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Thursday, 28 March, 2024
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‘सड़क मेरी है और मैं उड़ रही हूं’, कैसे DTC के पुरुष ड्राइवर्स को है महिलाओं की असफलता का इंतज़ार

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की नई महिला ड्राइवर्स हर चैलेंज के लिए तैयार हैं वह यहां डटे रहने के लिए आई हैं, और वो मैदान छोड़कर भागने वाली नहीं हैं.

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दिल्ली की सड़कों पर डीटीसी की बसों के स्टेयरिंग एक ज़माने में केवल पुरुषों के हाथ में देखे जाते थे, लेकिन शबनम और योगिता आज इस परंपरा को तोड़ते हुए कंधे से कंधा मिलाकर बसें चला रही हैं.

हालांकि, इन महिला ड्राइवरों के पुरुष सहकर्मी इस बात से खासे नाराज़ हैं और उनमें से कई चाहते हैं कि शबनम और योगिता ड्राइविंग में सफल न हो पाएं. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा कि महिलाएं भीड़ भाड़ वाली दिल्ली की सड़कों पर बस को चला सकती हैं.

लेकिन, दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की नई महिला ड्राइवर्स हर चैलेंज के लिए तैयार हैं वह यहां डटे रहने के लिए आई हैं, और वो मैदान छोड़कर भागने वाली नहीं हैं.

शबनम और योगिता उन 13 महिला ड्राइवरों में से हैं, जिन्हें डीटीसी ने पिछले शुक्रवार को अपॉइंटमेंट लैटर दिए थे, इसके साथ ही डीटीसी की 15 हज़ार से अधिक ड्राइवरों वाले बेड़े में महिला ड्राइवरों की संख्या 34 हो गई है. हालांकि, दिल्ली में हैवी मोटर व्हिकल (एमचएमवी) चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार की ओर से शुरू किए गए ”मिशन परिवर्तन” के तहत डीटीसी का लक्ष्य 31 जनवरी तक इस संख्या को 100 तक पहुंचाने का है.

इन महिला ड्राइवर्स में से एक महिला ड्राइवर के पास डबल मास्टर्स (दो विषयों में एम.ए) की डिग्री है; वहीं दूसरी कुश्ती में चैंपियन हैं. कुछ बचपन से सड़कों पर गाड़ियां दौड़ाने की शौकीन हैं, तो किसी के रिश्तेदार अब उन्हें सम्मान भरी निगाहों से देखते हैं.

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“बस चलाते समय लगता है सड़क मेरी है और मैं उड़ रही हूं”, दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) से बीकॉम ग्रेजुएट 38-वर्षीय योगिता ने बताया कि, महज़ 12 साल की उम्र से उन्होंने ऑटो चलाना शुरू कर दिया था. वो कहती हैं, बस चलाने से उन्हें जो सुकून मिलता है. ये अद्भुत है.

ड्राइवर योगिता पुरिल | फोटोः फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

पुरुषों का गढ़ माने जाने वाले डीटीसी में योगिता का कूल डूड स्टाइल उन्हें हज़ारों की भीड़ में अलग खड़ा करता है.

योगिता को बचपन से ही बाइक और कार चलाने का शौक रहा है और वे अपनी इस नई नौकरी से बहुत ज्यादा खुश हैं.

नाम न बताने की शर्त पर 26-वर्षीय मार्शल ने कहा, “वाहन चलाने के लिए, मजबूत कंधे होने चाहिए और गाली-गलौच सीखनी पड़ेगी. क्या ये महिलाएं सड़कों पर गालियां देंगी?”

हालांकि, इन महिलाओं का जज्बा इस सोच को गलत साबित करने का है ‘वो भी बिना गाली गलौच किए’.

दिल्ली के परिवहन मंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि यह महिला ड्राइवर्स अन्य महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं. इतनी बड़ी संख्या में किसी भी देश में महिलाएं सार्वजनिक वाहन नहीं चलाती हैं.


