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Wednesday, 18 December, 2024
होमफीचर'इज़रायल एक मजबूत देश है, भारतीय वहां सुरक्षित रहेंगे', हरियाणा के मज़दूर नौकरी के लिए क्यों हैं बेताब

‘इज़रायल एक मजबूत देश है, भारतीय वहां सुरक्षित रहेंगे’, हरियाणा के मज़दूर नौकरी के लिए क्यों हैं बेताब

उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों के मज़दूर हरियाणा के मज़दूरों के बाद परीक्षण की उम्मीद में एमडीयू के बाहर इंतजार करते हैं.

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रोहतक: हरियाणवी मज़दूर रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के अंदर कतार में खड़े हैं, जबकि बिहारी और राजस्थानी मज़दूर अपने पासपोर्ट और कागजात हाथ में लेकर विश्वविद्यालय के गेट के बाहर भीड़ में खड़े हैं. उनका लक्ष्य इज़रायल में काम करना है.

बारह इज़रायली अधिकारियों की एक टीम निर्माण, कंस्ट्रक्शन, कारपेंट्री, टाइलिंग, मसोनरी और इलेक्ट्रिक वेल्डिंग कार्यों के लिए भारत से 10,000 मज़दूर को काम पर रख रही है. और सैकड़ों भारतीय कामगार इज़रायल में काम पाने को लेकर आशान्वित होकर आए हैं. लेकिन छह दिवसीय भर्ती अभियान के चौथे दिन, उन्हें बताया गया कि यह पहल केवल हरियाणा के मज़दूरके लिए है – अन्य राज्यों के लिए नहीं.

अब वे अधर में लटके हुए हैं और इज़रायली सरकार द्वारा 1.37 लाख रुपये के मासिक वेतन के साथ आशाजनक नौकरी पाने के लिए बेताब हैं.

हरियाणा सरकार ने पहली बार दिसंबर में इज़रायल में 10,000 पदों को भरने के लिए उम्मीदवारों के लिए नोटिस निकाला था – जो हरियाणा कौशल रोजगार निगम (HKRN), हरियाणा कौशल विकास मिशन और हरियाणा के विदेशी सहयोग विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक पहल थी. अभियान के पहले तीन दिनों में क्रमशः लगभग 300, 500 और 600 कर्मचारी उपस्थित हुए.

उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों के मज़दूरअब इस उम्मीद में एमडीयू के बाहर इंतजार कर रहे हैं कि उन्हें अपना दांव लगाना चाहिए या नहीं, वे हरियाणा के मज़दूर के बाद परीक्षण की उम्मीद कर रहे हैं. उन्हें राष्ट्रीय कौशल विकास केंद्र से MDU में भर्ती अभियान के बारे में सूचित किया गया था.

नाम न छापने की शर्त पर HKRN के एक अधिकारी ने कहा कि बहुत सारी अव्यवस्था थी और भीड़ को कम करने के लिए, उन्हें यह सुनिश्चित करना पड़ा कि केवल हरियाणा के कार्यकर्ता ही आवेदन कर सकें.

पुलिस अधिकारी अब प्रत्येक मज़दूर को इंजीनियरिंग विभाग की प्रयोगशालाओं में जाने से पहले उनके पहचान पत्रों की जांच कर रहे हैं, जहां स्किल टेस्ट आयोजित किए जा रहे हैं. और ऐसा लगता है कि ये लगातार ही किया जा रहा है, क्योंकि नौकरी का आकर्षण, यहां तक कि युद्धग्रस्त देशों में भी, ठंड में वापस आने वाले मज़दूर को लाइन में लगने और इंतजार करने से नहीं रोक सके हैं.

“तो क्या हुआ अगर इस समय इज़रायल में युद्ध चल रहा है?” दूसरे दिन वापस आए हिसार के स्थानीय निवासी 31 वर्षीय हरपाल कुमार से एक अलग कौशल के तहत प्रयास करने और आवेदन करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया गया और कहा कि “भारत में बेरोज़गारी भी एक युद्ध ही है.”

नाम न छापने की शर्त पर HKRN के एक अधिकारी के अनुसार, भीड़ को कम करने के लिए, उन्हें यह सुनिश्चित करना पड़ा कि केवल हरियाणा के कार्यकर्ता ही आवेदन कर सकें। | वंदना मेनन | दिप्रिंट

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भारत में बेरोज़गारी

स्किल टेस्ट में भाग लेने वाले मज़दूर को इज़रायल में चल रहे युद्ध के बारे में चिंता नहीं है क्योंकि यह हरियाणा सरकार की पहल है और अनुमोदन की सरकारी मोहर को सुरक्षा की गारंटी भी देनी चाहिए.

आयरन बेन्डिंग का स्किल टेस्ट देने वाले 26 वर्षीय हरजीत सिंह ने कहा, “यह राज्य सरकार का नियुक्ति कार्यक्रम है, देखिए, पोस्टरों पर मुख्यमंत्री का चेहरा है. तो अगर सरकार इसका आयोजन कर रही है, तो वे इसका ध्यान रखेंगे.”

वह जिस पोस्टर की ओर इशारा कर रहे थे, उसमें आवेदकों का परीक्षण केंद्र में स्वागत किया गया था और उसकी टैगलाइन थी, “गो ग्लोबल अप्रोच” के जरिए “हरियाणा में बदलाव”.

एक अन्य आवेदक तेजस यादव ने कहा, “इज़रायल वैसे भी एक मजबूत देश है. उन्होंने फ़िलिस्तीन को कुचल दिया है, भारतीय सुरक्षित रहेंगे क्योंकि सरकार गारंटी दे रही है.”

