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Wednesday, 8 May, 2024
होमफीचरIIT बनाम BHU की जंग में, उठी दीवार की मांग! क्या इससे महिलाओं पर यौन हमले रुकेंगे?

IIT बनाम BHU की जंग में, उठी दीवार की मांग! क्या इससे महिलाओं पर यौन हमले रुकेंगे?

जनवरी से अब तक, बीएचयू और आईआईटी-बीएचयू की 8 महिलाओं ने उत्पीड़न किए जाने की सूचना दी है. लेकिन हाल के दो हमलों ने परिसर को राजनीतिक विरोध में बदल दिया है.

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वाराणसी: उन्नीस साल की रश्मी* वह दिन भूल नहीं पा रही है.  जब वह 107 पुराने प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अपने होस्टल से अपने लेक्चर हॉल की तरफ जा रही थीं. और उनपर किसी ने हमला कर दिया था.

घटना 25 जनवरी 2023 की दोपहर दिनदहाड़े हुई थी. रश्मी देख नहीं सकती हैं, वह उस भयानक दिन को याद करते हुए कहती हैं,  “वह मेरे शरीर पर हाथ फेरने लगा और मेरी पैंट खींचने लगा था.

मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं और भगवान से  मेरी मदद करने के लिए प्रार्थना करने लगी. तभी बीएचयू का एक कर्मचारी आया और उसने मुझे बचाया.”आज, कैंपस में महिलाओं की सुरक्षा के लिए रश्मी की शुरू की गई लड़ाई राजनीतिक विरोध और विरोधी छात्र संगठनों के बीच उपजे फूट  के बीच दब कर रह गई है.1,300 एकड़ का विशाल विश्वविद्यालय परिसर, जिसका एक हिस्सा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बीएचयू वाराणसी के साथ साझा किया जाता है, एक शिकारगाह में तब्दील होता जा रहा है, जहां महिलाएं शिकार बन रही हैं.

खगोल वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लिकर, वैज्ञानिक सीएनआर राव, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला और अकादमिक और नारीवादी वीना मजूमदार जैसे प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों वाला ऐतिहासिक परिसर को अब तेजी से एक नया टैग दिया जा रहा – महिलाओं के लिए असुरक्षित.

जनवरी से अब तक, बीएचयू और आईआईटी-बीएचयू की आठ महिलाओं ने पुरुषों द्वारा उत्पीड़न, छेड़छाड़ और अपमानित होने की शिकायत दर्ज कराई है.

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इस वाक्ये ने बीएचयू के छात्रों को उनके आईआईटी समकक्षों के खिलाफ खड़ा कर दिया है; संघ परिवार से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) और भगत सिंह छात्र मोर्चा समेत अन्य छात्रों ने वाराणसी पुलिस स्ट्रीट लाइट लैंप और सीसीटीवी जैसे बुनियादी सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने में कथित रूप से विफल रहने के लिए वाराणसी पुलिस और प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया. लड़कियों के हो रहे हमलों ने उस विश्वविद्यालय में राजनीतिक और सामाजिक छात्रों सक्रियता को बढ़ा दिया है. बता दें कि यहां 2014 से चुनावों पर प्रतिबंध लगा हुआ है. बीएचयू के अंदर का ये तनाव अब इसकी चार दीवारी के बाहर फैल गया है.

विपक्षी नेता प्रियंका गांधी ने परिसरों में सुरक्षा स्थिति पर जवाब मांगा है, जबकि एबीवीपी ने यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय राय पर “घटिया राजनीति” के साथ प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों को बदनाम करने का आरोप लगाया है.

जिन 10 महिलाओं के साथ परिसर में हमला हुआ है उनमें से पांच आईआईटी-बीएचयू से हैं और बाकी पांच बीएचयू से थीं.

इस हमले के बाद से एकबार फिर परिसर में भय का माहौल बन गया है, यहां तक कि पूर्व छात्र परिसर को सुरक्षित रखने के लिए “बंद परिसर” की मांग कर रहे हैं. और इस मांग ने छात्र संघर्ष को और बढ़ा दिया है.

