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Thursday, 21 November, 2024
होमफीचरएक के लिए संस्कृति, दूसरे के लिए टैबू- नॉर्थईस्ट के स्वाद के साथ मास्टरशेफ अब ज्यादा भारतीय है

एक के लिए संस्कृति, दूसरे के लिए टैबू- नॉर्थईस्ट के स्वाद के साथ मास्टरशेफ अब ज्यादा भारतीय है

ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका में, भोजन के विकल्पों पर राजनीति का असर नहीं होता है, लेकिन भारत में, वे अक्सर 'शुद्धता' की धारणा से जुड़े होते हैं. मास्टरशेफ इंडिया 7 इसे बदल रहा है.

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चेन्नई की 36 वर्षीय अरुणा विजय के लिए ऐसे किचन में खाना बनाना एक चुनौती है जहां मीट भी बनाया जाता है. लेकिन कैमरे से शर्माने वाली रेसिपी डेवलपर – मास्टरशेफ इंडिया सीज़न 7 में 16 फाइनलिस्टों में से एक – तमिलनाडु की समृद्ध भोजन विरासत को उन व्यंजनों के माध्यम से उजागर करने के अपने सपने के रास्ते में आड़े नहीं आने देगी, जिन्हें उन्होंने वर्षों से परिष्कृत (पैना) किया है.

हरियाणा के सिरसा से 25 वर्षीय कानून के स्नातक गुरकीरत सिंह ग्रोवर का एक अलग ‘भावपूर्ण’ मसला है. वह मांस पकाना जानते हैं, लेकिन इसे खाते नहीं हैं. वह कहते हैं, ‘मुझे अन्य प्रतियोगिता करने वालों पर निर्भर रहना पड़ता है कि वे मुझे बताएं कि क्या मेरी डिश का स्वाद अच्छा है और क्या मांस अच्छी तरह से पकाया गया है.’

मास्टरशेफ इंडिया सीजन 7, जो 2 जनवरी को SonyLIV पर प्रसारित होना शुरू हुआ, 2010 में लॉन्च होने के बाद से शो अधिक विविधता वाले सीजन में से एक साबित हो रहा है. शो में भाग लेने वाले 16 रसोइयों में से आधे पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत – पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम से हैं – ऐसे क्षेत्र हैं जो अक्सर बड़ी कहानी में अपनी पहचान नहीं बना पाते.

यह कोई संयोग नहीं है. इस मौसम को ‘इंडिया के फूड का त्योहार’ कहा जाता है. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले एपिसोड भारतीय व्यंजनों की पाकशैली की प्रथाओं और आदतों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करेंगे – सब जगह मौजूद इडली-सांभर से लेकर अकिनी चोकिबो या नागालैंड के पेरिला बीज के साथ पके हुए घोंघे जैसे कम चर्चित पकवान तक.

इस सीज़न की पहली कड़ी में, जिसमें प्रतियोगियों ने प्रतिष्ठित सफेद एप्रन के लिए होड़ की, जजों ने जो व्यंजन चुने उनमें कम चर्चित क्षेत्रीय व्यंजनों शामिल थे, कुछ में आज के समय के और पारंपरिक तरीकों का मिश्रण था.

MCI Judges Ranveer Brar, Garima Arora and Vikas Khanna | By special arrangement
एमसीआई के जज रणवीर बरार, गरिमा अरोड़ा और विकास खन्ना | विशेष व्यवस्था के साथ

कोलकाता की द्युति बनर्जी ने एक साधारण बंगाली चावल दलिया, फेना भात के अपने वर्जन के साथ जजों को लुभाया. वह एक कोरियाई शैली के तले हुए अंडे और गोंधराज लेबू (एक प्रकार का लाइम) के पत्तों का बना- से एक पायदान ऊपर जगह बनाई. ओडिशा के अविनाश पटनायक ने अपराजिता या नीले मटर के फूल के साथ पीठा – एक मीठे पैनकेक – को बहुत ही सेरेब्रल ट्विस्ट दिया. उन्होंने अपने डिश को नीला बनाने के लिए इस फूल का इस्तेमाल किया और उसका स्वाद जस का तस बना रहा.

इस शो में 78 वर्षीय उर्मिला बेन भी हैं, जो मास्टरशेफ इंडिया के अब तक के किसी भी सीजन की सबसे उम्रदराज़ प्रतियोगी हैं. वह आसानी से पटोडे या स्टफ्ड अरवी के पत्तों के रोल बना सकती हैं.

