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Sunday, 22 December, 2024
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आगरा का एक वकील, 5 मुकदमे : हिंदू गौरव का अखाड़ा कैसे बने ताजमहल, अटाला मस्जिद और सलीम चिश्ती दरगाह

बाबरनामा से लेकर कनिंघम और एएसआई की पुरानी वार्षिक रिपोर्ट तक — वकील अपने मुकदमों को मजबूत बनाने के लिए इतिहास और पुरातत्व की किताबें पढ़ते हैं.

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फतेहपुर सीकरी (आगरा): उत्तर प्रदेश जानलेवा गर्मी की चपेट में है. पारा अक्सर 45 डिग्री के पार ही रहा है, लेकिन जानलेवा गर्मी 42-वर्षीय अजय प्रताप सिंह को आगरा जिला न्यायालय परिसर की संकरी गलियों से गुज़रने से नहीं रोक सकी, उन्हें हाथों में ऐसी फाइलें थीं जो भारत के इतिहास को दोबारा गढ़ सकती हैं.

लघु न्यायालय के युवा न्यायाधीश मृत्युंजय श्रीवास्तव ने सिंह को सुनवाई की तारीख 8 जुलाई दी है और उनसे अन्य पक्षों को समन भेजने को कहा है. यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शेख सलीम चिश्ती दरगाह प्रबंधन समिति को सूचित किया जाएगा. सिंह ने कहा कि आगरा से 40 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी किले के अंदर स्थित शेख सलीम चिश्ती दरगाह का निर्माण कामाख्या देवी मंदिर के खंडहरों पर किया गया है, जिसका उल्लेख सीकरी के शासक राजा धाम देव के दरबार के कवि विद्याधर की कविताओं में किया गया है, जो 1580-81 से बहुत पहले की बात है, जब दरगाह बनी थी और इस शहर को मुगल बादशाह अकबर ने नहीं बल्कि सीकरवार राजपूतों ने बसाया था, जहां से इसका नाम पड़ा है. यहां तक ​​कि बाबर की जीवनी बाबरनामा में भी सीकरी का ज़िक्र है.

सिंह इतिहास को गढ़ने और हिंदू गौरव को बहाल करने के मिशन पर हैं — जो कभी एक पुरातत्व स्थल थे. ऐतिहासिक ज्ञान और कानूनी ताकत के साथ वन-मेन-आर्मी. यह उनके दावों को मान्यता दिला रहा है और उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के सामने प्रसिद्धि और सम्मान दिला रहा है. भारत की अदालतों में फैले इसी तरह के मामलों के विपरीत, जो धार्मिक रंग और अभियान से जुड़े आंदोलन द्वारा समर्थित हैं, सिंह अपने दावों को पुरातत्व और ऐतिहासिक तर्क तक सीमित रखते हैं. पिछले एक साल में उन्होंने पांच मामले दायर किए हैं और उन सभी का एक ही उद्देश्य है. अतीत में मुसलमानों द्वारा कथित रूप से कब्ज़ा किए गए हिंदू स्थलों को वापस लेने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि ताजमहल तेजो महल है, शेख सलीम चिश्ती दरगाह कामाख्या देवी मंदिर है, शाही ईदगाह श्री कृष्ण जन्मस्थान पर बनी है, जौनपुर में अटाला मस्जिद अटाला देवी मंदिर है और श्री कृष्ण विग्रह की मूर्तियां आगरा की जामा मस्जिद के नीचे हैं. सभी एएसआई संरक्षित स्थल हैं.

सीकरी से 25 किलोमीटर दूर आगरा में स्थित अपने घर पर हाथों में लाल कलावा और पीतल का कंगन पहने हुए, सिंह ने कहा, “हमें अपने इतिहास पर गर्व होना चाहिए. असल, इतिहास को छिपाकर हमारी पहचान को खत्म करने की कोशिश की गई. अगर पहचान ही नहीं होगी तो क्या कोई व्यक्ति आत्मसम्मान के साथ जी पाएगा? यह हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है बल्कि सच्चाई का मामला है और भारत के लोगों को इस सच्चाई को जानने का अधिकार है.”

