scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमहेल्थवुहान लैब से लिंक के चलते US का इकोहेल्थ हुआ विवादित, अगस्त 2020 से मोदी सरकार के साथ कर रहा काम

वुहान लैब से लिंक के चलते US का इकोहेल्थ हुआ विवादित, अगस्त 2020 से मोदी सरकार के साथ कर रहा काम

न्यूयॉर्क स्थित इकोहेल्थ एलायंस संगठन गेट्स फाउंडेशन अनुदान के माध्यम से पशुपालन विभाग को तकनीकी सहायता मुहैया करा रहा है, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि इसे जल्द ही वापस लिया जा सकता है.

Text Size:

नई दिल्ली: न्यूयॉर्क स्थित एनजीओ इकोहेल्थ एलायंस, जो अमेरिकी नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट (एनआईएच) से मिला अनुदान चीन के वुहान में विवादास्पद गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च को फंड करने में इस्तेमाल किए जाने के कारण आलोचनाओं के घेरे में है, अगस्त 2020 से ही जानवरों से मनुष्यों को होने वाली जूनोटिक बीमारियों से निपटने के उद्देश्य से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एकीकृत प्लेटफॉर्म तैयार करने में भारत सरकार की सहायता कर रहा है.

अब जबकि दुनियाभर ने इस बारे में कड़े सवाल पूछने तेज कर दिए हैं कि कोरोनोवायरस की उत्पत्ति कैसे हुई और क्या इस महामारी के पीछे चीन स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से लैब लीक एक वजह है, इकोहेल्थ एलायंस (ईएचए) की भूमिका विश्व स्तर पर ‘थर्ड पार्टी’ के तौर पर जांच के घेरे में है, जिसका इस्तेमाल एंथोनी फाउसी के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (एनआईएआईडी), जो एनआईएच का हिस्सा है, की तरफ से वुहान इंस्टीट्यूट में घातक वायरस रिसर्च को फंड करने के लिए किया जाता रहा है.

ईएचए के प्रमुख डॉ. पीटर दासजक भी संदेह के घेरे में हैं क्योंकि उन्होंने ही फरवरी 2020 की शुरुआत में लांसेट में प्रकाशित उस ओपन लेटर का मसौदा तैयार किया था, और हस्ताक्षर किए थे, साथ ही 12 अन्य वैज्ञानिकों का समर्थन हासिल किया था जिसमें वायरस के लैब से लीक होने संबंधी किसी भी संभावना पर चर्चा को खत्म करने की जरूरत बताई गई थी.

‘वन हेल्थ’ प्लेटफॉर्म स्थापित करने में भारत सरकार की सहायता के लिए ईएचए को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) से 1.5 मिलियन डॉलर का अनुदान मिला था. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक फाउंडेशन अब इस पर फिर गंभीरता से विचार कर रहा है और अनुदान वापस ले सकता है.

पिछले हफ्ते दिप्रिंट ने जब प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया तो तो पशुपालन विभाग के सचिव, अतुल चतुर्वेदी ने कहा, ‘हम पशुधन क्षेत्र में एक प्रोजेक्ट के लिए बीएमजीएफ के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं और उनके साथ एक एमओयू हस्ताक्षर की प्रक्रिया में है. यह तकनीकी सहयोग संबंधी समझौता है, हमें उनसे कोई पैसा नहीं मिल रहा है. उन्होंने हमारी सहायता के लिए ईएचए को थर्ड पार्टी एजेंसी के रूप में काम पर रखा है.’

ईएचए एक ग्लोबल कंसोर्टियम का हिस्सा है जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-डेविस, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी, और कोलंबिया यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर इंफेक्शन एंड इम्युनिटी शामिल हैं और जिनके पास संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे को रोकने, उनकी पहचान करने और उसके अनुरूप कदम उठाने के लिए वनहेल्थ प्लेटफॉर्म विकसित करने में 30 देशों में काम करने का अनुभव है.

वनहेल्थ प्रोजेक्ट में ईएचए की मौजूदगी पर चतुर्वेदी ने स्पष्ट किया कि यह एक एजेंसी के तौर पर शामिल है जिसके पास इस काम की तकनीकी जानकारी है.

हालांकि, इस बातचीत के कुछ दिनों बाद ही चतुर्वेदी ने दिप्रिंट से संपर्क किया और बताया, ‘मुझे अभी-अभी मेरे अधिकारियों की तरफ से मौखिक जानकारी मिली है कि अनुदान बंद किया जा सकता है.’

