scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमफीचरजोशीमठ में जोरों-शोरों से चार धाम यात्रा की तैयारी, पर आपदा प्रभावित लोगों की दिक्कतें जस की तस

जोशीमठ में जोरों-शोरों से चार धाम यात्रा की तैयारी, पर आपदा प्रभावित लोगों की दिक्कतें जस की तस

निवासियों को चिंता है कि चार धाम यात्रा शुरू होने से और तीर्थयात्रियों के आने पर उन्हें इन अस्थायी घरों को खाली करने के लिए कहा जाएगा.

Text Size:

जोशीमठ: 65 साल की भारती देवी जोशीमठ के लकड़ी और टीन से बने शेल्टर में रहती हैं जहां कुछ महीनों पहले तक खच्चर रहा करते थे. जहां खच्चरों के लिए खाना डाला जाता था अब वहां खाना बनाती हैं. जनवरी में उनके घर में आई दरारों के बाद उनका जीवन इसी तरह चल रहा है. उनकी तरह सैंकड़ों लोग हैं जो शेल्टर्स, होटल्स और गेस्ट हाउस में रह रहे हैं और अपने घरों से बेघर होने के बाद से मुआवजे की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे अपने घर नहीं लौट सकते क्योंकि वे सुरक्षित नहीं हैं.

लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा जोशीमठ को चार धाम यात्रा के लिए सुरक्षित घोषित किए जाने के बाद विस्थापितों में नई चिंताएं पैदा हो रही हैं.

इन शेल्टर से सिर्फ दो किलोमीटर दूर स्थानीय बाजार में चार धाम यात्रा को लेकर उत्सव का माहौल है और 50 लाख पर्यटकों के आने का अनुमान है. बद्रीनाथ जाने वालो के लिए जोशीमठ एक स्टॉपेज है जहां लोग सुस्ताने के लिए रुकते हैं. जोशीमठ के बाजारों कारपेंटर बेड बना रहे हैं, होटलों की मरम्मत की जा रही है और दुकानदार अपनी दुकानों में स्टॉक भर रहे हैं.

जोशीमठ के निवासियों के विचार इसको लेकर बंटे हुए हैं.

अभी तीन महीने ही हुए हैं जब भू-धंसाव ने इस कस्बे को हिला दिया था और 800 से अधिक घरों में दरारें आ गईं थी. आखिरी दरार 5 फरवरी को बताई गई थी. अब यात्रा 22 अप्रैल से शुरू होने वाली है और बद्रीनाथ मंदिर 27 अप्रैल को खुलेगा. धामी ने कहा कि तीर्थयात्रियों की संख्या पिछले रिकॉर्ड तोड़ देगी.

उन्होंने कहा, “शहर में अब सब कुछ सुरक्षित है और लोगों के मन में कोई डर नहीं है. राज्य सरकार ने समस्या को दूर करने के लिए सकारात्मक कदम उठाए हैं.”

लेकिन कुछ लोगों के लिए इस बार तीर्थयात्रा के मौसम का आनंद मौन है. दहशत में अपने टूटे घरों को छोड़कर भागे लोग जनवरी से कागजी कार्रवाई में डूब रहे हैं, मासिक निर्वाह के लिए लड़ रहे हैं, आश्रयों से बाहर रह रहे हैं और अधिकारियों के साथ मुआवजे और वैकल्पिक घरों पर बातचीत कर रहे हैं.

59 वर्षीय ऋषि देवी ने ढहते घरों की ओर इशारा करते हुए कहा, “अगर जोशीमठ सुरक्षित है, तो मुख्यमंत्री को हमारे उजड़े हुए घरों और धंसी हुई ज़मीनों को देखना चाहिए और फिर कहना चाहिए कि जोशीमठ सुरक्षित है. जब तक मुख्यमंत्री हमारी बात नहीं सुनेंगे और लिखित आश्वासन नहीं देंगे, तब तक हम सड़कों को जाम कर देंगे और इस यात्रा को नहीं होने देंगे.”

