नई दिल्ली: क़रीब 5 लाख लोगों का ‘जबरन धर्मांतरण’, ‘हवाला नेटवर्क’ और ‘यूके तथा खाड़ी से आ रहे करोड़ों रुपए’- यही वो बातें हैं जिनकी उत्तर प्रदेश एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस), कथित अवैध धर्मांतरण रैकेट में जांच कर रहा है, जो उसके दावे के मुताबिक़, असम समेत देश के 24 राज्यों में चल रहा था.
पिछले चार महीनों में एटीएस ने इस मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कलीम सिद्दीक़ी और दिल्ली स्थित इस्लामिक दावा सेंटर (आडीसी) प्रमुख उमर गौतम शामिल हैं. मौलाना कलीम सिद्दीक़ी मुज़फ्फ़रनगर के फुलत में जामिया इमाम वलीउल्लाह ट्रस्ट के अलावा कई दूसरे ट्रस्ट और एनजीओ चलाते हैं.
पुलिस के अनुसार, इन लोगों ने प्रलोभन और हेराफेरी के ज़रिए, कमज़ोर और ज़रूरतमंदों जिनमें, महिलाएं भी शामिल हैं, और बोलने तथा सुनने में अक्षम लोगों को, पैसों और नौकरियों का लालच देकर, उन्हें इस्लाम क़ुबूल कराया.
पुलिस का आरोप है कि इन लोगों ने, भारत को एक ‘इस्लामी राज्य’ बनाने के लिए ये सब किया.
एटीएस का दावा था कि उसके पास ऐसे 1,000 लोगों की सूची है, जिनका गौतम ने इस तरह ‘जबरन धर्मांतरण’ कराया.
दिप्रिंट ने उन 1,000 में से 25 लोगों का पता लगाकर उनसे संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि उन्होंने ‘अपनी मर्ज़ी से’ मज़हब बदला है, और उन्हें ‘कभी मजबूर नहीं किया गया’.
केस में अभियुक्तों ने ये भी दावा किया है, कि आईडीसी उन लोगों को सिर्फ ‘क़ानूनी सहायता’ देती है, जो मज़हब बदलना चाहते हैं, और उसने किसी को मजबूर नहीं किया.
20 जून को गौतम, आईडीसी कार्यकर्त्ता क़ाज़ी जहांगीर, आईडीसी, और अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दायर एफआईआर में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, एटीएस ने कहा है कि उसे ख़बर मिली थी कुछ ‘राष्ट्र-विरोधी और समाज-विरोधी तत्व तथा कुछ अन्य धार्मिक संगठन’, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (आईएसआई) और कुछ अन्य विदेशी स्रोतों से मिले पैसे का इस्तेमाल करके, भारतीय लोगों का इस्लाम में धर्मांतरण कर रहे हैं.
एटीएस के अनुसार, ये धर्मांतरण ‘जनसांख्यिकी में बदलाव’ और विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच ‘द्वेष पैदा करने’ के मक़सद से किए जा रहे थे.
पिछले दो महीने में पुलिस ने 10 गिरफ्तारशुदा लोगों – गौतम, क़ाज़ी जहांगीर, सलाहुद्दीन ज़ैनुद्दीन शेख़, इरफान शेख़, राहुल भोला, मन्नु यादव, प्रसाद रामेश्वर कवारे उर्फ आदम, कौसर आलम, भूरिया बंदो उर्फ अर्सलान, और फराज़ शेख़- के खिलाफ कथित धोखाधड़ी, आपराधिक षडयंत्र, द्वेष को बढ़ावा आदि प्रावधानों के तहत, दो आरोप पत्र दाख़िल किए हैं. इनपर यूपी के नए विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत भी मुक़दमा क़ायम किया गया है.
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए 10 में से सात लोग, जिनमें गौतम भी शामिल है, वो हैं जिन्होंने धर्म बदलकर इस्लाम अपनाया है.
इसके अलावा, आठ अभियुक्तों- गौतम, जहांगीर, सलाहुद्दीन, इरफान, फराज़ शाह, प्रसाद कामेश्वर कवारे, भूप्रिया बंदो और कौसर आलम- के खिलाफ भारत को एक ‘इस्लामी राज्य’ बनाने की कोशिश के आरोप में, ‘देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ का मुक़दमा दायर किया गया है.
यूपी एटीएस के पुलिस महानिरीक्षक गजेंद्र कुमार गोस्वामी ने कहा, ‘भोला और यादव ख़ुद इस रैकेट के शिकार रहे हैं, और बाद में वो दूसरों को प्रभावित करने के काम में शामिल हो गए. वो सिद्दीक़ी और गौतम द्वारा चलाई जा रही इस मिली-भगत का मुख्य हिस्सा नहीं थे, बल्कि सिर्फ मोहरे थे’.