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, ‘वन हेल्थ’ मल्टी-सेक्टोरल एलीमेंट के साथ कार्यक्रमों, नीतियों, नियमों और अनुसंधान को डिजाइन करने और उन पर अमल संबंधी जमीनी नियम निर्धारित करता है. नियम उन सेक्टर के बीच बेहतर संचार और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए हैं, जो आमतौर पर शायद ही कभी एक-दूसरे से संपर्क करते हो—उदाहरण के तौर पर पशु चिकित्सक और मानव स्वास्थ्य कार्यकर्ता.

डब्ल्यूएचओ का कहना है, ‘वन हेल्थ की पहल जिन कार्य क्षेत्रों में खास तौर पर प्रासंगिक है, उनमें खाद्य सुरक्षा, जूनोस (ऐसी बीमारियां जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकती हैं, जैसे फ्लू, रेबीज और रिफ्ट वैली फीवर) पर नियंत्रण, और एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंस (जब एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आने पर बैक्टीरिया में बदलाव आ जाता है और उसका इलाज और ज्यादा कठिन हो जाता है) का मुकाबला करना आदि शामिल है.

दिप्रिंट ने जब भारत सरकार और ईएचए के साथ साझेदारी के बारे सवालों के साथ बीएमजीएफ से संपर्क साधा तो एक प्रवक्ता ने कहा कि अनुदान तीन साल की अवधि के लिए दिया गया था.

फाउंडेशन ने मंगलवार को कहा, ‘अगस्त 2020 में इकोहेल्थ एलायंस (ईएचए) को हमारी तरफ से अनुदान तीन साल की अवधि के लिए दिया गया था, और अनुदान राशि 1.5 मिलियन डॉलर है. अनुदान पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा उनकी प्राथमिकताओं के हिसाब से एक नेशनल वन हेल्थ प्लेटफॉर्म विकसित करने में तकनीकी सहायता प्रदान करने पर केंद्रित था. घरेलू संस्थाओं के साथ काम को तरजीह देने के गेट्स फाउंडेशन के नजरिये के तहत डीएएचडी को सहयोग के लिए एक नए भारत आधारित भागीदार को बदला जा रहा है.’

फाउंडेशन ने 2 जून को जो मूल बयान जारी किया था, उसमें नए पार्टनर की तलाश की योजना का जिक्र नहीं था. घरेलू संस्थाओं के साथ काम करने का निर्णय अमेरिकी भागीदार को अनुदान दिए जाने के 10 महीने बाद आया है, और ऐसे समय में किया गया है जब वह संगठन विवादों में घिर गया है.


यह भी पढ़ेंः P.2, COVID स्ट्रेन जो पहली बार ब्राजील में पाया गया था वो मूल रूप से अधिक घातक है: ICMR Study


ईएचए वैश्विक जांच के घेरे में

ईएचए पर्यावरण स्वास्थ्य पर काम करने वाला एक ग्लोबल एनजीओ है जो वन्यजीवों को बीमारियों से बचाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए समर्पित है. इसका नेतृत्व एक जाने-माने पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ और उभरती बीमारियों पर काम कर रहे डॉ. पीटर दासजक कर रहे हैं जो कंजरवेशन मेडिसिन से जुड़े संस्थापकों में भी शामिल है—जो पर्यावरण संरक्षण से संबंधित ऐसी कोशिश है जो जनस्वास्थ्य चुनौतियां को कम कर सकता है.

बताया जाता है कि दासजक 2020 के शुरुआत में लांसेट में प्रकाशित खुले पत्र के आयोजक थे, जिस पर अन्य प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने भी हस्ताक्षर किए गए थे, और उन्होंने ऐसी किसी भी परिकल्पना को खारिज कर दिया था, जिसकी उस समय सार्स-कोव-2 वायरस चीन की लैब से लीक होने की संभावना हो सकती थी.

दासजक हस्ताक्षर करने वालों में शामिल थे, और पत्र में कहा गया था कि उनके ‘विचारों में कोई मतभेद नहीं’ है. लेकिन उसके बाद सामने आए तथ्य बताते हैं कि ईएचए वास्तव में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में फंक्शन रिसर्च का लाभ हासिल करने के लिए उसकी फंडिंग कर रहा था.

‘गेन ऑफ फंक्शन’ ऐसी रिसर्च से जुड़ा क्षेत्र है जिसमें वायरस के म्यूटेशन के कारण माइक्रोऑर्गनिज्म की बढ़ती पीढ़ियों पर फोकस किया जाता है. इन प्रयोगों को ‘गेन ऑफ फंक्शन’ कहा जाता है क्योंकि इनमें पैथोजन में इस तरह से बदलाव किया जाना शामिल होता है कि वे किसी फंक्शन में या उसके जरिये कुछ वृद्धि हासिल करते हैं जैसे कि संक्रामक क्षमता बढ़ जाना आदि.