सेलिब्रिटी शेफ रणवीर बरार, जो मास्टरशेफ इंडिया सीजन 7 के तीन जजों में से एक हैं कहते हैं, ‘परिभाषा भोजन की खूबी छीनती है और वह सीमित करती है. भारत एक राष्ट्र के रूप में आधिकारिक रूप से 1947 में उभरा, लेकिन (इसका) भोजन हमेशा वजूद में बना रहा.’ बाकी दो जज विकास खन्ना और गरिमा अरोड़ा हैं, दोनों अपने क्षेत्र के मिशेलिन स्टार्स हैं.


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‘मांसहार’ का एक व्यंजन

मास्टरशेफ के ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी वर्जन में, प्रतियोगी शाकाहारी और वीगन होने से लेकर ग्लूटेन फ्री होने तक भोजन की अपनी निजी पसंद के साथ आते हैं. लेकिन इस तरह के विकल्प में कोई राजनीतिक दबाव नहीं होता है. भारत में, भोजन को अक्सर धर्म और जाति-आधारित ‘शुद्धता’ की धारणा से जोड़ा जाता है.

2015 में वापस, मास्टरशेफ इंडिया सीज़न 4 ने एक विवाद को जन्म दिया, जिसमें प्रतिभागियों को केवल शाकाहारी व्यंजन तैयार करने को कहा गया था. हालांकि, तब से इस तरह के प्रतिबंध शो से हटा दिए गए हैं.

इसका कुछ संबंध इस तथ्य से हो सकता है कि शाकाहारी देश के रूप में भारत की प्रतिष्ठा के बावजूद, ज्यादातर लोग मांस खाते हैं. 2019 और 2021 के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के पांचवें दौर में सामने आया कि 15-49 आयु वर्ग में 83.4 प्रतिशत भारतीय पुरुष और 70.6 प्रतिशत महिलाएं मांस खाती हैं. जबकि चिकन, मटन और मछली देश में व्यापक रूप से ‘स्वीकार्य’ है, लेकिन धार्मिक वजहों से भारतीय कुकिंग कंपीटिशन में पोर्क और बीफ के मौजूद होने की संभावना नहीं है.

यहां तक कि अरुणा विजय जैसे शाकाहारी प्रतियोगी भी स्वीकार करते हैं कि मांस देश की भोजन संस्कृति का हिस्सा है और यह तक संभव है कि एक ही रसोई में दोनों साथ-साथ मौजूद हों.

अरुणा विजय कहती हैं, ‘यह एक प्रतियोगिता में होने के अनुभव का एक हिस्सा है.’ ‘शाकाहारी भोजन को अधिक लुभावना बनाने के लिए हमें और अधिक प्रयास करने होंगे. यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मजेदार भी है.’

वह इस तथ्य के प्रति संवेदनशील हैं कि उपलब्धता और पहुंच भोजन की पसंद को प्रभावित करती है. ‘भोजन कम से कम खर्च के साथ ज्यादा से ज्यादा पौष्टिकता के लिहाज से भी अहमियत रखता है. हर कोई कुछ खास तरह के भोजन आइटम का खर्च नहींं उठा सकते.’ विजय कहती हैं. ‘कुछ क्षेत्रों में (ओडिशा के), चींटियों की चटनी प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत होती है.’

ओडिशा के अविनाश पटनायक के मुताबिक, विविध सांस्कृतिक और धार्मिक भोजन प्रथाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है.

भुवनेश्वर के एक रसोइए का कहना है, ‘ओडिशा में ऐसे मंदिर हैं जहां मछली चढ़ाई जाती है.’ ‘कई जगहों पर प्रसाद के रूप में मांस चढ़ाया जाता है. यह विश्वास के बारे में है, लेकिन जानकारी के लिहाज से भी अहम है.’

कंपीटिशन में विविधता लाना

अभी तक मास्टरशेफ इंडिया के किसी भी सीजन में विशुद्ध पूर्वोत्तर भारतीय व्यंजनों को प्रदर्शित नहीं किया गया है. और पहले पांच सीज़न के लिए, पूर्वोत्तर या पूर्वी भारत से भी शायद ही कोई प्रतियोगी हिस्सा लिया हो.

लेकिन सीजन 6 में चीजें बदल गईं, जो 2019 में प्रसारित हुआ. उस वर्ष ओडिशा के अबिनास नायक को विजेता का ताज पहनाया गया था. ओडिशा की स्मृतिश्री सिंह भी टॉप चार फाइनलिस्ट में से एक थीं. दार्जिलिंग के एक 32 वर्षीय उद्यमी और इंटीरियर डिजाइनर महेंद्र थुलुंग शो में पहले गोरखा प्रतियोगी बने थे.