मौलाना कलीम सिद्दीक़ी गिरफ्तार किए गए उन अन्य छह लोगों में हैं, जिनके खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाख़िल नहीं की है. उनके खिलाफ कथित आपराधिक साज़िश का मामला दर्ज किया गया है.
पुलिस को संयोग से कथित रैकेट का पता कैसे चला
यूपी पुलिस के अनुसार, मसूरी पुलिस थाने में किसी अन्य केस में बंद दो अन्य व्यक्तियों से पूछताछ के दौरान, पुलिस को कथित रैकेट के बारे में कुछ ख़ास जानकारी हाथ लगी, और उन्होंने उसकी जांच शुरू की.
यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक क़ानून व्यवस्था, प्रशांत कुमार ने कहा, ‘दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिन्होंने अपनी पहचान छिपाकर (गाज़ियाबाद के) डासना देवी मंदिर में घुसकर, मंदिर के मुख्य पुजारी यति नरसिंहानंद पर हमला करने की योजना बनाई थी. उनसे पूछताछ के दौरान हमें एक अहम जानकारी मिली, कि ऐसा एक रैकेट चल रहा है’.
यति नरसिंहानंद एक विवादास्पद शख़्सियत हैं, जो इस्लामोफोबिया से जुड़ी टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. मुसलमानों के डासना मंदिर में दाख़िल होने पर प्रतिबंध है. कुमार ने आगे कहा, ‘फिर हमने उस बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी’.
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धर्मांतरण रैकेट के ‘टाइकून’
आईजी एटीएस गजेंद्र कुमार गोस्वामी के अनुसार, गौतम और मौलाना सिद्दीक़ी धर्मांतरण रैकेट के दो ‘दिग्गज’ हैं, और उन्हें संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, खाड़ी के अन्य देशों तथा यूके से फंडिंग मिलती थी. आईजी ने कहा कि ये पैसा हवाला चैनलों के ज़रिए आता था.
गोस्वामी ने कहा, ‘अन्य के अलावा सिद्दीक़ी के जामिया इमाम वलीउल्लाह ट्रस्ट, और एक (लखनऊ स्थित) अल-हसन एजुकेशनल एंड वेल्फेयर फाउण्डेशन को, जिससे गौतम जुड़ा हुआ है, (यूके स्थित ट्रस्ट) अल-फतह ट्रस्ट की ओर से 57 करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त हुए थे. उन्हें यूएई के कुछ दूसरे ट्रस्टों से भी फंड्स मिले थे’.
पुलिस का आरोप है कि ये रैकेट पिछले दो दशकों से अधिक से, बहुत ‘सुचारू रूप से’ चल रहा था, फंड्स का इस्तेमाल राहत और सामाजिक कार्यों के नाम पर, लोगों को लुभाकर उनका मज़हब बदले के लिए किया जा रहा था.
उत्तर प्रदेश एटीएस के एक सूत्र ने कहा, कि मुस्लिम धर्मगुरु इस पैसे का इस्तेमाल दिल्ली-एनसीआर, यूपी और हरियाणा में, प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए भी करते थे.
प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित धन शोधन मामले की जांच शुरू कर दी है.
एटीएस का दावा है कि जांच से पता चला है, कि धर्मांतरण का ये रैकेट दो दशकों से अधिक से चल रहा है, और उसने इसे मौलाना कलीम सिद्दीक़ी का ‘पारिवारिक कारोबार’ क़रार दिया है.
सूत्र ने बताया, ‘पूछताछ के दौरान मौलाना ने हमें बताया, कि पिछले 30 सालों में उन्होंने क़रीब 5 लाख लोगों का मज़हब बदलकर उन्हें मुसलमान बनाया है. उन्हें नौकरियों और अन्य फायदों के प्रलोभन दिए गए. उन्हें भड़काऊ भाषणों से भी प्रभावित किया गया, और जहन्नुम (नरक की आग) से डराया गया. हमारे पास वीडियो सुबूत मौजूद हैं’.
एटीएस चीफ ने आरोप लगाया, कि ये लोग कमज़ोर लोगों को निशाना बनाते थे. आईजी गोस्वामी ने कहा, ‘महिलाएं तथा सुनने व बोलने में असमर्थ लोग, धर्मांतरण के लिए उनका आसानी से निशाना बन जाते थे. कुछ को वित्तीय फायदे पहुंचाकर और कुछ को नौकरी के बहाने से फुसलाकर, इस्लाम क़बूल करवा लिया जाता था.’
