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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशअपराधजानलेवा झपटमारी पर दिल्ली पुलिस का दावा- 29% तक घटे मामले, असली तस्वीर कुछ और ही है

जानलेवा झपटमारी पर दिल्ली पुलिस का दावा- 29% तक घटे मामले, असली तस्वीर कुछ और ही है

रिपोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए दिल्ली पुलिस के एक पूर्व कमिश्नर ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा कि किसी अपराध से जुड़ा डाटा बिल्कुल भरोसे लायक नहीं होता.

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नई दिल्ली : मीडिया में हर रोज़ आने वाली झपटमारी की डरावनी ख़बरें दिल्ली की सड़कों की बेहद असुरक्षित तस्वीर पेश करती हैं. हाल ही में एक महिला पत्रकार जोयमाला बागची से झपटमारी के दौरान दो बाइक सवार अपराधियों ने उन्हें ऑटो से बाहर खींच लिया इस खींच-तान में वो इतनी बुरी तरह से घायल हो गईं कि उन्हें एम्स में भर्ती कराना पड़ा.

जोयमाला के साथ हुई वारदात के कुछ ही दिन बाद दिल्ली के ओखला में एक और महिला पत्रकार का फोन छीन लिया गया, लेकिन दिल्ली पुलिस एक रिपोर्ट जारी कर ये साबित करने की कोशिश में जुटी है कि देश की राजधानी में झपटमारी जैसे अपराध के मामलों में 29% कमी आई है.

ये घटनाएं इस साल हुई उन 4500 से अधिक घटनाओं में से एक हैं जिनमें से आधे को दिल्ली पुलिस सुलझा ही नहीं पाती. अनसुलझे मामलों से जुड़े एक सवाल के जवाब में सेंट्रल ज़ोन के डीसीपी मनदीप सिंह रंधावा ने दिप्रिंट से कहा, ‘दिल्ली का बॉर्डर कई अन्य राज्यों से जुड़ा है. अपराधी यहां अपराध को अंजाम देकर बड़ी आसानी से निकल जाते हैं. ऐसे में कई मामले सुलझ नहीं पाते.’

इस पर दिल्ली पुलिस में कार्यरत एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘झपटमारी में मुख्यत: चेन और मोबाइल जैसी चीज़ें शामिल होती हैं. झपटमार चेन को सुनार के पास बेच देते हैं और सुनार इसे पिघला देते हैं. ऐसे में सुराग ही मिट जाता है.’

फोन के कुछ मामले सुलझा लिए जाते हैं, लेकिन कई फोन इसलिए ट्रेस नहीं हो पाते क्योंकि उन्हें नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में बेच दिया जाता है या उनका आईएमईआई नंबर बदल दिया जाता है. अपराधियों के मामले की वकालत करने वाले जाने-माने वकील अजय कुमार वर्मा के साथ भी झपटमारी हो चुकी है. उनका दर्द ये है कि ऐसे अपराधियों को जल्द बेल मिल जाती है.

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हर महीने होती हैं 500 से अधिक झपटमारी की घटनाएं

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 के सितंबर तक झपटमारी के कुल 6466, 2018 के सितंबर तक कुल 4707 और सितंबर 2019 तक कुल 4516 मामले सामने आए हैं. अगर ये मान भी लिया जाए कि इस साल झपटमारी की घटनाओं में कमी आई है तो भी इस साल हर महीने 500 से ज़्यादा लोग इसका शिकार हुए हैं.

रिपोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए दिल्ली पुलिस के एक पूर्व कमिश्नर ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा कि किसी अपराध से जुड़ा डाटा बिल्कुल भरोसे लायक नहीं होता. उन्होंने कहा, ‘थाने में मामले दर्ज़ होने पर सब एसएचओ पर टूट पड़ते हैं और उनका तबादला कर दिया जाता है.’

व्यंग्यात्मक लहज़े में उन्होंने कहा, ‘अपराध से निपटने का सबसे अच्छा रास्ता अपनाते हुए पुलिस मामले दर्ज ही नहीं करती और ये दिल्ली नहीं देशभर का हाल है.’

