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Friday, 19 April, 2024
होमहेल्थ'ना बेड, ना ICU, सारी जगह फुल’- कोविड के मामले बढ़ते ही महाराष्ट्र के अस्पतालों में हालात बदतर हुए

‘ना बेड, ना ICU, सारी जगह फुल’- कोविड के मामले बढ़ते ही महाराष्ट्र के अस्पतालों में हालात बदतर हुए

कोविड टेस्ट नतीजे आने में लगने वाले लंबे समय से लेकर रेमडिसिविर और अस्पताल में जगह हासिल करने तक में आ रही मुश्किलों को देखते हुए मरीजों के परिवार ही नहीं, डॉक्टर तक कहने लगे हैं कि हालात बदतर होते जा रहे हैं.

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पुणे: पुणे निवासी ज्योति केलकर के लिए कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव आई अपनी मां के लिए अस्पताल में काफी मुश्किल से एक बेड तलाश लेना भाग्य के साथ देने से कम नहीं था. पिछले हफ्ते के शुरू में कोविड पॉजिटिव पाई गई 71 वर्षीय उनकी मां की हालत अगले कुछ दिनों में खराब हो गई थी. वह डायबिटीज की रोगी हैं और उनका बुखार बढ़ने के साथ ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था.

केलकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘परसों सुबह (गुरुवार) जब वह सुबह बिस्तर से उठी तो बेहोश होकर गिर गईं. उसकी नाड़ी एकदम धीमी हो गई थी…सुबह से ही हम एक (अस्पताल) बेड की तलाश में जुटे रहे, हर नगर निकाय के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया.’

उन्होंने आगे बताया, ‘कहीं कोई बेड खाली नहीं मिला, ना ऑक्सीजन बेड मिला, ना ही कोई आईसीयू. यहां तक कि जनरल वार्ड भी भरा हुआ था. यह बहुत कठिन काम था लेकिन आखिरकार रात में 1.30 बजे करीब एक अस्पताल में हमें एक बेड मिला…और अब (उनके भर्ती होने के बाद) यह पता लगाने के लिए परेशान हैं कि रेमडिसिविर (कोविड मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा) कहां से मिलेगी.’

पूरे महाराष्ट्र में ही कोविड-19 मरीजों के परिवारों की कहानी ज्योति की तरह ही है. राज्य इस समय कोविड-19 मामलों में उछाल के मामले में निश्चित तौर पर सबसे खराब स्थिति में है. राज्य में रविवार को 63,294 नए मामले सामने आए और 349 मौतें हुईं.

कोविड केस तेजी से बढ़ने के साथ बेड से लेकर रेमडिसिविर की कमी और टेस्ट के नतीजे आने में लगने वाले लंबे समय के बीच राज्य ने मरीजों को संभालने का पूरा जिम्मा डॉक्टरों, अस्पतालों और स्थानीय प्रशासन को सौंप रखा है.

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बेड की कमी

मुंबई में कोविड हेल्थ सेंटर (डीसीएचसी) और डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल (डीसीएच) में 2529 आईसीयू बेड में से 89 और 1,302 वेंटिलेटर बेड में से 32 ही उपलब्ध हैं. मौजूदा समय में 79.5 फीसदी बेड पर मरीज हैं.

पुणे में कोविड-19 के लिए निर्धारित कुल 22,316 बेड में से लगभग 17.2 प्रतिशत मौजूदा समय में उपलब्ध हैं, जिसमें 33 वेंटिलेटर बेड और 216 आईसीयू बेड (वेंटिलेटर सुविधा के बिना) शामिल हैं.

सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में शुमार नागपुर में लगभग 4.4 प्रतिशत बेड ही खाली हैं.

बेड के लिए मची मारामारी के बीच शहरों के नगर निकायों ने मरीजों की मदद के लिए अपने प्रयास खासे तेज कर दिए हैं. उदाहरण के तौर पर पुणे में लोग पुणे नगर निगम (पीएमसी) की तरफ से स्थापित डैशबोर्ड को देखकर यह पता लगा सकते हैं कितने आइसोलेशन बेड, ऑक्सीजन के साथ आइसोलेशन बेड, बिना वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड और वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड उपलब्ध हैं. इसके आधार पर स्थानीय नागरिक निकायों की ओर से संचालित हेल्पलाइन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं.

इसी प्रकार, मुंबई में ग्रेटर मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (एमसीजीएम) ने बेड आवंटन में मदद के लिए 24 वार्ड वॉर रूम स्थापित किए हैं.