जहां आईआईटी-बीएचयू के छात्र परिसर में “हरित क्षेत्र” चाहते हैं, वहीं बीएचयू के छात्रों का कहना है कि इसे विभाजित करने का कोई भी प्रयास विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय के लोकाचार के खिलाफ होगा, जिन्होंने संस्थान को “सभी प्रकार की शिक्षा” की राजधानी के रूप में देखा था. जहां प्राची (पूर्व) प्रतीची (पश्चिम) से मिलती है. संभावित विभाजन को लेकर आशंकाएं वाराणसी पुलिस द्वारा आईआईटी-बीएचयू को दिए गए आश्वासन से उत्पन्न हुई हैं कि दोनों विश्वविद्यालयों को अलग करने के लिए एक दीवार का निर्माण किया जाएगा.

विश्वविद्यालय में होने वाली सारी बातचीत अब गर्मागर्म विरोधों, प्राइड, शिकारियों और प्रदर्शनों में फंस गई है. और महिलाओं की सुरक्षा पिछड़ गई है. दर्ज किए गए आठ मामलों में से पुलिस ने सात एफआईआर दर्ज की हैं और 11 लोगों को गिरफ्तार किया है. सभी जमानत पर बाहर हैं.

बीएचयू में महिला प्रदर्शनकारी | शिखा सलारिया/दिप्रिंट

हमले और विरोध प्रदर्शन ने रश्मी के कॉलेज के जीवन के पूरे अनुभव को कड़वी यादों मे तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. यह वह कैंपस लाइफ नहीं है जिसके बारे में उसने कॉलेज में एडमिशन लेते समय सपने सजोए थे. इतिहास ऑनर्स की छात्रा के रूप में नवंबर 2022 में रश्मी ने बीएचयू में दाखिला लिया था.

विश्वविद्यालय की नाराज युवा महिलाओं का कहना है कि बीएचयू और आईआईटी-बीएचयू दोनों को परिसर की सुरक्षा कड़ी करने और परिसर में अधिक सीसीटीवी लगाने की योजना पर काम करने की जरूरत है. यौन उत्पीड़न के खिलाफ बनाई गई जेंडर सेंसीटाइजेंशन समिति (जीएसकैश) की अनुपस्थिति में, हुई बातचीत पीड़ित को दोष देने और राजनीतिक कीचड़ उछालने में बदल गई है.

ग्राफ़िक्स मनीषा यादव द्वारा | दिप्रिंट

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मानव रहित, रोशनी रहित सड़कें

परिसर में महिलाओं के साथ पिछले दिनों हुए दो हमलों ने रश्मी के घाव को एकबार फिर हरा कर दिया है और उसकी सुरक्षा की नाजुक भावना को झकझोर कर रख दिया है.

30 अक्टूबर की रात को, चार लोगों ने एक छात्र के साथ मारपीट की और उसके साथ मौजूद आईआईटी-बीएचयू की एक छात्रा के साथ छेड़छाड़ की. दो दिन बाद, लगभग रात 1:30 बजे, तीन लोगों ने 19 वर्षीय आईआईटी-बीएचयू छात्रा को उसके पुरुष मित्र से जबरदस्ती अलग कर दिया, उसके कपड़े उतार दिए और फिर पूरी घटना को अपने सेल फोन पर रिकॉर्ड करते हुए उसके साथ मारपीट की. यह घटना आईआईटी-बीएचयू परिसर में स्थित कर्मन वीर बाबा मंदिर के पास हुई.

इन घटनाओं से परिसर में विरोध की लहर दौड़ गई है क्योंकि छात्रों ने खराब स्ट्रीट लाइट, टूटे हुए सीसीटीवी, गार्ड की कमी और खराब रोशनी वाले क्षेत्रों की ओर इशारा किया. यहां तक कि भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी, महिलाओं ने बताया है कि छात्र उन्हें घूरने और भद्दे कमेंट्स करते हैं.

