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Friday, 3 May, 2024
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बांग्लादेश में ढाका यूनिवर्सिटी का जगन्नाथ हाल, हिंदुओं के लिए बनी हुई है सबसे सुरक्षित जगह

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्रेरित, जगन्नाथ हॉल बांग्लादेशी हिंदू समुदाय से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. एक सफेद स्मारक 1971 के नरसंहार के मूक प्रहरी के रूप में खड़ा है.

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निलय कुमार विश्वास ढाका विश्वविद्यालय के जगन्नाथ हॉल में संतोष चंद्र भट्टाचार्य भवन के कमरा नंबर 7017 में सुरक्षित हैं. चार बिस्तरों और डेस्कों वाला यह साधारण कमरा बिस्वास का सुरक्षित स्थान है. गैर-मुस्लिम छात्रों के लिए विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक छात्रावास परिसर जगन्नाथ हॉल में अन्य आवास, पुस्तकालय, मीटिंग रूम, डाइनिंग हॉल, गार्डन और मैदान भी हैं. अब, दुर्गा पूजा समारोह शुरू हो गया है और बांग्लादेशी हिंदुओं और पंडालों पर कथित तौर हमलों की खबरें पहले से ही आ रही हैं.

“जगन्नाथ छात्रावास के अंदर, मैं एक हिंदू के रूप में सुरक्षित महसूस करता हूं. मैं दुर्गा पूजा का आनंद ले सकता हूं. लेकिन बाहर की दुनिया का क्या? बिस्वास पूछते हैं, जो विश्वविद्यालय के जनसंचार और पत्रकारिता विभाग में एक वर्षीय मास्टर ऑफ सोशल साइंस प्रोग्राम कर रहे हैं.

बांग्लादेश में बढ़ते इस्लामी कट्टरवाद की पृष्ठभूमि में, हाल के वर्षों में देश के आठ प्रतिशत हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए यह आसान नहीं रहा है. लेकिन जगन्नाथ हॉल बांग्लादेश के उन कुछ स्थानों में से एक है जहां बहुलवाद को न केवल प्रश्रय मिलता है बल्कि उसका जश्न भी मनाया जाता है. यहां, हिंदू, ईसाई और बौद्ध छात्र प्रतिशोध के डर के बिना अपने धार्मिक मतभेदों को उजागर कर सकते हैं.

हॉल के 102 साल पुराने इतिहास में यह बड़ी मेहनत से हासिल की गई आज़ादी है.

25 मार्च 1971 को, पाकिस्तान सेना द्वारा ढाका विश्वविद्यालय में शिक्षकों और छात्रों का नरसंहार बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में बदल गया. इसमें बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक छात्र शामिल हुए. इसे जिसे ऑपरेशन सर्चलाइट नाम दिया गया था.

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जगन्नाथ हॉल, ढाका विश्वविद्यालय | दीप हलदर

“अगर एक सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद द्वारा दुर्गा पूजा पर आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में उसके समर्थकों द्वारा हिंदुओं पर हिंसा की जाती है, तो हमें बिना किसी डर के दुर्गा पूजा मनाने की क्या उम्मीद है?” बिस्वास इस महीने की शुरुआत में एक घटना को याद करते हुए कहते हैं, जब 1988 में स्थापित देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक संघ, बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के सदस्यों पर अवामी लीग के सांसद एकेएम बहाउद्दीन बहार के समर्थकों द्वारा हमला किया गया था. परिषद के सदस्य बहार के इस दावे का विरोध कर रहे थे कि पंडाल और नशीली दवाओं का दुरुपयोग दोनों साथ-साथ होते हैं. बहार ने कथित तौर पर कहा था, “आइए नशे से मुक्त पूजा शुरू करें. कृपया पंडालों पर लिखें कि यह पूजा नशीली दवाओं से मुक्त है.”