इसका मतलब यह है कि एक उदासीन पक्ष बने रहने के बजाये डॉ दासजक की रुचि इस बात में ज्यादा थी कि दुनिया की निगाहें इस बात से हट जाएं कि लैब लीक की कोई संभावना हो सकती है.

वैज्ञानिकों ने खुले पत्र में लिखा था, ‘इस महामारी पर रैपिड, खुला और पारदर्शी डाटा साझा किए जाने को इसकी उत्पत्ति के संबंध में अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं से खतरा है. हम साजिश संबंधी ऐसे आरोपों की कड़ी निंदा के लिए एकजुट हैं, जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 की उत्पत्ति प्राकृतिक नहीं है.

उन्होंने आगे लिखा था, ‘कई देशों के वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस-2 (सार्स-कोव-2) के प्रेरक एजेंट के जीनोम का विश्लेषण किया है और उसे प्रकाशित किया है और उनसे काफी हद तक यही निष्कर्ष निकलता है कि इस कोरोनावायरस की उत्पत्ति वन्यजीवों में ही हुई है जैसा कि पैथोजन उभरने में होती है. एक पत्र के जरिये यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन के अध्यक्षों और उनके प्रतिनिधित्व वाले वैज्ञानिक समुदायों की तरफ से भी इसका समर्थन किया गया है.’

हस्ताक्षर करने वाले तमाम प्रमुख लोगों को धन्यवाद देने वाले इस पत्र ने वायरस की उत्पत्ति पर किसी सार्थक अनुसंधान को रोकने की कोशिश ऐसे समय में की थी जबकि डब्ल्यूएचओ की तरफ से कोविड-19 को महामारी घोषित किया जाना भी बाकी था.

इन वैज्ञानिकों ने वायरस के कई देशों में पहुंचने से पहले ही ऐसे दावे किए थे और वास्तविकता यह है कि सार्स-सीओवी-2 की उत्पत्ति के बारे में आज तक कोई वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है.

दिप्रिंट ने ईएचए को अपनी प्रतिक्रिया के लिए एक ईमेल भेजा है लेकिन इस पर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


यह भी पढ़ेंः कोरोनावायरस इंसानों में कैसे ‘फैला’, चीन के लैब से लीक होने की जांच की मांग बढ़ रही


ईएचए ने पहले भी भारतीय सहयोग का प्रयास किया है

पशुपालन विभाग, जो कि कृषि मंत्रालय के अधीन आता है, के साथ जहां ईएचए का सहयोग जारी है वहीं, इसके पहले भी इस संगठन और भारत के राज्यों के बीच सहयोग स्थापित करने के प्रयास किए जा चुके हैं.

उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि 2014 में एक बार ईएचए के साथ महाराजगंज जिले में प्रिटिक्ट (पीआरईडीआईसीटी) नामक टूल पर एक पायलट प्रोजेक्ट की कोशिश की गई थी. यूसी डेविस वेटरनरी मेडिसिन वन हेल्थ इंस्टीट्यूट के अनुसार, प्रिडिक्ट उभरती महामारियों के खतरे (ईपीटी) कार्यक्रम पर यूएसएड का एक प्रोजेक्ट है, जिसे 2009 में इंसानों और जानवरों को होने वाली बीमारियों को महामारी की तरह फैलाने वाले वायरस का पता लगाने की वैश्विक क्षमता को मजबूत करने के लिए शुरू किया गया था.

यूपी में संस्थागत स्तर पर इस प्रयोग को लगभग भुला दिया गया है क्योंकि इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि प्रोजेक्ट का क्या हुआ था. यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मैंने प्रिटिक्ट पर जानकारी ली है. 2014 में किसी समय महाराजगंज में एक प्रोजेक्ट था. लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ और किसी को इस पर खास जानकारी नहीं है कि इसमें क्या हुआ था. हमने इसे कभी भी कोविड के लिए इस्तेमाल नहीं किया.’

ईएचए की वेबसाइट में केरल में निपाह का पता लगाने के लिए एफएलआईआरटी नामक एक अन्य ट्रैकिंग टूल के उपयोग का भी जिक्र किया गया है. एफएलआईआरटी हवाई यातायात के आधार पर किसी संक्रामक रोग के प्रसार की मैपिंग से संबंधित है.

राजीव सदानंदन, जो 2018 के निपाह के प्रकोप के दौरान केरल में प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य थे, ने दिप्रिंट को बताया, ‘एफएलआईआरटी को इम्पीरियल कॉलेज ने विकसित किया था, लेकिन ईएचए के साथ हमारा कभी कोई सहयोग नहीं रहा.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः भारत को तीसरी लहर से निपटने के लिए सर्विलांस बढ़ाना चाहिए, तमाम वैरिएंट पर नजर रखना जरूरी : सौम्या स्वामीनाथन


 

share & View comments