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Saturday, 14 December, 2024
होमदेशदुकान का जलना और 'बड़ी भूल': कैसे दिल्ली दंगों के मामले में अकरम पर लगा आरोप पर बाद में बरी कर दिया गया

दुकान का जलना और ‘बड़ी भूल’: कैसे दिल्ली दंगों के मामले में अकरम पर लगा आरोप पर बाद में बरी कर दिया गया

जनवरी में, अकरम को 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान आगजनी के एक मामले से बरी कर दिया गया था. उनकी कहानी दिल्ली दंगों में गिरफ्तारियों, बरी और आरोपमुक्त होने पर दिप्रिंट की दिल्ली दंगों की सीरीज़ का भाग 2 है.

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नई दिल्ली: फरवरी के ठंडे दिनों में दोपहर के 12.30 बजे हैं. दिल्ली के पुराने मुस्तफाबाद की गलियों में, 30 वर्षीय अकरम मलिक अपनी कबाड़ की दुकान के बाहर बैठकर रसीद बुक में कुछ आंकड़े दर्ज कर रहे हैं. सफेद बॉम्बर जैकेट और सफेद स्नीकर्स पहने अकरम दिप्रिंट को बताते हैं, गुरुवार की सुबह काफी व्यस्त रही.

उनके पास जो रसीद बुक है, वह लगभग 200 मीटर दूर एक स्टेशनरी की दुकान, चावला बुक सेंटर से खरीदी गई है. अंदर इसके मालिक गुलशन कुमार कुछ ग्राहकों की देखभाल कर रहे हैं.

23 जनवरी को, दिल्ली की एक अदालत ने स्टेशनरी की दुकान में आग लगाने के मामले में अकरम और दो अन्य लोगों – मोहम्मद फुरकान और मोहम्मद इरशाद – को दंगा और आपराधिक साजिश समेत अन्य आरोपों से बरी कर दिया. यह घटना 23 फरवरी 2020 को शुरू हुए दिल्ली दंगों के हिस्से के रूप में हुई और तीन दिनों तक चली, हालांकि 29 फरवरी तक दंगे और आगजनी की घटनाएं सामने आती रहीं.

हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए.

अकरम को गुलशन कुमार द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. हालांकि गुलशन कुमार ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन पुलिस ने वीडियो फुटेज के आधार पर अकरम को गिरफ्तार कर लिया.

A view of Chawla book in Old Mustafabad, Delhi | Bismee Taskin | ThePrint
दिल्ली के पुराने मुस्तफाबाद में चावला पुस्तक का एक दृश्य | बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

अपने आदेश में, दिल्ली अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस संदेह को साबित नहीं कर सका कि अकरम और उसके सह-अभियुक्तों ने दुकान में आग लगा दी. यह दंगों की जांच में “घटिया जांच” और “पूर्व निर्धारित” आरोप-पत्रों को लेकर दिल्ली पुलिस पर अदालतों द्वारा कड़ी कार्रवाई करने का एक और उदाहरण है.

अब घर वापस आकर, अकरम को अपनी गिरफ्तारी और जेल में बिताए समय के बारे में बात करना मुश्किल हो रहा है. लेकिन उनका कहना है कि दंगों ने क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर एक अमिट छाप छोड़ी है.

तीन बच्चों के पिता अकरम कहते हैं, ”दंगों के बाद हवा का रुख बदल गया है. भेद-भाव बढ़ गया है, लेकिन कोशिश जारी है एकता की, आखिर लोग तो हम अब भी वही हैं.”

‘मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल’

दिप्रिंट द्वारा विशेष रूप से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने 2020 के दंगों के संबंध में 757 मामले दर्ज किए. इनमें से, विभिन्न अदालतों ने 183 लोगों को बरी कर दिया है और अन्य 75 को आरोपमुक्त कर दिया है, जैसा कि दिल्ली दंगों की सीरीज़ के पहले भाग में बताया गया है.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि, दिल्ली पुलिस द्वारा 694 मामलों में गिरफ्तार किए गए 2,174 लोगों में से 1,739 वर्तमान में जमानत पर बाहर हैं. इसी तरह, दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा 62 मामलों में गिरफ्तार किए गए 424 लोगों में से 346 लोग जमानत पर हैं.

