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Sunday, 5 May, 2024
होमहेल्थकोविड का असर: सरकार ने SC को बताया ऑक्सीजन बेड सात गुना बढ़े, आईसीयू बेड में 44 गुना इजाफा

कोविड का असर: सरकार ने SC को बताया ऑक्सीजन बेड सात गुना बढ़े, आईसीयू बेड में 44 गुना इजाफा

सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे से ऐसा लगता है कि कोविड महामारी शुरू होने के बाद स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे में कमियां इस तरह दूर की गई हैं, जैसा पहले कभी नहीं किया गया.

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नई दिल्ली: कोविड महामारी भारत के सामने अप्रत्याशित चुनौतियां लेकर आई. लेकिन ऐसा लगता है कि इसने कुछ हद तक देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर कर दिया है.

कोविड मृत्यु प्रमाणपत्र संबंधी एक मामले में शनिवार को गृह मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि देश में कोविड का पहला मामला सामने के आने के बाद से ऑक्सीजन बेड करीब सात गुना बढ़ गए हैं. वहीं, आइसोलेशन बेड में 41 गुना और आईसीयू बेड में 44 गुना का इजाफा हुआ है.

शीर्ष अदालत को बताया गया कि कोविड की चपेट में आने के समय देश में सिर्फ 50,583 ऑक्सीजन बेड थे, लेकिन मौजूदा समय में इनकी संख्या बढ़कर 3,81,758 हो गई है.

Graphic: Ramandeep Kaur/ThePrint

आइसोलेशन बेड की संख्या 41,000 से बढ़कर 17,17,227 हो गई है जबकि आईसीयू बेड की कुल संख्या 2,500 से बढ़कर 1,13,035 पर पहुंच गई है. हलफनामे में यह भी बताया गया कि शुरुआत में सिर्फ 163 कोविड अस्पताल थे, अब इनकी संख्या 4,096 हो गई है.

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इस समय कैटगरी-2 वाले 7,929 कोविड हेल्थ सेंटर और 9,954 डेडिकेटेड कोविड केयर सेंटर भी हैं. ये मूलत: आइसोलेशन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फैसिलिटी हैं जिसमें दाखिल किया जाना इस पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कितना बीमार है. महामारी से पहले इनमें कोई भी फैसिलिटी नहीं थीं.

महामारी के दौरान अतिरिक्त तौर पर इस्तेमाल के लिए देश में 5,601 रेलवे आइसोलेशन कोच भी हैं.

कोविड केयर सेंटर में केवल उन लोगों की देखभाल की जाती है जिन्हें चिकित्सकीय रूप से ‘हल्के’ या बहुत हल्के’ लक्षण वाला या ‘अनुमानत: कोविड’ पीड़ित माना जाता है. डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर ऐसे अस्पताल हैं जहां उन सभी मामलों को देखा जाता है जिन्हें चिकित्सकीय रूप से ‘मध्यम’ लक्षण वाला पाया जाता है. पूरी तरह कोविड पर केंद्रित अस्पताल मुख्य तौर पर उन लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं जिन्हें चिकित्सकीय रूप से ‘गंभीर’ की श्रेणी में रखा जाता है.

सरकार ने कोर्ट को बताया, ‘महामारी की स्थिति से लड़ने के लिए एक तरफ जहां सीमित समय में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे में सुधार—जिसमें बड़े पैमाने पर टेस्ट, इलाज और क्वारंटाइन की व्यवस्था करना और अस्पतालों में ऑक्सीजन युक्त बेड, वेंटिलेटर और आईसीयू जैसी सुविधाएं मुहैया कराना शामिल है—के कदम उठाए गए हैं, वहीं दूसरी तरफ एनडीआरएफ के साथ-साथ देश के संचित कोष से भी धन मुहैया कराया जा रहा है. यह कोविड-19 से निपटने के लिए लगातार जारी प्रयासों का हिस्सा है और संभावित लहरों को देखते हुए इन्हें और भी तेज किया जा रहा है.’

इसमें यह भी बताया गया कि महामारी के दौरान 150,000 से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाएं ली गईं. इसमें 48,453 अन्य सहायक स्टाफ के अलावा 7,024 चिकित्सा अधिकारी, 3,680 विशेषज्ञ, 35,996 स्टाफ नर्स, 1,01,155 कम्युनिटी वॉलंटियर, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और आशा सहायक शामिल हैं.


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देश में स्वास्थ्य पर खर्च बहुत कम

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम खर्च किया जाना देश में बुनियादी ढांचा कमजोर होने की बाध्यताओं का एक कारण रहा है.

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के मुताबिक, भारत अपने आम बजट में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाले 189 देशों में 179वें स्थान पर है. बुनियादी ढांचा सीमित होना भी भारत में अस्पताल में भर्ती होने की दर दुनिया में सबसे कम रहने की एक वजह है.

सर्वे कहता है, ‘3-4 प्रतिशत के साथ भारत में अस्पताल में भर्ती होने की दर दुनिया में सबसे कम है; मध्यम आय वाले देशों में यह दर औसतन 8-9 फीसदी और ओईसीडी देशों में 13-17 फीसदी है.

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2020, जिसमें 31 दिसंबर 2019 को देश में बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे की स्थिति को शामिल किया गया था, के मुताबिक देश में कुल 8,18,396 अस्पताल बेड हैं, लेकिन ऑक्सीजन सपोर्ट वाले और आईसीयू बेड का ब्रेकअप नहीं दिया.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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