बेंगलुरु: न्यूजीलैंड के क्रिकेटर रचिन रवींद्र ने मेन्स वनडे वर्ल्ड कप 2023 के पिछले दो हफ्तों में कम से कम दो वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं, जबकि उन्हें यह वर्ल्ड कप खेलना भी नहीं था.
लगभग 24 वर्षीय यह खिलाड़ी इस वर्ल्ड कप का ब्रेकआउट स्टार है, जो सुपरनोवा की तरह बैकग्राउंड में विस्फोटक बल्लेबाजी कर रहा है, लेकिन अपने दमदार प्रदर्शन के बावजूद मजबूती से और शांत खड़ा है. कोई भी इस बात के लिए तैयार नहीं था कि घुंघराले बालों वाला यह युवक क्रिकेट की दुनिया में तहलका मचा देगा.
यदि न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन के सौम्य बल्लेबाजी की तुलना क्लॉड मोनेट के शांत, ब्रशस्ट्रोक के स्टडी से की जा सकती है, तो रचिन रवींद्र जैक्सन पोलक की तरह हैं, जो अपने कैनवास पर पेंट उड़ा रहे हैं. युवा लड़के उसकी जर्सी पहनते हैं और एक स्टार को फूल एक्शन में देखने के लिए उत्साहित रहते हैं. हालांकि, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह दूसरे देश के लिए खेल रहे हैं: धर्मशाला से बेंगलुरु तक, देश भर के स्टेडियमों में भारतीयों ने उनकी विरासत को अपने हिस्से के रूप में दावा किया है.
और अब, उनकी टीम वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में भारत से भिड़ने के लिए तैयार है.
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में एक इंटरव्यू में रवींद्र ने श्रीलंका को हराने के तुरंत बाद मुस्कुराते हुए कहा, “जाहिर तौर पर सितारे एक साथ आए या जो कुछ भी हुआ, मैं यहां आने के लिए काफी भाग्यशाली हूं.”
श्रीलंका को हराने के ठीक बाद टीम के सारे खिलाड़ी मुस्कुरा रहे थे, जहां उन्होंने दो विकेट लिए, तीसरे को कैच लेकर आउट किया और साथ ही न्यूजीलैंड के लिए ओपनिंग की और लगभग 50 रन बनाए. उन्होंने सामान्य तरीके से कहा, “यह अब तक एक अच्छी यात्रा रही है.”
और इसे खेलना केवल भाग्य का मोड़ था. विलियमसन चोट के कारण बाहर थे और इसने रवींद्र को अपने देश के लिए ओपनिंग करने का मौका दिया. साथ ही उन्होंने अपने कप्तान की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली.
वर्ल्ड कप से तीन महीने पहले, रवींद्र और उनके पिता को भारत की यात्रा करने और ट्रेनिग लेने का मौका मिला. वे कुछ अन्य युवा कीवी क्रिकेटरों के साथ जुलाई में भारत पहुंचे और भारतीय परिस्थितियों में खुद को ढालने के लिए बेंगलुरु, हैदराबाद और अनंतपुर के ग्रामीण विकास ट्रस्ट में लगभग एक महीने तक मैच की प्रैक्टिस की.
जब वर्ल्ड कप के आधिकारिक अभ्यास मैच का समय था – हैदराबाद में पाकिस्तान के खिलाफ – रवींद्र डगआउट में इंतजार कर रहे थे. न्यूजीलैंड के बांग्लादेश दौरे के बाद टीम का एक सदस्य थक गया था और मैच नहीं खेल सका.
उनके कोच ने उन्हें बुलाने का बड़ा फैसला लिया. उन्होंने 97 रन बनाए.
इस वर्ल्ड कप के दौरान उनकी उपलब्धियों की एक लंबी लिस्ट है. साथ ही उनका भारतीय संबंध उन्हें चारों ओर चर्चा का विषय बना रहा है. उन्हें बार-बार याद दिलाने के बावजूद कि वह “100 प्रतिशत कीवी” हैं, उन्हें “बैंगलोर बॉय” का नाम दिया गया है.
व्हाट्सएप फॉरवर्ड और भारतीय मीडिया ने पहले ही उनके पसंदीदा दक्षिण भारतीय भोजन (जाहिरा तौर पर बोंडा सूप) और कन्नड़ भाषा में उनके प्रवाह पर ध्यान केंद्रित कर लिया है. मीडिया ने हर बातचीत में उनसे शहर से उनके संबंध के बारे में पूछा, जहां उनके माता-पिता बड़े हुए थे.