ग्राफिक : प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट
ग्राफिक : प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

और सिंह ने अपने स्थान सावधानी से चुने हैं — वो स्थान जो पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के दायरे में नहीं आते.

सिंह ने पूजा स्थल अधिनियम की धारा पढ़ते हुए कहा, “एएसआई संरक्षित स्मारक अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते. यह उक्त उप-धाराओं में उल्लिखित किसी भी पूजा स्थल पर लागू नहीं होता है जो प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या पुरातात्विक स्थल या अवशेष है जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (1958 का 24) या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के अंतर्गत आता है.”


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पुरातत्व, बाबरनामा, RTI और बहुत कुछ

सिंह के गले में उनका ब्लूटूथ लटका है और उनका फोन बजता रहता है, क्योंकि वे पांचों मामलों से संबंधित कामों में उलझे हुए हैं. वे साथी वकीलों से केस फाइलों की स्थिति के बारे में पूछ रहे हैं, उन्हें आगरा कोर्ट में बुला रहे हैं और उन्हें अगले दिन होने वाली सीकरी मामले की सुनवाई की याद दिला रहे हैं. वे अपने दोस्त (साथी वकील) से फोन पर कहते हैं कि वे इस बात को लोगों तक पहुंचाएं — हो सकता है कि और वकील भी इसमें शामिल होना चाहें.

हिंदू गौरव की रक्षा करना वकील का हालिया मुद्दा है, जिसे उन्होंने कानूनी पेशे में करीब एक दशक बिताने के बाद चुना है. वे अपने तथ्यों की पुष्टि के लिए प्राचीन ग्रंथ, पुरातत्वविदों की किताबें, बाबरनामा वगैरह पढ़ते हैं और बेशक, आरटीआई उनका आधुनिक हथियार है.

उनकी सूची में पांच और स्थान हैं, जिन पर वे अगले कुछ महीनों में हिंदुओं का दावा करने जा रहे हैं. वाराणसी में धरहरा मस्जिद, जौनपुर में बड़ी मस्जिद, जौनपुर में लाल दरवाजा मस्जिद, संभल में जामा मस्जिद, बदायूं में जामा मस्जिद.

सिंह अपनी याचिकाओं में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जुड़े साक्ष्यों का हवाला देते हैं.

आगरा के बिचपुरी इलाके में अपने घर पर बैठे उन्होंने कहा, “हमारे अकादमिक इतिहास और एएसआई के इतिहास में अंतर है. अकादमिक इतिहास विकृत इतिहास है. एएसआई सरकार की वैज्ञानिक संस्था है, जिसने सीकरी का इतिहास जानने के लिए (1999-2000 के बीच पुरातत्वविद् डीवी शर्मा द्वारा) खुदाई की थी. इससे पता चला कि सीकरी की मूल वास्तुकला इस्लामिक नहीं है और हिंदू ढांचे के अवशेषों का उपयोग करके इस पर नए निर्माण किए गए हैं, जो इमारत की मूल प्रकृति के खिलाफ हैं.”

सीकरी के बारे में ऐसा दावा पहली बार किया गया है. डीवी शर्मा ने दो दशक पहले जब सीकरी की खुदाई की थी, तो उन्हें कुछ टूटी हुई जैन प्रतिमाएं और सरस्वती की प्रतिमाएं मिली थीं. उन्होंने इन खोजों का ज़िक्र फतेहपुर सीकरी के पुरातत्व पुस्तक में किया है. यही सिंह की याचिका का आधार है.

