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रविवार, 6 जुलाई, 2025
होमफीचर‘आइंस्टीन वीज़ा’ का नया खेल: टॉप साइंटिस्ट्स के लिए बने वीज़ा पर धड़ल्ले से आवेदन कर रहे भारतीय

‘आइंस्टीन वीज़ा’ का नया खेल: टॉप साइंटिस्ट्स के लिए बने वीज़ा पर धड़ल्ले से आवेदन कर रहे भारतीय

भारत में इमिग्रेशन वकीलों और विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि चूंकि EB-1 वीज़ा श्रेणी का मकसद “देश के बेहतरीन लोगों” को वीज़ा देना है, इसलिए इन आवेदनों की जांच आमतौर पर कम सख्ती से होती है.

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नई दिल्ली: कम से कम, कुछ खास दलाल और एजेंट दावा कर रहे हैं कि सिर्फ 20 लाख रुपये में आप अमेरिका का मशहूर ‘आइंस्टीन वीज़ा’ यानी EB-1 वीज़ा हासिल कर सकते हैं, जो आमतौर पर सिर्फ टॉप वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों को मिलता है. इसे ‘क्रेडेंशियल लॉन्डरिंग’ यानी झूठे दस्तावेज़ से योग्य दिखाने की चाल कहा जा रहा है.

डोनाल्ड ट्रंप सरकार के वीज़ा नियमों को सख्त करने के बाद, लिंक्डइन, फेसबुक और टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे विज्ञापन बाढ़ की तरह आ रहे हैं — ‘गारंटी EB-1 वीज़ा’, ‘हमारे एक्सपर्ट राइटर आपके नाम से रिसर्च पेपर पब्लिश करवाएंगे.’

ये एजेंट इमिग्रेशन और रिसर्च सिस्टम का गलत फायदा उठा रहे हैं. वे रिसर्च पेपर लिखवा कर पब्लिश करवा देते हैं. आपको पीयर-रिव्यू बोर्ड (जांच समितियों) का सदस्य बनवा देते हैं. किसी जूरी पैनल में शामिल करवा देते हैं या फिर कोई अवॉर्ड दिलवा देते हैं. ये सारी बातें वीज़ा के लिए बड़ी मददगार मानी जाती हैं.

लेकिन इसका नुकसान भारत की वैज्ञानिक साख को हो रहा है. अब वैज्ञानिक, वकील और इमिग्रेशन नीति विशेषज्ञ इस पर चिंता जता रहे हैं.

Closed Door Policy Consulting के रणनीति और बाहरी मामलों के सलाहकार धर्मिंदर सिंह कलेका ने कहा, “EB-1 वीज़ा कार्यक्रम का मकसद उन लोगों को वीज़ा देना है जो वैज्ञानिक, कलाकार या विद्वान के तौर पर वाकई बेहतरीन हों और जिन्हें दुनिया भर में सम्मान मिला हो, लेकिन जब झूठे दावों के ज़रिए इस वीज़ा को हासिल किया जाता है, तो इससे वीज़ा प्रणाली की साख गिरती है और सही मायनों में योग्य उम्मीदवारों को भी शक की निगाह से देखा जाने लगता है.”

EB-1 वीज़ा, जिसे ‘आइंस्टीन वीज़ा’ भी कहा जाता है, उन लोगों के लिए होता है जो रिसर्च या प्रोफेसर के तौर पर “असाधारण योग्यताएं” रखते हों.

EB-1 वीज़ा के बढ़ते आवेदन अमेरिका के ह्यूस्टन शहर के इमिग्रेशन वकील राहुल रेड्डी की नज़र में भी आए, जब उन्होंने ये विज्ञापन देखे, तो खुद ही इसकी जांच शुरू कर दी.