उन्होंने आगे कहा कि तीन व्हाट्सएप ग्रुप थे, और तीनों का नाम ‘रिवर्ट, रिहैब और दावा’ था, जिनके ज़रिए लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए लुभाया जाता था.
क्या कहते हैं अभियुक्तों के परिवार और वकील
उमर गौतम के परिवार ने मनी लॉण्डरिंग के आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उनके पास बाहर से आए तमाम पैसे के लिए दस्तावेज़ मौजूद हैं.
उमर गौतम की पत्नी रज़िया ने कहा, ‘एटीएस ने कहा कि वो बरसों तक यूके जाते रहे. ये उस समय था जब वो 16 साल तक, एआईयूडीएफ चीफ बदरुद्दीन अजमल के ट्रस्ट मरजक़ुल मआरिफ के लिए काम करते थे, और ट्रस्ट के कामों के सिलसिले में वहां जाते थे. आईडीसी का गठन 2010 में जाकर हुआ, और उसके बाद से वो यूके नहीं गए हैं’.
उन्होंने कहा कि फंड्स का इस्तेमाल ज़रूरतमंदों के लिए किया जाता था- जैसे कोविड राशन किट्स, और मुज़फ्फरनगर तथा उत्तरपूर्वी दिल्ली के दंगी पीड़ित वग़ैरह.
मौलाना कलीम सिद्दीक़ी के एक पूर्व छात्र ज़ुबैर नदवी, जिन्होंने उनके एक मदरसे में पढ़ाई की है, का कहना था कि 64 वर्षीय सिद्दीक़ी ने हमेशा ज़रूरतमंदों की मदद की.
नदवी ने आगे कहा, ‘कहां है वो प्रॉपर्टी जो पुलिस कह रही है, कि उन्होंने अपने लिए ख़रीदी? हां, बहुत से लोगों ने पैसा दिया- ज़कात (वेल्थ टैक्स जो मुसलमान लोग गरीबों के लिए दान करते हैं)- लेकिन उस सब का इस्तेमाल शिक्षा और दूसरे सामाजिक कार्यों के लिए किया गया. नदवी ने ये भी कहा, ‘जामिया इमाम वलीउल्लाह ट्रस्ट मदरसे चलाता है, जिनमें इस्लामी तथा आधुनिक शिक्षा दी जाती है. वहां से हर साल 200-300 छात्र पास होकर निकलते हैं’.
सिद्दीक़ी के वकील मोमिन मलिक ने कहा कि उन्हें झूठा फंसाया गया है, और वो एक ‘लंबी क़ानूनी लड़ाई’ की तैयारी कर रहे हैं.
सिद्दीक़ी के एक और वकील अबु बकर ने गिरफ्तारी को, ‘संदिग्ध व्यक्तियों की खोज’ क़रार दिया.
उन्होंने कहा,‘जबरन धर्मांतरण क्या है? ये एक नया शब्द है जो उन्होंने गढ़ा है. और, पाकिस्तान आईएसआई से फंडिंग? हर चीज़ को पाकिस्तान और आईएसआई से जोड़ना, इन एजेंसियों का पैटर्न बन गया है.
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‘केवल क़ानूनी सहायता मुहैया कराई’
गौतम के परिवार का दावा था कि उन्होंने धर्मांतरण करने वालों को, आईडीसी के ज़रिए केवल एक क़ानूनी फ्रेमवर्क मुहैया कराने में सहायता की. उसकी पत्नी ने बताया कि गौतम ने 1984 में इस्लाम धर्म अपना लिया था.
रज़िया ने बताया, ‘हम फतेहपुर के राजपूत थे, और बेहद धार्मिक थे. गौतम और मैं हनुमान चालीसा पढ़ा करते थे. इस्लाम के बारे में पढ़ने और रिसर्च करने के बाद ही, हमने धर्म बदलने का फैसला किया’. उन्होंने ये भी बताया कि ख़ुद गौतम ने पुलिस को, ‘मज़हब बदलने वाले 1,000 लोगों’ के बारे में बताया था.
उन्होंने कहा, ‘जबरन धर्मांतरण का कोई सवाल ही नहीं है. आईडीसी में आने वाला हर व्यक्ति पहले से ही धर्मांतरित होता है. धर्मांतरण प्रक्रिया शुरू करने में हमारी कोई भूमिका नहीं होती. क़ाज़ी जहांगीर और गौतम केवल इसके क़ानूनी पहलुओं पर लोगों की मदद करते हैं’.