लेकिन रवींद्र का बेंगलुरु का अनुभव उनके दादा-दादी और उनके पसंदीदा कन्नडिगा भोजन के बारे में नहीं है, बल्कि, उनके जीवन की लगभग हर चीज की तरह क्रिकेट के बारे में है.
रवींद्र किसी बड़ी चीज़ का भी प्रतिनिधित्व करते हैं – एक सफलता जो प्रवासन के बाद मिले असंख्य अवसरों के साथ आती है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, श्रीलंका में न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त और भारत में पूर्व उप उच्चायुक्त माइकल एपलटन ने कहा, “हम एक ऐसा समाज बनाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं जिसमें हर किसी को सफल होने का अवसर मिले. और रचिन एक तरह से इसी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.”
क्रिकेट के एक बड़े प्रशंसक एपलटन ने 9 नवंबर को बेंगलुरु में ब्लैक कैप्स को श्रीलंका के खिलाफ खेलते हुए देखने के लिए भारत की यात्रा की.
एपलटन ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के लिहाज से वह इस टूर्नामेंट में खेलने के लिए नहीं आया था और कोई नहीं जान रहा था कि वह वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड के किसी भी खिलाड़ी की तुलना में अधिक रन बनाएगा. उसकी सफलता में उसकी पृष्ठभूमि, उसकी व्यक्तिगत कहानी और विरासत, सभी शामिल हैं.”
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बेंगलुरु का न्यूजीलैंड कनेक्शन
एक बड़ा स्पष्टीकरण यह है कि रवींद्र का नाम राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर के नामों से लिया गया है, जो सही नहीं है.
रवींद्र के पिता रवि कृष्णमूर्ति ने दिप्रिंट से कहा, “जब रचिन का जन्म हुआ, तो मेरी पत्नी ने उसका यह नाम सुझाया और हमने इस पर चर्चा करने के लिए ज्यादा समय नहीं बिताया.”
उन्होंने कहा, “यह नाम अच्छा लग रहा था और इसका उच्चारण करना आसान था. साथ ही यह छोटा नाम था, इसलिए हमने इस नाम के साथ जाने का फैसला किया. कुछ साल बाद ही हमें एहसास हुआ कि यह नाम राहुल और सचिन के नामों का मिश्रण था. हमने यह नाम उसे क्रिकेटर या ऐसा कुछ और बनाने के इरादे से नहीं रखा गया था.”
लेकिन रिकॉर्ड बनने शुरू हो चुके हैं.
उन्होंने तेंदुलकर के दो रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं – 25 साल की उम्र से पहले एक वर्ल्ड कप में सबसे अधिक रन बनाना और 25 साल की उम्र से पहले एक वर्ल्ड कप में तीन शतक (इंग्लैंड, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ) बनाकर उन्होंने तेंदुलकर के दो के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. उन्होंने अब तक एक वनडे वर्ल्ड कप के में सर्वाधिक रन (565) बनाए हैं और टूर्नामेंट अभी ख़त्म भी नहीं हुआ है.
उनके तीन वर्ल्ड कप शतक भी उनके पदार्पण के दौरान थे, जबकि तेंदुलकर का 1996 का रिकॉर्ड उनके दूसरे वर्ल्ड कप में स्थापित किया गया था. अपने वर्ल्ड कप पदार्पण में सबसे अधिक रन बनाने वाले शीर्ष पांच बल्लेबाजों में उनका बल्लेबाजी औसत सबसे अच्छा है, उन्होंने राहुल द्रविड़ के 1999 के प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया.
हालांकि, क्रिकेट प्रशंसकों के लिए रवींद्र कोई नया नाम नहीं है. उन पर कई सालों से बाज़ की तरह नजर रखी जा रही है क्योंकि उन्होंने तेजी से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपने लिए जगह बनाई है. एपलटन के अनुसार, वह न्यूजीलैंड क्रिकेट के लिए एक बड़ी खोज है और रॉस टेलर और केन विलियमसन दोनों के आउट होने के बाद एक महत्वपूर्ण नाम हैं.
रवींद्र के पिता भी क्रिकेट खेलते थे और बेंगलुरु सर्किट में काफी पॉपुलर थे. यही कारण है कि उन्होंने भारतीय खेल शैली में अभ्यस्त होने के लिए रवींद्र को शहर में प्रशिक्षण देने पर जोर दिया.