इन दिनों फतेहपुर सीकरी में लोगों के बीच सिंह की याचिका को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं. उनका कहना है कि विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
इन दिनों फतेहपुर सीकरी में लोगों के बीच सिंह की याचिका को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं. उनका कहना है कि विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने किसी पूर्वधारणा से काम नहीं किया, लेकिन जब मैंने खुदाई की, तो सीकरी का चरित्र पूरी तरह बदल गया. 1010 ई. यानी अकबर से 500 साल पहले की टूटी हुई मूर्तियां मिलीं, जिससे साबित होता है कि इस जगह की स्थापना मुगल बादशाह ने नहीं की थी.” हालांकि, एएसआई की वेबसाइट के मुताबिक, सीकरी का निर्माण अकबर ने करवाया था और लोगों की धारणा भी इससे अलग नहीं है. अकबर के जीवनी लेखक अबू फज़ल ने भी अकबरनामा में उल्लेख किया है कि शहर का निर्माण अकबर ने करवाया था.

इन दिनों फतेहपुर सीकरी में सिंह की याचिका को लेकर लोगों में चर्चाएं तेज़ हो गई हैं. उनका कहना है कि विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है.


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अचानक बने वकील

आगरा से 80-किलोमीटर दूर एटा के रहने वाले सिंह खुद को आकस्मिक वकील कहते हैं. उन्होंने 2014 में बरेली लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और 2015 में प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन यह उनकी पहली पसंद नहीं थी या उन्हें कानून में कोई दिलचस्पी नहीं थी. कानून से पहले, उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सभी कोशिशें पूरी कर ली थीं. फिर, कई सालों तक उन्होंने मैनपुरी जिला अदालत में आपराधिक मामले लड़े, लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ.

उन्हें लग रहा था, “कुछ तो कमी है.”

जब सिंह इतिहास के लिए नहीं लड़ रहे होते हैं, तो वे जिम जाते हैं. हालांकि, वे लॉ प्रैक्टिस कर रहे थे, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पाई और यहां तक कि परिवार के सदस्य भी उन्हें कुछ खास हासिल न करने के लिए ताना मारते थे, लेकिन जब इन अदालती मामलों के कारण उनका नाम अखबारों में छपने लगा, तो चीज़ें बदलने लगीं.

वे मुस्कुराते हुए बताते हैं, “अब परिवार वाले मुझे कम ताना मारते हैं.”

सिंह ने आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में एमएससी की है, लेकिन 2008 में यूपीएससी की तैयारी के दौरान वे इतिहास के शौकीन बन गए.

उन्होंने कहा, “मेरा हमेशा से ही विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण रहा है. जब मैंने इतिहास पढ़ना शुरू किया, तो कई विरोधाभासी तथ्य सामने आए, जिससे इस तरफ मेरी रुचि बढ़ने लगी. उसके बाद मैंने कई इतिहास की किताबें पढ़ीं.”

वकील अपने मामलों को मजबूत करने के लिए इतिहास और पुरातत्व की किताबों को लंबे समय तक पढ़ते हैं — बाबरनामा से लेकर कनिंघम के लेखन और एएसआई की पुरानी वार्षिक रिपोर्ट तक, जो उन्हें पुरानी संरचनाओं की मूल प्रकृति को समझने में मदद करती हैं.

सिंह ने कहा, “मेरी लड़ाई हिंदू इतिहास को किताबों से मिटाने के तरीके के खिलाफ है. इतिहासकारों ने मुगल राजाओं के बारे में लिखा है, लेकिन मुगल शासन के दौरान अपनी बहादुरी दिखाने वाले हिंदू राजाओं का उल्लेख नहीं किया और मैं यह बिना किसी भड़काऊ बयान के कर रहा हूं.”

सिंह का दावा है कि वे गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं और अब तक उन्हें सरकार या हिंदू समूहों से कोई समर्थन नहीं मिला है. हालांकि, उनके सोशल मीडिया पोस्ट कुछ और ही बताते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
सिंह का दावा है कि वे गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं और अब तक उन्हें सरकार या हिंदू समूहों से कोई समर्थन नहीं मिला है. हालांकि, उनके सोशल मीडिया पोस्ट कुछ और ही बताते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

कृष्ण के भक्त सिंह की टीम में 4-5 लोग हैं — सभी वकील और इतिहास के जानकार हैं, जिनकी उम्र 40 के आसपास है. उनका काम अतीत में मुस्लिम शासकों द्वारा कब्जाए गए हिंदू स्थलों की पहचान करना है. सिंह की तरह, वे भी एएसआई के दस्तावेज़ और इतिहासकारों के काम को पढ़ते हैं ताकि यह समझ सकें कि इन संरचनाओं के बारे में किसने क्या लिखा है.