और मास्टरशेफ इंडिया ने इस साल डाइवर्सिटी के मामले में बड़ी छलांग लगाई है.

मिस्ट्री बॉक्स चैलेंज में से एक में इंग्रेडिएंट के तौर पर रोसेल, गुड़हल प्लांट का इस्तेमाल शामिल है. इस पौधे को आंध्र प्रदेश में गोंगुरा कहा जाता है और इसका इस्तेमाल दाल समेत कई व्यंजनों में किया जाता है. मणिपुर में, इसे सौगरी के नाम से जाना जाता है और चटनी बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.

कुछ प्रतियोगियों के लिए, शो उनके व्यंजनों के बारे में गलत धारणाओं को दूर करने का एक अवसर है.

असम के एक युवा रसोइया नयनज्योति सैकिया कहते हैं, ‘लोग सोचते हैं कि हम पूर्वोत्तर के लोग केवल मांसाहारी भोजन करते हैं, लेकिन हमारे पास बहुत सारी अनोखी सब्जियां और जड़ी-बूटियां हैं जो न केवल स्वादिष्ट होती हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी होती हैं.’ ‘हमारे पास एक अनूठा व्यंजन है, जिसमें हम मसालों या तेल का इस्तेमाल नहीं करते, और यह बहुत हेल्दी है.’

‘घर’ के खाने पर फोकस

2020 के लॉकडाउन के बाद घर का बना खाना नई अहमियत हासिल कर चुका है. कोई कुकिंग सर्विस न होने और रेस्तरां की डिलीवरी बंद होने से, काफी लोग अपनी रसोई में नये-नेय एक्सपेरीमेंट किए. कुछ ने अपने नए जुनून को मोनिटाइज्ड भी किया.

लोगों ने भोजन को लेकर पहले से कहीं अधिक माथा खपाया. विजय, उनमें से एक हैं, लॉकडाउन के दौरान उन्होंने व्यंजनों को दर्ज करना शुरू किया, विशेष रूप से वे भोजन जिन्हें महिलाएं जो अपने परिवार वालों के लिए बनाती थीं.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मास्टरशेफ सीजन 7 उन लोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो ‘होम शेफ’ के रूप में पहचान बनाई हैं और कुकिंग में जिनके लिए औपचारिक ट्रेनिंग जरूरी नहीं है.

और घर के बने व्यंजनों पर ध्यान देने से एक बात साफ हो गई है- यह कोई आसान काम नहीं है. नये लोगों ने अच्छा काम किया, और सोशल मीडिया की समझ रखने वाली पीढ़ी आजमाए हुए पारिवारिक व्यंजनों और क्षेत्रीय खासियतों वाले भोजन को नये नजरिए के साथ सामने ला रही.

गुरकीरत सिंह ग्रोवर, छोटे शहर से होने के नाते लोकल व्यंजन के साथ एक्सपेरीमेंट किए. वे कहते हैं, ‘मेरा लक्ष्य भारतीय इंग्रेडिएंट्स को अंतरराष्ट्रीय बनाना है क्योंकि हर फैंसी इंग्रेडिएंट छोटे शहरों में उपलब्ध नहीं है.’

Gurkirat Grover with chef Ranveer Brar | By special arrangement
गुरकीरत ग्रोवर (दाहिने) शेफ रणवीर बरार (बाएं) के साथ | विशेष व्यवस्था के साथ

ग्रोवर ने मसली हुई सब्जियों (चोखे) के साथ खाए जाने वाले भरवां आटे के गोले, गांव का भोजन लिट्टी चोखा को पेश किया.

पारंपरिक का आधुनिकीकरण – और इसका उत्सव भी – एक वैश्विक परिघटना बन गया है. इस खाना पकाने के शो में ‘प्रामाणिक’, कहानी कहने की भूख है.

2021 में, मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया सीजन 13 की फाइनलिस्ट, किश्वर चौधरी ने ‘स्मोक्ड राइस वॉटर’ कहकर अपनी बांग्लादेशी विरासत प्रदर्शित की थी. यह व्यंजन पंटा भात (पश्चिम बंगाल) या गील भात (बिहार) या पाखला (ओडिशा)- यह एक स्वादिष्ट ‘गरीबों का नाश्ता’ है.

चौधरी के पकवान में वाटर-फरमेंटेड चावल, सफेद सोया अदरक, स्मोक्ड आलू की मिलावट, और नींबू के साथ प्याज और मिर्च शामिल थे. यह न केवल उनका अपनी जड़ों को सम्मान देना था, बल्कि पाक शैली को भी प्रदर्शित किया, जिसे जजों ने पसंद किया.


