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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशलालची डॉक्टरों के रहमोकरम पर बिहार की दलित महिलाएं—2012 में गर्भाशय की लूट, अब किडनी की बारी

लालची डॉक्टरों के रहमोकरम पर बिहार की दलित महिलाएं—2012 में गर्भाशय की लूट, अब किडनी की बारी

बिहार बदल तो गया है, लेकिन गरीब दलित महिलाओं के लिए आज भी वैसा ही है जैसा आज से 15 साल पहले था. वो आज भी ब्लैक लिस्टेड क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों का शिकार बन रही हैं.

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मुजफ्फरपुर/समस्तीपुर: सुनीता देवी को 3 सितंबर 2022 को बच्चेदानी/यूटरस (हिस्टेरेक्टॉमी) निकालने के लिए टिन शेड के एक क्लीनिक में ले जाया गया. उसे पेट में नीचे की तरफ लगातार दर्द की शिकायत थी. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में उनकी राइट ओवरी में सिस्ट इन्फेक्शन होने की बात सामने आई थी. वे जब ऑपरेशन के बाद बाहर आई तो उसके शरीर से बच्चेदानी तो निकाल ही दी गई थी दोनों गुर्दे भी नहीं थे. सुनीता को यह समझने में आठ दिन लग गए कि बेइमान डॉक्टरों ने उनके शरीर को रातों-रात खोखला कर दिया है.

ये है बिहार का ताज़ा मेडिकल घोटाला, भयानक ‘किडनी कांड’, जिसने सबको हैरान कर दिया है.

मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड के बिना लाइसेंस वाले क्लीनिक में सर्जरी के बाद से सुनीता आईसीयू में ही भर्ती हैं, जिसे हफ्ते में हर दूसरे दिन डायलिसिस कर के ज़िंदा रखा जाता है.

अब सुनीता भी उन महिलाओं के साथ जुड़ गई है जिनका एक दशक पहले शरीर का अंग चोरी कर लिया गया था. सुनीता की कहानी समस्तीपुर की गुड़िया जैसी ही है. मुजफ्फरपुर से कुछ 55 किलोमीटर दूर समस्तीपुर के केशोपट्टी गांव की गुड़िया देवी का भी एक दशक पहले शरीर का अंग ऐसे ही डॉक्टरों ने लूट लिया था.

2011 और 2012 के बीच, समस्तीपुर, गोपालगंज, सारण और बिहार के कई जिलों में लगभग 700 महिलाओं की बच्चेदानी को दलालों ने चुरा लिया था और डॉक्टर छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज कर रहे थे. ‘किडनी कांड’ के रूप में डॉक्टरों के मैलफंक्शनिंग स्कैम में पीड़ित महिलाएं आज भी न्याय की बाट जोह रही हैं और राज्य, अस्पताल प्रशासन पुलिस और अदालतों के चक्कर लगा रही हैं. इस मामले में लोक जनशक्ति पार्टी के पूर्व प्रमुख दिवंगत रामविलास पासवान ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की मांग की थी, जबकि राज्य के तत्कालीन श्रम मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने बीबीसी को बताया था कि इस कांड को घोटाला नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें शामिल धन की राशि बहुत बड़ी नहीं है.

उसके बाद के एक दशक में बिहार में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन उन गरीब दलित महिलाओं के लिए नहीं जिन्हें गांव के झोलाछाप डॉक्टरों और क्लीनिकों की दया पर छोड़ दिया गया है. गुड़िया और सुनीता के नुकसान एक दशक से अलग हो गए हैं, लेकिन दोनों एक मेडिकल कम्यूनिटी द्वारा कदाचार, दुर्भावना और नैतिक अधमता की शिकार हैं, जिसने अपने मरीज़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए हिप्पोक्रेटिक शपथ ली थी. सुनीता ने कहा, “उस डॉक्टर को ढूंढो, वह जहां कहीं भी छिपा हो और उसकी किडनी मुझमें लगा दो.”