हर दिन, सिंह भगवद गीता का हवाला देते हुए व्हाट्सएप स्टेटस डालते हैं. उनके हाल के स्टेटस में से एक है: ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने || प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः. यह मंत्र कृष्ण को दुखों को दूर करने वाला मानता है.

और उनके फेसबुक बायो में लिखा है, “युद्ध में जीत और मृत्यु हमेशा से ही राजपूतों का धर्म रहा है, अनादि काल से यह उनका चरित्र है कि उन्हें कोई डर नहीं है.”

वरिष्ठ अधिवक्ता नरेश सिकरवार ने कहा, “हमारे पास (सीकरी मामले में) पर्याप्त सबूत हैं जो अदालत में हमारे दावों की पुष्टि करेंगे. मैं उनका (सिंह का) समर्थन कर रहा हूं क्योंकि उन्होंने एक नेक काम किया है.”

सिंह का दावा है कि वे गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं और अब तक उन्हें सरकार या हिंदू समूहों से कोई समर्थन नहीं मिला है. हालांकि, उनके सोशल मीडिया पोस्ट कुछ और ही बताते हैं.

सोशल मीडिया पर उनकी एक पोस्ट में लिखा है, “मोदी जी तीसरी बार पीएम बन रहे हैं. तेंदुलकर भी कभी-कभी 90 पर आउट हो जाते थे, अगर इस बार नहीं तो अगली बार वे 400 पार कर जाएंगे.”

हालांकि, उनका कहना है कि वे ऐसी याचिका केवल भाजपा सरकार के दौरान ही दायर कर सकते थे.

उन्होंने कहा, “अभी मुझ पर कोई दबाव नहीं है और न ही मुझे किसी तरह की धमकी मिली है. अगर सरकार अलग विचारधारा की होती तो दबाव होता.”

वे खुद को एक गौरवशाली राजपूत मानते हैं. इस साल मार्च में उन्होंने एक आरटीआई दायर कर एएसआई से जवाब मांगा कि क्या उसके पास कोई दस्तावेज़ है जो साबित करता है कि महाराजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ गौरी को आमंत्रित किया था और जयचंद एक गद्दार था. दायर किए जाने के चार महीने बाद — आरटीआई एनसीईआरटी, इतिहास प्रभाग से लेकर भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार तक पहुंच रही है.

अधिकांश ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, जयचंद ने 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध घोरी की सहायता की थी. उसने पृथ्वीराज चौहान तृतीय के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता के कारण मुहम्मद गोरी का समर्थन किया था.

सिंह ने कहा, “अगर, कागजात नहीं मिलते हैं, तो भारत सरकार को अदालत में जवाब देना होगा कि महाराजा जयचंद गद्दार नहीं हैं और किस आधार पर पूरे क्षत्रिय समुदाय का अपमान किया जा रहा है.”


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वो पांच मामले

सिंह द्वारा किए जा रहे पांच दावों में सबसे बड़ा और संभवतः सबसे विवादास्पद दावा दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल का है. वकील का दावा है कि 17वीं सदी का यह अजूबा भगवान शिव के मंदिर तेजो लिंग महादेव पर बना है.

सिंह ने इस साल मार्च में एएसआई के पास एक आरटीआई दायर की थी, जिसमें ताजमहल इमारत का इतिहास जानने की कोशिश की गई थी. एएसआई ने उन्हें बस स्मारक की वेबसाइट पढ़ने के लिए कहा.