एक करीबी पारिवारिक मित्र और शहर के डीटीडीसी क्लब संप्रसिद्धि स्पोर्ट्स एस्टाडियो (SSE) के प्रबंधक सुरेश रेड्डी ने कहा कि रवींद्र और उनके पिता बेंगलुरु, हैदराबाद और अनंतपुर में क्लब स्तर के मैच खेलने के लिए कई सालों से नियमित रूप से आ रहे हैं. अनंतपुर वह जगह है जहां ग्रामीण विकास ट्रस्ट मैदान है: यह भारत की सबसे आधुनिक क्रिकेट फैसिलिटी में से एक है.
अब, बेंगलुरु – जहां के.एल. राहुल के बाद से कोई बड़ा क्रिकेट स्टार नहीं रहा है – इस सफलता का जश्न मनाने से बहुत खुश हैं. यहां के लोग उनकी सफलता को अपनी कहानी का हिस्सा मानते हैं. 9 नवंबर को श्रीलंका के खिलाफ कीवी टीम की जीत के बाद रवींद्र ने बेंगलुरुवासियों को अपना “बड़ा परिवार” भी कहा.
साथ ही, रवींद्र ने लाखों लोगों के सामने त्योहार के मौसम में अहमदाबाद में इंग्लैंड के खिलाफ वर्ल्ड कप खेला. रेड्डी ने कहा, “अगर उन्होंने ऐसा किसी और दिन किया होता तो शायद इस ओर इतना ध्यान नहीं जाता.” रवींद्र के पिता, कृष्णमूर्ति इस बात से सहमत दिखे. वो कहते हैं, “हीरो हर दिन बनते हैं. यही क्रिकेट की खूबसूरती है.”
रवींद्र पहले भी भारत में न्यूजीलैंड के लिए खेल चुके हैं. दोनों टीमों के बीच 2021 टेस्ट मैच के दौरान, जो ड्रॉ पर समाप्त हुआ था. यह न्यूजीलैंड के लिए उनका पदार्पण मैच था और एक महत्वपूर्ण क्षण जो अब इस एकदिवसीय वर्ल्ड कप में उनके शानदार प्रदर्शन की छाया में खड़ा है.
इस वर्ल्ड कप के बड़े धमाके की तुलना में कोई बड़ा स्ट्रोक नहीं था, लेकिन उन्होंने मैदान में शानदार संयम दिखाया, बचाव किया और करीब चार घंटे तक बल्लेबाजी की.
हालांकि, रेड्डी ने कहा कि टेस्ट सीरीज़ रवींद्र की क्षमता के बारे में पता लगाने में एक महत्वपूर्ण क्षण था. उन्होंने कहा कि रवींद्र का ध्यान हमेशा न्यूजीलैंड के लिए अच्छा क्रिकेट खेलने पर रहा है.
उनके पिता ने भी कहा कि पिछले कुछ सालों में उसके खेल में काफी विकास हुआ है, लेकिन न्यूजीलैंड का प्रतिनिधित्व करना और लगातार अंतरराष्ट्रीय मंच पर टीम की सफलता में योगदान देना – चाहे वह बल्ले से हो या फिर गेंद से फिर मैदान में – “निरंतर और महत्वपूर्ण” है.
रेड्डी ने कहा, “आप इस समय सुर्खियों को न्यूजीलैंड से हटाकर भारत पर नहीं डाल सकते. न्यूजीलैंड ने रचिन को अधिक गले लगाया है, इसके बजाए कि रचिन ने न्यूजीलैंड को गले लगाया है.”
9 नवंबर को श्रीलंका के खिलाफ मैच से पहले, रेड्डी ने क्लब में खेलने और अभ्यास करने आने वाले लोगों को रवींद्र के नाम से सजी न्यूजीलैंड की जर्सी दी. SSE में खेलने के लिए आने वालों का उत्साह चरम पर है: आखिरकार, रवींद्र ने भी इसी पिच पर खेला भी तो है.
रेड्डी ने तथ्यात्मक तरीके से कहा, “बहुत सारे लोग उन्हें खेलते हुए देख रहे हैं: मीडिया, पहले के हीरो या फिर भविष्य के स्टार. लेकिन जो लोग उसे जानते हैं, और जो लोग उसे फॉलो करते हैं उसे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा होगा.”