महिला छात्राएं अब परिसर में अपने दोस्तों के साथ ही घूमना पसंद करती हैं और चौकन्नी रहती हैं. वह यह भी ध्यान रखती हैं कि वे रात में बाहर न जाएं या दिन के समय सुनसान और एकांत जगहों पर न जाएं. लेकिन भय और आत्म-संरक्षण के कारण उठाए गए ये उपाय सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं हैं.

रश्मि पर दिन में हमला हुआ. बाइक पर एक आदमी ने उसे सड़क पर चलते देखा और उसे उसके गंतव्य तक छोड़ने की पेशकश की. उसकी अनिच्छा के बावजूद वह जिद पर अड़ा रहा और पीछा करता रहा.

बी एच यू परिसर में सुनसान, सुनसान सड़कें | शिखा सलारिया/दिप्रिंट

वह याद करते हुए कहती हैं, “मैंने उसे मना कर दिया, लेकिन वह बार बार मुझे कहता रहा कि वह केवल मदद करना चाहता है. फिर मैंने उसे मैत्रेयी चौराहे तक छोड़ने के लिए कहा, क्योंकि मैं कैंपस में नई थी.”

लेकिन जब उसने बाइक रोकी, तो उसे एहसास हो गया कि उसने रास्ता बदल लिया है. मैत्रेयी चौराहा आमतौर पर बनारस का एक व्यस्त, भीड़-भाड़ वाला इलाका है- लेकिन यहां इतना सन्नाटा था कि बहरा भी सुन ले.

उसने आरोप लगाया कि उसका हमलावर – जिसे वह पूर्व डीन के बेटे के रूप में पहचानती है – जानबूझकर उसे कृषि विज्ञान संस्थान, बीएचयू से सटी सड़क पर ले गया, जहां कम आवाजाही होती है.

वह कहती हैं, “उस समय आसपास कोई नहीं था. उसने मुझे छूना शुरू कर दिया और मुझपर हमला किया. उस समय बीएचयू के एक बुजुर्ग कर्मचारी [जो घटनास्थल पर पहुंचे थे] वहां पहुंचे और मुझे बचाया,” वाराणसी पुलिस ने एक दिन बाद उसे पीछा करने समेत आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया, लेकिन कुछ ही घंटों में वह जमानत पर बाहर आ गया.

हमले के मद्देनजर, विकलांग छात्रों ने भी पुलिस स्टेशन के बाहर बेहतर बुनियादी ढांचे, महिलाओं के लिए सुरक्षित छात्रावास, स्ट्रीट लाइट और सुरक्षा गार्ड की मांग को लेकर जबरदस्त प्रदर्शन किया और कार्रवाई की मांग की.

लेकिन ज़मीनी स्तर पर बहुत बदलाव नहीं हुआ.

कॉमर्स फर्स्ट ईयर की छात्रा सिमंती कहती हैं, ”आर्ट फैकल्टी और आईआईटी गेट के पास ऐसे क्षेत्र हैं जहां स्ट्रीट लाइटें काम नहीं करने के कारण अंधेरा रहता है.”

छात्र संगठनों ने काम न कर रहे सीसीटीवी की ओर इशारा किया. मुख्य विश्वविद्यालय परिसर में केवल 69 कैमरे लगाए गए हैं. बीएचयू के प्रॉक्टर सुजीत कुमार सिंह ने दावा किया कि वे काम कर रहे हैं, लेकिन स्वीकार किया कि कुछ पुराने सीसीटीवी में विजिबिलिटी की समस्याएं हैं. छात्र उनके दावों का खंडन करते हैं -यह दर्शाता है कि स्टूडेंट का प्रशासन में विश्वास की कमी है.

नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) की बीएचयू इकाई की सदस्य वंदना का दावा है, “छात्रों ने कई आरटीआई दायर की हैं और बताया कि केवल तीन-चार सीसीटीवी ही काम करते हैं.”