1965 से महादलितों के साथ काम करने के लिए बिहार आने वाली सामाजिक कार्यकर्ता पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुधा वर्गीज़ के अनुसार, यदि सुनीता को न्याय नहीं मिल रहा है, तो यह उनकी जाति, अशिक्षा, गरीबी और जेंडर के कारण है. वर्गीज़ ने कहा, “ये डॉक्टर उच्च जाति या उच्च वर्ग की महिला से इस तरह का घोटाला नहीं कर सकते और यदि वे ऐसा करते भी हैं, तो क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि राज्य मूक दर्शक बना रहेगा? इस नेक्सस के लिए अत्यंत गरीब महिलाओं का जीवन सस्ता है.”

कंपाउंडर पवन कुमार द्वारा संचालित शुभकांत क्लिनिक, तीन कमरों वाला टिन शेड का अस्थायी अस्पताल, जहां सर्जरी के दौरान सुनीता देवी की किडनी चोरी की गई थी | फोटो : ज्योति यादव/दिप्रिंट

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धोखाधड़ी एक उपकरण

जबकि सुनीता का ऑपरेशन करने वाला कंपाउंडर था और गुड़िया डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के एक गिरोह का शिकार हो गई, जो गरीबों के लिए महत्वाकांक्षी केंद्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत करोड़ों रुपये हड़पने के लिए महिलाओं की अनावश्यक सर्जरी करते थे.

बिहार मानवाधिकार आयोग ने ‘किडनी कांड’ की पीड़ित 708 महिलाओं को 18 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. उच्च राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के एक गरीब राज्य में भ्रष्ट शिकारी चिकित्सा प्रणाली पर नकेल कसने की तुलना में मुआवजा प्रदान करना आसान है. पिछले 10 वर्षों में पूरे बिहार में अवैध नर्सिंग होम और क्लीनिक खुल गए हैं, कम से कम 12 जिला अधिकारियों, सिविल सर्जन और चिकित्सा अधीक्षकों ने दिप्रिंट के सामने यह स्वीकार किया है.

समस्तीपुर जिले के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अपंजीकृत क्लीनिक और नर्सिंग होम की संख्या कानूनी प्रतिष्ठानों के लगभग समान है. ऐसी बेईमान, अक्षम और लुटेरी चिकित्सा प्रणाली द्वारा महिलाओं से उनकी गरिमा और अंगों को छीन लिया जाता है जो समाज में उनकी आवाज नहीं सुने जाने के कारण उन्हें बल देती है.”

गुड़िया देवी अपने पति राम प्रवेश साहनी के साथ, जो केसोपट्टी गांव में एक भूमिहीन दलित मजदूर हैं. गुड़िया की उम्र 25 साल थी जब 2012 में डॉक्टर जितेंद्र कुमार ने उसका गर्भाशय चुरा लिया था, समस्तीपुर स्थित तारा नर्सिंग होम ब्लैकलिस्ट होने के बावजूद काम कर रहा है | फोटो : ज्योति यादव/दिप्रिंट

समस्तीपुर के जिला मजिस्ट्रेट योगेंद्र सिंह ने कहा, “गर्भावस्था से पहले और बाद में एक पुरुष की भूमिका लगभग नगण्य है, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में पुरुष (और बुजुर्ग महिलाएं) ही ऐसी सर्जरी के लिए महिलाओं को राजी करते हैं. यह गर्भाशय, मासिक धर्म और महिलाओं के आसपास किसी भी बातचीत को समाप्त करने का एक तरीका है.”

