जींद/कुरुक्षेत्र: हरियाणा के धतरथ गांव में शर्मा परिवार के दो मंजिला घर में एक विशाल अमेरिकी शैली का नियॉन-ग्रीन, मॉड्यूलर किचन बना है. इसमें एक पार्किंग गैरेज और एक 50 इंच का टीवी है जिसमें पूरे दिन अमेरिकी जीवन के इंस्टाग्राम रील चलते रहते है. सादे से लेकर लुभावनी तक, इसमें प्यारे बच्चों की क्लिप चलती रहती है जिसमे बच्चे बर्फ़ में ऊनी कपड़े पहनकर ग्रामीण इलाकों की तरफ जा रहे है, रमणीय पशु फार्म, और राजमार्गों पर गड़गड़ाहट करते ट्रक के दृश्य भी दिखते है.
उनके बदला हुआ घर गांववालों और बाहरी लोगों को बता देता है कि उनके तीन बेटे संयुक्त राज्य अमेरिका गए हैं.
ग्रामीण हरियाणा अब अपने युवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया भेजने की दौड़ में नया पंजाब बन गया है. आईईएलटीएस कोचिंग, वीजा केंद्रों और एजेंट कार्यालयों में छोटे कस्बों में भी कतारें दिख जाती हैं. महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित राज्य विश्वविद्यालयों के लिए लोकप्रिय शब्दकोषों की जगह स्थायी निवास, कार्य परमिट और आश्रितों के लिए पीआर जैसे शब्दों के साथ एक नई शब्दावली ने हरियाणा के गांवों को जकड़ लिया है.
ग्रामीण हरियाणा अब अपने युवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया भेजने की दौड़ में नया पंजाब बन गया है. आईईएलटीएस कोचिंग, वीजा केंद्रों और एजेंट के कार्यालयों में लम्बी कतार लगी है. महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित राज्य विश्वविद्यालयों के लिए लोकप्रिय शब्दकोषों की जगह स्थायी निवास, कार्य परमिट और आश्रितों के लिए पीआर जैसे शब्दों के साथ एक नई शब्दावली ने हरियाणा के गांवों में जगह बना ली है.
ग्रामीण बेरोजगार युवा अपने परिवार की जमीन और सोना बेच रहे हैं, बुनियादी नर्सिंग और अकाउंटेंसी डिप्लोमा प्राप्त कर रहे हैं, अंग्रेजी पाठ्यक्रमों में दाखिला ले रहे हैं, और अपने एनआरआई सपने की ओर पहले कदम के रूप में यूट्यूब वीडियो देखकर अमेरिकी जुबान में महारत हासिल कर रहे है.
यह नया पलायन जातियों में फैला है. जाट, सैनी, ब्राह्मण, अनुसूचित जाति- सभी पलायन कर रहे हैं. खेती जैसे विकल्प की चाह अब किसी को नहीं है. उनका कहना है कि वे बेरोज़गारी, प्रवेश परीक्षा के पेपर लीक होने और भर्ती में होने वाली देरी के विषाक्त चक्र से बाहर निकल रहे हैं.
‘य, राइट, राइट,’ बीस साल के निश्चय शर्मा ने अपने नए iPhone 14 प्रो पर एक अमेरिकी ड्रॉ के साथ बोला. वह पहले ‘हां’ या ‘ओके’ के लिए हरियाणवी शब्द ‘हंबे’ का प्रयोग किया करते थे.
शर्मा कैलिफोर्निया से एक महीने के बाद घर आये है, वे एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते हैं. जब वह अपने लाल स्नीकर्स और एक भारी सोने की चेन पहनकर चलता है, तो 12 वर्षीय हर्षित परछाई की तरह उसके पीछे-पीछे चलता है क्योंकि वह भी यूएस जाना चाहता है.
कक्षा 7 के छात्र के लिए, जो जींद जिले के पास के एक गांव के ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल में जाता है, अमेरिका बड़ी कारों, बड़े सपनों और चमकदार रोशनी की वाली एक जगह है. वह उन सभी व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम रील को फॉलो करता है जिन्हें विदेश में रह रहे उसके चचेरे भाई शेयर करते है.
उसकी दादी कहती है, ‘उसका दिल पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता. वह सारा दिन अमेरिका जाने के सपने देखता रहता है.’ वह प्रभावशाली लड़के के फोकस की कमी पर अफसोस जताती है.