रश्मि तो अधिकारियों की नजरअंदाज किए जाने की भी शिकायत करती हैं. वह कहती हैं कि जब उन्हें होस्टल का कमरा दिया गया जो उन्हें ठीक नहीं लगा था क्योंकि वह एक अलग-थलग स्थान पर था.

वह कहती हैं, “मैंने इसे बदलवा लिया, और दो दिनों के भीतर, मुझे पुराने बी1 छात्रावास में [एक कमरा] आवंटित कर दिया गया. लेकिन मुझे वो लोकेशन भी पसंद नहीं आई. बगल की सड़क भी सुनसान थी. मैंने आर्ट फैकल्टी के डीन से इसे बदलने का अनुरोध किया, लेकिन उन्हें बताया गया कि यह नियमों के खिलाफ है. ”

25 जनवरी को उसके साथ छेड़छाड़ होने के बाद अधिकारी कमरा बदलने को बाध्य हुए.

क्या बाहरी लोग दोषी हैं?

हाल की दो घटनाओं में बाहरी लोगों के शामिल होने की संभावना एक अहम मुद्दा बन गई है. हालांकि, जनवरी में, बीएचयू के छात्रों को परिसर में उत्पीड़न की चार घटनाओं में से एक में शामिल पाया गया था. नेत्रहीन छात्रा से छेड़छाड़ के आरोप में बीएचयू के पूर्व डीन का बेटा गिरफ्तार किया गया जबकि 13 जनवरी को हुई एक अन्य घटना में, एक बाहरी व्यक्ति ने बीएचयू के हैदराबाद गेट के ठीक बाहर एक महिला पर हमला किया.

24 साल की आरोही* कहती हैं, ऐसी धारणा है कि अगर कोई लड़की रात में बाहर निकलती है, तो वह यौन अपराधियों के प्रति संवेदनशील होती है.

और किसी पुरुष मित्र की उपस्थिति इसमें कोई समस्या नहीं है. वह अपने अनुभव से कहती है, “एक अपराधी उसे एक आसान लक्ष्य मान सकता है क्योंकि वह एक पुरुष के साथ है.”

4 जनवरी को, रश्मि पर हमले से कुछ हफ्ते पहले, आरोही और उसके पुरुष मित्र पर चार लोगों ने हमला किया था, जिनकी पहचान बाद में बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म के छात्रों के रूप में की गई.

एफआईआर के मुताबिक आरोपी नशे में थे. उन्होंने उसके पुरुष मित्र के साथ मारपीट की, उसका पर्स और फोन छीन लिया और वापस बीएचयू परिसर में रुइया ब्वायज होस्टम में घुस गए.

दिप्रिंट ने जिन महिलाओं से बात की, उन्होंने कहा कि वे अधिक सुरक्षा गार्ड और मौजूदा गार्ड्स द्वारा अधिक निगरानी चाहती हैं.

सीमा* जो इस समय अपनी दोस्त वर्षा* के साथ थीं जब 21 जनवरी की रात 9.40 बजे के आसपास लिम्बडी हॉस्टल चौराहे के पास चार लोगों द्वारा कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया था. वह कहती हैं, “सुरक्षा गार्ड उन पुरुष छात्रों पर आसानी से हावी हो जाते हैं जो नखरे दिखाते हैं. कभी-कभी, शिकायतों के प्रति उनका दृष्टिकोण यह होता है कि यह पीड़िता की गलती है.”

आईआईटी-बीएचयू प्रशासन का कहना है कि वह परिसर में सुरक्षा कड़ी करने के लिए बीएचयू प्रबंधन के साथ काम कर रहा है. अकेले तकनीकी संस्थान में लगभग 219 सुरक्षा गार्ड हैं, लेकिन वर्तमान में लगभग 50 छुट्टी पर हैं.