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पुरुष-केंद्रित संस्कृति में विशेष रूप से कमज़ोर होती हैं क्योंकि अक्सर उन पर उनके पतियों द्वारा त्वरित परिणामों के लिए आक्रामक प्रक्रियाओं से गुजरने का दबाव डाला जाता है. परेशान करने वाली बात यह है कि इन प्रक्रियाओं को अक्सर न्यूनतम निरीक्षण के साथ किया जाता है. ऐसी घटनाएं भी दुर्लभ नहीं हैं. पश्चिमी चंपारण में नवंबर 2022 में किए गए एक छापे में, अधिकारियों ने पांच महिला रोगियों की खोज की, जिनका हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय निकाल लिया) किया गया था और वे भी बिना किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता की देखरेख में इलाज करा रहीं थीं.

चौंकाने वाली बात यह है कि इन मामलों में शामिल कई डॉक्टर सज़ा से बच जाते हैं. यहां तक कि ऐसे मामलों में जहां गिरफ्तारियां की गई हैं, डॉक्टरों ने ज़मानत हासिल कर ली है और नर्सिंग होम का संचालन फिर से शुरू कर दिया है. जिस तरह से वे काम करते हैं, उससे पता चलता है कि भारत के दूर-दराज के हिस्सों में गरीब और अनजान महिलाओं के खिलाफ हिस्टरेक्टॉमी जैसी सामान्य सर्जरी से उनका शोषण कैसे किया जाता है.

अक्सर, अधिकारी इन अवैध क्लीनिकों और नर्सिंग होम के खिलाफ तभी कार्रवाई करते हैं ‘‘जब कुछ होता है’’. उदाहरण के लिए 2021 में ऐसे 5,433 प्रतिष्ठानों को नोटिस दिए गए थे. हालांकि, यह एक स्थानीय पत्रकार की हत्या थी जिसने अपने गृहनगर बेनीपट्टी में फर्जी क्लीनिक और नर्सिंग होम का पर्दाफाश करने के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन दायर किया था, जिसने अंततः सरकार को हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया.

आईसीयू में सिमटी ज़िंदगी

सुनीता और गुड़िया जैसी महिलाएं न्याय के लिए लड़ने में असमर्थ हैं. वे गैर-सरकारी संगठनों, कार्यकर्ताओं और स्थानीय मीडिया पर अपने साथ हुई ज्यादतियों की वकालत करने के लिए भरोसा करती हैं और आशा करती हैं कि सरकार इस पर ध्यान देगी.

8 महीने बाद, सुनीता की कहानी बिहार में स्थानीय समाचारों पर हावी रही, उसकी अस्तित्व की लड़ाई के संघर्ष की दास्तां और पारिवारिक नाटक के साथ उसकी कहानी को चटकारे लेकर पेश किया गया. ‘‘सुनीता अभी भी एक डोनर के इंतजार में हैं’’ ये एक नॉरमल हेडलाइन है जो लगभग हर रोज़ ट्रैकर की तरह नियमित रूप से दिखाई देती थी. खबरों में यह भी दावा किया गया है कि सुनीता के परिवार ने उनके पति सहित उन्हें छोड़ दिया है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक सुनीता के मामले या बिहार में फल-फूल रही लुटेरी चिकित्सा व्यवस्था पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है. उनके डिप्टी तेजस्वी यादव, जो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, ने सुनीता का मामला सामने आने के तुरंत बाद 8 सितंबर को आयोजित एक बैठक में चिकित्सा बिरादरी को चेतावनी दी कि या तो स्वास्थ्य सेवा में सुधार करें या कार्रवाई का सामना करें. यह सरकार की एकमात्र प्रतिक्रिया है जो इस मामले में अब तक सामने आई है.

आज, सुनीता मुजफ्फरपुर में राजकीय श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच) की तीसरी मंजिल पर इंसेफेलाइटिस वार्ड के भीतर आईसीयू बिस्तर पर है. हॉल में हर कोई उन्हें ‘किडनी कांड’ वाली महिला के रूप में जानता है.