बिस्वास और ढाका विश्वविद्यालय के अन्य हिंदू छात्रों को डर है कि जनवरी 2024 में बांग्लादेश में राष्ट्रीय चुनाव कराने की तैयारी के कारण हिंसा बढ़ सकती है.

हर त्योहारी सीजन में बांग्लादेश से बर्बरता और हेट क्राइम की घटनाएं भारत में भी मुख्यधारा की खबरों में छा जाती हैं. 2021 में दुर्गा पूजा के दौरान भीड़ द्वारा हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ करने पर चार लोगों की मौत के बाद, शेख हसीना सरकार ने देश भर में पंडालों की सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया. ऐसी ही कवायद 2022 में भी दोहराई गई. अल्पसंख्यक समुदाय के एक नेता के अनुसार, हालांकि, इस साल कम संख्या में हमले दर्ज किए गए हैं और दुर्गा पूजा समारोह में 200 से अधिक पंडाल जोड़े गए हैं.


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उत्सव का स्थान

वह कहते हैं, बिस्वास से मिलने आए एक अनिवासी छात्र शौमिक अहमद अनिक इस सांप्रदायिक तनाव से काफी परेशान दिख रहे हैं. वह हर साल अपने हिंदू दोस्तों के साथ दुर्गा पूजा मनाते हैं. “मेरे जैसे अन्य मुस्लिम छात्र भी हैं जो ऐसा ही करते हैं. यदि आप गांवों में जाते हैं, तो आप कई मुस्लिम ग्रामीणों को दुर्गा पूजा पंडालों में उत्सव में डूबे हुए देखेंगे.”

राजनीति विज्ञान के छात्र अहमद अनिक, ढाका विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों के लिए एक अलग स्थान की आवश्यकता पर सवाल उठाते हैं. उनका तर्क है कि समय बदल गया है. “एक धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश में, अल्पसंख्यक छात्रों को रखने के लिए जगन्नाथ हॉल जैसी जगह की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.”

परिसर के पांच भवनों में उत्सव की चमक है. बाहर के पंडालों के विपरीत, जिन्हें पूरी तरह से सजाया गया है, उपासनालय, जहां दुर्गा की 10 फुट की मूर्ति रखी गई है, थीम पर आधारित नहीं है. जगन्नाथ हॉल के प्रोवोस्ट और पूजा समिति के अध्यक्ष मिहिर लाल साहा ने तुरंत स्पष्ट किया कि उपासनालय कोई पंडाल नहीं है.

वे कहते हैं, “जगन्नाथ हॉल में यह हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों के लिए एक सामान्य प्रार्थना स्थल है और यहीं पर हर साल दुर्गा पूजा आयोजित की जाती है.”

साहा कहते हैं, पांच दिनों तक अलग-अलग वर्ग, जाति और धर्म के बावजूद, हजारों लोग जश्न मनाने और पूजा में शामिल होने आएंगे. साहा कहते हैं, “बहुत से मुसलमान आते हैं. मंत्री भी आते हैं, हालांकि पूजा में शामिल नहीं होते हैं”

छठें दिन अकाल बोधन (देवी का असामयिक अवतार) से पूजा उत्सव की शुरुआत होती है, जो इस साल 20 अक्टूबर को पड़ा. सप्तमी पूजा अगले दिन शाम को आरती के साथ होती है. प्रतिदिन पूजा के बाद एक घंटे तक खिचड़ी का प्रसाद परोसा जाता है. अंतिम दिन, दशमी (24 अक्टूबर) को, मूर्ति को परिसर के भीतर एक तालाब में विसर्जित किया जाएगा.

लेकिन सांसद की टिप्पणियों के बाद उपजा तनाव जगन्नाथ हॉल की सुरक्षित दीवारों तक फैल गया है.

नाम न छापने की शर्त पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर रहे संतोष चंद्र भट्टाचार्य भवन के एक अन्य निवासी कहते हैं, “यह कोई अकेली घटना नहीं है. बांग्लादेश में हिंदू हर साल दुर्गा पूजा के दौरान डर में रहते हैं.”

