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Friday, 20 December, 2024
होमफीचरप्राइमरी स्कूल में पिछले 2 सालों में आए लर्निंग गैप को पाटने के लिए स्टालिन सरकार का एक अनोखा मॉडल

प्राइमरी स्कूल में पिछले 2 सालों में आए लर्निंग गैप को पाटने के लिए स्टालिन सरकार का एक अनोखा मॉडल

तमिलनाडु सरकार का मिशन एन्नम एजूथूम यानी 'नंबर और अक्षर' शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने के तरीके में बदलाव लेकर आया है.

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एक छोटा सा, रंगों से सजा क्लास रूम और उसमें लटकते ढेर सारे ‘S’ अक्षर. सीलिंग फैन के नीचे, हल्की हवा में कागज की एक डोरी फड़फड़ाने लगती है. पांच साल की उम्र के आसपास के तीन लड़कों ने ब्लैकबोर्ड के पास खड़े होकर एक-एक अक्षर को पकड़ा हुआ है. तभी कुछ छात्र जोर से चिल्लाते हैं- एस, यू, और…! ‘एम उल्टा है, मिस.’

गुरुवार की सुबह पोरूर के ग्रेटर चेन्नई प्राइमरी स्कूल में पीले रंग की साड़ी पहने हुए एम. मुथुकामाक्षी पहली क्लास के बच्चों ‘CVC (कॉन्सोनेंट, वोवल, कॉन्सोनेंट) शब्द’ यानी व्यंजन, स्वर, व्यंजन सिखा रही हैं.

मुथुकामाक्षी ने बताया, ‘पहले बच्चे को ‘ए’ फॉर एप्पल जैसी सामान्य चीजें सिखाई जाती थीं, लेकिन सीवीसी के जरिए उन्हें अक्षरों को एक साथ मिलाकर पढ़ने में मदद मिलती है. यह पढ़ाने का एक अनोखा तरीका है.’ वह तमिलनाडु सरकार के एक मिशन Ennum Ezhuthum के बारे में बता रही हैं, जिसका मतलब है ‘संख्या, अक्षर’. यह उन छात्रों में आए उस लर्निंग गैप को दूर करना चाहता है जो कोविड-19 महामारी के चलते काफी समय तक स्कूल से दूर रहने की वजह से आया है.

तमिलनाडु परंपरागत रूप से स्कूली शिक्षा और लर्निंग के मामले में हमेशा टॉप प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक रहा है. लेकिन महामारी के 2 साल ने सबसे अच्छे राज्यों पर भी असर डाला है. शायद इसी वजह से एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार अब इस नई पहल के साथ फिर से अपनी पॉजिशन पर बने रहने की कोशिश कर रही है.

इस साल जून में स्टालिन सरकार ने अपने इस मिशन ‘एन्नम एजूथूम ’ को शुरू किया था. इसका उद्देश्य अगले तीन सालों में सरकारी और सरकारी मदद प्राप्त स्कूलों में पढ़ रहे 27 लाख छात्रों के लिए अक्षरों और नंबरों की बुनियादी समझ विकसित करना है. इस लर्निंग मेथड को अरुम्बु (कक्षा 1), मोट्टू (कक्षा 2) और मलार (कक्षा 3) के रूप में विभाजित किया गया है.

इसे लॉन्च करते हुए स्टालिन ने कहा था ‘महामारी के दौरान राज्यभर के स्कूल 19 महीने से ज्यादा समय से बंद थे. इस वजह से आए लर्निंग गैप को पाटने के लिए सिर्फ रोजाना लगाई जा रही कक्षाएं काफी नहीं हैं. इसलिए हमने कार्यक्रम तैयार किया है.’ उन्होंने आगे बताया, ‘तमिल, अंग्रेजी और गणित में बच्चों को पारंगत करने के लिए इन विषयों के पाठों को नृत्य, गीत, कहानी और कठपुतली के प्रारूप में तैयार किया गया है.’