सकरा प्रखंड के मथुरापुर गांव की रहने वाली सुनीता देवी पिछले आठ महीने से बिना दोनों किडनी के बिहार के मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) के आईसीयू वार्ड में भर्ती हैं. डायलिसिस इलाज का खर्च राज्य सरकार उठा रही है | फोटो : ज्योति यादव/दिप्रिंट

सुनीता ने कहा, “हर कुछ दिनों में, मैं इस आईसीयू वार्ड से एक लाश को ले जाते हुए देखती हूं. एक दिन मैं भी सौवां शरीर बन कर रिकॉर्ड बन जाऊंगी.” सुनीता धीरे-धीरे उम्मीद खो रही हैं. वे लगातार दरवाज़े पर टकटकी लगाकर देखती हैं और हर दिन एक डोनर के अस्पताल में आने का इंतज़ार करती हैं. हालांकि, 70 और 80 वर्ष की आयु के कुछ बुजुर्ग पुरुष अपनी किडनी देने के लिए आगे आए, लेकिन उनके प्रयासों का परिणाम कुछ ही मिनटों में मीडिया की सुर्खियों में आ गया.

सुनीता प्रदेश की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली मरीज़ बनी हुई है. मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन यूसी शर्मा ने कहा, “अगर बिहार को एक मैचिंग किडनी मिलती है, तो यह उसके पास जाएगी.”

उसका शरीर सूजा हुआ और सूइयों से छिदा हुआ है, उसका डायट चार्ट बहुत सख्त है—24 घंटे में सिर्फ आधा लीटर पानी और सूखी सब्जियां, लेकिन वे अपने घर में पकाई जाने वाली दाल-भात के लिए तरसती है.

वे कहती हैं, “मैं हर दिन रोती हूं. काश डॉक्टर मुझे एक दिन के लिए भी घर जाने की इजाज़त दे देते.”

नर्सिंग स्टाफ और सहायक उसके गवाह हैं कि वे एक डोनर की नहीं मिलने की स्थिति में जीने के दृढ़ संकल्प को देख रही है. हेड नर्स ने कहा, “उसे निराशा के आगे झुकते हुए देखकर मेरा दिल टूट जाता है.”

नेफ्रोलॉजी विभाग में डायलिसिस टीम का हिस्सा चार लैब तकनीशियन उसे सांत्वना देते हैं. “खुद पर और हम पर भरोसा रखो.”

सुनीता के डायलिसिस और अन्य मेडिकल ट्रीटमेंट का खर्च राज्य सरकार वहन कर रही है. एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत, जिला प्रशासन ने सुनीता के लिए 5 लाख रुपये का मुआवजा प्रस्तावित किया है, लेकिन उसके परिवार को अभी तक यह नहीं मिला है. मुजफ्फरपुर में डेप्टी डेवल्पमेंट कमिश्नर आशुतोष द्विवेदी ने कहा, “हमने राज्य के कल्याण विभाग द्वारा संचालित एससी-एसटी छात्रावासों में उसके बच्चों को भी नामांकित किया है. राज्य उनकी शिक्षा का खर्च वहन करेगा.”

हालांकि, परिवार ने बच्चों को एससी-एसटी स्कूल के हॉस्टल में भेजने से इनकार कर दिया है. इसके बजाय, सुनीता के 10 और 6 साल के दो बेटे अस्पताल में उसके साथ रहते हैं, जबकि उसके पिता लालदेव राम और उसकी 12 साल की बेटी विरोध प्रदर्शन में भाग लेते हैं.

सुनीता के पति अकलू राम ने दिप्रिंट से फोन पर बातचीत के दौरान कहा, “वे हमें मुआवजे और सरकारी नौकरी के रूप में 25 लाख रुपये क्यों नहीं दे सकते?” सुनीता का दावा है कि उनके भूमिहीन दिहाड़ी मजदूर पति ने उन्हें छोड़ दिया है और महीनों से उनसे मिलने नहीं आए हैं.

