पटियाला: 29 वर्षीय डॉ. एकता अपनी उस 39 वर्षीय गर्भवती मरीज की चिंताएं दूर करने में जुटी हैं, जिसका पहले दो बार गर्भपात हो चुका है, थायरॉइड से पीड़ित है और अब कोविड-19 पॉजिटिव भी है. वह अपनी डायरी में लिखे नोट्स पर एक नजर डालती हैं और फिर कुछ सलाह देती हैं.
वह मरीज से कहती हैं, ‘गर्भस्थ शिशु की गतिविधियों का ध्यान रखें, खूब तरल पदार्थ लें और प्रसवपूर्व ली जाने वाली दवाएं—आयरन, फोलिक एसिड आदि समय पर लेना ध्यान रखें. अगर पेट में दर्द हो, योनि से कोई रिसाव या रक्तस्राव हो, या भ्रूण की गतिविधियों में कोई कमी आए तो मुझे तुरंत कॉल करना, हम कोई खतरा मोल नहीं ले सकते.’
फिर वह अपना फोन नीचे रखती हैं, इस बातचीत के आधार पर फिर से कुछ नोट बनाती हैं और फिर एक दूसरे नंबर पर बात करने लगती है—इस बार बात एक 41 वर्षीय कोविड-पॉजिटिव गर्भवती महिला से हो रही है जिसकी गर्भावस्था की आखिरी तिमाही चल रही है.
यह पंजाब सरकार के निर्देश पर 10 मई को स्थापित पटियाला की एंटीनेटल केयर (एएनसी) सेल की प्रमुख स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. एकता के लिए रोजमर्रा का काम है. यह सेल जिलेभर में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में सभी कोविड-पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं को ट्रैक करती है.
पटियाला में काम कर रही इस सेल के तहत उनके पास 63 चिकित्सा अधिकारी हैं जो रैपिड रिस्पांस टीमों का नेतृत्व कर रहे हैं. डॉक्टरों और आशा कार्यकर्ताओं की भागीदारी वाली यह टीम अपने-अपने क्षेत्रों में सभी कोविड पॉजिटिव मामलों को फिजिकली ट्रैक करती है और जब उन्हें किसी कोविड पॉजिटिव गर्भवती की जानकारी मिलती है तो वे उस डाटा को अलग कर लेते हैं, इसे एक अलग कॉलम में डाला जाता है. फिर एक प्रोफार्मा में महिलाओं की मेडिकल हिस्ट्री, पिछली जांचों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी लिखी जाती है.
ऐसी गर्भवती महिलाओं को फिजिकली ट्रैक करने के बाद, डॉक्टरों और आशा वर्कर की टीमें एक रिपोर्ट तैयार करके डॉ. एकता को भेजती हैं जो हर मामले को खुद देखती हैं. एक बार ऐसी कोई रिपोर्ट मिलने के बाद वह खुद हर एक मरीज को फोन करती हैं और आवश्यक दिशानिर्देश देती हैं.
डॉ. एकता का कहना है, ‘इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई मौत न हो. चूंकि गर्भवती महिलाओं की जरूरतें अलग-अलग होती हैं और उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है, इसलिए ये एंटीनेटल केयर सेल सिर्फ उन गर्भवती महिलाओं की खास देखभाल के लिए बनाया गया है जो वायरस की चपेट में आ चुकी हैं. परामर्श के अलावा हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि यदि किसी गर्भवती महिला को किसी भी समय अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत हो तो उन्हें यह सुविधा मिल सके.’
वह आगे बताती हैं, ‘किसी गर्भवती महिला को सांस लेने में समस्या होने का खतरा अधिक होता है. उन्हें सांस लेने में तकलीफ का जोखिम ज्यादा होता है और इसीलिए यह संभालना भी कई बार मुश्किल हो जाता है.’
इसी तरह के एएनसी सेल पंजाब के अन्य जिलों में भी बनाए गए हैं.
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पटियाला में 10 मई के बाद से किसी गर्भवती महिला की मौत नहीं
एंटीनेटल सेल के संचालन के अलावा डॉ. एकता, जो इस समय पटियाला के मॉडल टाउन स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर तैनात हैं, प्रसव भी कराती हैं और अपने मरीजों की देखभाल करती हैं. पिछले साल ही उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया है और सीएचसी में तैनात रही हैं.
सभी आरआरटी की निगरानी का जिम्मा संभाल रही एक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर जसलीन भुल्लर के मुताबिक, डॉ. एकता को एंटीनेटल सेल का नेतृत्व संभालने के लिए इसलिए चुना गया था क्योंकि वह ‘अपने मरीजों की जरूरतों के प्रति बहुत संवेदनशील, जिम्मेदार और सक्रिय’ हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमें किसी संवेदनशील और जिम्मेदार व्यक्ति की जरूरत थी जो कोविड पॉजिटिव महिलाओं की किसी भी जरूरत को ध्यान में रखते हुए हर समय, यहां तक कि रात में भी उपलब्ध हो और इसीलिए हमने डॉ. एकता को चुना.’