ग्रामीणों का कहना है, ‘शर्मा का घर ढूंढना आसान है. दो मंजिला ढांचा अपने आप में एक मील का पत्थर है. ‘अरे, जिसके बेटे अमेरिका में हैं? अरे जिन्होंने कोठी (बंगला) बनवाया है? चमचमाती टाइल्स और आलमारियों वाली रसोई दिल्ली के फ्लैटों की मॉड्यूलर किचन को भी पीछे छोड़ देती है. यह पड़ोस के घरों से बिलकुल अलग है, जहां चूल्हे से उठने वाले धुएं से ईंटें काली हो जाती हैं. लेकिन उनका एक बेटा जल्द ही अमेरिका जाने वाला है, और उनका भी भाग्य बदल सकता है.
लेकिन इस पैसे, प्रतिष्ठा और गौरव के पीछे एक विदेशी देश का अवैध मार्ग है, जिसे स्थानीय रूप से ‘भेड़ चाल’ कहा जाता है. अपने सभी फ्लेक्सिंग के लिए, निश्चय शर्मा एक संपन्न ‘भेड़ चाल संस्कृति’ का हिस्सा हैं.
हरियाणा के जींद जिले के धतरथ, मोरखी और कलवा कुछ ऐसे गांव हैं जो अवैध तरीकों से विदेश जाने के तरीकों वाले लोगों के लिए जाने जाते हैं. वे टूरिस्ट वीज़ा पर दुबई जाते हैं, बिना पर्याप्त भोजन के शेड वाले होटलों में रहते हैं, और सीक्रेट कंटेनरों में एक देश से दूसरे देश जाते हैं, बर्फ पर दिनों तक चलते हैं, या अपने ड्रीमलैंड में पहुंचने के लिए बॉर्डर के फेंस को पार करते हैं.
‘नये निर्वाचित ग्राम प्रधान बीरबल का दावा है कि ‘पिछले छह से सात वर्षों में 100 से अधिक युवकों ने धतरथ छोड़ दिया है. कुछ ने तब छोड़ दिया जब वे 15 साल के थे. वास्तव में, जैसे ही वे कक्षा 10 पास करते हैं, वे अब ‘नंबर 2′ रास्ते की तैयारी शुरू कर देते है.’
बीरबल ने कहा, ‘दो महीने पहले, 18 वर्षीय मोहित, निश्चय का सबसे छोटा भाई, उसी यात्रा पर निकला था. और पांच साल पहले, उनके सबसे बड़े भाई लक्ष्य ने इसी भेड़ चाल वाले रास्ते पर जाने के लिए अपना गांव छोड़ा था. इस परिवार के उदय ने लोगों को या तो ईर्ष्या या फिर प्रेरणा के लिए प्रेरित किया है.’
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दलाल
दूसरे देशों में अपना भाग्य आजमाने की हताशा ने दलालों और एजेंटों, सहायकों और हसलरों के एक नए उद्योग को जन्म दिया है. जींद के अलावा करनाल और कुरुक्षेत्र जैसे जिले भी ऐसे हब के रूप में उभर रहे हैं. वे सोनीपत, रोहतक और हिसार के सैकड़ों युवकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं.
कुरुक्षेत्र के लाडवा कस्बे में कैंब्रिज एजुकेशन एंड इमिग्रेशन प्वाइंट के सह-मालिक भूपिंदर खानपुर कहते हैं, ‘पहले वे स्टूडेंट वीज़ा रूट को आजमाते हैं, और अगर वह खारिज हो जाता है, तो वे या तो अवैध तरीके से जाने के रास्ते की ओर मुड़ जाते हैं या खुद एजेंट बन जाते हैं.’
संगीता दहिया, जो यूके के लिए वीजा चाहने वाले छात्रों के लिए एक कंसल्टेंसी फर्म चलाती हैं, ने लंदन में इसी तरह की प्रवृत्ति देखी है.
दहिया कहती हैं, वह हर महीने 14-15 वीजा आवेदनों को प्रोसेस करती हैं. ‘पहले पंजाब से सटे जिले ही कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में प्रवासन से प्रभावित थे, लेकिन अब हरियाणा के छात्र भी वीजा की भारी मांग कर रहे हैं.’