लगभग 20 किमी दूर, प्रवीण कुमार के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं का एक समूह सकरा प्रखंड के सरकारी रेफरल अस्पताल के सामने “सुनीता मांगे इंसाफ” के बैनर तले अनिश्चितकालीन धरना दे रहा हैं. नई दिल्ली में रहने वाले स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण 10 फरवरी को सकरा पहुंचे और तब से विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं. वे सुनीता के समर्थन में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं. उनकी मांगों में एक किडनी, परिवार के लिए 25 लाख रुपये का मुआवजा और सुनीता के पति के लिए एक सरकारी नौकरी शामिल है.

भारत में खराब चिकित्सा व्यवस्था कोई नई बात नहीं है. पिछले एक दशक में लापरवाही और अनियमितताओं के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश बढ़ रहा है, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में डॉक्टर और अस्पताल हमलों का सामना कर रहे हैं. कुछ डॉक्टरों ने सुरक्षा के लिए बंदूकधारियों को नियुक्त करने का भी सहारा लिया है, जिसमें बिहार भी शामिल है.


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जहां झोलाछापों का राज है

मथुरापुर गांव में 27-वर्षीय सुनीता अपने पति और तीन बच्चों के साथ रहती थीं तब उन्हें स्वास्थ्य की कोई प्रॉब्लम भी नहीं थी, लेकिन जून 2022 में उनकी ज़िंदगी बदल गई, जब उन्हें पेट में दर्द होने लगा. उन्हें एसकेएमसीएच में भर्ती कराया गया, जहां अल्ट्रासाउंड से पता चला कि उनकी दाएं ओवरी में सिस्ट है. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट के अनुसार, उनकी किडनियां ठीक थीं.

बाद में कोविड संक्रमण के कारण सुनीता को 15 दिनों के बाद फॉलो-अप करने के निर्देश के साथ अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. जब दर्द बना रहा, तो उनकी मां तेतरी देवी ने पवन कुमार नाम के एक नीम हकीम से सलाह ली, जिसने सर्जन होने का दावा किया था. केवल कंपाउंडर की योग्यता रखने वाले पवन मुर्गी फार्म चौक स्थित बरियारपुर मेन रोड स्थित शुभकांत क्लिनिक नामक तीन कमरों के टीनशेड अस्पताल का संचालन करते थे.

कंपाउंडर पवन कुमार द्वारा संचालित शुभकांत क्लीनिक को सील कर दिया गया है | फोटो : ज्योति यादव/दिप्रिंट

पवन ने तेतरी को बताया कि सुनीता को बच्चेदानी को निकलवाने की ज़रूरत है, जिसमें 20,000 रुपये खर्च होंगे. तेतरी ने बताया, “उसने हमें 3 सितंबर को सुनीता को क्लीनिक लाने के लिए कहा.” शाम 4 बजे सुनीता की सर्जरी होनी थी, लेकिन ऑपरेशन से पहले वो बाथरूम में पेशाब करने चली गई.

सुनीता ने याद किया, “वो आखिरी बार था जब मैंने पेशाब किया था.”

सर्जरी डॉ जितेंद्र कुमार पासवान, डॉ आरके सिंह और पवन कुमार ने की थी. पवन की पत्नी भी वहां मौजूद थी. ढाई घंटे तक चले ऑपरेशन के बाद जब तेतरी को बुलाया गया तो उसने अपनी बेटी को बेहोश पाया. तेतरी ने बताया, “उन्होंने एक स्टील प्लेट पर मांस के तीन बड़े थक्के दिखाए और कहा देखो, ‘उसकी बीमारी इतनी बड़ी थी’.” सुनीता की किडनी और गर्भाशय प्लेट में खुले पड़े थे.

ऑपरेशन के बाद सुनीता को 24 घंटे के लिए सलाइन ड्रिप पर रखा गया, जिससे उसकी हालत और बिगड़ गई. पवन ने तब एक बोलेरो की व्यवस्था की और परिवार से कहा कि उसे पटना में अपने “गुरुजी” के पास ले जाने की ज़रूरत है.