रज़िया ने कहा, ‘जब कोई हमारे पास आता है, तो उसे एक ‘सेल्फ-डिक्लेरेशन फॉर्म’ भरना होता है, जिसमें कहा जाता है कि वो ज़बर्दस्ती नहीं, बल्कि अपनी मर्ज़ी से अपना मज़हब बदल रहे हैं. फॉर्म भरने के बाद, उसे किसी सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापित किया जाता है. उसके बाद वो क़ाज़ी जहांगीर के पास जाता है, जो एक सर्टिफिकेट जारी करते हैं जिसे गज़ट में छापा जाता है, तब जाकर कोई शख़्स क़ानूनी तौर पर एक कनवर्ट होता है’.
रज़िया ने आगे कहा, ‘बल्कि आईडीसी शुरु ही इस कारण हुई, कि मेरे पति को लगा कि धर्मांतरण के मामले में क़ानूनी सहायता का अभाव है’.
चार्जशीट में गौतम पर नागरिकता संशोधन एक्ट का विरोध करने वालों को, वित्तीय सहायता (फंडिंग) पहुंचाने का भी आरोप लगाया गया है.
लेकिन उनकी वकील असमां इज़्ज़त ने इसके और सीएए-विरोधी प्रदर्शनों के बीच रिश्ते पर सवाल उठाए. ‘वो दिखाना चाहते हैं कि वो पैसा मुहैया कराते हैं, और उन्होंने एक विरोध का समर्थन किया. क्या इससे वो राष्ट्र-विरोधी बन जाते हैं?’
‘किसी ने हमें धर्म बदलने को मजबूर नहीं किया’
पुलिस ने दावा किया है कि इस कथित रैकेट के तहत गौतम ने 1,000 लोगों को मुसलमान बनाया है. दिप्रिंट ने उनमें से 25 लोगों से बात की. लेकिन, उन सभी ने कहा कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से अपना धर्म बदला है, और वो आईडीसी के पास सिर्फ अपना कागज़ात पूरे कराने गए थे.
फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ की एक 33 वर्षीय एसोसिएट प्रोफेसर ने कहा, कि उन्होंने 2012 से इस्लाम पर अमल करना शुरू कर दिया था, लेकिन पिछले साल ही उसे क़ानूनी रूप दिया है.
‘वो कहते हैं कि गौतम ने महिलाओं को निशाना बनाया, ये सही नहीं है. मैं एक पढ़ी-लिखी महिला हूं, जिसने अपनी मर्ज़ी से मज़हब बदला है. शुक्र है कि मैं अभी तक शादीशुदा नहीं हूं, वरना उन्होंने इसे लव-जिहाद का केस बना दिया होता,’ ये कहना था उस महिला का, जो अपना नाम नहीं बताना चाहती थी. वो एक यादव परिवार में जन्मी थी.
नोएडा की एक निवासी मीरा घटानिया, उनके बेटे रमन और उसकी पत्नी प्रबजोत ने भी, तीन साल पहले अपने क़ानूनी दस्तावेज़ तैयार कराने के लिए गौतम की मदद ली थी. ये सब पहले ही इस्लाम धर्म अपना चुके थे.
मीरा ने कहा, ‘चार साल पहले जब मेरा बेटा गौतम के पास गया, तो उसने मुझे फोन किया और कहा कि वो इस्लाम अपनाना चाहता है. शुरु में उन्होंने उसे वापस भेजा और कहा, कि धर्मांतरण को क़ानूनी रूप देने से पहले, वो और ज़्यादा किताबें पढ़े और रिसर्च करे. हम सब पढ़े-लिखे वयस्क हैं, पुलिस किस ज़बर्दस्ती की बात कर रही है?’
एक सरकारी कर्मचारी सूफियान ने बताया, कि वो एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था, और बरसों तक इस्लाम के बारे में पढ़ने के बाद ही उसने अपना धर्म परिवर्तित किया. उसने कहा कि न तो उसे मजबूर किया गया, न ही लुभाया गया.
इन 25 लोगों के बारे में पूछे जाने पर, जिन्होंने कहा कि उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर नहीं किया गया, आईजी गोस्वामी का जवाब था कि उनकी यूनिट ये ‘नहीं कह रही है कि सभी 1,000 लोगों का ज़बर्दस्ती धर्म बदला गया है’.
अधिकारी ने कहा, ‘कुछ लोग गूंगे और बहरे हैं, और कुछ महिलाएं हैं जिन्हें पैसे के फायदे और नौकरियों का प्रलोभन देकर मुसलमान बनाया गया है’. लेकिन वो इनकी कोई संख्या नहीं बता सके. उन्होंने आगे कहा कि अपने दावों की पुष्टि के लिए, यूनिट के पास ‘पुख़्ता सुबूत और गवाह’ मौजूद हैं.
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