रेड्डी, जो Reddy Neumann Brown PC में पार्टनर हैं, ने कहा, “हमें EB-1A वीज़ा के लिए काम करने वाली कुछ एजेंसियों को लेकर बेहद गंभीर बातें पता चलीं. कुछ वेबसाइट्स पर नकली अवॉर्ड्स और जज पैनल जैसे फर्ज़ी दस्तावेज़ तैयार कराए जा रहे हैं. कई एजेंसियां इस तरह की धांधली में शामिल हैं. ये एजेंसियां ऐसे कागज़ात बनाती हैं, जो न तो असली होते हैं और न ही अमेरिका की इमिग्रेशन एजेंसी (USCIS) के नियमों पर खरे उतरते हैं.”

जितना प्रोफेशनल दिखेगा आवेदन, उतनी ज्यादा फीस वसूली जाती है. एजेंट भी पूरे भरोसे से कहते हैं कि वे वीज़ा दिलवाकर ही मानेंगे.

कलेका ने चेतावनी दी, “ये कोई छोटी-सी प्रक्रिया में चूक नहीं है, बल्कि गंभीर धोखाधड़ी है.”


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कैसे चल रहा है ये खेल?

फेसबुक पर खुले ग्रुप्स में कई एजेंट सक्रिय हैं, जो ऐसे लोगों को अपनी सेवाएं बेच रहे हैं जो अमेरिका का वीज़ा पाने के लिए ‘अपरंपरागत’ रास्ते अपनाना चाहते हैं.

एक ग्रुप, जिसमें 2,400 सदस्य हैं, में एक पोस्ट में लिखा था — “मैं आपके लिए बेहतरीन रिसर्च आर्टिकल लिखूंगा, जिससे आपकी पब्लिकेशन का रिकॉर्ड बेहतर होगा, आपकी पहचान बढ़ेगी और आपके रिसर्च पेपर को ज्यादा लोग साइट करेंगे.”

एक अन्य अकाउंट, जिसकी प्रोफाइल फोटो AI से बनाई गई थी, खुद को वैज्ञानिक बता रहा था और ‘को-ऑथर’ (सह-लेखक) बनने के लिए जगह बेच रहा था. वह अकाउंट वादा कर रहा था कि वह खुद ही रिसर्च करेगा, आर्टिकल लिखेगा और पब्लिश करवा देगा, बस पैसे देकर आपका नाम भी लेखक में जुड़ जाएगा. कीमत तय होने के बाद यह सेवा मिल सकती थी.

वकील राहुल रेड्डी ने खुद कुछ भारतीय एजेंट्स और दलालों को ग्राहक बनकर कॉल किया. उनके जवाब सुनकर वह दंग रह गए.

रेड्डी ने कहा, “मैंने ऐसे कई विज्ञापन देखे, जिनमें खुलेआम लिखा था — ‘आपको असाधारण प्रतिभा की ज़रूरत नहीं, हम आपके लिए सारी चीज़ें उपलब्ध करवा देंगे’.”

अपनी जांच के दौरान रेड्डी ने खुद को अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट बताया, जो EB-2 वीज़ा से EB-1 वीज़ा में बदलने का रास्ता ढूंढ रहा था. (EB-1 वीज़ा असाधारण प्रतिभा वालों के लिए होता है, जबकि EB-2 वीज़ा उन लोगों के लिए है जिनके पास उन्नत डिग्री होती है. दोनों वीज़ा श्रेणियां ग्रीन कार्ड पाने का रास्ता आसान बनाती हैं, लेकिन EB-1 के लिए अधिक ऊंची उपलब्धियां चाहिए होती हैं.)

रेड्डी ने कहा, “मैंने उन्हें साफ कहा कि मेरे पास कोई बड़ा वैज्ञानिक काम नहीं है, क्या मुझे EB-1 वीज़ा के लिए खुद कुछ करना पड़ेगा? जवाब मिला— ‘हमारे पास कंटेंट राइटर्स हैं, जो आपके लिए सब कुछ कर देंगे’.”