‘क्रिकेट उसके खून में है’
क्रिकेट रवींद्र के खून में है. यह एक घिसी-पिटी बात है, लेकिन यह एक प्रकार से सच भी है.
उसके पिता और उसके दादा दोनों बेंगलुरु में क्रिकेट खेलते रहते थे और खेल में उसकी काफी रुचि भी थे.
लेकिन भारत छोड़ने का उनके परिवार के फैसले से क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं था. उनके पिता कृष्णमूर्ति और उनका परिवार नौकरी पाने के लिए न्यूजीलैंड चले गए थे. वो रवींद्र के जन्म के पहले ही न्यूजीलैंड चले गए थे.
कृष्णमूर्ति कहते हैं, “माता-पिता के रूप में, हमारे बच्चों के लिए हमारी आशाएं उनके द्वारा चुने गए किसी भी क्षेत्र तक फैली हुई हैं. जब रचिन ने क्रिकेट में रुचि दिखाई, तो हमने पूरे दिल से उसको सपोर्ट किया. हमें उम्मीद थी कि वह क्रिकेट में अच्छा करेगा.”
वह कहते हैं कि उन्हें और उनकी पत्नी को भरोसा था कि उनके बेटे के अंदर जुनून है और वह कड़ी मेहनत और समर्पण के चलते एक दिन क्रिकेट का चमकता सितारा बनेगा.
क्रिकेट उनके परिवार के दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है.
वह अपने आसपास क्रिकेट को देखते हुए बड़ा हुआ. जब भारतीय टीम सीरीज के लिए न्यूजीलैंड का दौरा कर रहे थी, तो टीम के कई लोग उनके घर भोजन पर भी गए थे.
रवींद्र और उसके पिता कवर ड्राइव, स्ट्रेट ड्राइव, पुल, कट और अधिक जैसे अच्छे शॉट्स की क्लिप की डीवीडी अपने घर में इकट्ठा करते थे जिसमेंं द्रविड़, तेंदुलकर, कुमार संगकारा, ब्रायन लारा, मैथ्यू हेडन, रिकी पोंटिंग, एडम गिलक्रिस्ट, स्टीव वॉ, वी.वी.एस. लक्ष्मण, इयान बेल, माइकल वॉन, रॉस टेलर जैसे कुछ बल्लेबाजों के शॉर्ट की क्लिप होती थी.
साथ ही डैनियल विटोरी, ग्रीम स्वान, हरभजन सिंह और अन्य फिंगर स्पिनरों जैसे गेंदबाजों की क्लिप की डीवीडी भी सहेजी जाती थी.
रवींद्र के पिता उसके साथ ट्रेनिंग सेंटर पर भी जाते थे, जहां वह घंटों तक बिना थके उसे नेट्स पर प्रैक्टिस दोहराने की बात करते थे.
कृष्णमूर्ति कहते हैं,, “मैंने छोटी उम्र से ही रचिन को कोचिंग देने में भूमिका निभाई थी, लेकिन यह बिल्कुल नया नहीं था क्योंकि हम दोनों की खेल में गहरी रुचि थी.” वह अब भी रवींद्र को आउट करने के लिए गेंदबाजी करने की कोशिश करते हैं.
कृष्णमूर्ति ने रवींद्र को क्रिकेट की यात्रा में भारतीय खिलाड़ियों के प्रभावों को भी सूचीबद्ध किया, जिनमें जे. अरुणकुमार, जवागल श्रीनाथ, श्रीधरन श्रीराम, सैयद शहाबुद्दीन और एम.एस.के. प्रसाद, तेंदुलकर और द्रविड़ के साथ-साथ रॉस टेलर और डैनियल विटोरी जैसे खिलाड़ियों के नाम शामिल हैं.
रवीन्द्र हट हॉक्स के लिए भी खेल चुके हैं. उनके पिता द्वारा प्रबंधित, हट हॉक्स वेलिंगटन क्षेत्र के सभी खिलाड़ियों के लिए एक टूरिंग क्लब है जो नियमित रूप से भारतीय क्लबों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए भारत की यात्रा करता है.
लेकिन यह न्यूजीलैंड ही है जिसने रवींद्र को ढाला.