उनके अनुसार, मुख्यधारा की बांग्लादेशी प्रेस में सभी बर्बरता की घटनाओं को रिपोर्ट नहीं किया जाता है. वे कहते हैं, “लेकिन यहां, जगन्नाथ हॉल की सुरक्षा में, हम इन घटनाओं पर चर्चा करते हैं और इस देश में हिंदुओं के भविष्य पर गरमागरम बहस करते हैं, और हां, शांति से दुर्गा पूजा मनाते हैं,”

वे कहते हैं, ”जगन्नाथ हॉल विचारों के मुक्त प्रवाह के लिए एक सुरक्षित ठिकाना रहा है, लेकिन इसके लिए उसे भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है.”


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जगन्नाथ हॉल का खूनी इतिहास

जगन्नाथ हॉल, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्रेरित था और 1921 में स्थापित किया गया था, बांग्लादेशी हिंदू समुदाय के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. आज, एक सफेद स्मारक 25 मार्च 1971 को हुए नरसंहार के मूक प्रहरी के रूप में खड़ा है, जब सेना ने जगन्नाथ हॉल के क्वार्टर पर हमला किया था.

दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर गोबिंद चंद्र देब और तत्कालीन प्रोवोस्ट ज्योतिर्मय गुहाठाकुरता, जिनके नाम पर जगन्नाथ हॉल के दो छात्रावास भवनों का नाम रखा गया था, सौ से अधिक छात्रों, प्रशासनिक कर्मचारियों और शिक्षकों के साथ मारे गए थे.

अगले दिन, बांग्लादेश ने आठ महीने तक चले युद्ध को लड़ते हुए, पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की. बांग्लादेश के प्रमुख अल्पसंख्यक नेताओं में से एक, रंजन कर्माकर, 1978 और 1984 के बीच जगन्नाथ हॉल के छात्र परिषद के निवासी और महासचिव थे. उस अवधि को हॉल के रेजिडेंट के दमन के लिए याद किया जाता है.

बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के प्रेसिडियम सदस्य कर्माकर कहते हैं, “15 अगस्त 1975 को नरसंहार के बाद जिसमें बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या हुई, जनरल जियाउर्रहमान के उदय से हिंदुओं में भय का माहौल पैदा हो गया. ज़िया को लगा कि हम अपने नए आज़ाद हुए देश के लिए धर्मनिरपेक्षता के मुजीब के विचारों के साथ जुड़े हुए हैं”

“जगन्नाथ हॉल आज एक सुरक्षित स्थान है. यह पहले नहीं था.”

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की छात्र शाखा के साथ-साथ प्रशासन भी कर्माकर जैसे छात्रों के साथ आ गया, जिन्होंने “बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तोड़ने” के ज़िया के कदम का विरोध किया था. वह याद करते हैं कि किस तरह उस समय जगन्नाथ हॉल में एक युवा व्यक्ति के रूप में उनके रातों की नींद हराम हो गई थी. उन्हें छात्रावास का छात्र नेता चुना गया था.

वे कहते हैं, “लेकिन मैं जगन्नाथ हॉल में अपने छात्रावास के कमरे में सो नहीं सका, क्योंकि ढाका विश्वविद्यालय परिसर के अंदर ज़िया के वफादारों की निगरानी थी. वे रात में हमारे कमरों में घुस जाते थे. हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक छात्रों पर हमले की लगातार धमकियां मिल रही थीं.”