तेतरी ने आरोप लगाया, “पवन उसे (श्री गंगा राम अस्पताल में) भर्ती कराने के बाद भाग गया,” अस्पताल प्रशासन ने सुनीता को छुट्टी देने से पहले 40,000 रुपये की मांग की. वे बाद में उसे पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) ले गए, जहां 5 सितंबर को किए गए एक अल्ट्रासाउंड से पता चला कि उसके दोनों गुर्दे दिखाई नहीं दे रहे थे. 7 और 9 सितंबर को दो और अल्ट्रासाउंड किए गए, केवल उस चौंकाने वाले सच की पुष्टि करने के लिए जिसे तब तक परिवार को पता चल गया था—सुनीता के दोनों गुर्दे चोरी हो गए थे.

अंत में उसे दिसंबर में एसकेएमसीएच में भर्ती कराया गया जब राज्य सरकार ने घोषणा की कि वह उसके इलाज की लागत को वहन करेगी, लेकिन तब तक परिवार करीब 1 लाख रुपये खर्च कर चुका था.

एसकेएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ सतीश कुमार सिंह ने कहा, “हमने ऐसा मामला पहले कभी नहीं देखा. झोलाछाप डॉक्टर दोनों किडनी को कैसे निकाल सकते हैं, जबकि वे शारीरिक रूप से गर्भाशय से काफी दूर हैं?”

एम्स-दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ ज्योति मीणा, जिन्होंने केवल मीडिया में मामले के बारे में पढ़ा है, ने कहा कि सुनीता को गलत सलाह मिली. उसने कहा, “वे दवा शुरू कर सकते थे या संक्रमित अंडाशय को हटा सकते थे. पूरे गर्भाशय को हटाना अनावश्यक था.”

चौंकाने वाले विवरण और मीडिया का ध्यान तेज़ी से पुलिस कार्रवाई के लिए प्रेरित हुआ. पवन और जितेंद्र पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया और वे फिलहाल मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में हैं, जबकि आरके सिंह फरार हैं. एफआईआर में उन्हें मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी बनाया गया है. पवन के तीन कमरों वाले टिन-शेड क्लिनिक को सील कर दिया गया है. .

एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “अस्पताल पंजीकृत नहीं था, ऑपरेशन थियेटर नहीं था और डॉक्टरों की डिग्री प्रदर्शित नहीं की थी.”

पुलिस को किडनी बेचने का कोई सबूत नहीं मिला है. मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार ने कहा, “मामला सामने आने पर उन्होंने उन्हें फेंक दिया होगा.”

कर्ज़ का जाल

सकरा ब्लॉक की एक अन्य दलित महिला पिंकी देवी ने अपनी परिस्थितियों के कारण दिसंबर 2022 में नसबंदी का विकल्प चुना—तीन बच्चों को पालने के लिए और एक पति जो “दिन-रात पीता है”. एक स्थानीय चिकित्सक, राकेश कुमार रोशन, जो दो अस्थायी अस्पताल चलाते हैं, ने उन्हें 18,000 रुपये चार्ज करते हुए हिस्टेरेक्टॉमी कराने के लिए राजी किया. पिंकी को बाद में पता चला कि उसकी मूत्रवाहिनी-वह ट्यूब जो मूत्र को गुर्दे से मूत्राशय तक ले जाती है-प्रक्रिया के दौरान टूट गई थी.