न्यूजीलैंड में एक भारतीय आप्रवासी के रूप में उनकी विरासत ने उसे अतिरिक्त लाभ दिया. एप्पलटन कहते हैं, “दक्षिण एशियाई प्रवासी वास्तव में न्यूजीलैंड समाज का एक अभिन्न और सफल हिस्सा बन गए हैं और उन्होंने देश में अद्भुत सफलता हासिल की है. खेल न्यूजीलैंड की संस्कृति का एक प्रतिष्ठित हिस्सा है. रचिन रवींद्र को इस तरह से देखना एक बड़ा उदाहरण है कि न्यूजीलैंड में दक्षिण एशियाई और भारतीय कितने सफल रहे हैं.”
रवींद्र के टीम के साथी और करीबी दोस्त डेवोन कॉनवे इसका एक और उदाहरण हैं. कॉनवे दक्षिण अफ्रीका से न्यूजीलैंड आए थे और कीवी क्रिकेट का अभिन्न अंग रहे हैं.
कृष्णमूर्ति ने कहा, “डेवॉन कॉनवे हमारे लिए परिवार की तरह हैं.” उन्होंने कहा कि वह टॉम ब्लंडेल के साथ-साथ रवींद्र के भी बड़े भाई की तरह हैं.
एपलटन ने कहा, “यह सामान्य तौर पर न्यूजीलैंड के समाज और संस्कृति को दिखाता है. आज हमारा समाज विविध और समावेशी है, जिसे आप हमारी क्रिकेट टीम में भी देख सकते हैं.”
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बेंगलुरु बनाम न्यूजीलैंड
दक्षिण एशियाई मूल के अन्य खिलाड़ियों की तरह, जिन्हें दुनिया भर की टीमों में पक्की जगह मिली है, रवींद्र की “उपमहाद्वीपीय शैली” के बारे में बहुत कुछ कहा गया है.
कॉनवे के अनुसार, रवींद्र के पास “सामान्य तौर पर क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली भारतीय कलाइयां” हैं.
लेकिन कहा जाता है कि स्वभाव में, रवींद्र अपने कीवी टीम के साथियों की तरह ही भावना रखते हैं: शांत, स्थिर और टीम के प्रति समर्पित.
और रेड्डी के मुताबिक यह बेंगलुरु के खिलाड़ियों के स्वभाव में ही होता है. द्रविड़ और अनिल कुंबले से लेकर वेंकटेश प्रसाद तक शांत स्वभाव के माने जाते थे. उन्होंने कहा, “यहां के खिलाड़ियों में सिर झुकाकर खेल के प्रति ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति होती है. वह बल्ले और गेंद से ही सारी बातें कर देते हैं.”
लेकिन बेंगलुरू और कुल मिलाकर भारत के साथ समस्या यह है कि डगआउट में हजारों सचिन, विराट और राहुल अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
दूसरी ओर, न्यूज़ीलैंड की सफलता की कहानी काफी कमज़ोर है, जो सीमित प्रतिभा पूल के बावजूद लगातार परिणाम दे रहा है. और वे केवल गर्मियों के दौरान कुछ महीनों के लिए क्रिकेट खेलते हैं – अक्टूबर और मार्च के बीच. हुआ यूं कि रवींद्र को न्यूजीलैंड में चमकने का काफी मौका मिला, जहां उसकी प्रतिभा और क्षमता को निखारा गया.
सुनील समचान ब्रिस्बेन में IT सेक्टर में काम करते हैं, लेकिन इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले, उन्होंने न्यूजीलैंड में क्रिकेट खेलते हुए 12 साल बिताए. उन्होंने वहां के हट डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट क्लब में खेला, जहां रवींद्र एक अलग लीग में खेलते थे.
उन्होंने कहा कि भारत की तुलना में वेलिंगटन में सुविधाएं कहीं अधिक आसानी से और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं और समचान को रवींद्र सहित देश की कुछ शीर्ष प्रतिभाओं के समान स्तर पर खेलने का अवसर मिला.
भारत में रहते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें काफी इंतजार करते हुए समय बिताया. उन्होंने कॉनवे को उदाहरण के रूप में बताया और रैंकों में तेजी से आगे बढ़ने की ओर इशारा किया जो दक्षिण अफ्रीका से आने के तीन साल बाद न्यूजीलैंड के लिए खेलने लगे थे.
कृष्णमूर्ति ने कहा, “भारत और न्यूजीलैंड दोनों में क्रिकेट में अच्छा करने के कई रास्ते हैं और उभरती प्रतिभाओं को निखारने में दोनों देश प्रभावी हैं. एज ग्रुप क्रिकेट और घरेलू क्रिकेट जैसी कई समानताएं भी हैं. हालांकि, दोनों देशों की प्रणालियों के बीच कई अंतर भी है.”