भुल्लर ने बताया कि गर्भवती महिलाओं के लिए एक अलग सेल बनाने का फैसला तब किया गया जब मरीजों के पॉजिटिविटी रेट के विश्लेषण से यह पता चला कि बहुत सारी गर्भवती महिलाएं वायरस से संक्रमित थीं.
उन्होंने कहा, ‘जब हम लोग पॉजिटिविटी रेट का विश्लेषण कर रहे थे, हमने पाया कि अप्रैल और मई में गर्भवती महिलाओं के संक्रमित होने के मामले बढ़ रहे थे और ज्यादा जोखिम वाली इन मरीजों को एक सामान्य चिकित्सक की तुलना में विशेषज्ञ द्वारा देखभाल की जरूरत होती है. इसलिए हमने यह सेल बनाया और ऐसे मामलों पर नजर रखने के लिए डॉ. एकता को नियुक्त किया. इससे हमें पटियाला में सभी गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिली है कि उन्हें समय पर मदद मिल सके, ताकि कोई मौत न हो.’
जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, 10 मई से पटियाला में गर्भवती महिलाओं के टेस्ट में कोविड पॉजिटिव पाए जाने के 75 मामले सामने आए है, जिनमें से 62 को घर पर आइसोलेट कर दिया गया और चार को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी. इस समय ऐसे नौ एक्टिव केस हैं जिनकी एएनसी सेल की तरफ से निगरानी की जा रही है और 10 मई के बाद से किसी गर्भवती महिला की मौत होने की कोई सूचना नहीं आई है.
पटियाला के डिप्टी कमिश्नर कुमार अमित ने कहा, ‘हमने राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के बाद यह सेल स्थापित की थी, लेकिन हम इसके पहले भी उन गर्भवती महिलाओं का डाटा तैयार कर रहे थे जो कोविड पॉजिटिव हुई थीं.’
तीसरी लहर में बच्चों के सबसे ज्यादा प्रभावित होने की आशंकाओं के बीच लुधियाना में एक बाल रोग प्रकोष्ठ बनाने की भी योजना है.
डिप्टी कमिश्नर वरिंदर शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘लुधियाना में हम उन गर्भवती महिलाओं पर नजर बनाए हुए हैं जो पॉजिटिव थीं, और कुछ ने पॉजिटिव होने के दौरान ही शिशुओं को जन्म भी दिया, और सभी सुरक्षित हैं. इसके अलावा, संभावित तीसरी लहर, जो बच्चों को प्रभावित कर सकती है, से निपटने की तैयारी के क्रम में हम एक बाल चिकित्सा सेल की योजना भी बना रहे हैं.’
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गर्भवती महिलाओं को कैसे करते हैं ट्रैक
यह बताते हुए कि पटियाला प्रशासन वायरस से संक्रमित गर्भवती महिलाओं को कैसे ट्रैक करता है, जसलीन कहती हैं. ‘हमें उन लोगों का पूरा डाटा मिलता है जो दैनिक आधार पर टेस्ट के दौरान पॉजिटिव पाए जाते हैं, जो इसके बाद हमारी कांट्रैक्ट ट्रेसिंग सेल के पास जाता है. फिर यही डाटा रैपिड रिस्पांस टीम (आरआरटी) के साथ साझा किया जाता है, जिसमें आशा वर्कर और डॉक्टर शामिल होते हैं, जो इन लोगों के घरों तक जाते हैं.
उन्होंने बताया, ‘आरआरटी को एक प्रोफॉर्मा दिया गया है, जो उन्हें तब भरना होता है जब वे किसी ऐसे मरीज के पास पहुंचते हैं जो गर्भवती हो. इसके बाद गर्भवती महिलाओं का यह डाटा एएनसी सेल के पास आता है. इस तरह हम तमाम मामलों के बीच इस तरह का डाटा छांटते हैं.’
आशा वर्कर और चिकित्सा अधिकारियों को दिए गए प्रोफॉर्मा में किसी मरीज की माहवारी की आखिरी तारीख, पिछले गर्भधारण, मेडिकल स्थिति, लिवर की स्थिति, आखिरी बार कब जांच हुई थी, अल्ट्रासाउंड और उसके नतीजों आदि का ब्योरा भरना होता है.
एक बार जब सारा ब्योरा डॉ. एकता के पास पहुंच जाता है तो वह इसके आधार पर मामलों को ‘ज्यादा जोखिम वाले’ या ‘हल्के’ की श्रेणी में रखती हैं.