“छात्रों की मांगों पर विचार करने के लिए चार प्रोफेसरों की एक समिति बनाई गई है. आईआईटी-बीएचयू के पीआरओ कार्यालय के कनिष्ठ अधीक्षक उत्कर्ष श्रीवास्तव कहते हैं, ”हमने कृषि विज्ञान संस्थान और उस स्थान के पास अंधेरे क्षेत्रों में रोशनी लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है जहां घटना हुई थी.”

बीएचयू में वर्तमान में 270 सुरक्षा गार्ड हैं और प्रशासन और अधिक नियुक्त करने की योजना बना रहा है. प्रॉक्टर का कहना है, ”350 सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया चल रही है.”


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महान दीवार

पिछले कुछ दिनों में, विशाल परिसर में नारे गूंज रहे हैं, क्योंकि छात्र, उनके नेता और पूर्व छात्र विरोध और एकजुटता मार्च के लिए इकट्ठा हो रहे हैं. ‘महामना की कामना, सद्भावना, सद्भावना’ की पुकार अन्य सभी से ऊपर सुनी जा सकती है.

कई दिनों तक छात्र कार्यकर्ताओं ने बीएचयू के लंका गेट पर कब्जा कर रखा था. 4 नवंबर को उन्होंने आरोप लगाया कि एबीवीपी सदस्यों ने उन पर हमला करने का प्रयास किया. कई छात्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हमलावरों ने “नक्सली दलाल वापस जाओ, जिन्ना के दलाल वापस जाओ” और “वामपंथ की एक दवाई, जूता चप्पल और कुटायी” जैसे नारे लगाए. वामपंथियों के लिए, उन्हें जूते-चप्पलों से मारो)”. वाराणसी पुलिस, जो पहले से ही मौके पर थी, ने भगत सिंह छात्र मोर्चा और आइसा प्रदर्शनकारियों को लंका गेट खाली करने के लिए मजबूर किया. जैसे ही समूह आपस में भिड़े, महिलाओं सहित छात्र कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बीएचयू गार्ड और पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया.

कई दिनों तक छात्र कार्यकर्ताओं ने बीएचयू के लंका गेट पर कब्जा कर रखा था शिखा सलारिया/दिप्रिंट

बीएचयू एशिया के सबसे बड़े आवासीय संस्थानों में से एक है. 1916 में इसके शिलान्यास समारोह में, एमके गांधी ने स्वशासन पर अपना पहला भाषण दिया और अंग्रेजी भाषा की आलोचना की. सौ साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया.

दिल्ली के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जो है, वही उत्तर प्रदेश के लिए बीएचयू है. यह कई हिंदी पट्टी के राजनेताओं के लिए पेट्री डिश रही है. इसके छात्र नेता आगे चलकर राजनेता, पद्म पुरस्कार विजेता, सांसद बने, जिनमें मनोज सिन्हा, राजेश कुमार मिश्रा और केदार नाथ सिंह शामिल हैं. 2014 में, हिंसा से प्रभावित छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

जब 2012 में बीएचयू की प्रौद्योगिकी शाखा को आईआईटी का दर्जा दिया गया, तो यह विश्वविद्यालय के लिए गर्व का क्षण था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों से आने वाले छात्र एक बंद परिसर की मांग कर रहे हैं.

दीवार की मांग सबसे पहले 2 नवंबर के हमले के बाद वाराणसी पुलिस और आईआईटी प्रशासन के साथ बैठक में आईआईटी-बीएचयू के छात्र संसद ने उठाई थी. वाराणसी पुलिस ने एक कदम आगे बढ़कर उन्हें आश्वासन दिया कि दीवार बनवाई जाएगी. लेकिन यह मांग बीएचयू के छात्रों को रास नहीं आई. 5 नवंबर को, मुख्य बीएचएस परिसर के छात्र, पूर्व शिक्षक और पूर्व छात्र दीवार के निर्माण का विरोध करने के लिए एक साथ आए.