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तमिलनाडु के पोरूर में ग्रेटर चेन्नई प्राइमरी स्कूल | फोटो: सौम्या अशोक | दिप्रिंट

नवंबर 2021 में भारत में महामारी के डेढ़ साल बाद, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने छात्रों पर स्कूल बंद होने के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक नेशनल अचीवमेंट सर्वे किया था. इसमें 720 ग्रामीण और शहरी जिलों के 1,18,000 स्कूलों में लगभग 3.4 मिलियन छात्रों को शामिल किया गया. सर्वे में पाया गया कि 2017 में औसत प्रदर्शन लगभग 54 फीसदी था जो 2021 में गिरकर 47 फीसद पर आ गया. महामारी से पहले 2018 की एनुअल स्टेटस रिपोर्ट में पाया गया था कि कक्षा 3 के सिर्फ 25 फीसदी बच्चे ही अपने स्तर का टेक्स्ट पढ़ पाने में सक्षम थे.

‘अब यह सिर्फ बिजनेस नहीं’

आंकड़ों से अलग हटते हुए पोरूर के स्कूल की तरफ वापस लौटते हैं. मुथुकामाक्षी ने सीवीसी शब्दों को पढ़ाने से पहले अपनी उंगलियों पर पपेट्स चिपकाए और छात्रों के साथ एक गाना गाने लगीं. उनके इस गीत में एक मुर्गा, एक शेर, एक बिल्ली और एक तितली थी. कक्षा के पीछे बेंच पर पड़े एक बड़े से कागज के डिब्बे में राज्य शिक्षा विभाग की ओर से भेजी गया लर्निंग मटेरियल भरा पड़ा था. गिनती सिखाने के लिए मोतियों की एक माला, आकार के लिए लकड़ी से बनी कुछ कलाकृतियां- ये सब कुछ छात्रों की लर्निंग क्षमता बढ़ाने के लिए थे. बच्चे इन्हें देखते हैं, इन्हें छूते हैं और फिर खुद से सीखते हैं.

तमिलनाडु के पोरुर में ग्रेटर चेन्नई प्राइमरी स्कूल में क्लास 1 के छात्रों को पढ़ाती मुथुकामाक्षी | फोटो: सौम्या अशोक | दिप्रिंट

एनम एजूथूम मिशन के चीफ मैनेजमेंट पार्टनर, माधी फाउंडेशन के संस्थापक मेरलिया शौकत ने कहा कि राज्य ने महामारी के बाद की दुनिया की वास्तविकता के अनुरूप शिक्षा और पढ़ाने के तरीके को बदलने के लिए काफी संसाधन जुटाए हैं. शौकत ने कहा, ‘मिशन मानता है कि बच्चे एक बड़े लर्निंग गैप के साथ स्कूल वापस आए हैं. और इसलिए यह अब हमेशा की तरह एक बिजनेस बना नहीं रह सकता है.’

इसके अलावा राह में और भी मुश्किलें हैं. 2021 के अपने एक इंटरव्यू में शौकत ने कहा था कि ‘तमिलनाडु में 80 फीसदी से ज्यादा कक्षाएं मल्टी-ग्रेड (अलग अलग ग्रेड के बच्चे एक ही क्लास में, एक ही शिक्षक द्वारा पढ़ाए जाते हैं) मल्टी लेवल (अलग-अलग लर्निंग लेवल वाले सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाना) और यहां तक कि मल्टीलिंगुअल (अंग्रेजी और तमिल मीडियम के छात्रों को एक साथ पढ़ाया जाना) हैं.

पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करने के लिए जिन लोगों से सलाह ली गई थी, उनमें कोरत्तूर के एएमपी स्कूल में माध्यमिक स्कूल टीचर वी. सुदरोली भी थीं. उन्होंने कहा ‘Ennum Ezhuthum मिशन में हर बच्चे से उनकी संबंधित भाषा और अंकगणितीय कौशल के आधार पर पढ़ाया जाता है. यह मिशन तमिलनाडु के विभिन्न जिलों के शिक्षकों के साथ बातचीत के साथ शुरू हुआ था.’