एएसआई की नौकरशाही और सीधे जवाब से संतुष्ट न होकर, सिंह ने “सच्चाई” का पता लगाने के लिए खुद रिसर्च शुरू की और शोधकर्ताओं की अपनी टीम को बाबरनामा, हुमायूंनामा, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के बुलेटिन, एएसआई के एपिग्राफिक इंडिका, विश्वकर्मा प्रकाश-एक पुराने हिंदू ग्रंथ जैसे दस्तावेज़ में डुबो दिया.

उन्होंने कहा, “तेजो शिव के कई नामों में से एक है. यह स्थान हिंदुओं से जुड़ा हुआ है, जिसे एएसआई को पता लगाना चाहिए.”

सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया है कि ताजमहल को डिजाइन करने वाले मूल वास्तुकार का पता लगाना मुश्किल है. आज़ादी से पहले एएसआई और रॉयल एशियाटिक सोसाइटी बंगाल के रिकॉर्ड में इसका ज़िक्र विवादास्पद मुद्दे के रूप में किया गया है. आरटीआई के जवाब में एएसआई ने सिंह को बताया कि ताजमहल में आज तक कोई खुदाई नहीं की गई है. उन्होंने इस मामले में आगरा गजट, एएसआई के पुराने रिकॉर्ड और रॉयल सोसाइटी के रिकॉर्ड का हवाला दिया है.

फतेहपुर सीकरी में स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
फतेहपुर सीकरी में स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सिर्फ शिव ही नहीं, सिंह का कानूनी ज्ञान भी कृष्ण को समर्पित है. इलाहाबाद हाई कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से संबंधित 15 मामलों में से एक सिंह ने दायर किया है.

कृष्ण जन्मभूमि पर एक किताब प्रकाशित करने की योजना बना रहे इस वकील का दावा है कि उनका मामला एएसआई के साक्ष्यों पर आधारित है जबकि अन्य मामलों में इतनी ताकत नहीं है.

सिंह ने कहा, “जिरह के दौरान, अन्य मामलों में याचिकाकर्ताओं के पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है, लेकिन हमारे पास अदालत के सामने पेश करने के लिए बहुत कुछ है.”

पिछले साल किसी समय एक स्थानीय पत्रकार से बातचीत में सिंह की आंखों में आंसू आ गए थे. पत्रकार ने सिंह को बताया कि आगरा में जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान कृष्ण की सदियों पुरानी मूर्ति पड़ी है. यह औरंगजेब का काम था.

पिछले साल 3 अगस्त को सिंह ने कटरा केशव देव मंदिर की विग्रह मूर्तियों के बारे में आगरा जिला न्यायालय में मामला दायर किया था. उनका दावा है कि ये मूर्तियां आगरा की जामा मस्जिद के नीचे हैं.

सिंह ने कनिंघम की 1882-83 में पूर्वी राजपुताना में एक यात्रा की रिपोर्ट का हवाला दिया है, जहां लेखक ने फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर का विवरण प्रस्तुत किया है, जिन्होंने लिखा था कि उन्होंने ‘बड़ी और छोटी दोनों तरह की मूर्तियों को देखा था, जो सभी कीमती रत्नों से सजी हुई थीं और उन्हें बुतपरस्त मंदिरों से उठाकर आगरा ले जाया गया था, जहां उन्हें नवाब कुदिसा बेगम की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया गया था, ताकि लोग उन्हें हमेशा के लिए रौंद सकें.

सिंह ने न्यायालय में जामा मस्जिद का जीपीआर – ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे करने की मांग की है, जिसकी सुनवाई 5 जुलाई को है.

इतिहासकार भी इन दावों में सच्चाई पाते हैं.

आगरा के इतिहास पर विस्तार से लिखने वाले इतिहासकार राजकिशोर शर्मा राजे ने कहा, “औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कर उसके अवशेषों को जामा मस्जिद में दफना दिया था. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन इस मामले को फिर से उठाना और इस आधार पर देश का माहौल खराब करना ठीक नहीं है.”