बीएचयू की एनएसयूआई इकाई के अध्यक्ष राजीव नयन कहते हैं, “बीएचयू प्रशासन और [the] पुलिस बहुत लापरवाह है. भले ही आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है, पुलिस प्रदर्शनकारी छात्रों को हिरासत में ले रही है और छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वे जो समाधान दे रहे हैं, वह है बीएचयू को विभाजित करना. ”

बी.एच.यू. के पूर्व कुलपति पंजाब सिंह ने आरंभ में ही विशिष्ट आईआईटी और शेष बी.एच.यू. के बीच इन विभाजनों का पूर्वानुमान लगा लिया था. जब बीएचयू को आईआईटी का दर्जा देने का विधेयक संसद में पेश किया गया, तो उन्होंने पूर्व राज्यसभा सांसद करण सिंह को सुझाव दिया कि विधेयक में यह अनिवार्य होना चाहिए कि बीएचयू प्रशासन तकनीकी विंग का प्रबंधन जारी रखेगा. उन्हें आशंका थी कि अलग-अलग प्रशासनिक प्रणालियों से अंततः मतभेद विकसित होंगे.

वे कहते हैं, “उन्होंने (करण सिंह) मुझसे कहा कि प्रावधान बाद में जोड़ा जा सकता है, लेकिन मैंने उन्हें चेतावनी दी कि ऐसा कभी नहीं होगा – एक दिन आएगा जब आईआईटी और बीएचयू दो अलग-अलग प्रणालियों के रूप में विकसित होंगे और दोनों के बीच एक दीवार बनाई जाएगी . लेकिन उस समय [प्रशासन पर] बहुत दबाव था.”

सिंह आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकेते उन्होंने क्या कोई गलती की है.

‘तुम रात को बाहर क्यों गई?’

महिलाओं पर हुए आठ हमलों से बी.एच.यू. परिसर में फैली एक तरह की बीमारी उजागर होती है. यह एक खुला रहस्य है कि हमलों की संख्या बहुत अधिक है, जो केवल महिलाओं के चुप रहने के कारण छिपी हुई है. वर्षों से छात्र मांग कर रहे हैं कि एक जीएसकैश समिति गठित की जाए, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.

बीएचयू प्रॉक्टर का कहना है, ”हमें उम्मीद है कि जल्द ही कोई बड़ा फैसला आएगा.”

सहानुभूति के बजाय, उत्पीड़न के शिकार लोगों को अपने साथियों से सवालों की बौछार का सामना करना पड़ता है. वह रात को बाहर क्यों गई? उसने किसी अजनबी से लिफ्ट क्यों ली? सबसे पहले वह इतनी एकांत जगह पर क्या कर रही थी?

प्रॉक्टर के मुताबिक सुरक्षा शिक्षकों, शिक्षकेतर कर्मचारियों के साथ ही छात्रों की भी संयुक्त जिम्मेदारी है. सिंह कहते हैं, “केवल बार-बार दी गई चेतावनियां ही उन्हें [छात्रों को] यह एहसास दिलाने में मदद कर सकती हैं कि वे उन क्षेत्रों में जाकर कुछ गलत कर रहे हैं, जहां उन्हें न जाने की चेतावनी दी गई है और हमारा प्रयास उस दिशा में जारी है.”

इसके अलावा, महिला छात्रों पर उनके माता-पिता द्वारा पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दबाव डाला जा रहा है. इस बीच, उनके हमलावर, जमानत पर बाहर हैं लेकिन छिपे रहते हैं.

आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे भगत सिंह छात्र मोर्चा के संयुक्त सचिव सीधी बिस्मिल कहती हैं, “कई मामले दर्ज नहीं किए जाते हैं क्योंकि छात्र- छात्राएं आगे आने से डरती हैं और अपनी आपबीती साझा करने में हतोत्साहित महसूस करती हैं.”