कृष्णमूर्ति ने कहा, “भारत में प्रतिभाओं की बड़ी संख्या और क्रिकेट की महत्वाकांक्षा क्रिकेटरों को कई अवसर देती हैं. और यह राज्य-स्तरीय प्रतिनिधित्व के साथ मिलकर एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल बनाता है जिसमें प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए अपने कौशल दिखाने के लिए पर्याप्त जगह होती है.”
कृष्णमूर्ति ने कहा, “दूसरी ओर, लगभग 4.5-5 मिलियन की आबादी वाले न्यूजीलैंड में प्रतिभा सीमित है. यहां क्रिकेट एक ग्रीष्मकालीन खेल है. हालांकि यहां भी प्रचुर अवसर हैं, लेकिन वे भारत की तुलना में काफी कम हैं.”
उन्होंने कहा कि देश में केवल छह घरेलू टीमें हैं, जो इसके प्रतिभा पूल का अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने आगे कहा, “न्यूजीलैंड में खिलाड़ियों के लिए काफी स्पष्ट है और यह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में देश की सफलता की प्रभावशीलता को दिखाती है.”
समचान रवींद्र को एक प्रतिबद्ध, मेहनती खिलाड़ी के रूप में याद करते हैं. समचान कहते हैं, “वह अपना अधिकतर समय नेट पर बिताता है. जाहिर तौर पर हम सभी उसे जानते थे, क्योंकि वह अंडर-19 टीम का भी नियमित सदस्य था. लेकिन उसे ग्लैमर का कोई शौक नहीं था.”
दरअसल, जब समचान ने 2021 में हट डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट क्लब के लिए “साल का सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस” जीता तो रवींद्र उनके लिए ताली बजाने वालों लोगों में से सबसे आगे थे.
2011 में केरल से आकर बसने वाले समचान ने कहा, “मैं अपनी पत्नी से भी कहता हूं, अगर मैं कॉलेज में रहते हुए यहां आ जाता तो कम से कम मैं घरेलू तो खेल ही सकता था. भारत में, हम केवल इसके बारे में सपना देख सकते हैं.”
रातोरात बना क्रिकेट सेलिब्रिटी
इस बीच, वर्ल्ड कप में तीन जादुई शतक के साथ ही रवींद्र के दादा के पास कॉल और सेल्फी लेने वालों की भीड़ बढ़ गई है.
विजया कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल बालकृष्ण अडिगा, मीडिया को वही कहानियां बताने से थक गए हैं, लेकिन उन्हें अपनी नई प्रसिद्धि की आदत हो गई है. अडिगा ने हंसते हुए दिप्रिंट से कहा, “हम रातोंरात सेलिब्रिटी बन गए हैं. अब हम जहां भी जाते हैं, दोस्त और रिश्तेदार हमारे साथ सेल्फी लेना चाहते हैं. मैं उन्हें बताता रहता हूं कि मैं केवल उसका दादा हूं, कोई स्टार नहीं.”
रवींद्र के दादा-दादी दोनों ने अपने पोते की जर्सी पहनकर पाकिस्तान के खिलाफ चिन्नास्वामी स्टेडियम में रिकॉर्ड तोड़ने वाली पारी देखी थी. अडिगा श्रीलंका के खिलाफ मैच में शामिल नहीं हो सके क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन उनकी पत्नी, बेटे और बहू ने रवींद्र को लाइव देखा. बेशक, अडिगा ने मैच टेलीविजन पर देखा.
यह अभी भी रवीन्द्र को मिल रहे अटेंशन का एक अंश मात्र है.
एपलटन कहते हैं, “न्यूजीलैंड क्रिकेट को लेकर आप भारत और श्रीलंका में जिस स्तर का जुनून देखते हैं, वह अपने देश में न्यूजीलैंड के सभी प्रशंसकों में भी नहीं दिखता है. यह दक्षिण एशियाई संस्कृति में क्रिकेट के बारे में कुछ ऐसा है जो स्पेशल है जिसे आप दुनिया में कहीं और उसी हद तक नहीं देखते हैं. इसलिए जब हमारे क्रिकेटर न्यूजीलैंड की तुलना में दक्षिण एशिया में खेलते हैं तो उन्हें शायद अधिक ‘हीरो’ का अनुभव होता है.”
