नई दिल्ली: सोमवार को सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, देश भर में कोविड-19 के 1.61 लाख नए मामले और 879 मौतें दर्ज की गईं. साथ ही लगभग हर राज्य से कोविड बेड्स, एंबुलेंस, रेमडिसिविर और ऑक्सीजन सिलिडर्स की कमी की भयावह खबरें सामने आ रही हैं.
ऐसे समय में बहुत से भाजपा नेताओं ने उन सूबों में जहां पार्टी सत्ता में है, अब सरकारी अधिकारियों पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया है कि वो मरीज़ों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया नहीं करा पा रहे हैं.
मसलन, उत्तर प्रदेश कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक ने एंबुलेंस की गैर-उपलब्धता, कोविड बेड्स और टेस्टिंग किट्स की स्थिति को लेकर राज्य के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) को एक पत्र लिखा है और ढिलाई के लिए अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया है.
मध्य प्रदेश में भी, कई बीजेपी विधायकों ने अस्पतालों में ऑक्सीजन और रेमडिसिविर की कमी की शिकायत की है, जबकि एक पूर्व मंत्री ने अतिरिक्त मुख्य सचिव पर ‘आंकड़ों में हेराफेरी’ का आरोप लगाया है.
गुजरात में, प्रदेश बीजेपी प्रमुख सीआर पाटिल के 5,000 रेमडिसिविर इंजेक्शन खरीदकर सूरत में बांटने के कदम ने, उन्हें सीएम विजय रुपाणी से टकराव की राह पर ला खड़ा किया है लेकिन दूसरे नेताओं का कहना है कि अगर ज़िलों के अधिकारी बिस्तरों और दवाओं की कमी पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो पार्टी संगठन को कुछ न कुछ कदम उठाना पड़ेगा.
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उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री का पत्र
यूपी के कानून मंत्री पाठक ने प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) को लिखे अपने पत्र में कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति निराशाजनक है और मुख्यमंत्री का कार्यालय भी मंत्री के फोन कॉल्स का जवाब नहीं दे रहा है. उन्होंने कहा कि राजधानी लखनऊ में भी इलाज या टेस्टिंग की उपयुक्त सुविधाएं नहीं हैं- कोविड रिपोर्ट्स आने में 4-7 दिन लग रहे हैं जबकि एंबुलेंस पहुंचने में 5-6 घंटे लग जाते हैं.
पाठक ने कहा कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (मेडिकल शिक्षा) को शिकायतें करने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है.
मंत्री ने पद्मश्री से सम्मानित लेखक योगेश प्रवीण का हवाला दिया, जिनकी सोमवार को लखनऊ में कोविड-19 से मौत हो गई और कहा कि एंबुलेंस न मिलने की वजह से ऐसा हुआ.
पाठक ने लिखा, ‘मैंने स्वयं मुख्य चिकित्सा अधिकारी को फोन करके, तुरंत एंबुलेंस और इलाज की व्यवस्था करने को कहा लेकिन बहुत ही निराशाजनक है कि उनके फोन करने के बाद भी एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंची और एंबुलेंस की तलाश में ही (योगेश प्रवीण की) मौत हो गई.’
मंत्री ने आगे कहा, ‘कोविड बिस्तरों की कमी है, लखनऊ में निजी लैब्स टेस्ट नहीं कर रही हैं और सरकारी अस्पताल टेस्ट रिपोर्ट कई दिन में दे रहे हैं…टेस्ट किट्स की भी कमी है…एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने मुझे बताया कि हर रोज़ 17,000 किट्स की ज़रूरत होती है लेकिन सिर्फ 10,000 ही उपलब्ध हैं’.
‘मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कोविड बेड्स की संख्या बढ़ाई जाए और पहले की तरह रैंडम टेस्ट शुरू किए जाएं, साथ ही आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट्स 24 घंटे में मिल जानी चाहिए. रेमडfसिविर इंजेक्शन भी मुहैया कराए जाने चाहिए’. अंत में पाठक ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘अगर हमने ध्यान नहीं दिया, तो लखनऊ को लॉकडाउन में जाना पड़ सकता है’.
मंगलवार तक लखनऊ में 27,000 से अधिक एक्टिव मामले थे, जो यूपी में सबसे अधिक हैं. हालांकि प्रयागराज और वाराणसी में सकारात्मकता दर ज्यादा है, जो करीब 15 प्रतिशत है.
