सीतामढ़ी: मार्च महीने में नेपाल के रहने वाले राजा महेश्वरी भारत में काम मिलने की संभावना के साथ एक प्रवासी मजदूर बनकर आए थे. बिहार के सासाराम जिल में उन्हें काम भी मिल गया था लेकिन जैसे ही वो एक विदेशी धरती पर सेटल होने वाले थे, कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में फंस गए. दुनिया भर में इस तरह के लॉकडाउन से लाखों लोग दूसरे शहरों, राज्यों और देशों में फंसे हैं.
ऐसे में राजा और उनके साथ काम करने वाले 20 अन्य नेपाली मजदूरों के पास पैदल चलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था लेकिन इसी बीच भारत और नेपाल ने अपनी सीमाएं भी पूरी तरह सील कर दीं. इसके बाद से नेपाली पुलिस ने सीमा पार करके पहुंचे 21 नेपाली मजदूरों को पकड़कर वापस भारत पुलिस को सौंप दिया.
और ये अकेले ऐसे लोग नहीं हैं. राजा उन दर्जनों लोगों में से एक हैं जो लॉकडाउन के दौरान भारत की सीमा पार नेपाल अपने घर पहुंचना चाह रहे थे. इस तरह के कम से कम 300 नेपाली मजदूर फिलहाल सीतामढ़ी जिले के नेपाल-भारत बॉर्डर के क्वारेंटाइन केंद्रों में रखे गए हैं.
कइयों को तो 40 दिन से भी ज्यादा का समय हो गया है. जो कि स्टैंटर्ड 14 दिन के क्वारेंटाइन समय से काफी ज्यादा है. सीमा बंद होने के बाद ये एक लंबे इंताजर को काट रहे हैं.
सीतामढ़ी जिले के एसपी अनिल कुमार इस बाबत दिप्रिंट को बताते हैं, ‘इनमें से ज्यादातर ने 14 दिन का क्वारेंटाइन का समय पूरा कर लिया है.’
वो आगे जोड़ते हैं,’ हमारे पास ऐसे भी नेपाली मजदूर हैं जो 40 दिन से क्वारेंटाइन सेंटर में रह रहे हैं. ये लोग 31 मार्च के बाद से सीमा पार नेपाल जाते हुए पकड़े गए थे. ज्यादातर का 14 और 21 दिन का क्वारेंटाइन समय खत्म भी हो चुका है.’
बिहार-नेपाल बॉर्डर के दो क्वारेंटाइन सेंटर के मजदूरों ने बताया हाल
बिहार के सीतामढ़ी जिले में भारत और नेपाल की सीमा खुले खेतों में है. जो बैरगानिया से लेकर सुरसंड तक करीब 80 किलोमीटर की दूरी में फैली हुई है. इस सीमा पर तैनात शसस्त्र सीमा बल के कई जवान दिप्रिंट को बताते हैं कि वो लोग लॉकडाउन के बाद से ही सीमा पार करने वालों को पकड़ रहे हैं. बिहार में कोई शेल्टर होम न होने की वजह से इन्हें क्वारेंटाइन सेंटरों में भी भेजा जा रहा है.
एसपी बताते हैं, ‘नेपाली मजदूरों की सबसे ज्यादा संख्या कोरलहिया में है लेकिन उसके अलावा बैरगानिया, बथनाहा, सोनबरसा और सुरसंड में भी इनकी संख्या ठीक ठाक है.’
राजा से बेला मच्छपकौनी क्वारेंटाइन सेंटर में मुलाकात हुई जो एक स्कूल की बिल्डिंग में बनाया गया है. दिप्रिंट ने बॉर्डर पर बने दो क्वारेंटाइन सेंटरों का दौरा कर जमीन पर स्थिति का जायजा लिया.
नेपाल के अन्य दिहाड़ी मजदूर भी लॉकडाउन के 2 हफ्ते पहले भारत आए थे और उन्हें सासाराम जिले में एक कन्स्ट्रक्शन में दिहाड़ी का काम मिल गया था. वो बताते हैं, ‘शुरुआत के पांच छह दिन ठीक गुजरे लेकिन फिर सब बंद हो गया. हम लोग 21 सदस्य थे जो सासाराम से 15 अप्रैल को पैदल ही निकले थे.’