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‘एक फोन कॉल ने मेरी ज़िंदगी बदल दी’

डीटीसी के बेड़े में शामिल होने से पहले, 34-वर्षीय शबनम ने अपनी जर्नी नोएडा में एक निजी कंपनी में बतौर ड्राइवर शुरू की, जिसके बाद, उन्होंने दिल्ली में एक स्कूल टीचर के लिए भी काम किया.

“एक दिन मुझे बुराड़ी में अशोक लेलैंड ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से कॉल आया और मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई.”

शबनम ने बताया कि, उन्हें पता चला कि मिशन परिवर्तन के तहत महिलाएं भी एचएमवी लाइसेंस के लिए फ्री में आवेदन कर सकती हैं, जिसकी आमतौर पर कीमत 15,000-16,000 रुपये है और पैसे नहीं होने के कारण उन्होंने इसे नहीं बनवाया था.

उन्होंने बताया कि जिन 11 महिला ड्राइवर्स को पहले काम पर रखा गया था, उन्होंने अपने लाइसेंस पहले बनवा लिया थे.

शबनम कहती हैं, “हमें बुराड़ी के सेंटर से बहुत प्रोत्साहन मिला और हमें क्लास की टाइमिंग हमारी इच्छा के मुताबिक दी गई.”

महिला ड्राइवर शबनम | फोटोः फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

शबनम डेढ़ महीने तक रोज़ सुबह 5 बजे गाजीपुर स्थित अपने घर से बुराड़ी के इंस्टीट्यूट जाती थीं. वे और योगिता दोनों बुराड़ी इंस्टीट्यूट से ‘ग्रेजुएट’ होने वाले पहले बैच में शामिल हैं, जहां अभी लगभग 160 महिलाओं की ट्रेनिंग चल रही है. हालांकि, इस पहले से, नौकरियों की गारंटी तो नहीं है, लेकिन यह उन्हें डीटीसी और अन्य स्थानों पर नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए तैयार ज़रूर करती है.

बुराड़ी में डेढ़ महीने की ट्रैनिंग करने के बाद बीते चार महीने से महिला ड्राइवर्स ने काम करना शुरू कर दिया था. हालांकि, आधिकारिक तौर पर सभी को लैटर्स शुक्रवार को दिए गए.

शबनम ने बताया कि उनके परिवार वालों ने शुरू में उन्हें नहीं समझा. वहीं, एक अन्य महिला ड्राइवर योगिता का कहना था कि उनके इस सपने को पूरा करने में उनके पापा ने उन्हें बहुत सपोर्ट किया.

शबनम ने दिप्रिंट से कहा, “अख़बार में मेरी फोटो आने के बाद से मेरी सास बहुत खुश थीं. अब, वो सबसे कहती हैं, ‘मेरी शबनम बस चलाती है.”

हालांकि, पहले वे कहती थीं, “ये करेंगी जहाज की नौकरियां.”

शबनम, की शादी को 15 साल बीत चुके हैं, उन्होंने बताया कि पहले उनके पति इसके खिलाफ थे और अब जब मैं घर के खर्च में बराबर का हाथ बंटाती हूं, तो वे खुश होने लगे हैं.

बता दें कि नए ड्राइवर्स परमानेंट कर्मचारी नहीं हैं, उन्हें 11 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया है और इनकी सैलरी परमानेंट ड्राइवर्स की तुलना में आधे से भी कम है.

शबनम ने बताया कि वे रोज के 700 से 800 रुपये कमा रही हैं, जबकि परमानेंट ड्राइवर्स की हर महीने की सैलरी 70 हज़ार के आसपास हैं.

उन्होंने कहा, “परमानेंट ड्राइवर्स की तरह हमारे पास मेडिकल इंश्योरेंस जैसी सुविधाएं नहीं हैं.”

नाम न छापने की शर्त पर डीटीसी के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, 2016 के बाद से सरकार ने परमानेंट ड्राइवर्स की भर्ती पर रोक लगा दी है और पुरुष ड्राइवर्स को भी अब कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर रखा जा रहा है.

