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Friday, 22 November, 2024
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दिल्ली दंगों के 4 साल बाद, उमर खालिद और अन्य के खिलाफ ‘बड़ी साजिश’ का मामला अभी भी अधर में क्यों है?

दिल्ली पुलिस की एफआईआर में कहा गया है कि दंगे ‘उमर खालिद और उसके सहयोगियों द्वारा रची गई साजिश’ थे. 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर दिप्रिंट की सीरीज़ की पांचवी रिपोर्ट में हम देखेंगे कि मुकदमे में देरी क्यों हो रही है.

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नई दिल्ली: चार साल बीत गए हैं जब दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों के पीछे एक “बड़ी साजिश” थी और इसने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं को लागू करते हुए 59 एफआईआर दर्ज की थीं.

पुलिस ने दावा किया कि दंगे, जिसमें 53 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए, “पूर्व नियोजित साजिश” थी, जिसे “जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद और उसके सहयोगियों ने रचा था”.

6 मार्च, 2020 को दर्ज हुई एफआईआर को चार साल बीतने वाले हैं, लेकिन मामला अब भी अधर में लटका है. आरोपों पर दलीलें अनसुनी हैं और सुनवाई को कितनी ही बार टाल दिया गया है.

जांच और दस्तावेज़ की आपूर्ति पूरी होने के बाद ही आरोपों पर बहस की प्रक्रिया शुरू होती है. दलीलों के आधार पर अदालत तय करती है कि आरोप तय किया जाए या आरोपी को आरोपमुक्त किया जाए. एक बार जब यह चरण पूरा हो जाता है, तो ट्रायल शुरू होता है.

दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार (जैसा कि सीरीज़ की पहली रिपोर्ट में था), मामले में 21 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था और नौ संदिग्धों जिनमें पिंजरा तोड़ कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और छात्र कार्यकर्ता आसिफ इकबाल तन्हा शामिल थे, 2021 से ज़मानत पर हैं. इशरत जहां को 2022 में ज़मानत दी गई थी.

इस बीच उमर खालिद, शरजील इमाम, सफूरा जरगर, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और ताहिर हुसैन समेत 12 लोग अभी भी जेल में हैं.

इस महीने की शुरुआत में खालिद ने “परिस्थितियों में बदलाव” का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से अपनी ज़मानत याचिका वापस ले ली, जिसे न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था.

खालिद के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वे ट्रायल कोर्ट में अपनी “किस्मत” आज़माएंगे. अक्टूबर 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसने खालिद को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था.

2020 में दंगे 23 फरवरी को शुरू हुई और 25 फरवरी तक हिंसा जारी रही, जिससे सड़कें युद्ध क्षेत्र में बदल गईं. 29 फरवरी तक दंगे, आगज़नी और लाशें मिलने की खबरें आती रहीं थीं.

2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की सीरीज़ की पांचवी रिपोर्ट में दिप्रिंट ने इस मामले की स्थिति और मामले में देरी के पीछे के कारणों को समझने के लिए कई बचाव पक्ष के वकीलों और जांच एजेंसी के सूत्रों से बात की है.


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5 आरोपपत्र, व्हाट्सएप चैट के लिए दलीलें

अब तक “बड़ी साजिश” मामले में 25,000 से अधिक पृष्ठों वाले पांच आरोपपत्र दायर किए गए हैं. पहली चार्जशीट, जो 17,000 पेज से अधिक लंबी थी, 16 सितंबर, 2020 को दायर की गई थी.

21 सितंबर, 2020 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने निर्देश दिया कि जेल में बंद आरोपियों सहित सभी आरोपियों को आरोप पत्र की सॉफ्ट प्रतियां दी जाएं.

अक्टूबर में अदालत को सूचित किया गया कि प्रतियों के साथ पेन ड्राइव आरोपियों को दी गई थीं. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने अदालत को सूचित किया कि हार्ड कॉपी उपलब्ध कराने के लिए धन स्वीकृत करने में 15 दिन लगेंगे.