हालांकि, डॉक्टरों ने कहा कि स्थानीय प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद मरीजों को बेड हासिल करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

पुणे स्थित रूबी हॉल क्लिनिक में गहन चिकित्सक डॉ. प्राची साठे ने कहा, ‘यह भयावह है. मेरा फोन लगातार बज रहा है और हर तरह के बेड, वेंटिलेटर बेड, ऑक्सीजन बेड, गैर-ऑक्सीजन बेड सभी के लिए है. लगातार बेड की मांग की जा रही है लेकिन बेड उपलब्ध नहीं हैं और हर जगह लोगों को बेड की तलाश है. एक पोर्टल है लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे लोगों को कुछ खास सहायता मिल पा रही है.’

कुछ अफरा-तफरी मरीजों और उनके परिवार के लोगों की घबराहट के कारण भी हो रही है.

दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के गहन चिकित्सा सलाहकार डॉ. समीर जोग ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पर वास्तव में अधिक से अधिक (मरीजों) को भर्ती करने का दबाव रहता है…हल्के लक्षणों वाले कई मरीज अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं क्योंकि उनका चिकित्सा बीमा है और वह घर पर नहीं रहना चाहते क्योंकि वे और उनके रिश्तेदार घबरा रहे होते हैं. कई निजी अस्पतालों को इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है.’

Ambulance drivers at Yashwantrao Chavan Memorial Hospital (YCMH) in Pune | Angana Chakrabarti
पुणे के यशवंत राव चव्हाण मेमोरियल अस्पताल में खड़े एंबुलेंस ड्राइवर | अंगना चक्रवर्ती

दिप्रिंट ने पुणे स्थित एक डॉक्टर से भी बात की, जिसने बताया कि कोविड जैसे लक्षणों के बाद उनके ससुर को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए उनके परिवार को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

उन 71 वर्षीय बुजुर्ग की हालत बिगड़ने पर ‘बड़ी मुश्किल से’ शनिवार सुबह एक अस्पताल में भर्ती कराया जा सका. हालांकि, परिवार को उसके लिए आईसीयू बेड नहीं मिल पाया. उन्हें जनरल वार्ड में ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ एक बेड दिया गया.

पुणे की डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘इस बीच, मैं लगातार एमसीजीएम को फोन कर रही थी, अपनी जानकारी ऑनलाइन (आईसीयू बेड के लिए) भर रही थी और साथ ही रेमडिसिविर इंजेक्शन की भी तलाश कर रही थी. मैंने कांदिवली और विक्टोरिया टर्मिनस के बीच आठ से अधिक अस्पतालों को फोन लगाया लेकिन कहीं कुछ भी उपलब्ध नहीं था.’

रविवार तक इन 71 वर्षीय बुजुर्ग को आईसीयू बेड वाले अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा सका था. उन्होंने बताया, ‘अब उनकी हालत गंभीर है और उन्हें नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन पर रखा गया है. यह हृदयाघात जैसी स्थिति ज्यादा लग रही है, लेकिन उनके कई अन्य अंग भी प्रभावित हुए हैं. मुझे नहीं पता कि यह भर्ती होने में देरी के कारण हुआ है या फिर कोमोर्बिडिटी के शिकार मरीज पर कोविड का असर….मैं भगवान से यही मनाती हूं कि किसी और को इस स्थिति का सामना न करना पड़े.’


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टेस्ट में देरी

पुणे की उक्त डॉक्टर के मुताबिक, कोविड संक्रमण की जांच के लिए उसके ससुर का रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) टेस्ट प्रक्रिया में पांच दिन का समय लग गया.

उन्होंने कहा, ‘जब हमें रिपोर्ट मिली, आरटी-पीसीआर निगेटिव आया, हालांकि सीटी स्कैन में इसका संकेत मिला है कि यह कोविड हो सकता है क्योंकि फेफड़े प्रभावित हुए थे. इससे बेड के आवंटन को लेकर काफी भ्रम की स्थिति बनी रही.’

मुंबई और पुणे के लोगों ने कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट मिलने में लग रही देरी को लेकर ट्विटर पर भी कई टिप्पणियां की हैं.

पत्रकार बरखा दत्त ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, ‘आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने की कोशिश कर रही हूं, जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए सुबह मुंबई की फ्लाइट ली. कहीं उपलब्धता नहीं है, आंखों-देखी हालात तो यही दर्शाते हैं कि पूरा सिस्टम काम के बोझ से बेहाल हो गया है. लेकिन टीकाकरण की तरह ही टेस्टिंग पर भी पूरा ध्यान देने की जरूरत है.’