हालांकि, महिला ड्राइवर्स को अपनी मर्जी से डिपो चुनने की आज़ादी है और उन्हें सुबह की शिफ्ट दी जाती है. महिला ड्राइवर्स को एक दिन में 125 किमी का एक चक्कर पूरा करना होता है. हालांकि, कुछ का कहना है कि उन्होंने शाम की शिफ्ट्स भी की है.


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भेदभाव और असमानता

महिला ड्राइवर्स को हर रोज़ उनके जैंडर की याद दिलाई जाती है. एक पुरुष यात्री ने महिलाओं के बस चलाने की बात पर ठहाका लगाया- “अब तो अपना इंश्योरेंस करवाना पड़ेगा.”

पुरुष मार्शल का कहना था, “मैं लिख कर दे सकता हूं…छह महीने के अंदर यह पूरा महिला मंडल घर बैठ जाएगा.”

राजघाट बस डिपो पर ड्यूटी शेड्यूल करने वाले एक अधिकारी दीपक कुमार ने इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने महिलाओं को घर में “एडजेंस्टमेंट” करने की बात पर जोर दिया.

उन्होंने कहा, “गाड़ी तो चल जाएगी…गृहस्थी भी तो देखनी है. जो ड्यूटी है कीजिए और घर जाइए.आप भी खुश हम भी खुश.”

हालांकि, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के एक अधिकारी तलवार सिंह ने महिला ड्राइवरों के ईस्ट दिल्ली की तगं गलियों में बसें दौड़ाने पर संदेह जताया.

उन्होने कहा, वहां लोग अक्सर ड्राइविंग नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं. “उन्हें बस खुली सड़कों पर छोड़ दिया जाएगा जहां वे आराम से उड़ सकें.”

46-वर्षीय परमानेंट ड्राइवर दलबीर का कहना था, दिल्ली में किसी को भी बस चलानी नहीं आती. अपने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “मैं पानी की सौगंध खा कर बोलता हूं. सिर्फ महिलाएं ही नहीं, आदमियों को भी गाड़ी चलाना नहीं आता.”

पुरुष ड्राइवर दलबीर | फोटोः फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

उन्होंने बताया कि डिपो में सैनिटेशन और महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन वैंडिंग मशीन जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए हम आवाज़ उठा रहे हैं.

हालांकि, दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने उन्हें 15 दिन के अंदर इस समस्या के निदान का आश्वासन दिया है.

महिला ड्राइवर्स का कहना है कि वे अपनी नौकरी को पक्का करवाने की कवायद को जारी रखेंगी.

हालांकि, महिला कंडक्टर और मार्शल अपने बेड़े में महिलाओं की बढ़ती संख्या से खुश हैं. महिला कंडक्टर प्रिया कैथवास और मार्शल मंजू तोमर ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि इससे हमारी संख्या बढ़ेगी और अभी जिस तिरस्कार और भेदभाव को हम झेलते हैं उससे छुटकारा मिल पाएगा.

महिला कंडक्टर प्रिया कैथवास| फोटोः फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

झुकी नज़रों से उन्होंने कहा कि अपनी गलती न होने पर भी माफी मांगने के रूल से हमें भी निजात चाहिए.

शबनम और योगिता ने कहा था कि वे यूनियन की मीटिंग और गुटबाज़ी से फिलहाल दूर ही रहती हैं.

हालांकि, एक अन्य 49-वर्षीय मार्शल अमृत लाल ने बस में सफर के दौरान कहा “आज लड़किया दूसरे देश पर हमला कर रही हैं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं. बस भी चला लेंगी. जब तक काम हो रहा है करने दीजिए.”

उन्होंने बताया कि पहले ड्राइवर के लिए आपकी हाइट कम से कम 162 सेंटीमीटर होनी चाहिए थी, जिसे घटाकर अब 153 कर दिया गया है इसलिए ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इसमें हिस्सा ले रही हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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