जिस अस्थायी अस्पताल में पिंकी की सर्जरी हुई थी, वे शुभकांत क्लिनिक के करीब था, जहां सुनीता का ऑपरेशन हुआ था. जनवरी के अंत तक, पिंकी की तबीयत बिगड़ने लगीं, लेकिन रोशन ने उसकी चिंताओं को खारिज करते हुए दावा किया कि उसके शरीर की सूजन सामान्य है और अगर वे कम पानी पिएगी तो कम हो जाएगी. जब उसकी हालत बिगड़ गई, तो वह उसे पटना के एक निजी अस्पताल में ले गया, लेकिन जब डॉक्टरों ने उसे ऑपरेशन की लागत – 90,000 रुपये के बारे में बताया तो उसे वापस सकरा ले आया.

पिंकी ने कहा, “इस पूरे समय के दौरान, मैं बूंद-बूंद करके पेशाब आ रही थी. यह बंद ही नहीं हुआ.”

उसका परिवार उसे सदर अस्पताल मुजफ्फरपुर, फिर पीएमसीएच, फिर एम्स-पटना और अंत में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान ले गया. इस महीने की शुरुआत में जब तक उन्हें छुट्टी मिली, तब तक वे 3.5 लाख रुपये का कर्ज चुका चुके थे.

पिंकी ने बेबसी से पूछा, “मैं यह पैसा कैसे चुकाऊंगी?”.

सुनीता की तुलना में उनकी कहानी को मीडिया का अटेंशन कम मिला, यह भी गुड़िया और 2012 के गर्भाशय घोटाले से कम संजीदा मामला नहीं था.

समस्तीपुर जिले के धुरलक गांव की एक दलित महिला पूनम देवी को माला झा और आरआर झा द्वारा संचालित माला नर्सिंग होम में एक अनावश्यक गर्भाशय हटाने की सर्जरी करवानी पड़ी । फोटो : ज्योति यादव/दिप्रिंट

कैंसर युक्त गर्भ

2012 में एक जनता दरबार के दौरान कई महिलाओं ने समस्तीपुर के जिलाधिकारी कुंदन कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में कुछ गलत पाया. महिलाओं ने बताया कि किस तरह डॉक्टरों ने कैंसर होने का दावा करके उनकी बच्चेदानी निकाल ली थी. बिहार के अन्य हिस्सों से भी ऐसी ही खबरें सामने आईं.

कुमार ने उन दिनों को याद करते हुए दिप्रिंट को बताया, “मामला चौंकाने वाला था, लेकिन मैं इस मामले को सनसनीखेज नहीं बनाना चाहता था क्योंकि इसमें गरीबों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्वास्थ्य बीमा योजना शामिल थी.” देश में गर्भाशय हटाने को सार्वजनिक बहस का हिस्सा बनाए जाने पर 2015 में कुमार ने अपनी पहल के लिए लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए पीएम जीता.

उन्होंने एक कैंप का आयोजन किया जहां 2,606 महिलाओं की दोबारा जांच की गई. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट ने पुष्टि की कि उनमें से 316 ने स्वस्थ गर्भ धारण करने के बावजूद हिस्टेरेक्टोमी की थी. इसी कैंप में गुड़िया देवी को पता चला कि उनकी बच्चेदानी ऑपरेशन के दौरान हटा दी गई है.

गुड़िया जो समस्तीपुर प्रशासन द्वारा खोजे गए 259 पीड़ितों में से एक थी, जिसे एक दशक के बाद मुआवजे में 2.5 लाख रुपये दिए गए थे. उन्होंने बताया, “सर्जरी के छह महीने बाद मुझे पता चला कि मेरे पास गर्भ नहीं है. मैं किससे शिकायत कर सकती थी?”

डॉ. जितेंद्र कुमार द्वारा संचालित मां तारा नर्सिंग होम में 25-वर्षीय गुड़िया ने चार बच्चों के साथ ट्यूबल नसबंदी का विकल्प चुना. ऑपरेशन थियेटर में जाने से पहले गुड़िया से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया और न ही गुड़िया से कोई सवाल किया गया. चार दिन तक बेहोश रहने के बाद जब वे उठी तो पांचवें दिन उसे छुट्टी दे दी गई.