सुदोराली उस टीम का हिस्सा थीं, जिसने तमिल विषय के लिए पाठ्यपुस्तकें तैयार की थीं. जब दिप्रिंट ने उनसे बात की, तो वह एक मलार (कक्षा 3) पाठ्यपुस्तक के लेआउट की निगरानी कर रही थीं. उन्होंने अपने एक सहयोगी को निर्देश दिया कि तस्वीरों को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए इनका आकार बढ़ाएं. इससे बच्चे इन्हें तेजी से कैच कर पाएंगे. उन्होंने बताया ‘विचार-विमर्श महीनों तक चला और टीचिंग व लर्निंग मटेरियल तैयार करने के लिए एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया गया था.’

तमिल टेक्स्ट बुक | फोटो: सौम्या अशोक | दिप्रिंट

उदाहरण के लिए, स्कूली पाठ्यपुस्तकों में अक्सर पाठ के अंत में एक कंपोनेंट होता है जिसमें टीचर को निर्देश दिया गया होता है कि कक्षा का संचालन कैसे करना. लेकिन मिशन ने इसे टीचर की हैंडबुक और एक छात्र की कार्यपुस्तिका के साथ दो हिस्सों में बांट दिया है. उन्होंने बताया, ‘हमने वर्कबुक को छात्रों के लिए आकर्षक बनाने में काफी समय बिताया. एक तस्वीर के अंदर एक अक्षर छिपा होगा, जिसे बच्चों को खोजना होगा. बच्चों लिए यह एक खेल बन जाता है और हमारे लिए सिखाने का जरिया.’ सीखने के इस प्रक्रिया में इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि बच्चों को सीखते समय बोरियत न हो.


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नजर आने वाला बदलाव

मुथुकामाक्षी की क्लास में करीब 6 साल के मिथुन की मां प्रभा लंच देने के लिए आई हुई थीं. उन्होंने कहा, ‘कुछ दिन पहले हम बस से कहीं जा रहे थे. तब मैंने देखा कि मेरा बेटा बस के अंदर लिखे तमिल अक्षरों को पहचान पा रहा था.’ वह काफी खुश है कि अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में बेहतर तरीके से तमिल सिखाई जा रही है. वह कहती हैं, ‘हमारे घर के नीचे एक किराने की दुकान है. अब जब भी मैं उसे कुछ खरीदने के लिए भेजती हूं, तो वह आराम से पैसों को हिसाब लगा पाता है.’

पर्यावरण विज्ञान और सामाजिक विज्ञान, जो कक्षा 1 से 3 के लिए पूर्व-महामारी पाठ्यक्रम का हिस्सा थे, को एनम एजूथूम पाठ्यक्रम में एकीकृत किया गया है. 6 महीने पुरानी इस योजना के लिए फीडबैक का सिलसिला लगातार जारी है.

मुथुकामाक्षी ने कहा कि जब मिशन को 2023-24 स्कूल वर्ष में से एक में शुरू किया गया था, तो टीचिंग और लर्निंग मटेरियल (टीएलएम) की ‘व्याख्या करना थोड़ा मुश्किल’ था. लेकिन अब उन्होंने (शिक्षा विभाग) हैंडबुक के पीछे साफ तौर पर बताया है कि टीएलएम का इस्तेमाल कैसे करना है. वो हमें तस्वीरे मुहैया कराते हैं, जिन्हें हम काट कर इस्तेमाल कर सकते हैं.’

तमिल में क्लास 3 के लिए टीचिंग मैटेरियल | फोटो- सौम्या अशोक | दिप्रिंट

टीचर ‘टेलीग्राम ग्रुप’ शिक्षा विभाग के लिए एक प्रभावी फीडबैक मैकेनिज्म है. इसमें राज्यभर से लगभग 65,000 सदस्य शामिल हैं. सुदरोली ने बताया कि इस पर हर शनिवार को टीचर अपना-अपना फीडबैक साझा करते हैं और बताते हैं कि उनके छात्रों के बीच किस मटेरियल ने सबसे बेहतर काम किया था. उन्होंने कहा, ‘यह एजुकेशन कमिश्नर या विभाग के अधिकारियों से सीधे बात करने का एक मंच है जो शिक्षकों की प्रतिक्रिया को सुनते हैं और नोट करते हैं.’