वह कहती हैं, ‘कुछ लोग यहां उन्हीं नौकरियों के लिए प्रति माह 3-4 लाख रुपये कमा रहे हैं, जिसके लिए उन्हें भारत में बमुश्किल 25,000 रुपये मिलते हैं.’ नर्सिंग, ड्राइविंग और स्टोर्स को मैनेज करने वाली कुछ काफी लोकप्रिय नौकरियां हैं जो सुरक्षित इनकम का वादा करती है.’
लेकिन अवैध तरीके से लोगों को विदेश पहुंचाने वाले दलालों का उभरना इमीग्रेशन अधिकारियों का सिरदर्द बन गया है. दलाल लोगों को दूसरे देशों में भेजने के लिए 25-60 लाख रुपये के बीच चार्ज करते हैं. वो भी बिना किसी मनी-बैक गारंटी के अगर कोई ‘क्लाइंट’ पकड़ा जाता है और भारत वापस भेज दिया जाता है, तो उन्हें पैसा वापस नहीं मिलेगा.
दक्षिण और मध्य अमेरिका यूएस जाने के लिए अधिक पसंदीदा एंट्री प्वाइंट्स हैं. द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, वास्तव में, भारत अपनी दक्षिण-पश्चिम सीमा के माध्यम से अमेरिका में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है.
भोजन और आश्रय की कोई गारंटी के बिना अत्यधिक तापमान में यह एक खतरनाक यात्रा है. जनवरी 2022 में तीन और ग्यारह साल की उम्र के दो बच्चों सहित चार लोगों के एक परिवार को अमेरिकी सीमा से लगभग 10 मीटर की दूरी पर जमे हुए पाया गया था.
निश्चय ने एक दलाल से संपर्क किया जिसने धतरथ और आस-पास के गांवों के कम से कम तीन से चार अन्य पुरुषों की ‘मदद’ की थी. उनके चार चाचाओं ने 6-6 लाख रुपये का योगदान देकर मदद की थी.
पढ़ाई में औसत, निश्चय को कॉलेज की सीट हासिल करने या अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी पाने की कोई उम्मीद नहीं थी. वह बताते हैं, ‘पर पांच ही महीने के भीतर मेरा भाग्य चमक गया. मैं नौ देशों, जंगलों और खराब मौसम का सामना करते हुए कैलिफोर्निया पहुंचा. कभी-कभी यात्रा में दो साल भी लग जाते है. कभी-कभी उन्हें पीटा जाता है, बंद कर दिया जाता है या फिर मार भी दिया जाता है.’
लेकिन वह उस रास्ते के बारे में बात नहीं करना चाहते जो उन्होंने लिया था. वह इस बात को लेकर भी चिंतित है कि वह कैलिफ़ोर्निया में कहां स्थित है, उसके काम की प्रकृति क्या है, और क्या उसके दस्तावेज़ ठीक हैं. भारत आने के एक महीने के बाद वो फिर से कैलिफोर्निया वापस जाने की योजना बना रहे हैं.
धतरथ गांव में पटाखों की एक स्थायी दुकान है, जो सिर्फ दीवाली के दौरान ही नहीं, बल्कि साल भर तेज कारोबार करती है. हर बार जब कोई बेटा अपने अंतिम गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच जाता है, तो उसका परिवार पटाखे फोड़कर जश्न मनाता है. अक्सर गांव का सन्नाटा तेज आतिशबाजी से टूटता है जब तीन परिवार एक साथ जश्न मनाने लगते हैं. यह गांव को यह बताने का उनका तरीका है कि उनके बेटे सुरक्षित हैं.
यह एक प्रकार का रास्ता है, और युवा हर्षित इस पर चलने की प्रतीक्षा कर रहा है. वह धतरथ छोड़ने के साल गिन रहा है. शायद उसका परिवार एक दिन उसके भी सम्मान में फोड़ने के लिए पटाखे खरीदेगा.
वीजा के लिए बेताब
दिसंबर की एक दोपहर लाडवा में कैंब्रिज सेंटर वीजा मांगने वालों से खचा-खच भरा हुआ था. लोगों के हाथ फाइल्स, फोल्डर्स और सर्टिफिकेट्स की ओरिजिनल एवं फोटोकॉपी से भरे हुए थे. रिसेप्शन पर, दो महिला कर्मचारी लोगों के भीड़ से घिरी हुई थी.
भीड़ में वर्दी पहने दो हरियाणा पुलिसकर्मी भी खड़े थे. वे विदेश में अपने बेटों की संभावनाओं के बारे में एजेंटों से परामर्श करने के लिए आये थे.