इस बीच, दिल्ली पुलिस ने दो आदेशों (चार्जशीट की सॉफ्ट और हार्ड कॉपी पर) को चुनौती देते हुए कहा कि निर्देश “यांत्रिक तरीके” से पारित किए गए थे.

मार्च 2021 में अदालत को सूचित किया गया कि आरोपियों को आरोपपत्र की हार्ड कॉपी मिल गई है.

पिछले साल अप्रैल में सत्र अदालत ने देवांगना कलिता को छोड़कर मामले के सभी आरोपियों के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 207 के तहत दस्तावेज़ की आपूर्ति का चरण पूरा किया. पिछले साल अगस्त में कोर्ट ने कलिता के लिए भी ये स्टेज पूरी कर ली थी.

जांच एजेंसी द्वारा संबंधित अदालत में आरोपपत्र दाखिल करने के बाद दस्तावेज़ की जांच का दौर शुरू होता है. आरोपियों द्वारा सीआरपीसी की धारा 207 के तहत आवेदन दायर किए गए हैं.

सीआरपीसी की धारा 207 “दस्तावेजों की आपूर्ति” का प्रावधान करती है — पुलिस रिपोर्ट की एक प्रति और अन्य दस्तावेज़ जो आरोप पत्र या पुलिस रिपोर्ट में संदर्भित हैं. अदालत तय करती है कि अभियोजन पक्ष आरोपी को दस्तावेज़ उपलब्ध कराएगा या नहीं और अपने फैसले के आधार पर जांच एजेंसी को निर्देश देता है.

प्रक्रिया के बारे में बताते हुए आरोपियों में से एक के बचाव पक्ष के वकील ने दिप्रिंट को बताया, “कुछ दस्तावेज़ हैं जो पर्याप्त रूप से पढ़ने योग्य नहीं हो सकते हैं, इसलिए उन्हें प्राप्त करने के लिए आवेदन दायर किए जाते हैं. फिर कुछ दस्तावेज़, चैट, वीडियो, बयान हैं, जिनका पुलिस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, जिसके लिए सीआरपीसी की धारा 207 के तहत आवेदन दायर किए गए हैं.”

वकील ने कहा: “अभियोजन पक्ष का तर्क है कि आरोप पत्र में इन पर भरोसा नहीं किया गया है, लेकिन ये “अविश्वसनीय” दस्तावेज़ प्रकृति में दोषमुक्तिपूर्ण हो सकते हैं और इसलिए, बचाव पक्ष के लिए बहस करने और निष्पक्ष और न्यायपूर्ण सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.”

बचाव पक्ष के वकील ने दिप्रिंट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया है कि आरोपी को सभी दस्तावेज़ उपलब्ध कराए जाने चाहिए जो आरोपी के लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

पिछले साल अगस्त में एएसजे अमिताभ रावत ने कलिता की याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें पुलिस से व्हाट्सएप ग्रुप की चैट और “चयनात्मक उद्धरण” की मांग की गई थी, जिसका इस्तेमाल कथित तौर पर याचिकाकर्ता के खिलाफ किया जा रहा था, साथ ही दंगों के सीसीटीवी फुटेज भी मांगे गए थे.

विशेष लोक अभियोजक ने अदालत में कहा कि मामले से संबंधित “प्रासंगिक चैट” प्रदान की गई हैं, लेकिन पुलिस द्वारा ऑपरेशन व्हाट्सएप ग्रुप की अन्य चैट साझा नहीं की गई हैं क्योंकि वे “प्रासंगिक नहीं” हैं और कोर्ट में पेश की गई चार्जशीट और दस्तावेज़ में उन पर “भरोसा” नहीं किया गया है.

सरकारी वकील ने यह भी तर्क दिया कि इन चैट में “अन्य संवेदनशील जानकारी/विशेषाधिकार प्राप्त संचार शामिल हो सकता है, इसका खुलासा नहीं किया जा सकता”.