उसके बेटे सरकार द्वारा भुगतान किए गए होटल के कमरों में रह रहे हैं. इससे पहले होटलों से सैकड़ों लोगों को निकालने की तिथि 31 मार्च थी. इसे बढ़ाकर 30 अप्रैल कर दिया गया था. अब इस बात को लेकर चिंता है कि तीर्थयात्रियों के जोशीमठ में आने के कारण लोगों को कब तक होटलों में रहने दिया जाएगा.

ऋषि देवी कहती हैं, “पहले हमें एक सरकारी स्कूल में रखा गया, जब स्कूल खुला तो हमें पशु आश्रय में रखा गया. सरकार यह नहीं देख पा रही है कि हम इंसान हैं जानवर नहीं. हमारा जीवन बिखर गया है.”

क्या जोशमठ सुरक्षित है?

जोशीमठ अभी भी विस्थापन के पैमाने से गूंज रहा है. 868 संरचनाओं में दरारें दिखाई दे रही हैं, जिनमें से 181 असुरक्षित क्षेत्र में हैं, 409 लोग (144 परिवार) किराए पर या रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं और 586 लोग होटलों, गेस्ट हाउसों और आश्रयों में रह रहे हैं. सरकार हर दिन अपडेट करती है.

मुआवजे और पुनर्वास के पहिये धीरे-धीरे चल रहे हैं, लेकिन फिलहाल चार धाम यात्रा ही प्राथमिकता है. टीमें सड़कों को चौड़ा कर रही हैं, टूटे हुए हिस्सों की मरम्मत कर रही हैं और भूस्खलन से बचाव के लिए पहाड़ी सड़कों के कोनों के साथ दीवारें बना रही हैं. 22 अप्रैल की ‘समय सीमा’ को पूरा करने के लिए काम तेजी से चल रहा है.

इन तैयारियों में जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी सबसे आगे हैं.

वो कहती हैं, ”सड़क निर्माण का काम चल रहा है. लाखों लोग यहां से गुजरेंगे और यात्रा को सुगम बनाने के लिए प्रशासन हर संभव प्रयास कर रहा है.”

सड़कों को चौड़ा करने के लिए भारी मशीनरी और बड़ी संख्या में मजदूरों को लगाया गया है. राज्य सरकार ने राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) को बद्रीनाथ की ओर जाने वाली सड़कों का अध्ययन करने और संवेदनशील पाए गए खंडों की मरम्मत करने का काम सौंपा था.

यात्रा रद्द होने का सवाल ही नहीं था. सीएम धामी के मुताबिक इस साल की यात्रा की तैयारी पिछले साल ही शुरू हो गई थी.

उन्होंने कहा, “अब तक, मैंने चार धाम की तैयारियों पर चार बैठकों की अध्यक्षता की है. सुरक्षा हो या डॉक्टरों की तैनाती, हम सभी मुद्दों का ध्यान रख रहे हैं. हम सुनिश्चित करेंगे कि तीर्थयात्री इस मौसम में और भी बेहतर अनुभव के साथ लौटें और उन्हें किसी समस्या का सामना न करना पड़े.”

लेकिन सड़कें ही एकमात्र ऐसी चीज नहीं हैं जिसके बारे में सरकार को चिंता करनी चाहिए. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि जल निकासी प्रणाली समान रूप से महत्वपूर्ण है.

भूविज्ञानी नवीन जुयाल कहते हैं, “लाखों लोग ऐसी जगह आएंगे जहां 20,000 लोग रहते हैं. इसलिए दबाव निश्चित रूप से बढ़ेगा.”

जोशीमठ क्यों डूब रहा हैं, इस पर 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि शहर एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है, जो चट्टान के बजाय रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है. इसने न केवल पहाड़ी के किनारे के बोल्डर को हटाने और विस्फोट करने के खिलाफ चेतावनी दी बल्कि यह भी कहा कि भूस्खलन से बचने के लिए मिट्टी से रिसने वाले पानी को जल निकासी चैनलों के माध्यम से हटाया जाना चाहिए.

नवीन जुयाल कहते हैं, “हर हजारों लीटर पानी की निकासी हो रही है. लेकिन अब सोचिए कि जब लाखों लोग यहां आएंगे, तो क्या होगा. जल निकासी में वृद्धि होगी और भूस्खलन हो सकता है.”