कृष्णमूर्ति सहमत हैं. वह कहते हैं, “यह सही या गलत होने का मामला नहीं है; यह बस स्थानीय क्रिकेट संस्कृति के बारे में है.”
अडिगा के अनुसार, परिवार रवींद्र की रातोंरात सेलिब्रिटी बनने से चिंतित है. उनका मानना है कि जो तेजी से सेलिब्रिटी बनने में कभी तेजी से गिरावट भी देखने को मिलती है.
अडिगा ने कहा, “उनकी सफलता उम्मीद से थोड़ा पहले आई है. अगर वह वही स्थिति बनाए रखता है, तो यह ठीक है. उसने हमें बहुत गौरवान्वित किया है.”
रेड्डी को यकीन है कि रवींद्र का परिवार उनके पैर ज़मीन पर रखने में मदद करेगा और वह प्रदर्शन करना जारी रखेंगे. वह आगे कहते हैं, “यदि आप तैयार नहीं हैं तो रिजल्ट देखने को नहीं मिलेंगे. यह खेल चीज़ों को बार-बार करने के बारे में है.”
वह कहते हैं, “उसके साथ, कुछ भी नहीं बदला है. अब सिर्फ उनकी जीवनशैली बदलेगी.”
‘स्टार उभर रहा है’
9 नवंबर को चिन्नास्वामी स्टेडियम में मौजूद दो 17 वर्षीय लड़कों ने लगभग दो सप्ताह पहले तक रवींद्र के बारे में कभी नहीं सुना था. लेकिन वह वही था जिसे देखने के लिए वे सबसे अधिक उत्साहित थे. उसमें से एक को कहा गया था कि वह रवींद्र जैसा दिखता है.
उसमें से एक ने कहा, “मैंने उनके बारे में पहले कभी नहीं सुना था लेकिन अब जाहिर तौर पर मैं भी उसके जैसा दिखता हूं!” वह स्कूल छोड़कर मैच देखने आया था. उसने आगे कहा, “सचिन-सचिन की जगह अब रचिन-रचिन चल रहा है.”
और यह सिर्फ बेंगलुरु के लड़के नहीं हैं जो रवींद्र में कुछ खास देख रहे हैं.
सेवानिवृत्त IT प्रोजेक्ट मैनेजर गॉर्डन फ्रिसवेल ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में अपने लिविंग रूम में बैठे क्रिकेट मैच देख रहे थे जिसमें रवींद्र ने वर्ल्ड कप में तेंदुलकर के शतकों का रिकॉर्ड तोड़ा था. फ्रिसवेल कहते हैं, “मैंने इसे देखा, और सोचा कि ‘वाह! मुझे इस आदमी से मिलने जाना है”. फ्रिसवेल ने तुरंत वर्ल्ड कप के बेंगलुरु चरण के लिए टिकट बुक कर लिया और “अब वह एक सितारे को उभरते हुए देख रहे हैं.”
उनके करीबी लोगों में, यह रवींद्र के दोस्त और परिवार हैं जो उनके माता-पिता की प्रशंसा करते हैं.
हालांकि, कृष्णमूर्ति ने कहा, “जो रिपोर्ट किया जा रहा है उस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम रचिन को क्रिकेट में सपोर्ट और प्रोत्साहन देखना चाहते हैं.”
वास्तव में, 4 नवंबर को पाकिस्तान के खिलाफ उनकी रिकॉर्ड तोड़ने वाली पारी के ठीक बाद, रेड्डी और कृष्णमूर्ति ने इस तथ्य को भी सामने नहीं लाया कि रवींद्र ने किसी और का नहीं बल्कि तेंदुलकर का रिकॉर्ड तोड़ा है. रेड्डी के बच्चों ने कृष्णमूर्ति को मैसेज भेजकर बधाई दी, लेकिन दोनों दोस्तों और कोचों का ध्यान मैच के बाद के विश्लेषण पर केंद्रित था.
वो कहते हैं, “रिकॉर्ड कोई मायने नहीं रखता. रचिन की सफलता पर जश्न मनाने की कोई ज़रूरत नहीं थी, केवल उसकी क्षमता पर विश्वास था.”
रेड्डी ने कहा, “वह सिर्फ अपना काम कर रहे थे, लेकिन एक अलग, ऊंचे मंच पर.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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