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Thursday, 2 May, 2024
होमहेल्थवैक्सीन स्टडी से अच्छी ख़बर: दोनों अच्छी, लेकिन कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड बनाती है अधिक एंटीबॉडीज़

वैक्सीन स्टडी से अच्छी ख़बर: दोनों अच्छी, लेकिन कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड बनाती है अधिक एंटीबॉडीज़

भारतीय डॉक्टरों की स्टडी में कहा गया है, कि हालांकि कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों कारगर हैं, लेकिन एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन ‘कहीं ज़्यादा’ सेरोपॉज़िटिविटी दर, और एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी टाइटर दिखाती है.

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नई दिल्ली: भारतीय डॉक्टरों की एक नई स्टडी में पता चला है, कि कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, दोनों ‘अच्छा रेसपॉन्स’ करती हैं, लेकिन एस्ट्राज़ेनेका कोविड-19 वैक्सीन ‘कहीं ज़्यादा’ सेरो पॉज़िटिविटी दर, और एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी टाइटर दिखाती है.

2 जून को मेडरेक्सिव में छपी इस स्टडी में, जिसका पियर रिव्यू नहीं हुआ है, 515 स्वास्थ्यसेवा कर्मियों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया गया, जिसमें पता चला कि दोनों वैक्सीन की दो ख़ुराकों के बाद, 95 प्रतिशत में सेरो पॉज़िटिविटी देखी गई.

स्टडी में कहा गया, ‘कोविशील्ड के 425 और कोवैक्सीन के 90 प्राप्तकर्ताओं में, क्रमश: 98.1 तथा 80.0 प्रतिशत में सेरो पॉज़िटिविटी देखी गई’. स्टडी में आगे कहा गया कि एंटी-स्पाइक एंटीबॉडीज़ में, ‘मीडियन इंटरक्वार्टाइल वृद्धि’ भी ‘कोवैक्सीन की अपेक्षा कोविशील्ड के प्राप्तकर्ताओं में कहीं ज़्यादा थी’, जो क्रमश: 127 एयू/एमएल और 53.0 एयू/एमएल थी.

सेरो पॉज़िटिविटी किसी व्यक्ति में एंटीबॉडीज़ के बनने का पता देती है, और टाइटर से शरीर में पैदा हुए, एंटीबॉडीज़ की मात्रा का पता चलता है.

स्टडी में आगे चलकर सभी प्रतिभागियों के, टीके के बाद के इम्यून रेस्पॉन्सेज़ की तुलना की गई. इनमें कुछ प्रतिभागियों का कोविड-19 का इतिहास रहा था, और कुछ का नहीं था. इसमें पता चला कि जो प्रतिभागी पहले डोज़ से, कम से कम छह हफ्ते पहले कोविड-19 से ठीक हो गए थे, और जिन्होंने दोनों डोज़ ले लिए थे, वो 100 प्रतिशत सेरोपॉज़िटिव थे, और उनके एंटीबॉडी टाइटर्स भी ज़्यादा थे.

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स्टडी के प्रमुख लेखक, और डीडी अस्पताल एवं डायबिटीज़ संस्थान कोलकाता के कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, अवधेश कुमार सिंह ने कहा, ‘जिन लोगों को पहले कोविड हो चुका था, उनमें भी एक डोज़ के बाद ही, दोनों वैक्सीन्स का अच्छा और समान इम्यून रेस्पॉन्स देखा गया. इससे संकेत मिलता है कि दोनों वैक्सीन्स अच्छा काम करती हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, ऐसा लगता है कि कोविशील्ड में एंटी स्पाइक एंटीबॉडीज़ पैदा करने, और सेरोपॉज़िटिविटी दर बढ़ाने की क्षमता, अपेक्षाकृत ज़्यादा है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘फिलहाल तीसरे दौर का प्रकाशित डेटा न होने की स्थिति में, हमने कुछ रियल वर्ल्ड सबूत भी तैयार किए, जिससे पता चला कि दोनों डोज़ के बाद, कोवैक्सीन अच्छे सुरक्षात्मक एंटीबॉडीज़ पैदा करती है. कोविशील्ड का फेज़ 3 डेटा पहले ही प्रकाशित हो चुका है’.

क्या स्टडी में एंटीबॉडीज़ से आगे भी, वैक्सीन के असर को मापा गया, इसपर प्रमुख लेखक ने दिप्रिंट से कहा: ‘निष्क्रिय करने वाले ज़्यादा विशिष्ट एंटीबॉडी, और सेल मध्यस्थता वाले दूसरे इम्यूनिटी रेस्पॉन्स को, माप न पाने की स्थिति में, ये स्टडी सबूतों में इज़ाफा करती है, लेकिन ये कहना मुश्किल है कि क्या एक दूसरी से बेहतर है. केवल किसी बेतरतीब आमने-सामने के ट्रायल से, कुछ निष्कर्ष निकल सकता है’.


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स्टडी

स्टडी में 13 राज्यों और 22 शहरों से, 515 स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को शामिल किया गया, जिनमें 305 प्रतिभागी पुरुष थे.

एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी टाइटर्स को चार समय बिंदुओं पर मापा गया- पहले डोज़ के बाद, 21 वें दिन से दूसरे डोज़ के एक दिन पहले तक; दूसरे डोज़ के 21-28 दिन; तीन महीने, और आख़िर में दूसरे डोज़ के छह महीने बाद.

कोविशील्ड प्राप्तकर्ताओं में ज़्यादा सेरोपॉज़िटिविटी का पता लगाने के अलावा, इसमें ये भी पता लगा, कि 60 वर्ष से अधिक के प्रतिभागियों के मुक़ाबले, 60 से कम उम्र वालों में, सेरोपॉज़िटिविटी रेट ‘काफी अधिक’ था.