यात्रा के बारे में निवासियों की मिश्रित भावनाएं हैं. तीर्थयात्री अपने साथ व्यापार और व्यापार का वादा लेकर आते हैं. लेकिन सीएम के जोशीमठ को सुरक्षित घोषित करने से लोग नाखुश हैं.

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती कहते हैं, “चार धाम यात्रा आय का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है. लेकिन हमने सीएम को चेतावनी दी है कि अगर हमारी मांगे नहीं मानी गई और लिखित आश्र जब भी तीर्थयात्री आएंगे हम चक्का जाम करेंगे. हमने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है.”


यह भी पढ़ें: दिल्ली का ‘मजनू का टीला’ अब एक भीड़भाड़ वाला मॉल बन गया है, लेकिन अपनी ‘तिब्बती आत्मा’ को खो रहा है


मांगें और विरोध

जोशीमठ के चहल-पहल भरे बाजार के पास एसडीएम कार्यालय के बाहर 105 दिन से रोजाना धरना दिया जा रहा है. कभी-कभी, यहां 50 लोग होते हैं. अन्य दिनों में, सौ से अधिक लोग इकट्ठा होते हैं और जब महत्वपूर्ण घोषणाएं की जाती हैं तो संख्या बढ़कर 300-400 हो जाती है. प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर महिलाएं हैं. वे नारे लगाते हैं, अपनी समस्याएं साझा करते हैं और एक दूसरे को सलाह देते हैं.

सैकड़ों प्रभावित परिवारों ने जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी 11 मांगों में पुनर्वास के प्रयासों में तेजी लाना, जमीन के बदले में जमीन और मकान के बदले मकान देना, रोजगार मुहैया कराना और नुकसान की भरपाई करना शामिल है. ये उनकी तात्कालिक चिंताएं हैं, लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि एनटीपीसी तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत संयंत्र परियोजना पर काम बंद करे और सरकार हेलंग बाईपास और चार धाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के हिस्से को बंद करे. समिति यह भी चाहती है कि जोशीमठ को आपदा प्रभावित घोषित किया जाए.

सती ने कहा, “पिछले चार महीनों से एनटीपीसी परियोजना और बाईपास पर काम रुका हुआ है, लेकिन यह स्थायी नहीं है.”

कुछ दिन पहले इस समिति के प्रतिनिधि धामी से मिले और उन्हें अपनी मांगों के साथ पेश किया. उनका दावा है कि सीएम ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनकी मांगों पर गौर करेंगे और उनसे अपना विरोध समाप्त करने का आग्रह किया. लेकिन समिति संतुष्ट नहीं है. वे सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं.

सती ने कहा, “हम सीएम के साथ हुई बैठक के मिनट्स चाहते हैं ताकि हमें दिए गए आश्वासनों पर कुछ ठोस हो.”

बिना मकान वाले सभी लोगों का पुनर्वास करना उनकी प्राथमिकता है.

असुरक्षित क्षेत्र

किरण कुमारी का घर सेफ जोन में है. वह जनवरी में अपना गृह प्रवेश समारोह शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार थी, लेकिन तभी उनके घर मे दरारे पड़ने लगी और उनका घर ढह गया.

2 जनवरी को कुमारी के नए घर की दीवारों में दरारें आ गईं और वह अपने चार महीने के बच्चे और पति के साथ घर छोड़ने पर मजबूर हुईं.

यह परिवार सिहंधार में मौजूद आश्रयों में से एक में चला गया, इन शेल्टर्स में पहले सेना के खच्चर रहते थे. बाहर, सूरज तेज चमकता है, लेकिन यह न तो उदासी को दूर कर सकता है और न ही भीतर की तीखी मवेशियों की गंध को दूर कर सकता है. आश्रय में अकेला छोटा बल्ब अंदर भरे सात लोगों के लिए अपर्याप्त है.