मिशन से जुड़े एक अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि मिशन के लिए एक बड़ी चुनौती टीचर ट्रेनिंग की गुणवत्ता है. उद्देश्य यही है कि सभी 65,000 शिक्षक अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के साथ पढ़ाएं.’ अगले सत्र की शुरुआत में शिक्षक लर्निंग मटेरियल के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला पर आते हैं.

सबको एक लेवल में लेकर आना

पोरूर के प्राइमरी स्कूल की पहली मंजिल पर पढ़ा रही मैरी एमिन के पास मुथुकामाक्षी की तुलना में ज्यादा मुश्किल काम है. उनकी कक्षा में कुल 60 बच्चे हैं. ये सभी लगभग आठ साल के हैं और ये सभी अलग-अलग लर्निंग ग्रुप से हैं. कुछ अरुम्बु से, तो कुछ मोट्टू और कुछ मलार क्लास से हैं. उन्होंने कहा, ‘उन सभी को एक स्तर पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है. अंतर को कैसे पाटें?’ वह आगे कहती हैं, ‘मैंने अरुम्बु लेवल के बच्चों के साथ मलार लेवल के बच्चों को एक साथ मिलाने का फैसला किया. उन्हें एक-दूसरे के बगल में बैठाया ताकि ये हर दिन कुछ घंटों के लिए एक दूसरे को सिखा सकें.’

शौकत ने कहा कि 27 लाख बच्चों में से 98 प्रतिशत का मूल्यांकन स्कूल वर्ष की शुरुआत में किया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे सीखने की किस अवस्था में आते हैं. इसके आधार पर, शिक्षा विभाग पूरी योजना की निगरानी के लिए एक ऐप तैयार कर सकता है.’

हेडमास्टर वी. लता के फोन पर TNSED नामक एक ऐप है, जिसे वह दिप्रिंट को दिखाने के लिए लॉग इन करती हैं. इस ऐप के जरिए वह पोरूर स्कूल में अपने कमरे में बैठे हुए, सभी 255 छात्रों की उपस्थिति, उनका अवलोकन और उनके रिपोर्ट कार्ड की निगरानी कर सकती है. उन्होंने कहा, ‘सब कुछ डिजिटल है और महीने में एक बार जब सभी जिला शिक्षक एक साथ मिलते हैं, तो हम तुलना कर सकते हैं कि हमारे स्कूल कितना अच्छा कर रहे हैं.’ उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘कुछ शिक्षक निश्चित रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं.’ लता बताती हैं, ‘इस योजना के सामने आने के बाद से ज्यादा बच्चे स्कूल आने लगे हैं.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा में 19 महीने के अंतराल के तुरंत बाद उन्हें इस स्तर तक पहुंचाना एक मुश्किल काम है.

मुथुकामाक्षी ने कहा कि उनके छात्र कोविड से पहले बहुत अनुशासित थे. ‘उन्हें एक जगह बैठकर सीखने की आदत हो गई थी. लेकिन फिर सब बदल गया. वह खुश होते हुए बताती हैं, ‘कोविड के बाद बच्चे कभी-कभी मुझे आंटी, अम्मा, अक्का कहकर बुलाने लगते हैं.’

कक्षा में बच्चों का शोर काफी तेज हो चला था. मुथुकामाक्षी ने अपने छात्रों की ओर देखा और बोली, ‘कुट्टी मां (छोटे बच्चे) चुप रहो, यह रिपोर्टर यहां तुम्हारे बारे में पूछने आई हैं. आप क्या चाहते हो, मैं उनसे अच्छी बातें कहूं या फिर बुरी बातें?’

‘अच्छी बातें ’ पांच साल के 30 बच्चों की तेज आवाज एक साथ आई.

अनुवाद: संघप्रिया

संपादन: इन्द्रजीत

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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