आपको जानकर हैरानी होगी कि चोरी और झपटमारी जैसे अपराधों से दिल्ली के गृहमंत्री और विपक्ष के वरिष्ठ नेता भी सुरक्षित नहीं है.

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के गृहमंत्री सत्येंद्र जैन ने 22 सिंतबर को एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने लिखा कि चोरों ने उनका सरस्वती नगर स्थित घर छान मारा. वहीं, सूबे में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता की पत्नी के साथ 24 जुलाई को मंडी हाउस जैसे रिहायशी इलाके में सुबह 10.30 बजे ‘झपटमारी‘ हो गई.

आम और ख़ास तो छोड़िए, विदेश राजनयिक भी यहां सुरक्षित नहीं हैं. साल 2017 में लाल किले के पास यूक्रेन के भारत में राजदूत इगोर पोलिखा का ‘फोन छीन लिया’ गया था. दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है. ऐसे में इन घटनाओं पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप और राजनीति होती है लेकिन हालात नहीं बदलते.

हालांकि, इन सबके बीच डीसीपी रंधावा का दावा है कि ऐसे मामलों को सुलझाने में दिल्ली का प्रदर्शन दुनिया के अन्य बड़े शहरों से बेहतर है.

झपटमारी से जुड़ा दिल्ली पुलिस का डाटा

रिपोर्ट में कहा गया है कि झपटमारी को अंजाम देने वालों में 95% ऐसे लोग होते हैं जो पहली बार ये अपराध कर रहे होते हैं. झपटमारी जैसे अपराध को बड़ी चुनौती मानते हुए दिल्ली पुलिस ने इससे निपटने के लिए ‘युवा’ स्कीम लॉन्च की है. ऐसे अपराध पर लगाम लगाने के लिए हर थाने में ‘एंटी स्नैचिंग टीम’ जैसे अन्य दावे भी किए गए हैं.

कैसे हल हो सकते हैं ऐसे मामले

हाल ही में आए सख़्त ट्रैफिक कानून के असर का उदाहरण देते हुए पूर्व कमिश्नर ने कहा कि कठोर कानून सहायक हो सकता है. लेकिन एक समय के बाद लोग इससे बचने का रास्ता निकाल लेते हैं. उन्होंने कहा, ‘पारंपरिक ईमानदार पुलिसिंग का कोई विकल्प नहीं है. ज़मीन पर पुलिस जो काम कर सकती है वो कठोर कानून या तकनीक के बस की बात नहीं.’


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पुलिस के पास बार-बार ऐसे अपराध करने वालों और गैंग चलाने वालों का रिकॉर्ड होता है. उनका फोन ट्रैक करके गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है जिससे अपराध पर लगाम लगने की संभावना है. केजरीवाल सरकार द्वारा लगाए जा रहे सीसीटीवी कैमरों से तस्वीर बदलने की उम्मीद है लेकिन ऐसे अपराधी अपनी पहचान छुपाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं.

दिल्ली पुलिस की प्रॉज़िक्यूटर ऋचा कपूर का मानना है कि ‘ऐसे मामलों में दो चीज़ों को किसी भी शक के दायरे से बाहर ले जाकर साबित करना होता है.’ पहला उस अपराधी की पहचान जिसने अपराध किया है और दूसरी उस चीज़ की पहचान जो चोरी हुई है. ऋचा ने जो कहा वो बेहद चुनौतीपूर्ण काम है.

रास्ता सुझाते हुए दिल्ली पुलिस के अधिकारी बार-बार ऐसे अपराध करने वालों और गैंग चलाने वालों के ख़िलाफ़ कठोर धाराएं लगाए जाने की वकालत करते हुए कहा, ‘ऐसे लोगों के लिए इसे गैर ज़मानती अपराध बना देना चाहिए और इन पर डकैती के मामले में लगने वाले 394 और 392 जैसी धाराएं लगाई जानी चाहिए.’

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