लेकिन विश्वविद्यालय के गेट के ठीक बाहर, इस बात पर भ्रम की स्थिति बनी रही कि इस अभियान के आयोजन के लिए कौन सी सरकार जिम्मेदार थी, क्योंकि कई कार्यकर्ता जो कई दिनों तक यात्रा करके रोहतक पहुंचे थे, उन्हें एनएसडीसी से अधिसूचना मिल गई थी.

राजस्थान के राकेश सिंह ने अपना पासपोर्ट हवा में लहराते हुए कहा, “कई हरियाणवी मज़दूर के पास पासपोर्ट भी नहीं है! वे किस लिए कतार में खड़े हैं? ऐसे अन्य लोग भी हैं जिनके पास आवश्यक अनुभव है.”

सिंह ने राजस्थान से यात्रा की थी और स्किल टेस्ट देने के इंतजार में पिछले चार दिन बिताए, जब तक कि उन्हें शुक्रवार को परिसर के गेट के बाहर इंतजार करने के लिए नहीं कहा गया. उन्होंने एक दशक तक मध्य पूर्व – अबू धाबी और कतर के कुछ हिस्सों में निर्माण कार्यों में काम किया है, और अब विदेश वापस जाने का रास्ता तलाश रहे हैं. शॉल में लिपटे और स्वेटर और मंकी कैप पहने हुए, सिंह और उनके जैसे अन्य लोग विश्वविद्यालय के बाहर डेरा डालना जारी रखने की योजना बना रहे हैं जब तक कि वे पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो जाते कि उन्हें परीक्षा के लिए नहीं बुलाया जाएगा.

ऊपर उद्धृत एचकेआरएन अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मज़दूर से भरे ट्रक अचानक परिसर में आ गए थे, जिससे अव्यवस्ता हो गई. लेकिन राज्य के बाहर के मज़दूर, जिनमें से अधिकांश बिहार और राजस्थान से हैं, उन्हें ऐसा लगता हैं कि उन्हें अपना हाथ आजमाने का अधिकार है.

इज़रायल की पॉपुलेशन एंड इमीग्रेशन बॉर्डर ऑथोरिटी (PIBA) इस अभियान का संचालन कर रहा है. राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, वे हरियाणा से 10,000 मज़दूर को काम पर रखना चाहते हैं और अन्य राज्यों पर भी विचार करेंगे.

भारत में बेरोज़गारी एक जटिल तस्वीर पेश करती है. पीरियड लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, जुलाई-सितंबर की अवधि में बेरोजगारी की दर घटकर 6.6 प्रतिशत हो गई है, लेकिन युवा बेरोजगारी दर 17.3 प्रतिशत है. यह शैक्षिक प्राप्ति में वृद्धि और स्व-रोज़गार की बढ़ती प्रवृत्ति के साथ जुड़ा हुआ है, जो बढ़कर 18.3 प्रतिशत हो गया है. इससे पता चलता है कि भारत को शिक्षित युवाओं के लिए अधिक नौकरियां पैदा करने में सक्षम होने की जरूरत है.

उदाहरण के लिए, हरजीत 12वीं कक्षा के स्नातक है और एक ज़मीन-मालिक परिवार से आते हैं, लेकिन एक स्थिर नौकरी रखने में सक्षम नहीं है. भले ही उन्होंने पिछले दिन परीक्षा दी थी, वह अपने 23 वर्षीय भाई रूपक, जो कि एक इंजीनियरिंग छात्र है, के साथ अपनी कौशल परीक्षा देने के लिए शुक्रवार को लौटे थे.

“अगर यहां काम होता तो मैं क्यों जाना चाहता?” हरजीत ने सवाल किया, “और मैं अपने भाई को भी वहां जाने के लिए क्यों प्रोत्साहित करता?”

जाने की बेताबी

भले ही सभी कर्मचारी जाने की इस हताशा को साझा नहीं करते हैं, फिर भी वे समझते हैं कि इसके पीछे क्या कारण है.

सेना में काम करने के इच्छुक 21 वर्षीय पवन कुमार एमडीयू के इंजीनियरिंग विभाग के बाहर शॉल लपेटे इंतजार कर रहे थे. वह अपने दोस्त, एक निर्माण मज़दूर, को अपनी बाइक पर विश्वविद्यालय ले गए थे और उसे वापस घर ले जाने का इंतजार कर रहे थे.

उन्होंने कहा, “मैं नहीं जाना चाहता, हमारे देश में बहुत कुछ है. मेरा मतलब है, मुझे पता है कि मुझे क्या करना है और इसीलिए मैं रुकना चाहता हूं, लेकिन यहां भारत में मेरे दोस्त के लिए बहुत कम अवसर हैं.”

यह भावना अन्य राज्यों के मज़दूर ने भी साझा की.

बिहार के 35 वर्षीय प्लंबर संतोष कुमार गुप्ता ने कहा, “मैं बिना किसी विकल्प के इंतजार करते रहने के बजाय यहां मौके का इंतजार करना पसंद करूंगा.” उनका सात लोगों का परिवार है, और वह पांच अन्य लोगों के समूह के साथ बस से आए थे – सभी छह ने पिछली तीन रातें ठंड में रोहतक की सड़कों पर डेरा डालकर बिताईं.

एक अन्य 26 वर्षीय मोनू कुमार ने परीक्षा में बैठने के लिए गुड़गांव में प्लंबर की अपनी नौकरी से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. वह नौकरी की तलाश में पहले भी दुबई जा चुके है और अभी भी विदेश में नौकरी के वादे से मोहित है.

कुमार ने कहा, “आखिरकार, युद्ध हर जगह है. हम हर जगह मर सकते हैं. काम ज्यादा जरूरी है – किसी को क्या पता कि मैं यहां भारत में भी हर रोज़ मर मर के जी रहा हूं.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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