दिप्रिंट ने दिन दो सेंटरों का दौरा किया यहां नोएडा, दिल्ली, मुंबई और गुरुग्राम से कम से कम 16-17 दिहाड़ी मजदूर थे. नेपाल के रहने वाले चौधरी जो कि बेला मच्छापकौनी क्वारेंटाइन सेंटर में हैं, कहते हैं, ‘मैं अप्रैल के आखिरी में बदरपुर से पैदल ही चल पड़ा था. रास्ते में ट्रक वालों ने बैठा लिया था. आखिरकार मैं सीतामढ़ी पहुंचा और फिर नेपाल के बॉर्डर के पास कर रहा था लेकिन मुझे पुलिस ने पकड़ वापस कर दिया. अब मैं यहां 20 दिन से ज्यादा समय से क्वारेंटाइन हूं’.
वो अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि जब मालिक ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया तो उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा था. ‘शुरुआत में मैं जिस लाला के लिए काम कर रहा था उसने राशन दिया लेकिन फिर बाद में उसके लिए पैसे मांगने शुरू कर दिए. जब भूखा मरने लगा तो मैंने अपने घर के लिए पैदल चलना ही उचित समझा.’
चौधरी के साथ 7-8 नेपाली मजदूर भी दिल्ली से पैदल चलकर यहां पहुंचे थे. सारे लोगों को एक ही क्वारेंटाइन सेंटर में रखा गया था.
बेला मच्छापकौनी और कन्हवा क्वारेंटाइन सेंटरों में नेपाली मजदूरों के साथ-साथ भारत के प्रवासी मजदूरों को भी रखा गया है.
‘नेपाली मजदूरों को पकड़ना आसान’
एसएसबी की 51वीं बटालियन के इन्स्पेक्टर एके जाखड़ बताते हैं कि उन्होंने नेपाली मजदूरों के पहले बैच को 31 मार्च को भारत-नेपाल बॉर्डर से पकड़ा था. वो कहते हैं, ‘हरियाणा और नोएडा से आए मजदूर बॉर्डर पार कर रहे थे. उन्हें कन्हवा बॉर्डर आउटपोस्ट पर पकड़ा गया था और फिर उसके बाद उन्हें कन्हवा और गोरहरी क्वांरेंटाइन सेंटरों पर लाया गया और पूरी स्क्रीनिंग की गई.’
कन्हवा और गोरहरी क्वारेंटाइन सेंटर ढाई किलोमीटर के दायरे में बने हुए हैं. कन्हवा क्वारेंटाइन सेंटर 51वीं बटालियन कंपनी हेडक्वार्टर्स से महज 800 मीटर की दूरी पर है.
जाखड़ बताते हैं कि बॉर्डर पार करते मजदूर आसानी से पहचाने जाते हैं. वो जोड़ते हैं, ‘थके-हारे और बैग लटकाए लोगों को देखकर हम समझ जाते हैं कि ये लंबी दूरी तय करके आए हैं. कई बार ये लोग खुद ही बता देते हैं कि ये प्रवासी मजदूर हैं और घर जाना चाहते हैं लेकिन कई बार झूठ बोल देते हैं कि बॉर्डर वाले खेत उनके हैं और वे वहां के किसान हैं. मगर शुरुआती सवालों के बाद वो भी सच बता देते हैं. बाद में उन्हें समझाया जाता है कि दोनों देशों के बॉर्डर पूरी तरह सील हैं और उसके बाद हम उन्हें क्वारेंटाइन सेंटरो में भेज देते हैं.’
केंद्र सरकार से की गई बात
एसपी अनिल कुमार बताते हैं कि उन्होंने नेपाल के प्रवासी मजदूरों की बात कई बार फ्लैग कर दी है. वो कहते हैं, ‘हमने गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को भी मामले से अवगत कराया है. जब तक हमें सरकार की तरफ से आदेश नहीं आ जाता तब तक हम कुछ नहीं कर सकते. हमारी तरफ के भी बहुत सारे लोग नेपाल की तरफ फंसे हुए हैं’.
वह कहते हैं कि फिलहाल दोनों ही तरफ के प्रवासी मजदूरों की परेशानियों का हल तब तक नहीं निकलेगा जब तक दोनों ही सरकारें सीमा पार के निर्देशों में बदलाव नहीं करतीं.
केंद्र सरकार के सूत्रों ने बताया है कि जब से चेकपोस्ट्स को बंद किया गया है तब से ही दोनों तरफ लोग फंसे हुए हैं. ये मुद्दा सिर्फ नेपाल तक ही सीमित नहीं है बल्कि भूटान और बांग्लादेश के बॉर्डर पर भी ऐसा ही हाल है.
(नयनिमा बासु के इनपुट्स के साथ)