Bharti Devi is one of the residents that live in the repurposed animal shelters. The Army used to tie mules to the metal fixture she is holding | Nootan Sharma | ThePrint
भारती देवी उन निवासियों में से एक हैं जो पुनर्निर्मित एनिमल शेल्टर्स में रहती हैं। सेना खच्चरों को धातु के कुंडे से बांधती थी जिसे उन्होंने अपने हाथ में पकड़ रखा है | फोटोः नूतन शर्मा | दिप्रिंट

किरण ने कहा, “मेरा नया घर सफेद रंग में रंगा गया था. मैंने बेडरूम के लिए पीला और गुलाबी रंग चुना था. हम एक नया बिस्तर खरीदने जा रहे थे. लेकिन अब, हम नहीं जानते कि हम कहां जाएंगे.”

उन्होंने शेल्टर को दो भागों में बांटने के लिए  एक अलमारी और एक फ्रिज का उपयोग किया है. जिन कुंडों में खच्चरों को चारा डाला जाता था, वहां खाने-पीने का सामान और बिस्तर बड़े करीने से व्यवस्थित किए जाते हैं. किरण और शेल्टर के अन्य लोगों को बाहर अकेला बाथरूम साझा करना पड़ता है. सुरक्षित स्वच्छता सुविधाओं की कमी बुजुर्गों और उनके बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है. रेजिडेंट्स का यह भी आरोप है कि कोई भी डॉक्टर उनका चेकअप करने नहीं आया है.

भारती कुमारी कहती हैं, “मुझे रात में वॉशरूम जाने में डर लगता है, कहीं सांप या भालू न आ जाए. बच्चे भी रात में अंदर रहते हैं.”

कुछ परिवार जोखिम के बावजूद अपने टूटे-फूटे घरों में लौट आए हैं.

अपने घर की टूटी छत के ऊपर खड़ी शशि कुमारी कहती हैं, ”हम फरवरी में अपना घर छोड़कर होटल चले गए थे, लेकिन अब वापस आ गए हैं.” उन्हें एक होटल में ठहराया गया था लेकिन नाश्ते और दोपहर के भोजन के लिए उन्हें नगर निगम के मेस हॉल तक चलना पड़ता था.

जोशीमठ के एक अन्य निवासी ने तहसील कार्यालय के प्रतीक्षालय में चाय की चुस्की लेते हुए कहते हैं, “अगर मुझे मेरे घर से भी निकाल दिया जाता है, तो मैं एक तिरपाल लेकर सड़क पर बांध दूंगा और अपने परिवार के साथ वहीं रहूंगा.”

जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी ने कहा कि अब तक सरकार ने 868 प्रभावित परिवारों में से 46 को 11.35 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. कुमारी और भारती के परिवारों को एक-एक लाख रुपये मिले हैं.

कुमकुम जोशी ने कहा, “जो भी मुआवजे के लिए आवेदन कर रहा है उसे यह मिल रहा है. अब तक 45 से अधिक लोगों को मुआवजा मिल चुका है. लोगों के लिए इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हम सब कुछ कर रहे हैं.”

लेकिन निवासी अपने घर वापस चाहते हैं.

जोशीमठ के भारत गेस्ट हाउस में रहने वाली मुन्नी देवी कहती हैं, “वे पैसे दे रहे हैं, लेकिन उसके लिए सभी दस्तावेज दिखाने होंगे. वे बहुत कुछ मांग रहे हैं. हमें एक घर चाहिए. अगर रहने के लिए घर नहीं है तो हम इस पैसे का क्या करेंगे.”


यह भी पढ़ें: राजस्थान में गैंगवार कौन चलाता है? बंदूकें, खून-खराबा, शोहरत की तलाश में भटके हुए युवा


पुनर्वास प्राथमिकता नहीं

पिछले तीन-चार महीनों में प्रशासन आश्रयों और राहत शिविरों में रह रहे लोगों की जरूरतों को पूरा करने में जुटा है.

प्रत्येक दिन दोपहर 1 बजे के आसपास होटल और गेस्ट हाउस में रहने वाले लगभग 180-200 लोग सरकार द्वारा प्रदान किए गए दोपहर के भोजन के लिए नगर पालिका हॉल में इकट्ठा होते हैं. यहां आमतौर पर मिठाई के लिए गुलाब जामुन या रसगुल्ला के साथ मिश्रित सब्जी, दाल, चावल और पूरी होती है. नाश्ता और रात का खाना भी प्रदान किया जाता है.

