेदी कहते हैं कि हिंदी साहित्य के इतिहास के लेखक रामचंद्र शुक्ल ने कहा था कि मुगल बादशाह अकबर के पूरे साम्राज्य में उनका स्थान काफी ऊंचा था इसलिए उन्हें खानेखाना कहा जाता है.

मूल रूप से रहीम पर लिखी ये किताब कई लेखकों, आलोचकों और कवियों द्वारा लिखे लेख का संकलन है. इस किताब में नामवर सिंह, अनामिका, सुधीर पचौरी, हरीश त्रिवेदी समेत कई और लोगों ने लिखा है. हर किसी ने रहीम को अपने ढंग से गढ़ा है.

इस किताब की प्रस्तावना दो लोगों ने लिखी है जिसमें मशहूर शायर गुलज़ार भी हैं. उन्होंने रहीम को सिपाही और संत दोनों बताया है. त्रिवेदी कहते हैं, ‘गुलज़ार साहब ने रहीम को रूहानियत और आध्यात्मिकता वाला इंसान बताया है. लेकिन उन्हें दरबारियत भी करनी पड़ती थी.’

त्रिवेदी कहते हैं कि इस किताब की खूबसूरती यह है कि ‘इसमें रहीम के पदों की समग्रता से व्याख्या की गई है. रहीम हिंदी वालों के लिए महानतम और मधुरतम कवि हैं जिन्होंने कई भाषाओं को मिलाकर कविताएं लिखी हैं. उन्होंने संस्कृत और हिंदी को मिलाकर कई पद्य लिखे.’

किताब के संपादक हरीश त्रिवेदी ने कहा कि नामवर सिंह कहते थे कि रहीम ने मुसलमान होते हुए भी भक्ति कविताएं लिखी. वो उस स्तर पर चले गए थे कि जहां से इंसान धर्म के ऊपर चला जाता है.

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