शिकायतों की एक और लेयर ने बीएचयू में असंतोष को बढ़ा दिया है – यहां तक कि आईआईटी-बीएचयू के छात्र भी अपने प्रशासन से नाखुश हैं. अंकिता* और उसकी दोस्त का कहना है कि 17 अक्टूबर की रात को प्रयोगशाला से लौटते समय एक काली एसयूवी में चार लोगों द्वारा उनका यौन उत्पीड़न किए जाने के बाद उन्हें अपने प्रबंधन से अधिक समर्थन की उम्मीद थी.

अंकिता* ने दिप्रिंट को बताया,“जब उन्हें पुलिस ने पकड़ा, तो उन लोगों ने खुद को बीएचयू के छात्र होने का दावा किया, लेकिन किसी के भी पास बीएचयू का पहचान पत्र नहीं था. इससे साबित होता है कि वे बाहरी थे.’ उन्हें कुछ ही घंटों में जमानत दे दी गई,”

वह पुलिस स्टेशन में जाने की संख्या को भूल गई है और अब न केवल आईआईटी-बीएचयू, बल्कि अपने माता-पिता से भी “समर्थन नहीं मिलने” के कारण मामले को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं ले रही हैं. उनके प्रोफेसर ने भी, उन्हें याद दिलाते हुए पीछे हटने का सुझाव दिया कि उनका “मुख्य उद्देश्य पढ़ाई है”.
वह कहती हैं,“हम एक कदम पीछे हटने के बारे में सोच रहे हैं क्योंकि हम मामले को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं. हमें बताया गया है कि हमें पुलिस के सामने पेश होना होगा. अगर प्रॉक्टोरियल बोर्ड से पर्याप्त मदद मिलती तो ऐसा नहीं होता.”

मौजूदा आठ मामलों को बंद न किए जाने के कारण छात्र भी पुलिस के पास जाने से कतरा रहे हैं.

सीमा और वर्षा, जिन पर जनवरी में हमला हुआ था, ने केस छोड़ने का फैसला किया है. वे उन लोगों से प्रतिशोध के डर से थक गई हैं जिन्होंने उन पर हमला किया था. सीमा कहती हैं, ”लड़कियां हमेशा इस आशंका से डरी रहती हैं कि आरोपी और नुकसान पहुंचा सकता है.”

पुलिस जांच से असंतुष्ट आईआईटी-बीएचयू छात्राएं संसद चीफ प्रॉक्टर के इस्तीफे की मांग कर रही है. उनका आरोप है कि उत्पीड़न की शिकायतों को नजरअंदाज किया जा रहा है. कई लोगों का दावा है कि उन्होंने लिंबडी कॉर्नर-राजपूताना छात्रावास क्षेत्र में नशे में धुत्त पुरुषों द्वारा महिलाओं पर हमला करने की बार-बार शिकायतें की हैं.

छात्र संसद के उपाध्यक्ष प्रणव सुरेश कहते हैं, “मुख्य प्रॉक्टर को इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि संदिग्ध लोगों की गतिविधियों के बारे में छात्रों की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.” उन्होंने आरोप लगाया कि प्रॉक्टर कार्यालय एफआईआर दर्ज नहीं करना चाहता था और पुलिस ने 2 नवंबर की घटना को दबाने की कोशिश की, छात्रों से कहा कि इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी. हालांकि, पीआरओ कार्यालय के श्रीवास्तव ने इन आरोपों का खंडन किया. उनका दावा है, ”एफआईआर उसी दिन दर्ज की गई थी.”

कैंपस की कई महिलाओं की तरह, साक्षी सिंह भी बातचीत की दिशा से निराश हैं.
“हमें हमेशा चेतावनी दी जाती है कि हम जहां रोशनी नहीं है और सुनसान इलाकों में न जाएं, लेकिन ऐसे क्षेत्र परिसर में ही क्यों मौजूद हैं?” उन्हें डर है कि इसका परिणाम सुरक्षा के नाम पर महिलाओं पर और अधिक प्रतिबंध होंगे.

क्या छात्रों को कैद में रखना कोई समाधान है? साक्षी कहती हैं, ”महिलाएं घर की चारदीवारी के पीछे भी असुरक्षित हैं.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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