रिसेप्शनिस्ट कुछ लोगों को प्रतीक्षा करने के लिए कहते हैं और दूसरों को मैनेजर के केबिन में ले जाते है. इंतजार करने वालों को चाय और बिस्कुट दिए जाते हैं. लोग बैठ जाते हैं और सफल आवेदकों की लैमिनेटेड तस्वीरों वाली दीवारों को लंबे समय तक टकटकी लगाए देखते है.
भूपिंदर खानपुर ने 2012 में एक रिश्तेदार जसबीर पंजेटा के साथ कैम्ब्रिज एजुकेशन एंड इमिग्रेशन प्वाइंट की शुरुआत की. दोनों पुरुषों ने ऑस्ट्रेलिया और फिर सिंगापुर प्रवास के लिए आवेदन किया था लेकिन वह खारिज कर दी गयी थी. पंजेटा कहते हैं, ‘तब तक, हम पूरी प्रक्रिया को जान चुके थे, और यह एक अच्छा व्यवसायिक विचार लग रहा था. स्थानीय भाषा में, हम एजेंट बन गए, लेकिन अधिक परिष्कृत रूप से, हम कंसल्टेंट हैं.’
कम से कम 18-20 लाख रुपये के प्रत्येक वीजा आवेदन के लिए, दोनों 40,000-50,000 रुपये का कमीशन कमाते हैं. हर महीने वे पांच से छह फाइलें क्लियर कर लेते हैं. और उनका ऑस्ट्रेलिया में एक ऑफिस भी है.
भूपिंदर कहते हैं, ‘आज का खारिज किया गया आवेदक भविष्य का एजेंट है.’ केंद्र, जो 2014 में डीसी ऑफिस के साथ पंजीकृत था, आईईएलटीएस, अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय मानकीकृत परीक्षा के लिए उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करता है, और वीजा की प्रक्रिया भी करता है. आज, उनके पास 500 वीजा आवेदन प्रोसेस में हैं और 220 छात्र आईईएलटीएस पाठ्यक्रम में नामांकित हैं.
अरुण शर्मा (23) आईईएलटीएस की तैयारी के लिए सोनीपत के गनौर से लाडवा गए थे. वह अपने भाई के साथ रहता है, जो हरियाणा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है. उन्हें विश्वास है कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से बीए और एमए करने के बाद भी भारत में उनके लिए सभी दरवाजे बंद हैं. उन्होंने 2019 में रेलवे सुरक्षा बल की परीक्षा दी और फिर 2021 में हरियाणा पुलिस की परीक्षा दी, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. वह निराशा से कहते है, ‘अब 2022 में, मैं केवल एक स्टूडेंट वीज़ा प्राप्त करना चाहता हूं और बाहर जाना चाहता हूं.’
1990 के दशक में लाडवा में अधिकतम दो से तीन सलाहकार थे. उस समय, ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक मांग वाला गंतव्य था. लेकिन अब, ऐसे 200 से अधिक केंद्र हैं. यहां, अस्वीकृति व्यवसाय करने की भावना जगाता है.
पंजेटा ने कहा, ‘जिन लोगों के आवेदन हमारे केंद्रों पर खारिज कर दिए गए हैं, उन्होंने पड़ोस में दुकानें खोल लीं. दो दर्जन से अधिक एजेंटों ने अपने आवेदन के लिए हमसे संपर्क किया है ये सब कहते हुए वह और खानपुर दोनों जोर से हंसने लगे.
इंटरमीडिएट से लेकर पीएचडी डिग्री धारक तक वीजा लेने के लिए बेताब हैं. शहर के ओवरब्रिज, स्मारक और सार्वजनिक स्थान ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस के लिए ‘नो वीज़ा, नो लॉस’ के वादों वाले पोस्टर्स से भरे हुए है. ये साथ ही लड़कियों के लिए खास छूट भी देते हैं.
बिना युवकों वाला गांव
करनाल जिले के शेखूपुरा गांव में बुजुर्ग पुरुषों को समूहों में हुक्का पीते हुए देखा जा सकता है. महिलाएं खेतों और रसोई में काम करती हैं, जबकि बच्चे सड़कों पर खेलते हैं.
लेकिन युवक गायब हैं.
गांव के एक बुजुर्ग का दावा है कि पिछले पांच से छह वर्षों में, कम से कम सौ लोग – कुछ 16 साल के युवा – अन्य देशों के लिए रवाना हुए हैं.