एजेंट्स ने रेड्डी से यह भी कहा कि वे उनके नाम पर अवॉर्ड और सम्मान भी दिला सकते हैं, जो वीज़ा पाने में मददगार होते हैं. सिर्फ 800 डॉलर (करीब 66,000) से शुरू होने वाले भुगतान पर वे अवॉर्ड दिलाने का दावा करते हैं.

इस खुलासे ने रेड्डी को और गहराई से जांच करने के लिए मजबूर कर दिया. उन्होंने इन अवॉर्ड्स की वेबसाइट्स को खंगालना शुरू किया, जो उन्होंने पाया, वो हैरान कर देने वाला था— ग्राहक न केवल पैसे देकर अवॉर्ड पा सकते थे, बल्कि अवॉर्ड देने वाली जूरी के जज भी बन सकते थे. यानी पूरी सर्विस — पेपर लिखवाने, अवॉर्ड पाने, जज बनने से लेकर वीज़ा हासिल करने तक — का पूरा पैकेज 8 लाख से 24 लाख रुपये (10,000 से 30,000 डॉलर) के बीच बिक रहा था.

दिप्रिंट ने भारत के दो ऐसे एजेंट्स से संपर्क किया.

एक एजेंट ने तुरंत फोन काट दिया. दूसरे ने कहा कि वह कोई “गैरकानूनी” काम नहीं करते, उनका काम सिर्फ “मुश्किल वीज़ा प्रक्रिया में मदद” करना है.

धर्मिंदर सिंह कलेका ने कहा, “यह एक समानांतर इकोनॉमी बन चुकी है, जिसमें इमिग्रेशन सफलता अब काबिलियत पर नहीं, बल्कि खरीदी गई छवि पर निर्भर हो गई है. इससे कुशल माइग्रेशन पॉलिसी का मकसद ही खत्म हो रहा है और दुनिया भर के वीज़ा नियमों की साख खतरे में है.”

उन्होंने आगे कहा, “इससे भारत जैसे देशों की भी छवि खराब होती है, जिन्हें अब तक वैश्विक स्तर पर अपने पेशेवर और बौद्धिक योगदान के लिए सम्मान दिया जाता था.”


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एक ब्लॉग पोस्ट से खुली पोल

पिछले साल के आखिर में एक ब्लॉग पोस्ट ने इस पूरे स्कैम की पोल खोल दी. 20 दिसंबर 2023 को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले टेक एक्सपर्ट और वेंचर कैपिटलिस्ट देबर्घ्य दास ने अपने ब्लॉग पर “EB-1A वीज़ा पाने की सबसे बेहतरीन गाइड” पोस्ट की. ये पोस्ट वायरल हो गई.

दास ने लिखा, “कुछ एजेंसियां ऐसी हैं, जो आपकी उपलब्धियों का आकलन कर आपको ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर पब्लिश कराती हैं, जिन्हें इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स पढ़ते हैं.”

उन्होंने कहा कि उनकी पोस्ट उन “कई प्रतिभाशाली भारतीयों” के लिए “व्यवहारिक सलाह” देने के इरादे से लिखी गई है, जो अमेरिका का वीज़ा पाने के लिए “बेबस” होकर इंतज़ार कर रहे हैं.

दरअसल, इस वीज़ा कैटेगरी को अमेरिका में बसने के इच्छुक लोगों के बीच इसलिए पसंद किया जाता है क्योंकि इसके लिए वेटिंग टाइम (इंतज़ार की अवधि) अन्य वीज़ा श्रेणियों के मुकाबले बेहद कम है. इसी वजह से अमेरिका में विदेशियों के लिए यह सबसे अधिक डिमांड वाला वीज़ा बन चुका है, लेकिन यह सबसे मुश्किल भी है.

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों के तहत EB-1A वीज़ा के लिए 10-पॉइंट चेकलिस्ट है. किसी भी आवेदक को इनमें से कम से कम 3 मानकों को पूरा करना होता है.

