नई दिल्ली: ऐसा कम ही होता है जब किसी आईआईटी रुड़की स्नातक को किसी म्यूजियम का जुनून हो और जब ऐसा होता है, तो भारत की संस्कृति को अपने में समेट ये जगह गूढ़ शैक्षणिक बोझिलता से हटकर लोगों के अनुकूल कहानी कहने की ओर बढ़ जाती है.
40 तकनीकी विशेषज्ञों, कंटेंट राइटर्स, प्रबंधन विशेषज्ञों और इतिहासकारों की एक टीम के साथ मिलकर गुरुग्राम स्थित टैगबिन भारतीय संग्रहालयों को बोझिल माहौल से निकाल कर तकनीकी रूप से रोचक बनाने के काम में जुटा है. यह उनकी मेहनत का नतीजा था कि लगभग चार महीने पहले भारत को तीन मूर्ति भवन में भव्य प्रधानमंत्री संग्रहालय मिला. टैगबिन की अगली मेगा परियोजनाओं में भारत के 6.5 लाख गांवों की कहानियों को डिजिटल रूप से कैप्चर करना और कुरुक्षेत्र में एक महाभारत संग्रहालय को तैयार करना शामिल है. यहां आने वाले विजिटर्स के लिए पॉड्स उनके कन्फेशन बॉक्स होंगे यानी इनके जरिए वे अपने सभी दुखों और चिंताओं को सामने रखेंगे और जवाब में उन्हें भगवद्गीता से रोबोटिक मार्गदर्शन दिया जाएगा.
आईआईटी रुड़की के पूर्व छात्र और अब टैगबिन के सीईओ सौरव भाई कहते हैं, ‘हम भारत के सांस्कृतिक उद्योग में बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं और हमारा ध्यान इस इंडस्ट्री को विकसित करने पर है. भारत में अधिकांश संग्रहालय आकर्षक नहीं हैं. जब लोग भारत घूमने के लिए आते हैं तो संग्रहालयों में जाना उनकी बकेट लिस्ट में नहीं होता. इसलिए नहीं कि हमारे पास बताने के लिए पर्याप्त सांस्कृतिक कहानियां नहीं हैं, बल्कि इसलिए कि उन्हें पेश करने के रोचक तरीकों की कमी है.’
उनका कहना है कि उनके काम का मकसद भारतीय संग्रहालयों में ‘वाउ फैक्टर’ लेकर आना है.
टैगबिन एक तकनीक से जुड़ी अनुभवी सर्विस कंपनी है, जो 20013 में शुरू हुई थी. यह अभी हाल के कुछ राष्ट्रवादी अभियानों के पीछे की ताकत भी रही, वो अभियान जिन्होंने देश में एक तूफान सा ला दिया. यह समूह हर घर तिरंगा डिजिटल अभियान और राष्ट्रगान अभियान में शामिल था.
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भारत को एक साथ लाना
टैगबिन ने जिन भी प्रोजेक्ट पर काम किया है उनमें जन भागीदारी ही उनका आधार रहा है. राष्ट्रगान अभियान के लिए टैगबिन ने 2.5 करोड़ नागरिकों की आवाज का इस्तेमाल किया था.
इन्होंने एक वेबसाइट बनाई जहां लोग राष्ट्रगान गाते हुए खुद के वीडियो अपलोड कर सकते थे. क्लिप्स का संकलन स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर बजाया गया. उसे सुनकर, ऐसा लगा मानो सारा भारत एक सुर में गा रहा हो.
टैगबिन की प्रोजेक्ट मैनेजर कृतिका दुग्गल कहती हैं, ‘टैगबिन पूरे देश को ध्यान में रखकर कार्यक्रम करता है. हमारा मानना है कि जब हम कुछ करते हैं, तो इसे हमें अपने देश और उसके नागरिकों के लिए करना चाहिए.’
हाल ही में हर घर तिरंगा अभियान को टैगबिन ने संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर नियोजित तरीके से अंजाम तक पहुंचाया था. वेबसाइट, जिसमें ‘सेल्फी विद द फ्लैग’ फीचर था, ने लोगों को अपनी सेल्फी अपलोड करने और झंडा फहराने की क्लिप और तस्वीरें साझा करने के लिए कहा. इसे 6.5 करोड़ तस्वीरे मिली थीं. टैगबिन के मुताबिक इस साल 30 करोड़ परिवारों ने अपने घरों या फिर अन्य जगहों पर झंडा फहराया था.
सौरव कहते हैं, ‘हो सकता है कि कोई उत्पाद लीक से हटकर हो, लेकिन उसे बस जन-जन तक पहुंचने की ज़रूरत होती है.’
भारत के गांव और पीएम सेल्फी
टैगबिन इतिहास के साथ बातचीत करने के हमारे तरीके को बदलना चाहता है. इसने प्रधानमंत्री संग्रहालय, पूर्व में दिल्ली के नेहरू संग्रहालय को तकनीक के साथ इन्फ्यूजन करके फिर से डिजाइन किया. काइनेटिक रोशनी वाली एक छत, अपने पसंदीदा प्रधानमंत्री के साथ एक सेल्फी लेने का मौका, यहां तक कि अपनी पसंद के प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर वाला एक पत्र प्राप्त करने का अवसर जैसी कुछ खासियत इसे बाकी सब संग्रहालयों से अलग करती हैं.