डॉ. एकता बताती हैं, ‘हर आरआरटी के चिकित्सा अधिकारियों की तरफ से भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर हम इसका विश्लेषण करते हैं कि मरीज को ज्यादा खतरा है या कम. उस विश्लेषण के आधार पर हम चिकित्सा अधिकारी को मरीज के आगे के इलाज के बारे में सलाह देते हैं, जैसे किसी टेस्ट की आवश्यकता है, या खास तरह का आहार दिया जाना है. इसके अलावा मरीज को बार-बार कॉल करके हर मामले को स्वयं देखती हूं. मैंने हर मरीज को अपना फोन नंबर दे रखा है ताकि वे किसी भी आपात स्थिति में या सलाह के लिए मुझे कभी भी कॉल कर सकें.’
वह आगे बताती हैं, ‘एनीमिया, मोटापा, जुड़वां गर्भावस्था, गर्भावस्था के साथ मधुमेह, हाइपरटेंशन के मरीजों के मामलों में हम उनकी जांच के लिए बार-बार कॉल करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि सभी जांच ठीक से हों.’
यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आरआरटी मरीजों का हालचाल जानने के लिए उनके यहां पहुंचे न कि दफ्तर में बैठकर ब्योरा भर दें, कांट्रैक्ट ट्रेसिंग सेल लगातार पॉजिटिव मरीजों को फोन करती रहती है और यह पता लगाती रहती है कि वास्तव में डॉक्टर उन्हें देखने आ रहे हैं या नहीं.
भुल्लर ने बताया, ‘हमारे पास सभी मरीजों के कांटैक्ट नंबर हैं, इसलिए हम अपनी तरफ से जांच करते हैं और पूछते हैं कि फील्ड में मौजूद डॉक्टर उनसे मिलने पहुंचे हैं या नहीं. इसमें यदि कोई विसंगति नजर आती है तो हम तुरंत संबंधित व्यक्ति से लिखित स्पष्टीकरण मांगते हैं.’
‘जमीनी स्तर पर आशा वर्कर, डॉक्टर असली हीरो’
दो बार गर्भपात के बाद अपने पहले बच्चे की उम्मीद कर रही हरिंदर दीप कौर, जो गर्भवती होने के साथ और कोविड-19 पॉजिटिव भी हैं, का कहना है कि डॉक्टरों के बार-बार कॉल करने से उसमें ‘यह भरोसा जगता है कि सब ठीक हो जाएगा.’
कौर ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘डॉ. एकता की टीम की तरफ से मेरे पास दिन में दो से तीन बार कॉल आती हैं. वह खुद भी फोन कॉल पर भी उपलब्ध हैं. हालांकि, मेरा इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है, लेकिन ये डॉक्टर फोन पर हमेशा उपलब्ध रहते हैं. हमारा एक व्हाट्सएप ग्रुप भी है जहां हमें अपने ऑक्सीजन, बीपी, पल्स रेट का ब्योरा देने को कहा जाता है और इस पर लगातार नजर रखी जाती है.’
सुमन गुप्ता का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा है. वह बताती हैं, ‘डॉक्टर न केवल देखने आए बल्कि बार-बार फोन भी करते रहते हैं. मैं भाग्यशाली हूं कि कोविड से उबर गई हूं. यह बहुत कठिन समय था. अब मेरी डिलीवरी की तारीख नजदीक ही है.’
हालांकि, डॉ एकता का कहना है कि फील्ड पर सक्रिय आशा कार्यकर्ता और चिकित्सा अधिकारी सेल के असली हीरो हैं क्योंकि वे दिन-रात जगह-जगह जाकर काम करते हैं.
वह कहत हैं, ‘ये तो आशा कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और फील्ड पर मौजूद डॉक्टर हैं जो इस सेल को चला रहे हैं क्योंकि वही हैं जो फिजिकली इन मरीजों को ट्रैक करते हैं और उनके यहां जाते हैं, उनका डाटा जुटाते हैं और उनका पूरा रिकॉर्ड हासिल करते हैं. मैं हर केस की निगरानी कर रही हूं, लेकिन सारा श्रेय इन टीमों को जाता है जो इन व्यक्तिगत तौर पर इन मरीजों की देखभाल कर रही हैं.’
उन्होंने आगे कहा, एक बार जब वे हमें उनका ब्योरा देते हैं तो हम हर मामले में जोखिम घटाने और आवश्यक देखभाल मुहैया कराने के उपाय करते हैं. मैं इलाज के तरीके पर इन डॉक्टरों के साथ भी चर्चा करती हूं और इस सेल को चलाना एक टीम वर्क है.’
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