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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशदिल्ली दंगों के 4 साल — ‘घटिया जांच, गलत आरोप पत्र’, 183 बरी और 75 आरोपमुक्त

दिल्ली दंगों के 4 साल — ‘घटिया जांच, गलत आरोप पत्र’, 183 बरी और 75 आरोपमुक्त

अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों का कहना है कि गिरफ्तारियां जल्दबाज़ी में की गईं और ध्यान ‘एक कहानी साबित करने’ पर था. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि सभी दंगों के मामलों की जांच सावधानीपूर्वक की गई, वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया.

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नई दिल्ली: पूर्वी दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत के चार साल बाद, हिंसा के संबंध में दर्ज 757 मामलों में 183 लोगों को बरी कर दिया गया है और 75 को आरोपमुक्त कर दिया गया है. दिप्रिंट को इस बारे में जानकारी मिली है.

अदालतों द्वारा उद्धृत इन बरी और आरोपमुक्ति के कारणों में शिकायतकर्ताओं के बयानों में विसंगतियां, दोषपूर्ण आरोप पत्र, गवाहों की कमी, “कृत्रिम बयान” शामिल हैं.

दिप्रिंट द्वारा विशेष रूप से प्राप्त किए गए पुलिस डेटा के अनुसार, दर्ज किए गए 757 मामलों में से 63 मामले अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दिए गए थे, जबकि एक “बड़ी साजिश” का मामला दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने दर्ज किया था. अपराध शाखा का एक मामला भी रद्द कर दिया गया, जो तब किया जाता है जब जांच टीम को अपनी जांच जारी रखने के लिए ठोस सबूत नहीं मिलते हैं. दंगों के मामलों में कुल मिलाकर लगभग 2,600 गिरफ्तारियां की गईं. हालांकि, आरोपियों की कुल संख्या स्पष्ट नहीं है क्योंकि कई लोगों पर कई मामलों में मामला दर्ज किया गया था.

पूर्वी जिले द्वारा जांच के तहत 694 मामलों में से केवल 368 यानी 53 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन/दिप्रिंट

इन मामलों में कुल 2,174 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 1,739 लोगों को ज़मानत मिल गई और 108 लोग जेल में हैं. बाकी में किशोर शामिल हैं.

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हालांकि, चार साल बाद, जबकि पूर्वी जिला पुलिस के मामलों में 50 लोगों को बरी कर दिया गया है, 46 को दोषी ठहराया गया है. आंकड़ों से पता चला है कि अब तक बरी किए गए सभी 183 लोग इन मामलों में आरोपी थे.

कोई अदालत किसी मामले में किसी आरोपी को तब बरी कर देती है जब आरोप तय करने के लिए सबूतों की कमी पाई जाती है. एक बार आरोप तय हो जाने के बाद ही मामले की सुनवाई हो सकती है. बरी करना तब होता है जब अदालत किसी आरोपी को मुकदमे के अंत में रिहा कर देती है.

इसी तरह क्राइम ब्रांच के 62 मामलों में से सिर्फ 45 मामलों का ही वर्कआउट हो सका है. पुलिस द्वारा संदिग्धों की पहचान करने के बाद मामला सुलझा हुआ माना जाता है.

इन 62 मामलों में जहां 424 लोगों को गिरफ्तार किया गया, वहीं केवल 39 मामलों में आरोप तय किए गए हैं.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन/दिप्रिंट

इसके अलावा, गिरफ्तार किए गए 424 लोगों में से अब तक केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है, जबकि 25 लोगों को अलग-अलग अदालतों ने बरी कर दिया है. कुल 346 लोग ज़मानत पर हैं और 52 वर्तमान में सलाखों के पीछे हैं.

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा दर्ज “बड़ी साजिश” मामले में आरोप तय किए गए हैं — एफआईआर 59, जिसमें छात्र कार्यकर्ता और पूर्व जेएनयू शोध विद्वान उमर खालिद सहित 21 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में खालिद समेत 12 लोग अभी भी जेल में हैं, जबकि नौ ज़मानत पर बाहर हैं.

Graphic: Soham Sen | ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन/दिप्रिंट

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे 23 फरवरी 2020 को भड़के और दो दिनों तक जारी रहे. छड़ों और हथियारों से लैस भीड़ ने कईं लोगों की हत्या की, घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया और कई पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की. सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में जाफ़राबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, ज्योति नगर, करावल नगर, खजूरी खास, गोकल पुरी, दयालपुर और न्यू उस्मानपुर शामिल हैं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि दंगों के मामलों में कुछ बरी किए गए और आरोपमुक्त किए गए लोगों के खिलाफ ऊपरी अदालतों में अपील दायर की गई है, लेकिन दायर की गई अपीलों की सही संख्या स्पष्ट नहीं है.

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “दंगों के मामलों की जांच वैज्ञानिक तरीकों की मदद से सावधानीपूर्वक की गई है. वैज्ञानिक साक्ष्य इन मामलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. सीसीटीवी से 900 से अधिक वीडियो क्लिप, अन्य वीडियो और डंप डेटा की जांच की गई. फुटेज का विश्लेषण करने के लिए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम का भी इस्तेमाल किया गया. सभी मामलों की जांच निष्पक्ष रही है.”


