नई दिल्ली: जेएनयू में मॉलीक्युलर मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर गोबर्धन दास का कहना है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की तरफ से हाल में जारी अध्ययन, जिसमें बेसिलस कैलमेट-गुइरिन (बीसीजी) वैक्सीन को बढ़ी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से जोड़ा गया है, इस बात का कोई आकलन नहीं करता है कि क्या यह वैक्सीन कोविड-19 के खिलाफ असरदार है.
प्रोफेसर दास कोविड के खिलाफ बीसीजी वैक्सीन के असरदार होने संबंधी सिद्धांत के शुरुआती समर्थकों में शामिल रहे हैं और इस पर नेचर जर्नल में एक पेपर भी प्रकाशित करा चुके है.
प्रोफेसर दास ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, इस अध्ययन में वे दिखाते हैं कि बीसीजी जन्मजात प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है…किसी भी स्थिति में कोई इसे किसी संक्रमण विशेष से नहीं जोड़ सकता है. एडॉप्टिव इम्यूनिटी हमेशा एंटीजन विशिष्टता के साथ कारगर होती है. इस अध्ययन से वह क्या पता लगाना चाहते हैं, वे जो बता रहे हैं कि वह सिर्फ अंदाजा लगाने जैसा है. कोविड से इसका कोई संबंध नहीं है, कम से कम इस अध्ययन में तो नहीं. अगर उन्होंने बीसीजी के अलावा किसी और चीज को भी इंजेक्ट किया होता, तो भी उन्हें नतीजा ऐसा ही दिखाई देता. यद्यपि इसे कोविड-19 प्रतिरक्षा के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन यह सही नहीं है.’
चेन्नई स्थित आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस (एनआईआरटी) के एक अध्ययन ने दर्शाया है कि मुख्यत ट्यूबरकुलोसिस में इस्तेमाल होने वाली बीसीजी वैक्सीन को बुजुर्ग व्यक्तियों पर इस्तेमाल करने से उनकी इनेट और एडॉप्टिव इम्यूनिटी बढ़ सकती है, जो कि इस अध्ययन के मुताबिक नोवेल कोरोना वायरस से बचाव में मदद कर सकती है.
‘रिकॉम्बिनेंट बीसीजी का प्रस्ताव दिया था’
प्रो. दास बताते हैं कि मार्च के शुरू में उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, आईसीएमआर और अन्य सरकारी एजेंसियों को भेजे एक प्रस्ताव में लिखा था कि विशिष्ट प्रतिरोधी प्रक्रिया बढ़ाने के लिए रिकॉम्बिनेंट बीसीजी के साथ परीक्षण करें जो कि सार्स-कोव-2 वायरस के एक एंटीजेन का इस्तेमाल करता है. हालांकि, वह कहते हैं कि उन्हें अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं मिला है.
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उन्होंने कहा, ‘मार्च मध्य में मैंने आईसीएमआर, विज्ञान मंत्रालय आदि को स्वास्थ्य कर्मियों, डॉक्टरों और बुजुर्गों जैसे ज्यादा जोखिम वाले वर्गों के बीच बीसीजी के पुन: टीकाकरण के लिए लिखा था. अच्छी बात यह है कि बाद में कई स्थानों पर इसे क्लीनिकल ट्रायल के दौरान अपनाया भी गया, हालांकि मैं इसमें शामिल नहीं हूं. भारत ने इसकी पहल की इसलिए यह एक अच्छी बात है …मैं केवल आईसीएमआर ही नहीं बल्कि अन्य कई प्राधिकरणों से इस बारे में संवाद करने वाला पहला व्यक्ति था. मैं आईसीएमआर अध्ययन में शामिल नहीं था. मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझे शामिल क्यों नहीं किया, हालांकि यह उनका विशेषाधिकार है. मैं इसके बीच संबंध के बारे में संकेत देने वाला पहला व्यक्ति था.’
वह बिहार के आंकड़ों के संदर्भ में स्वच्छता को लेकर अटकलें लगाने का भी जिक्र करते हैं जहां विधानसभा चुनाव के दौरान तमाम बार कथित तौर पर कोविड प्रोटोकॉल का जमकर उल्लंघन होने के बावजूद मृत्युदर और एक्टिव केस की दर देश में सबसे कम है. वह भी इस तथ्य के बावजूद कि बिहार में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा देश में सबसे खस्ताहाल है.
प्रोफेसर दास का कहना है कि हो सकता है कि राज्य में स्वच्छता के निम्न स्तर ने लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण झेलने के लिहाज से मजबूत कर दिया हो. यह सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के एक नए पेपर के हाल में आए प्री-प्रिंट अध्ययन का एक विषय भी है.
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