जगन्नाथ हॉल पांच भवनों या छात्रावास भवनों से बना है: संतोष चंद्र भट्टाचार्य हॉल, रवीन्द्र हॉल, अक्टूबर मेमोरियल हॉल, गोबिंद चंद्र देब हॉल, और ज्योतिर्मय गुहाठाकुरता हॉल. 2,000 से अधिक छात्र जो इसे अपना घर कहते हैं, उन्हें ढाका विश्वविद्यालय का हिस्सा होने पर गर्व है, जिसकी स्थापना 1921 में हुई थी. आज, विश्वविद्यालय में 83 से अधिक विभाग और 56 अनुसंधान केंद्र हैं, जिसमें पूर्व छात्रों की सूची में बांग्लादेश के कई दिग्गज शामिल हैं. नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस से लेकर लेखिका तस्लीमा नसरीन तक का नाम इनमें शामिल है.

सब कुछ ठीक नहीं है लेकिन असहमति की अनुमति है

आज की अल्पसंख्यक पीढ़ी के छात्र किसी भी शासन के आदेशों से बंधे नहीं हैं. और इसलिए वे त्योहारों, बर्बरता और रवीन्द्रनाथ टैगोर की असहज धारणाओं को सामने रखते हैं. जगन्नाथ हॉल के बाहर, ढाका विश्वविद्यालय के अन्य छात्रावासों के छात्र बंगाली कवि को ऋषि जैसे राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में नहीं देखते हैं, जैसा कि वह भारत के लिए हैं. बल्कि, कई बांग्लादेशी उन्हें एक हिंदू जमींदार के रूप में वर्णित करते हैं जिन्होंने बंगाली मुसलमानों के बारे में शायद ही कभी लिखा हो.

नाम न छापने की शर्त पर एक निवासी कहते हैं, “यह कहना कि ढाका विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्र हमें ‘अन्य’ के रूप में देखते हैं, सच नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि ऐसी भावनाएं हैं जो केवल इसलिए होती हैं क्योंकि आप जगन्नाथ छात्रावास में रहने वाले एक अल्पसंख्यक छात्र हैं.”

“भारतीय एजेंट” होने के आकस्मिक, आहत करने वाले ताने आम बात हैं.

कर्माकर खुश हैं कि छात्र बहार की टिप्पणियों और उसके बाद प्रदर्शनकारियों पर हुए हमले पर चर्चा कर रहे हैं. हालांकि, वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यह घटना पूरे बांग्लादेश की भावना का प्रतिनिधित्व नहीं करती है.

देश के 299 निर्वाचन क्षेत्रों में, दुर्गा पूजा उत्सव और उत्साह की लहर है. हर साल पंडालों की संख्या बढ़ती जा रही है. कर्माकर कहते हैं, “पिछले साल, 32,168 दुर्गा पूजा मंडप थे. इस साल यह संख्या बढ़कर 32,408 हो गई है.”

उन्होंने आगे कहा कि धर्मनिरपेक्ष अवामी लीग अल्पसंख्यकों का स्वागत कर रही है.

वे कहते हैं, ”जब भी अवामी लीग सत्ता से बाहर हुई – 1975 से 1996 तक, या 2001 में – बांग्लादेश में हिंदुओं को नुकसान उठाना पड़ा.”

जगन्नाथ हॉल में राजनीतिक परिवर्तन और अशांति लगभग हमेशा गूंजती रहती है. जब 2001 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी-जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश गठबंधन सत्ता में आया, तो विधायक नसीरुद्दीन अहमद पिंटू ने उन छात्रों की तलाश के लिए परिसरों में आधी रात को छापेमारी शुरू की, जो अवामी लीग के समर्थक हो सकते थे. कर्माकर के अनुसार, तोड़फोड़ के दौरान निवासियों को अपमानित किया गया और उन पर हमला किया गया.

बिस्वास और साहा जैसे छात्र निवासी इस बात से सहमत नहीं हो सकते हैं कि हसीना सरकार के साथ चीजें बेहतर हैं, लेकिन यहां असहमति को स्वीकार किया जाता है.

कर्माकर कहते हैं, ”जगन्नाथ हॉल पूरे बांग्लादेश के लिए अल्पसंख्यक भावनाओं का एक सूक्ष्म प्रतीक बना हुआ है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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