स्टडी में कहा गया, ‘अन्य बीमारियां वालों में, जिन लोगों को टी2डीएम (टाइप 2 डाइबिटीज़) थी, उनकी सेरोपॉज़िटिविटी ऐसे लोगों से काफी कम थी, जिनमें ये नहीं थी, और ये कोविशील्ड तथा कोवैक्सीन प्राप्तकर्ताओं में, बराबर रूप से था’.

इसी तरह, एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी टाइटर्स की ‘मीडियन इंटरक्वार्टाइल रेंज’, ‘कोवैक्सीन के मुक़ाबले कोविशील्ड प्राप्तकर्ताओं में कहीं अधिक थी’. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में, एंटीबॉडी टाइटर्स 9 प्रतिशत अधिक पाए गए.

विशेष रूप से, स्टडी में पता चला कि ‘सार्स-सीओवी2 संक्रमण के पिछले इतिहास में, सार्स-सीओवी2 के सरल साथियों के मुक़ाबले, ज़्यादा मीडियन एंटीबॉडी टाइटर्स देखे गए, भले ही वैक्सीन कोई भी मिली हो’.

दूसरे शब्दों में, जिन लोगों का कोविड-19 का पिछला इतिहास था, जिन्होंने वैक्सीन के दोनों डोज़ लिए थे, उनमें ऐसे लोगों की अपेक्षा बहुत अधिक एंटीबॉडी टाइटर्स थे, जिनका संक्रमण का इतिहास नहीं था.

स्टडी के अनुसार, सभी 515 प्रतिभागियों में, कोविशील्ड ने 98 प्रतिशत और कोवैक्सीन ने 80 प्रतिशत सेरोपॉज़िटिविटी रेट पैदा किया, जबकि दोनों के एंटीबॉडी टाइटर्स क्रमश: 127 एयू/एमएल और 53.0 एयू/एमएल थे. दोनों डोज़ के बाद दोनों टीकों की मिश्रित सेरोपॉज़िटिविटी 95 प्रतिशत थी.

जिन लोगों का कोविड-19 का इतिहास रहा था, उनमें केविशील्ड की सेरोपॉज़िटिविटी 97.8 प्रतिशत थी, और कोवैक्सीन की 79.3 प्रतिशत थी. इसी तरह इनके समतुल्य एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी टाइटर्स, 115 एयू/एमएल और 20.0 एयू/एमएल थे.

लेकिन सबसे अधिक अंतर उन लोगों में था, जो पहले डोज़ से छह महीने पूर्व, कोविड-19 से ठीक हो गए थे. डेटा के अनुसार, इस ग्रुप में दोनों वैक्सीन्स के बाद, सेरोपॉज़िटिविटी 100 प्रतिशत थी, और एंटीबॉडी टाइटर्स भी काफी अधिक बने थे, जो कोविशील्ड में 400.0 एयू/एमएल और कोवैक्सीन में 308.0 एयू/एमएल थे.

पेपर में कहा गया है, ‘हमने पाया कि दूसरी बीमारियां, स्त्री-पुरुष, वैक्सीन के प्रकार, और कोविड-19 संक्रमण का पिछला इतिहास, एंटीबॉडी टाइटर के स्वतंत्र भविष्यवक्ता की तरह मौजूद थे’.


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ब्रेकथ्रू इनफेक्शन्स

कुल 30 प्रतिभागियों (6.1 प्रतिशत) में, जिनमें पिछले संक्रमण का कोई इतिहास नहीं था, किसी भी वैक्सीन का एक डोज़ लेने के बाद, कोविड-19 से संक्रमित होने का पता चला. उनमें से 27 में ये दूसरा डोज़ लेने के बाद हुआ.

स्टडी में कहा गया, ‘अधिकांश लोगों में हल्के (28/30) से मध्यम (2/30) कोविड-19 संक्रमण देखे गए, और वो सब ठीक हो गए. जत्थे में से किसी को भी, जिसे किसी भी वैक्सीन के बाद कोविड-19 हुआ, ऐसा गंभीर कोविड नहीं हुआ जिसमें मैकेनिकल वेंटिलेशन की ज़रूरत पेश आती’.

स्टडी के निष्कर्ष में कहा गया है, कि दोनों वैक्सीन्स अच्छा इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती हैं, और ‘अगर दोनों वैक्सीन में, रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करने के मामले में, कोई वास्तविक अंतर है तो उसे सार्थक रूप से हेड-टु-हेड आरसीटी (बेतरतीब कंट्रोल ट्रायल) से ही दिखाया जा सकता है’.

स्टडी में शामिल दूसरे लोग थे, विजयरत्ना डायबिटीज़ सेंटर अहमदाबाद के, कंसल्टेंट फिज़ीशियन और डायबिटॉलजिस्ट संजीव रत्नाकर फाटक; जीडी अस्पताल एवं डायबिटीज़ इंस्टीट्यूट कोलकाता की, कंसल्टेंट गाइनीकॉलजिस्ट रितु सिंह; कोलकाता के स्वतंत्र बायो-स्टैटिस्टीशियन किंगशुक भट्टाचार्य; डायबिटीज़ एंड हार्ट रिसर्च सेंटर धनबाद के डायरेक्टर नगेंद्र कुमार सिंह; राजस्थान हॉस्पिटल जयपुर के डायबिटीज़, ओबैसिटी, एंड मेटाबॉलिक डिसऑर्डर्स विभाग के प्रमुख अरविंद गुप्ता, और महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल जयपुर के, कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर अरविंद शर्मा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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