सीसीटीवी फुटेज के संबंध में सरकारी वकील ने कहा कि “प्रासंगिक” फुटेज उपलब्ध करवाया गया है. यहां तक कि एएसजे रावत ने भी कहा कि दंगों की पूरी फुटेज उपलब्ध कराना ज़रूरी नहीं है क्योंकि अन्य मामलों में जांच अभी भी जारी है.

इसके बाद कलिता ने निचली अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं के साथ पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. हालांकि, हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.


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अधूरी जांच पर ट्रायल शुरू नहीं हो सकता

पिछले साल सितंबर में कड़कड़डूमा अदालत दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के माध्यम से आरोपियों के खिलाफ आरोपों पर दलीलें सुनने के लिए तैयार हुई थी.

हालांकि, कई आरोपियों – तन्हा, कलिता, नरवाल और मीरान हैदर – द्वारा अदालत में आवेदन दायर करने के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था, जिसमें दिल्ली पुलिस द्वारा जांच की स्थिति को रिकॉर्ड पर रखने और जांच पूरी होने तक आरोप पर दलीलें टालने की मांग की गई थी.

इस बीच, पिछले साल दिसंबर में एएसजे रावत का तबादला हो गया और अब इस मामले की सुनवाई एएसजे समीर बाजपेयी कर रहे हैं.

दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने अदालत में कहा है कि “आरोपी के खिलाफ जांच” पूरी हो गई है.

दिल्ली पुलिस के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “हमने अदालत में कहा है कि गिरफ्तार आरोपियों के संबंध में जांच पूरी हो चुकी है. हम यह नहीं कह सकते कि समग्र जांच पूरी हो चुकी है क्योंकि अन्य संदिग्ध भी हैं. यह बहुत मनमाना है. वे सिर्फ मुकदमे में देरी करना चाहते हैं और इसे ज़मानत का आधार बनाना चाहते हैं.”

हालांकि, बचाव पक्ष के वकीलों के मुताबिक, लिखित में इसका कोई ज़िक्र नहीं था और न ही किसी आदेश में इस बात का ज़िक्र है कि जांच पूरी हो गई है.

एक अन्य आरोपी के बचाव पक्ष के वकील ने दिप्रिंट को बताया, “अभियोजन पक्ष इसका उपयोग करेगा – कि मामले की जांच लंबित है और एक गवाह पेश करेगा जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं है. किसी आरोप पर बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद वे नए आरोप भी लगा सकते हैं.”

पिछले साल, हैदर ने पुलिस द्वारा कई आरोपपत्र दायर करने और अदालत में लंबित जांच के बारे में चिंता व्यक्त की थी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, शरजील इमाम का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील अहमद इब्राहिम ने कहा, “मुद्दा यह है कि जांच पूरी होने तक आरोप पर दलीलें सुनी जा सकती हैं या नहीं. अभियुक्तों के वकीलों को यह आशंका है कि अगर आरोप पर दलीलें सुनी गईं, तो अभियोजन पक्ष को उनकी कहानी में खामियों के बारे में पता चल जाएगा और उक्त कमियों को पूरा करने के लिए एक पूरक आरोप पत्र दायर किया जा सकता है. कानून में कुछ भी इस स्तर पर विलंबित पूरक आरोप पत्र दाखिल करने से नहीं रोकता है.”

इब्राहिम ने कहा, “यह आशंका निराधार नहीं है क्योंकि राज्य ने एक अन्य मामले में भी ऐसा ही किया है.”

एक उदाहरण का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा, “उक्त मामले में जहां आरोपी व्यक्तियों के वकील द्वारा आरोप पर दलीलें पेश किए जाने के बाद मैंने एक आरोपी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व किया, अभियोजन पक्ष वकीलों द्वारा बताई गई कमियों को दूर करते हुए एक पूरक आरोप पत्र लेकर आया.”

बचाव पक्ष के एक अन्य वकील के मुताबिक भी, “जांच पूरी हुए बिना मुकदमा शुरू नहीं हो सकता.”

दिल्ली दंगों में गिरफ्तारियों, बरी होने और आरोपमुक्त होने पर दिप्रिंट की सीरीज़ में यह पांचवी रिपोर्ट है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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