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परंपरा के पक्ष के साथ स्थिरता 

अपने डिजर्ट और समृद्ध रोस्ट के लिए चर्चित, भोजन की ‘देवी’ निगेला लॉसन ने नवंबर 2020 में उस समय हलचल मचा दी थी जब उन्होंने अपने शो कुक, ईट, रिपीट में केले और फूलगोभी के छिलकों की करी बनाई थी.

उसी वर्ष, अप्रैल में, गुड मॉर्निंग ब्रिटेन पर टीवी शख्सियत और शेफ नादिया हुसैन ने बर्गर में भरने के लिए केले की खाल को कैसे तैयार की जा सकती है, इसका गुणगान किया. महामारी के कारण दुनिया भर में लॉकडाउन के दौरान हर कोई केले की रोटी बना रहा था. हुसैन के माता-पिता मूल रूप से बांग्लादेश से हैं, जहां सब्जी के छिलके खाना आम बात है.

यही पश्चिम बंगाल में चल रहा था, जहां तने, छिलके और अन्य ‘बेकार’ पड़ी सब्जी व्यंजनों के तौर पर सामने आईं. खाद्य इतिहासकारों ने राज्य के ऐसे शाकाहारी व्यंजन संस्कृति की जड़ों का पता लगाया – जिसे कि ‘विधवा व्यंजन‘ कहा जाता था, जो उन महिलाओं के लिए थे जिनके पति मर चुके हैं और जिनके लिए भोजन के बाकी विकल्प प्रतिबंधित होते हैं. इन महिलाओं ने बिना प्याज या लहसुन के इस्तेमाल के ज्यादातर इंग्रेडिएंट्स बनाना सीख लिये थे.

कोलकाता की एक प्रतियोगी प्रियंका कुंडू बिस्वास कहती हैं, ‘थोर भाजा और लबरा से पोरा तक, नए व्यंजन जल्द ही बंगाली व्यंजनों का एक अभिन्न हिस्सा बन गए, खासकर उन दिनों (जब) लोग मांस नहीं खाते थे, या मांस खाने से बच रहे थे’. शादी करने और कोलकाता शिफ्ट होने से उन्हें इस क्षेत्र के भोजन के बारे में और अधिक जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने इन तरीकों को अपने खाना पकाने में शामिल करना शुरू किया.

और मास्टरशेफ इंडिया सीज़न 7 के कई प्रतियोगी भारत में ‘नो-वेस्ट’ खाना पकाने के तरीकों के ज्यादा उदाहरण पेश करने से कतरा नहीं रहे हैं- राजस्थान के कुछ हिस्सों में तरबूज के छिलकों से लेकर केरल में केले के छिलके को डीप फ्राई करने तक.

ओडिशा के पटनायक कहते हैं, ‘संतुलन एक नई अवधारणा नहीं है. पारंपरिक भोजन, जो कि हम में से बहुतों से दूर जा रहे हैं, हमेशा स्वस्थ और संतुलित दोनों रहे हैं.’

किसी के लिए संस्कृति, अन्य के लिए टैबू

मास्टरशेफ इंडिया में इस वर्ष के प्रतियोगियों में जीतने के उत्साह की कोई कमी नहीं है – लेकिन यह एक दूसरे से सीखने की उत्सुकता के साथ आता है.

कई लोगों ने कहा कि एक साथ खाना पकाने से उन्हें अन्य क्षेत्रों की खाद्य संस्कृतियों के बारे में अपने पूर्वाग्रहों को दूर करने में मदद मिली है. लुधियाना की कमलदीप कौर कहती हैं, ‘मुझे नहीं पता था (कि) वहां बहुत सारी पोडीज (सूखी रुचिकर सामग्री) हैं. एक बार जब मैं घर वापस जाऊंगी, तो अब मैं उस भोजन के साथ एक्सपेरीमेंट करूंगी जिसके लिए इन सामग्री इस्तेमाल किया जाता है.’

मास्टरशेफ इंडिया सीजन 7 समाजशास्त्र का एक पाठ बन गया है.

अविनाश कहते हैं, ‘खाने के शौक़ीन होने के नाते, मैंने अलग-अलग चीज़ें खाने की कोशिश की, जो मेरी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं और यहां तक कि जिन्हें टैबू माना जाता है. एक संस्कृति या समुदाय के लिए जो खाने योग्य है वही दूसरे के लिए टैबू है.’

(संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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