इस बीच, दंगों की “बड़ी साजिश” की जांच के सिलसिले में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा गिरफ्तार किए गए 21 लोगों में से 12 – जिनमें छात्र कार्यकर्ता और जेएनयू के पूर्व रिसर्च स्कॉलर उमर खालिद भी शामिल हैं – वर्तमान में जेल में हैं.

अकरम की गिरफ्तारी के लिए एक वीडियो ज़िम्मेदार था जिसमें उसको स्टेशनरी की दुकान की ओर भागते हुए देखा गया था.

“पुलिस मेरी दुकान पर आई और मुझे अपने साथ पुलिस स्टेशन चलने के लिए कहा. उन्होंने मुझे यह कहते हुए गिरफ्तार कर लिया कि वीडियो फुटेज में मुझे चावला बुक स्टोर की ओर भागते हुए दिखाया गया है. मैं तो बस ये देखने गया था कि क्या हो रहा है. अकरम कहते हैं, ”वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी.”

Akram Malik's father Toushif sitting outside his scrap shop in Old Mustafabad, Delhi | Bismee Taskin | ThePrint
दिल्ली के ओल्ड मुस्तफाबाद में अपनी कबाड़ी की दुकान के बाहर बैठे अकरम मलिक के पिता तौशिफ | बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

जब पुलिस पहुंची, तो अकरम को लगा कि पुलिस उनसे पूछताछ करना चाहती है क्योंकि मुस्तफाबाद और पास के शिव विहार तिराहा सबसे अधिक प्रभावित स्थानों में से थे. उसे नहीं पता था कि उसे गिरफ़्तार किया जा रहा है.

30 वर्षीय अकरम का कहना है, “वहां (पुलिस स्टेशन) पहुंचने पर उन्होंने मुझे बताया कि मैं इस मामले में आरोपी हूं क्योंकि मुझे एक वीडियो में चावला बुक सेंटर की तरफ भागते हुए देखा गया है.”

गुलशन कुमार ने जो एफआईआर दर्ज कराई थी, वह 4 मार्च की थी – 20 मार्च को उनकी गिरफ्तारी से एक पखवाड़े पहले. अकरम कहते हैं, उस समय उनकी पत्नी सात महीने की गर्भवती थी.

जब उनकी बेटी एक महीने की थी, तब उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया था. अंततः मार्च 2021 में उन्हें ज़मानत दे दी गई.

वह कहते हैं, ऐसी रातें थीं जब उन्होंने सारी उम्मीदें खो दी थीं. वे कहते हैं, ”दंगे के मामलों के सभी आरोपी एक साथ बैठा करते थे और चर्चा करते थे कि दंगे कैसे भड़के और इससे कितना नुकसान हुआ. पहले कुछ हफ्तों तक, हमारे पास (कोई अन्य सेट) कपड़े नहीं थे और मैं 6 फीट से ऊपर का हूं. इसलिए अगर मैं दूसरों से कपड़े उधार भी लूं, तो वे मुझ पर पूरी तरह से फिट नहीं होंते थे.”

लेकिन सबसे बुरा तब हुआ जब पैरोल से लौटने के बाद अकरम को क्वारंटाइन होना पड़ा. यह कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान की बात थी.

उन्होंने कहा, “आपको एक अलग कोठरी में बंद कर दिया जाता था और आपसे बात करने वाला कोई नहीं था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे जेल के अंदर कोई जेल हो,”

फिर भी, अकरम खुद को भाग्यशाली लोगों में गिनते हैं. दिल्ली दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए कई लोगों के विपरीत – जिसमें उनके सह-आरोपी मोहम्मद फुरकान और मोहम्मद इरशाद भी शामिल थे – उनके खिलाफ केवल एक मामला था.

वह कहते हैं, “जिन अन्य लोगों पर आरोप लगाया गया है उनमें से अधिकांश के खिलाफ कई मामले हैं. मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली रहा क्योंकि उन्होंने मुझे केवल एक मामले में बुक किया.”

अकरम की गिरफ्तारी से चावला बुक सेंटर के साथ उनके संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है. उन्होंने बताया कि एफआईआर में किसी का नाम नहीं है.

अकरम अपने पड़ोसियों के बारे में कहते हैं, ”हम उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. हम सभी वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं. हम अभी भी उनकी दुकान से स्टेशनरी खरीदते हैं.”