संग्रहालय के प्रोजेक्ट मैनेजर दुग्गल बताते हैं, ‘उदाहरण के लिए, सिग्नेचर को हमने भारत के प्रधानमंत्रियों की मूल लिखावट के अभिलेखागार से तैयार किया. हमने दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे के इंटरव्यू में से एक पुरानी ऑडियो फाइल ली और फेस मैपिंग का इस्तेमाल करते हुए ऑडियो फाइल को वीडियो में बदल दिया.’
लेकिन संग्रहालय की प्रदर्शनी ही एकमात्र ऐसी कहानियां नहीं हैं जिन्हें टैगबिन ने पुनर्जीवित करने का काम किया है. इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो उन्हें खास बनाता है.
अब से लगभग एक वर्ष बाद शुरू होने वाले अपने आगामी प्रोजेक्ट के लिए टीम की योजना एक डिजिटल पोर्टल बनाने की है जो 6.5 लाख गांवों के जीवन से रू-ब-रू कराने के लिए एक विंडो के तौर पर काम करेगी. लॉग इन करने वालों को ग्रामीण जीवन की झलक नजर आएगी.
भाई ने बताया, ‘हम इन गांवों की एक वर्चुअल पहचान बनाना चाहते हैं. उनकी कला और शिल्प से लेकर अन्य अनोखे पहलुओं तक, यह उनके लिए एक सांस्कृतिक प्रोफाइल बनाने जैसा होगा.’
30,000 गांवों में पहले ही काम कर चुकी टीम के सदस्यों ने इस दौरान जो भी सीखा, उससे अभिभूत हैं. उन्हें कर्नाटक में मट्टू नाम का एक गांव मिला जहां हर व्यक्ति संस्कृत बोलता है. वहीं गुजरात के एक गांव में कोई नकदी नहीं लेता है. यहां हर तरह का लेन-देन डिजिटल भुगतान के जरिए किया जाता है.
सौरव कहते हैं, ‘वास्तव में एक ऐसा गांव भी है जहां हर तीसरा जन्म जुड़वां के रूप में होता है, चाहे वह इंसान हो या जानवर.’ टैगबिन को उम्मीद है कि यह प्रोजेक्ट इस तरह की कहानियों का ‘भंडार’ होगा.
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सरकार के साथ जुड़कर काम किया
टैगबिन निजी क्षेत्र से भी जुड़ा हैं लेकिन भारत में इसका अधिकांश काम सरकार के साथ मिलकर किया गया है. सौरव कहते हैं, ‘भले ही हम काम करने वाले भी है और विचारक भी, लेकिन हम सरकारों के साथ मिलकर काम करते हैं जो हमारी बहुत मदद करती हैं.’
यहां तक कि प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव, नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री संग्रहालय प्रोजेक्ट की देखरेख के लिए जिम्मेदार थे. इसके अतिरिक्त, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी और पूर्व विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर जैसे दिग्गजों के नेतृत्व में अन्य समितियां भी थीं.
फिलहाल कंपनी हरियाणा टूरिज्म और हरियाणा के राज्य के प्रमुख सचिव से बातचीत कर रही है. वे भावी लॉन्च के लिए प्रधानमंत्री के सीधे संपर्क में भी हैं.
टैगबिन भारत की कहानियों को बड़ा और बेहतर बनाना चाहती है. कंपनी इस साल बेंगलुरु में एक सत्य साईं संग्रहालय शुरू कर रही है और दूसरा संग्रहालय 2023 में बनकर तैयार हो जाएगा. यह कुरुक्षेत्र संग्रहालय महाभारत और भगवद्गीता को समेटे हुए है.
कुरुक्षेत्र संग्रहालय में आने वालों का स्वागत एक सुदर्शन चक्र करेगा, जो प्रधानमंत्री संग्रहालय में अशोक स्तंभ के जैसा है.
अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, तो संग्रहालय में एक पॉड भी होगा जो लोगों को यह बताने का काम करेगा कि उन्हें क्या परेशानी है – उनका डर, उनकी चिंताए, सबका जवाब उसके पास होगा. उन्हें उनकी परेशानियों या पापों से निपटने में मदद करने के लिए गीता के एक श्लोक का पाठ सुनाया जाएगा. यह अतीत के साथ एआई तकनीक का फ्युजन होगा.
इस प्रोजेक्ट की खासियत है कि ये सब सिर्फ सौर ऊर्जा और रेडिएंट कूलिंग पर काम करेंगी.
तथ्यों से दूर न जाना
इस दौरान टैगबिन को कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. सौरव बताते हैं, ‘प्रधानमंत्री संग्रहालय के साथ हमारी सबसे बड़ी चुनौती हमें सौंपा गया काम था.’ यह पहले से ही एक विवादास्पद विषय था क्योंकि लोग इस बात से नाराज थे कि नेहरू की विरासत को एक समग्र प्रधानमंत्री के संग्रहालय में नष्ट किया जा रहा है. लेकिन टीम ने सिर्फ सभी प्रधानमंत्रियों और उनके प्रभाव को दिखाने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.
भाई कहते हैं, ‘भारत में संग्रहालय काफी क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं. हम भारत को सकारात्मक रूप से दिखाना चाहते हैं, लेकिन इसके साथ ही हम तथ्यों को भी प्रस्तुत करना चाहते हैं.’
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