इसके लिए आवेदक को ये सबूत देने होते हैं: राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार, मान्यता प्राप्त संगठनों की सदस्यता, उनके काम पर प्रकाशित लेख, पुरस्कारों की जजिंग या जूरी में भागीदारी, विज्ञान, कला, खेल, या बिजनेस में मौलिक योगदान, प्रोफेशनल या ट्रेड मैगज़ीन में लेख प्रकाशित होना.

इसके अलावा, कलाकारों के लिए प्रदर्शनियों या शोज़ में भागीदारी, प्रतिष्ठित संगठनों में प्रमुख भूमिका, या अपने क्षेत्र में दूसरों के मुकाबले अधिक वेतन पाने का प्रमाण भी दिया जा सकता है.

भारत के इमिग्रेशन वकीलों और एक्सपर्ट्स ने दिप्रिंट से कहा कि चूंकि EB-1 वीज़ा का मकसद “बेस्ट ऑफ द बेस्ट” यानी टॉप टैलेंट्स को लाना है, इसलिए इसमें आमतौर पर दूसरी वीज़ा श्रेणियों के मुकाबले कम जांच पड़ताल होती है, जहां धोखाधड़ी की आशंका ज्यादा होती है.

राहुल रेड्डी के मुताबिक, USCIS (यूएस सिटिज़नशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज़) ने अब EB-1A और EB-1B वीज़ा कैटेगरी के पहले से मंज़ूर कई मामलों की फिर से जांच शुरू कर दी है. अब शुरुआती स्तर पर ही सख्त जांच हो रही है.

एक्सपर्ट्स के अनुसार, बीते दो साल में भारत से I-140 वीज़ा रद्द होने के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है. I-140 रद्द होने का मतलब है कि विदेशी आवेदक का पहले से मंज़ूर वीज़ा अब रद्द कर दिया गया है.

रेड्डी ने कहा, “हम इस पूरे मामले पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं, ताकि हमारे क्लाइंट्स ऐसी गड़बड़ियों से बच सकें.”

बड़ा असर

साल 2012 में प्रताप राजौरा, जो भारत के एक रिसर्च स्कॉलर हैं, अमेरिका के मशहूर मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में फिजिक्स में पीएचडी कर रहे थे.

कई महीनों तक उन्होंने अपनी EB-2 वीज़ा कैटेगरी को EB-1 में बदलने की कोशिश की, लेकिन अपने क्षेत्र में शानदार काम होने के बावजूद उनका वीज़ा रिजेक्ट कर दिया गया. उनके रिसर्च वर्क को अमेरिका में रहने का “एलीट पास” नहीं मिल सका.

आखिरकार, वो 2016 में भारत लौट आए.

राजौरा ने कहा, “सबसे ज़्यादा दुख इस बात का होता है कि हम जैसे सच्चे रिसर्चर, जिन्होंने सालों मेहनत की है, वीज़ा से वंचित रह जाते हैं और दूसरी तरफ, कुछ लोग सिर्फ एजेंट को पैसे देकर गारंटी के साथ वीज़ा पा जाते हैं.”

एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह स्थिति यह भी दिखाती है कि रिसर्च की सच्चाई और गुणवत्ता को लेकर भारत में सरकारी स्तर पर पर्याप्त निगरानी नहीं हो रही है.

India Research Watch (IRW) के संस्थापक अचल अग्रवाल, जो रिसर्च में गड़बड़ियों पर नज़र रखने वाला भारतीय संगठन है, ने कहा, “यह समस्या भारत के रिसर्च संस्थानों में घटिया और जल्दबाज़ी में तैयार की गई रिसर्च के बढ़ावे का भी संकेत है.”

उन्होंने कहा, “इस तरह की हरकतों से हमारे देश की छवि दुनिया की साइंटिफिक कम्युनिटी में खराब हो रही है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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