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‘गलत आरोपपत्र, सबूतों का दुरुपयोग’

दिल्ली की विभिन्न अदालतों ने “संवेदनहीन” जांच, “गलत आरोपपत्र” और “सबूतों का दोहन” करने के लिए बार-बार दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है. 2021 में दिल्ली दंगों के मामलों में “जांच में तेज़ी लाने और सुव्यवस्थित” करने के लिए अदालतों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी की पुलिस को कड़ी फटकार लगाने के बाद एक विशेष जांच सेल का गठन किया गया था.

पिछले साल अगस्त में कड़कड़डूमा कोर्ट ने दंगों के एक मामले में तीन लोगों को बरी करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी. जांच को “घटिया” बताते हुए न्यायाधीश ने कहा कि जांच टीम ने “पूर्व निर्धारित” और “यांत्रिक तरीके” से आरोप पत्र दायर किया था.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने उस समय आरोपी को बरी करते हुए कहा था, “मुझे संदेह है कि आईओ (जांच अधिकारी) ने रिपोर्ट की गई घटनाओं की ठीक से जांच किए बिना मामले में मौजूद सबूतों के साथ छेड़छाड़ की है.”

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जनवरी 2022 में दंगों के एक मामले में छह लोगों को बरी कर दिया था, जबकि यह देखते हुए कि जांच टीम द्वारा प्रदान किए गए आरोपियों के खिलाफ एकमात्र सबूत गिरफ्तारी के बाद दिए गए “खुलासा बयान” हैं.

दिसंबर 2022 में एक स्थानीय अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में पर्याप्त सबूतों की कमी का हवाला देते हुए, चांद बाग इलाके में पथराव के एक मामले में उमर खालिद और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक खालिद सैफी को भी बरी कर दिया था.

सितंबर 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने दंगों के एक मामले में पूर्व AAP पार्षद ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम सहित तीन लोगों को बरी करते हुए कहा था कि “मामले में जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड पर लाए गए सबूत आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने के लिए काफी कम हैं.”

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा, “जब इतिहास दिल्ली में विभाजन के बाद हुए सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो नवीनतम वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके उचित जांच करने में जांच एजेंसी की विफलता निश्चित रूप से लोकतंत्र के प्रहरियों को पीड़ा देगी.”

न्यायाधीशों ने जांच अधिकारियों द्वारा मुकदमे के लिए सरकारी अभियोजकों को पर्याप्त जानकारी नहीं देने पर भी पुलिस की खिंचाई की है.

दंगों के मामलों की जांच को सुव्यवस्थित करने के लिए गठित 2021 इकाई पर, दिल्ली पुलिस अधिकारी ने पहले कहा था, “टीम खामियों को समझने और उन्हें ठीक करने के लिए काम कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरोप पत्र और सबूत निर्विवाद हैं.”


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‘ध्यान एक नैरेटिव को साबित करने पर था’

दंगों के मामलों में आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ वकीलों ने दिप्रिंट को बताया कि गिरफ्तारियां जल्दबाज़ी में की गईं और इस नैरेटिव को साबित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया कि एक बड़ी साजिश थी, जिसके परिणामस्वरूप खराब जांच हुई.

वकील महमूद प्राचा ने कहा, “यह सीएए एनआरसी विरोध को दबाने का एक प्रयास था जिसने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था. इस प्रक्रिया में भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को झूठे मामलों में फंसाया. अंततः, जब न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है, तो पूरी कहानी औंधे मुंह गिर रही है और बार-बार मुस्लिम समुदाय पर झूठे आरोप लगाने और पुलिस द्वारा उनके खिलाफ सबूत गढ़ने की न्यायिक घोषणाएं की जा रही हैं.”

वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा, “पुलिस यह दिखाने की जल्दी में थी कि दंगे में बड़ी संख्या में लोग शामिल थे और इसी जल्दबाजी में जांच टीमों ने अपनी मर्ज़ी से लोगों का नाम लिया और सबूत बनाए. उन्होंने लोगों के नाम सिर्फ इसलिए दिए क्योंकि वे एक विशेष क्षेत्र में रहते थे और इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उन्होंने कोई हिंसा की.”

उन्होंने आगे कहा, “कोई वैज्ञानिक जांच नहीं हुई. वाम-उदारवादियों जैसे षड्यंत्र के सिद्धांतों पर भरोसा किया गया कि दंगा हुआ और इस प्रक्रिया में, पुलिस, चाहे जानबूझकर या अन्यथा, वास्तव में वास्तविक अपराधियों तक नहीं पहुंच सकी. पूरा ध्यान साजिश को साबित करने और बड़े कार्यकर्ताओं और नामों को दायरे में लाने पर था, जिसके परिणामस्वरूप घटिया जांच हुई. इससे हत्या, आगजनी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के वास्तविक मामले प्रभावित हुए हैं.”

दिल्ली दंगों में गिरफ्तारियों, बरी होने और आरोपमुक्त होने पर दिप्रिंट की सीरीज़ में यह पहली रिपोर्ट है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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