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मध्य प्रदेश में आंकड़ों में ‘हेरफेर’
मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी ने एक गंभीर रूप ले लिया है, ख़सकर सूबे की राजधानी भोपाल में- सोमवार को भोपाल में पांच लोग इसी कारण मर गए, जबकि एक अस्पताल ने ऑक्सीजन की कमी के चलते बहुत से मरीज़ों की छुट्टी कर दी.
एमपी सरकार ने भोपाल में सात दिन के कोरोना-कर्फ्यू का ऐलान कर दिया है, जिसे 12-19 अप्रैल के बीच लागू किया जा रहा है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि हर अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित की जाए.
लेकिन, साथी बीजेपी विधायक और पूर्व राज्य स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई ने ज़िलों की एक समीक्षा बैठक के दौरान, ‘हेराफेरी युक्त आंकड़े’ पेश करने के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव मौहम्मद सुलेमान पर सवाल खड़े किए हैं.
जबलपुर के पास पाटन के विधायक, विश्नोई ने सुलेमान से पूछा कि वो मौत के आंकड़े क्यों छिपा रहे हैं, जबकि अकेले जबलपुर में ‘रोज़ाना 15 से 20 तक मौतें हो रही हैं, जबकि उनमें से केवल तीन या चार रिपोर्ट की जा रही हैं’.
विश्नोई ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने उनसे कहा कि इससे (संख्या में हेरफेर) से किसे फायदा पहुंचेगा? लोगों को अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं, ऑक्सीजन नहीं है…ये एक सच्चाई है और छिपाने की बजाय, हमें इसे स्वीकार करना चाहिए’.
पूर्व मंत्री ने आखिरकार सीएम चौहान के दखल देने के बाद अपने हमले बंद किए लेकिन उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने सीएम को स्वास्थ्य अधिकारियों की बदइंतज़ामी के बारे में बताया है…हमारी प्राथमिकता इंसानी ज़िंदगियां बचाना है…अधिकारी लोग बेपरवाह हो गए हैं और उन्हें लगा कि कोविड खत्म हो गया लेकिन नई लहर गंभीर है और इसके प्रकोप को रोकने तथा त्वरित टीकाकरण मुहैया कराने के लिए पूरे सिस्टम को तेज़ी से काम करना होगा’.
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‘अगर अधिकारी ये नहीं कर सकते, तो संगठन को देखना होगा’
गुजरात में मामलों और मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप किया है- सोमवार को राज्य में 6,000 से अधिक मामले और 55 मौतें दर्ज की गईं.
सोमवार को कोर्ट ने राज्य सरकार से रेमडिसिविर और पैरासिटेमॉल की उपलब्धता सुगम बनाने को कहा. कोर्ट ने ज़ाइडस अस्पताल के बाहर लगी दो किलोमीटर लंबी लाइन को लेकर भी बीजेपी सरकार से सवाल किए और पूछा कि कोविड टेस्ट की रिपोर्ट लेने में किसी आदमी को पांच दिन क्यों लगते हैं.
अहमदाबाद के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई न होने की भी खबरें मिली हैं और अहमदाबाद तथा सूरत में लोगों को रेमडिसिविर के लिए लाइनें लगानी पड़ीं. इसके बाद गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने 5,000 रेमडिसिविर इंजेक्शन खरीदकर सूरत में बांट दिए जिसके बाद उनके और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के बीच नोक झोंक भी हुई.
गुजरात से एक बीजेपी सांसद ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट से कहा, ‘स्थिति चिंताजनक है क्योंकि मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने लगी है. राज्य के अधिकारी आश्वस्त थे कि अब चूंकि वैक्सीन आ गई है, तो मामले धीरे-धीरे कम हो जाएंगे लेकिन ताज़ा उछाल ने हमारी स्थिति उजागर कर दी है’.
सांसद ने सीआर पाटिल के फ्री इंजेक्शन बांटने के कदम का, ये कहते हुए बचाव किया कि ‘अगर ज़िला कलेक्टर दवाओं और बिस्तरों की कमी की ओर ध्यान नहीं दे रहा है, तो संगठन (बीजेपी) को कुछ कदम उठाना ही है’.
सांसद ने आगे कहा, ‘सरकारी अधिकारी तवज्जो नहीं दे रहे हैं, उन्हें ज़िम्मेवार बनाना होगा’.
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