45 वर्षीय किसान सुरेश कुमार घनघास कहते हैं, ‘कुछ लोगों के पास नौकरी है, लेकिन हाल ही में हर कोई विदेश जा रहा है. लेकिन हमारा कोई अकेला मामला नहीं है. खेरी नारू और घोगरीपुर गांव भी अपने युवाओं को विदेश भेज रहे हैं.’
वह अवसर की कमी और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सीमित सीटों के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा को इस प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार ठहराते है. घनघास कहते हैं कि उन्होंने 1999 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की. ‘अच्छी नौकरी’ पाने में असमर्थ होने पर उन्होंने खेती-बाड़ी (खेती) की ओर रुख किया.
घनघास जिनके तीन बच्चे हैं, कहते है कि ‘यह पीढ़ी खेतों में काम नहीं करेगी. उनके पास एक अच्छी जीवन शैली जीने की आकांक्षा है. उनकी सबसे बड़ी बेटी नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में इंजीनियरिंग में पीएचडी पूरी कर रही है. दूसरा यूपीएससी की तैयारी कर रहा है. लेकिन उनका 20 साल का बेटा सत्यम लॉस एंजेलिस में कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल कर रहा है.
वे गर्व के साथ कहते है, ‘लेकिन हमने कानूनी रास्ता अपनाया, न कि ‘नंबर दो’. वीजा फीस, एजेंट कमीशन, प्लेन टिकट और कुछ महीनों की ट्यूशन फीस के लिए उसने 18 लाख रुपये खर्च किए.
घनघास 10 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं, लेकिन उसने 50 एकड़ और लीज पर ली है. उनके पड़ोसी, रणबीर सिंह, जो अपने छह भाइयों, उनकी पत्नियों और बच्चों के साथ रहते हैं, अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए ज़मीन की जुताई कर रहे है. चार बेटे स्टूडेंट वीजा पर दूसरे देश जा चुके है, पांचवां आवेदन करने की प्रक्रिया में है.
परिवार में सबसे छोटा बच्चा 17 वर्षीय तनिष्क 12वीं कक्षा में है और पहले से ही अमेरिका में अपने जीवन की योजना बना रहा है. वह अपने अध्ययन या करियर के क्षेत्र को लेकर चिंतित नहीं है. लक्ष्य अमेरिका पहुंचना है. वे कहते है, ‘मैंने अभी तक पाठ्यक्रम पर फैसला नहीं किया है, लेकिन मुझे जो मिलता है, मैं करूंगा.’
यहां तक कि पूर्व ग्राम प्रधान भी कुछ महीने पहले अपनी पत्नी के साथ इसी रास्ते से अमेरिका गए थे. घनघास कहते हैं, ‘वह और उनकी पत्नी यात्रा के किसी चरण में है, लेकिन कोई नहीं जानता कि वे किस देश में समाप्त होंगे.’
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ग्रामीण संकट और बेरोजगारी
पश्चिम में ब्लू-कॉलर प्रवास दशकों से पंजाब का पर्याय था, लेकिन यह थोड़े आश्चर्य की बात है कि हरियाणा अब रफ्तार पकड़ रहा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की सितंबर की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा ने भारत में सबसे अधिक बेरोजगारी दर्ज की, जो राष्ट्रीय औसत से चार गुना अधिक है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बढ़ती बेरोजगारी दर के पीछे बढ़ती महंगाई और ग्रामीण संकट कारण है.
निश्चय के चाचा अश्विनी शर्मा पूछते हैं, ‘वे अब खेतों में काम नहीं करना चाहते हैं. लेकिन कोई दूसरा काम भी नहीं है. हर दिन, हम विरोध और पेपर लीक की खबरों से जागते हैं. युवा नये मोबाइल फोन खरीदना चाहते हैं. वे नई कार चलाना चाहते हैं और ब्रांडेड कपड़े पहनना चाहते हैं. इस जीवनशैली को वहन करने का दूसरा तरीका क्या है?
भ्रष्ट प्रणाली से मोहभंग होने के कारण, अधिकांश युवा ऐसी नौकरी नहीं करना चाहते जो उन्हें मामूली पेमेंट देगा. निश्चित रूप से यह कारों, आईफ़ोन और ब्रांडेड कपड़ों के लिए पर्याप्त नहीं होगा.