यह भी पढ़ेंः दिल्ली दंगों के 4 साल — ‘घटिया जांच, गलत आरोप पत्र’, 183 बरी और 75 आरोपमुक्त


‘बनावटी’ दावा

अदालत द्वारा बरी किए जाने के आदेश के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, फुकरान और इरशाद की पहचान, अभियोजन पक्ष के गवाह कांस्टेबल पवन कुमार ने 400-500 की भीड़ में से की थी. आदेश में इस गवाह के हवाले से कहा गया है कि भीड़ “कुछ ज्वलनशील पदार्थ ले जा रही थी” और उसने दुकान में आग लगा दी थी.

अदालत के आदेश से पता चलता है कि अकरम को एक “गुप्त मुखबिर” और अभियोजन पक्ष के एक अन्य गवाह के आधार पर गिरफ्तार किया गया. यह गवाह मौके पर मौजूद अमित नाम का एक कांस्टेबल था, जिसने शिव विहार तिराहे पर मौजूद एक सीसीटीवी फुटेज से उसकी पहचान की थी.

इस गवाह के अनुसार, अकरम “अपने हाथ लहरा रहा था और भीड़ के अन्य सदस्यों को बुला रहा था” और “पेट्रोल बम फेंक रहा था”.

कोर्ट के आदेश के मुताबिक, कांस्टेबल अमित ने 6 मार्च को अकरम की पहचान की थी, लेकिन उसे 20 मार्च को गिरफ्तार किया गया था. यह आदेश मामले में गवाहों की सत्यता पर भी संदेह पैदा करता है.

“उस स्थिति में, 20.03.2020 को, आईओ के लिए गुप्त मुखबिर द्वारा आरोपी अकरम की पहचान कराने की कोई ज़रूरत नहीं थी. इस स्थिति में 24.02.2020 को अकरम की पहचान करने के संबंध में पीडब्लू7 (अमित) का दावा बनावटी होने की संभावना है.” अदालत ने आगे कहा कि किसी भी पुलिसकर्मी की गवाही पर भरोसा करना “सुरक्षित नहीं” है.

स्थायी प्रभाव

अकरम के बरी होने के बावजूद, मलिक परिवार अभी भी जो कुछ हुआ उससे हिल गया है. अकरम के 75 वर्षीय पिता तौशिफ को अपने बेटे की गिरफ्तारी के बारे में बात करना मुश्किल लगता है. लेकिन अपने बेटे की तरह, वह स्टेशनरी दुकान मालिकों के खिलाफ हुई घटना को स्वीकार नहीं करते.

तौशिफ कहते हैं कहा, “हम किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ऐसा क्यों करेंगे जिसे हम वर्षों से जानते हैं? उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरे बेटे ने ऐसा किया है तो हम इसे उनके खिलाफ कैसे मान सकते हैं? हम केवल आगे बढ़ने की कोशिश कर सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं कि ऐसा दोबारा कभी न हो.”

दंगों को लगभग चार साल हो गए हैं और अब जनजीवन सामान्य होता दिख रहा है. लेकिन घाव अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं. अकरम के लिए, इसका मतलब इस जानकारी के साथ जीना है कि अदालत से बरी होने के बावजूद लोग उसे एक दंगाई के रूप में देखते हैं.

वह कहते हैं, ”यह वैसा नहीं हो सकता जैसा दंगों से पहले हुआ करता था. हर कोई हिंसा के बाद की स्थितियों से निपटने की कोशिश कर रहा है और सामान्य जीवन की और लौट रहा है. दंगाई का टैग कुछ समय तक रहेगा और मैं इसके साथ जीने की पूरी कोशिश कर रहा हूं.”

इन चार वर्षों में चावला बुक सेंटर को फिर से अपने पैरों पर खड़े होते देखा गया है. 2020 में दंगे शुरू होने पर गुलशन कुमार और उनका परिवार चले गए. वे कुछ दिनों बाद एक बदली हुई जगह पर वापस आ गए.

गुलशन कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ”हमने कभी नहीं देखा कि वे कौन थे, और हम नहीं जानते कि वास्तव में यह किसने किया. यह स्पष्ट रूप से वैसा नहीं हो सकता जैसा फरवरी 2020 से पहले हुआ करता था. लोगों ने जीवन और आजीविका खो दी है. उसके निशान अभी भी बाकी हैं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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