समस्तीपुर पुलिस ने आरआर झा और माला झा द्वारा संचालित माला नर्सिंग होम, श्रद्धा ठाकुर और महेश ठाकुर द्वारा संचालित कृष्णा अस्पताल, विष्णु देव प्रसाद द्वारा संचालित लाइफलाइन अस्पताल, राजीव कुमार मिश्रा द्वारा संचालित मिश्रा नर्सिंग होम संगीता कुमारी द्वारा चलाए जा रहे प्रज्ञा सेवा सदन सहित पांच अस्पतालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैं.

मां तारा नर्सिंग होम को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया था, लेकिन समस्तीपुर के उसी पते पर काम कर रहा है । फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

12 अस्पतालों को ब्लैक लिस्ट में डाला गया और पैनल से हटा दिया गया, लेकिन अधिकांश आज अलग-अलग नामों से काम कर रहे हैं. तारा नर्सिंग होम एक दो मंजिला इमारत से संचालित होता है—जिसमें सात बिस्तर, दो नर्स, 6 वार्ड बॉय और एक रिसेप्शनिस्ट है. जितेंद्र कुमार, जो 2012 में सरकारी दस्तावेज़ में नई दिल्ली के श्री गंगा राम अस्पताल से एमबीबीएस थे, अब चेन्नई से एमबीबीएस हैं, दिप्रिंट ने उनके तारा नर्सिंग होम और सी-मैक्स अस्पताल का दौरा करने के बाद पुष्टि की, जो उन्होंने समस्तीपुर में खोला है. उन्होंने गर्भाशय घोटाले में अपनी संलिप्तता के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.

इसके अलावा समस्तीपुर के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, गर्भाशय घोटाले में गिरफ्तार सभी 33 डॉक्टर ज़मानत पर बाहर हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में आधी महिलाएं 35-वर्ष की आयु से पहले गर्भाशय-का ऑपरेशन करवाती हैं. आईआईटी-दिल्ली के 2022 के एक अध्ययन में कहा गया है कि जब राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाएं निजी अस्पतालों को कम लागत पर भुगतान करती हैं तो महिलाओं के अनावश्यक गर्भाशय-उच्छेदन से गुजरने की संभावना अधिक होती है.

अप्रैल में केंद्र के स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों को तीन महीने का समय दिए जाने के बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में राज्य सरकारों से हिस्टेरेक्टॉमी रुझानों का ऑडिट करने का आग्रह किया.

सिविल सर्जन यूसी शर्मा ने कहा, “अंग मानव निर्मित या नकद मुआवजा नहीं हैं. ज्यादातर मामलों में किडनी डोनर फैमिली वाले या रिश्तेदार होते हैं.”

सुनीता का अपना गर्भाशय निकलवाने के लिए एक नीम-हकीम की मदद लेने का निर्णय उसकी मां की जागरुकता की कमी और उसके पति की स्वीकृति से प्रभावित था. उसके परिवार में किडनी डोनर ढूंढना अब उसके लिए मौका है, लेकिन कोई भी आगे नहीं आया है.

शर्मा ने कहा, “उसके माता-पिता मैचेबल उम्र पार कर चुके हैं और उसके चार भाई-बहनों ने अपनी किडनी दान करने से इनकार कर दिया है.”

सुनीता की मां तेतरी अपने बच्चों की मजबूरी समझती है. उन्होंने कहा,“अगर मेरे दूसरे बेटे और बेटियां अपनी किडनी दान करेंगे तो उनके बच्चों की देखभाल कौन करेगा? और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को अपनी बेटी रोहिणी आचार्य से किडनी प्राप्त करने की याद दिलाई.”

“लेकिन सुनीता कोई अमीर घर से नहीं आती हैं और न ही वो पुरुष हैं.”

(संपादनः पूजा मेहरोत्रा/फाल्गुनी शर्मा)

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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