घोटालों और पेपर लीक का विवरण देने वाले स्थानीय अखबारों की सुर्खियां बढ़ती नियमितता के साथ सामने आ रही हैं.
एक भर्ती घोटाले पर एक स्थानीय समाचार पत्र की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हरियाणा पुलिस भर्ती पेपर लीक में तीन और गिरफ्तार किए गए हैं, अब तक 67 पकड़े गए हैं.’ मई 2022 में, जागरण की एक अन्य रिपोर्ट ने हरियाणा में सबसे बड़े पेपर लीक का विवरण दिया, जिसके लिंक कश्मीर तक थे. पूरी भर्ती और परीक्षा प्रणाली पेपर लीक से ग्रस्त है, जो 2019 के विधानसभा चुनाव में एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया था.
अगस्त 2021 में, हरियाणा सरकार को इस खतरे को रोकने के लिए एक बिल – द हरियाणा पब्लिक एग्जामिनेशन (अनफेयर मीन्स प्रिवेंशन) बिल पेश करना पड़ा.
जींद में इन तरीकों से विदेश भेजने वाले कारोबारी एजेंट ने कहा, ‘सेना की भर्ती में देरी और अग्निवीर योजना ने भी हमारे पास आने वाले उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’
महिलाएं भी पीछे नहीं है
हाल के महीनों में, कैंब्रिज जैसे वीजा एजेंटों ने अन्य देशों में अपनी किस्मत तलाशने वाली युवतियों की संख्या में भी वृद्धि देखी है. और वे पारंपरिक मैरिज वीज़ा का रास्ता नहीं अपना रही हैं.
भूपिंदर खानपुर कहते हैं, ‘इस इलाके में लड़कियों का आना नई बात है.’ जो परिवार अपनी बेटियों को दिल्ली विश्वविद्यालय या अन्य सुस्थापित संस्थानों में नहीं भेजते हैं, वे नौकरी या डिग्री के लिए ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अवसर तलाशने लगे हैं.
शेखूपुरा गांव में दो युवतियां पहले ही कानूनी रूप से विदेश जा चुकी हैं.
लाडवा शहर के कैंब्रिज सेंटर में एक शख्स अपनी दोनों बेटियों के वीजा की जानकारी के इंतजार में बैठा है.
दूसरी मंजिल पर, 19 वर्षीय रिया वैद फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीख रही हैं ताकि वह आईईएलटीएस पास कर सकें. वह कंप्यूटर साइंस में मास्टर करने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना चाहती है. वह अपने परिवार में डिग्री पाने वाली पहली महिला हैं. उसके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बी.एससी ग्रेजुएट वैद कहती हैं, ‘पहले, मेरे माता-पिता को मनाना मुश्किल था. लेकिन अब, वे समझ गए हैं कि ऑस्ट्रेलिया लड़कियों के लिए सुरक्षित है और मैं वहां बहुत कुछ कमा सकती हूं.’
दो बच्चों की मां आशु देवी (29) ने वेल्स में कार्डिफ विश्वविद्यालय जाने को अपना मिशन बना लिया है. उन्होंने ‘मिशन यूके’ का कार्यभार तब संभाला जब उनके पति निर्मल जो कि एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं, वह गुड़गांव में अपनी नौकरी छोड़कर राजेपुर गांव लौट आए.
आशु कहती है, ‘वह गुरुग्राम में केवल 30,000 रुपये कमा रहा था. इतने कम में चार लोगों वाला परिवार कैसे चल सकता है. कैंब्रिज के जिन एजेंटों से वह परामर्श कर रही हैं, उन्होंने वादा किया है कि उनके आवेदन पर कुछ महीनों में कार्रवाई की जाएगी और उन्हें अप्रैल 2023 तक वीज़ा मिल जाएगा. उनके पति को उनके पिता से विरासत में मिलने वाली पांच एकड़ जमीन से उन्हें मदद मिलेगी.
आशु वापस नहीं लौटना चाहती हैं और पहले से ही वर्क परमिट प्राप्त करने की योजना बना रही हैं जिसके बाद उसके पति और बच्चे उसके पास आ जाएंगे.
लेकिन वह इंटरव्यू से डरती है.
वह एजेंटों से अनुरोध करती हैं, ‘कृपया सुनिश्चित करें कि मैं इंटरव्यू से बच जाऊं.’
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(संपादन: अलमिना खातून)
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