एक अन्य ट्विटर यूजर, आनंद टेके ने भी लिखा, ‘कोविड टेस्ट के लिए पुणे की चार शीर्ष लैब का दौरा किया. कहीं भी एंटीजन टेस्ट जल्दी नहीं हो रहा है और आरटी-पीसीआर के लिए सभी को 2-3 दिनों की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है.’

पुणे के एक प्रमुख क्लिनिक और डायग्नोस्टिक्स सेंटर के डॉक्टर ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले महीने से आरटी-पीसीआर टेस्ट की मांग में 400-500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

उन्होंने कहा, ‘उनमें से 20 प्रतिशत ऐसे मामले आ रहे हैं जो कि सिमप्टोमैटिक हैं, पांच प्रतिशत परिचित-परिजनों के संपर्क में रहने के कारण कांटैक्ट ट्रेसिंग वाले मामले हैं. बाकी 75 फीसदी केस ऐसे हैं, जो काम या यात्रा के लिए एक निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य होने के कारण जांच कराने आ रहे हैं…मौजूदा समय में जांच की प्रक्रिया 48 घंटे पीछे चल रही है.’

दिप्रिंट ने इस बाबत डॉ. लाल पैथलैब्स से भी संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

कई राज्यों ने महाराष्ट्र से बाहर आने-जाने वाले यात्रियों के लिए निगेटिव आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट अनिवार्य कर दी है. महाराष्ट्र सरकार ने यह भी कहा था कि किसी भी सेक्टर में काम कर रहे उन कर्मचारियों, जिन्हें टीका नहीं लगा है, के लिए 15 दिन के अंतराल पर आरटी-पीसीआर टेस्ट कराना अनिवार्य होगा जब तक कि उन्हें टीका नहीं लग जाता. बाद में उद्योगों की तरफ से इस आदेश का विरोध किए जाने पर रैपिड एंटिजेन टेस्ट का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई.


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‘हमें तैयार रहना चाहिए’

पुणे और मुंबई में स्थानीय प्रशासन ने कहा कि वे और बेड बढ़ाने और जंबो अस्पताल खोलने (कई मामलों में फिर से खोलने) की प्रक्रिया में हैं. मुंबई और पुणे में पिछले साल सितंबर में कोविड की पहली लहर के दौरान बड़े अस्थायी कोविड उपचार केंद्र खोले गए थे. शहरों में कोविड के केस घटने के बाद ये जंबो अस्पताल बंद कर दिए गए थे.

पुणे नगर निगम के आयुक्त विक्रम कुमार ने कहा, ‘हम ज्यादा से ज्यादा गैर-कोविड बेड को कोविड बेड में बदल रहे हैं. पहले कोविड केंद्रों की सूची में नहीं रखे छोटे अस्पतालों को भी अब इसमें शामिल किया जाएगा.’

इस बीच, एमसीजीएम आयुक्त इकबाल सिंह चहल ने व्हाट्सएप पर संवाददाताओं के साथ साझा की गई एक सूचना में बताया कि निगम डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर और डेडिकेटेड कोविड अस्पतालों में 1,100 अतिरिक्त बेड की व्यवस्था करेगा और अगले पांच से छह सप्ताह में तीन जंबो अस्पताल बनाएगा. चहल ने कहा, ‘सभी लैब को बिना किसी नाकामी के 24 घंटे काम होना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है.’

हालांकि, चिकित्सक बिरादरी के कुछ लोगों का मानना है कि राज्य प्रशासन को कोविड की ताजा लहर को संभालने के लिए और बेहतर ढंग से तैयार होना चाहिए.

एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट्स, मुंबई के अध्यक्ष डॉ. दीपक बैद्य का कहना है, ‘अस्पताल के बुनियादी ढांचे में जल्द सुधार होना चाहिए था. अगर आज सात से नौ बेड वाला आईसीयू है, तो इसे अब तक बढ़ाकर 27 बेड वाले में तब्दील कर दिया जाना चाहिए था. पिछले एक साल में यह करना संभव था जिसमें हम कोविड के खिलाफ जंग लड़ते रहे हैं….इस स्थिति से बचा जा सकता था.’

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महाराष्ट्र चैप्टर के पिछले अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे भी इससे सहमति जताते हैं.

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने राज्य भर में जंबो अस्पताल बंद कर दिए थे. अब जब संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है, तो उन्होंने ऐसी सुविधाएं फिर खोलनी शुरू कर दी हैं… इन्हें बंद करने का निर्णय प्रशासनिक था. उन्हें इन सुविधाओं का इस्तेमाल अन्य मरीजों, खासकर ओपीडी वालों के लिए करना चाहिए था, जिन्हें अस्पतालों में इलाज की सुविधा नहीं मिल पा रही है. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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