राजे के मुताबिक, मुस्लिम काल में हिंदू मंदिरों के अवशेषों पर कई मस्जिदें बनाई गईं. उनके पास नई इमारतें बनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था, इसलिए उन्होंने पुरानी जगहों पर इमारतें खड़ी कर दीं. इतिहासकार इस बात से भी सहमत हैं कि इन स्मारकों और स्थलों के हिंदू कनेक्शन के बारे में जानकारी अधिकांश किताबों से गायब है.

राजे ने बताया, “ऐसा सिर्फ आगरा के आसपास ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी हुआ है. पुनर्निर्माण के दौरान कई सबूत पीछे छूट गए. उसी आधार पर हिंदू पक्ष आज दावा कर रहा है. कुछ दावे खोखले साबित होंगे और कुछ दावों में वाकई दम होगा.”

सीकरी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि निर्माण और वास्तुकला से यह पुष्टि होती है कि यह मुस्लिम इमारत नहीं है.

उन्होंने कहा, “बीरबल के महल जैसी कई जगहों पर जिस तरह की वास्तुकला बनाई गई है या पंचमहल में जिस तरह की आकृतियां बनाई गई हैं, वैसी किसी मुस्लिम इमारत में नहीं मिल सकती, जिससे साबित होता है कि अकबर से पहले सीकरी में निर्माण कार्य हुआ था.”

पुरातत्वविद डी.वी. शर्मा का भी मानना है कि सीकरी की वास्तुकला से पता चलता है कि अकबर ने यहां पुरानी संरचनाओं में कुछ नया जोड़कर उनका इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा, “सीकरी में कई चरण हैं. आने वाली पीढ़ी को तय करना होगा कि वे इतिहास को सही करना चाहते हैं या नहीं.”

हालांकि, शर्मा चिश्ती दरगाह के कामाख्या मंदिर होने के दावों पर संदेह करते हैं.

उन्होंने कहा, “यह कहना मुश्किल होगा कि दरगाह वाली जगह ही मंदिर थी, क्योंकि संरचनाओं में बड़े बदलाव किए गए हैं.” साथ ही उनका यह भी मानना है कि अकबर ने केवल चिश्ती दरगाह और बुलंद दरवाज़ा बनवाया था, बाकी सब सीकरवार राजपूतों ने बनवाया था.

17 मई को सिंह ने जौनपुर जिला न्यायालय में 14वीं सदी की अटाला मस्जिद को अटाला माता मंदिर बताते हुए मुकदमा दायर किया, जिसमें यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी पक्षकार बनाया गया है.

सिंह ने कहा, “इसकी वास्तुकला पूरी तरह से हिंदुस्तानी है. किसी समय इसे मस्जिद में बदल दिया गया था. मैं कानून के जरिए इस जगह के वास्तविक स्वरूप को तय करने की लड़ाई लड़ रहा हूं.”

हालांकि, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में इस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, “समाज में वैमनस्य फैलाने के लिए इस तरह के मामले दर्ज़ किए जाते हैं, जितना इतिहास खंगाला जाएगा, वर्तमान में उतने ही विवाद पैदा होंगे. सदियों पहले हुई किसी बात को लेकर अब तनाव क्यों पैदा किया जाए, लेकिन कुछ लोगों ने इसे अपना मिशन बना लिया है.”

सिंह इन मामलों को अगली पीढ़ी के प्रति जिम्मेदारी मानते हैं.

उन्होंने कहा, “मैं ऐसी विरासत देना चाहता हूं, जिससे अगली पीढ़ी को अपने पूर्वजों पर गर्व हो. समाज को कुछ देना बड़ी बात है. भारतीय संस्कृति कई आक्रमणों से बची रही है, क्योंकि हिंदुओं का मूल स्वभाव सहिष्णु है.”

वे जोर देते हैं कि सत्य की हमेशा रक्षा होनी चाहिए और इसके लिए किसी को काम करना होगा.

सिंह ने कहा, “मैंने यह काम अपने हाथ में ले लिया है. लोगों को मेरे तरीकों से परेशानी हो सकती है. अगर सच कड़वा लगता है या कानों को दुख पहुंचाता है, तो भी मैं उसे छोड़ नहीं सकता.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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