The government provides three meals a day to the displaced residents | Nootan Sharma | ThePrint
सरकार विस्थापित निवासियों को एक दिन में तीन बार खाना देती है | फोटोः नूतन शर्मा | दिप्रिंट

एक क्लर्क लगन से प्रत्येक व्यक्ति का नाम और जहां वे रह रहे हैं उसकी जानकारी एक मोटे रजिस्टर में लिखता है.

चंद्राराम कहते हैं जो मोहनबाग में अपने “टूटे हुए” घर में वापस चले गए हैं, वो कहते हैं, “मैं यहां दिन में एक बार खाना खाने आता हूं. अच्छा भोजन उपलब्ध है-नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना. लेकिन मैं केवल एक बार आता हूं क्योंकि मुझे अपने घर आने में समय लगता है.”

हॉल तक पहुंचने के लिए निवासियों को लगभग 2 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

महिलाएं अपने बच्चों के साथ आती हैं. वे कुर्सियों पर बैठते हैं और खाते हैं जैसे लोग महत्वपूर्ण कार्यों और शादी पार्टियों के दौरान करते हैं.

सरकार एक दिन के खाने के लिए प्रति व्यक्ति 435 रुपये और रहने के लिए लगभग 950 रुपये प्रति दिन खर्च करती है. यह एक महंगा उपक्रम है.

मुन्नी देवी कहती हैं, “खाना अच्छा है. मैं यहां तीन महीने से खा रही हूं. मैं सरकार के काम से खुश हूं, लेकिन मैं कब तक होटल में रहूंगी?”

चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना कहते हैं, “वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर, विशेषज्ञ हमें बताएंगे कि कौन से क्षेत्र सुरक्षित हैं और कौन से असुरक्षित हैं. उसी के आधार पर पता चलेगा कि हम जोशीमठ में कहां-कहां पुनर्निर्माण और पुनर्विकास कर सकते हैं.”

जोशीमठ से 12 किमी दूर ढाक गांव में प्रशासन ने 15 अस्थाई घर बनाए हैं. इसने पुनर्वास के प्रयास में बमुश्किल सेंध लगाई है. अस्थायी सफेद संरचनाओं में दो कमरे, एक रसोईघर और एक बाथरूम है.

The government is building temporary houses for affected people in Dhak village, 12 km away from Joshimath market. | Nootan Sharma | ThePrint
सरकार जोशीमठ बाजार से 12 किमी दूर ढाक गांव में प्रभावित लोगों के लिए अस्थायी घर बना रही है | फोटोः नूतन शर्मा | दिप्रिंट

लेकिन परिवार वहां नहीं जाना चाहते. यह उनका गांव नहीं है.

मुन्नी देवी ने अपने बीमार पति के लिए पैक्ड लंच लेकर नगरपालिका हॉल से निकलते हुए कहा, “हम वहां नहीं जाएंगे. यह बहुत दूर है और हमारे बच्चे यहां स्कूल जाते हैं. हमारे लिए वहां जाने का कोई मतलब नहीं है.”

खाना अच्छा है, लेकिन यह निकट भविष्य की कुतरती अनिश्चितता को कम नहीं करता है. तीर्थयात्रियों के आने पर क्या उन्हें गेस्टहाउस छोड़ने के लिए कहा जाएगा? कोई नहीं जानता, लेकिन अफवाहें व्याप्त हैं.

होटल मालिक और होमस्टे चलाने वाले लोग जिन्हें सुरक्षित घोषित किया गया है, तीर्थयात्रियों के व्यवसाय को लेकर उत्साहित हैं. बुकिंग पहले से हो रही है.

रोहित नौटियाल ने कहा, “इस बार औली में बर्फ कम थी और जनवरी में जोशीमठ में आपदा के बाद कारोबार बंद हो गया. अब हम चार धाम यात्रा के लिए तैयार हैं.”

उनके होटल में 25 अप्रैल के लिए नौ कमरे बुक कर लिए गए हैं और उन्होंने अपने मेहमानों के स्वागत के लिए नए बिस्तर खरीदे हैं.

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘बिल्कुल भी भरोसा नहीं’ नीतीश सरकार के फैसले का विरोध क्यों कर रहे हैं बिहार के लाखों शिक्षक


share & View comments